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पूर्व सीएम बीरेन सिंह का मणिपुर हिंसा से जुड़ा ऑडियो टेप असली या नकली! क्यों उलझा मामला?

गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (NFSL) का कहना है कि मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के संदिग्ध ऑडियो टेप में छेड़छाड़ की गई थी

मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह
अपडेटेड 5 नवंबर , 2025

गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (NFSL) ने 3 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मणिपुर में 2023 की जातीय हिंसा से जुड़ा पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का संदिग्ध ऑडियो टेप “छेड़छाड़” कर बनाया गया था और “वैज्ञानिक स्तर पर” तुलना में आवाज को अलग-अलग पाया गया. इस दलील के साथ फोरेंसिक रिपोर्ट आने से एकबारगी तो यही लगता है कि भाजपा नेता बीरेन सिंह के इस मामले में दोषमुक्त होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं.

मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, और अगली सुनवाई 8 दिसंबर को निर्धारित है. तब तक याचिकाकर्ताओं को NFSL रिपोर्ट पर अपना जवाब पेश करना होगा. हालांकि, अदालत आखिरकार यह तय कर देगी कि बीरेन सिंह को दोषमुक्त किया जाए या आगे जांच का आदेश दिया जाए, लेकिन NFSL के निष्कर्षों से टेपों से जुड़े विवाद का समाधान होने की संभावना नजर नहीं आती. वजह, बीरेन सिंह पर आरोप लगाने वालों ने NFSL जैसी सरकार-नियंत्रित संस्थाओं की विश्वसनीयता पर ही संदेह जताना शुरू कर दिया है.

ये टेप मणिपुर में मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय संघर्ष छिड़ने के एक साल से अधिक समय बाद अगस्त 2024 में सामने आए थे. ये रिकॉर्डिंग एक व्हिसलब्लोअर ने साझा कीं, जिन्हें मणिपुर हिंसा पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से नियुक्त न्यायिक आयोग ने स्वीकार कर लिया.

इसके बाद तमाम मीडिया पोर्टल पर इसकी ट्रांसक्रिप्ट पब्लिश की गई जिसमें बीरेन सिंह को यह कहते बताया गया कि कैसे उन्होंने “बमों का इस्तेमाल” न करने के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश की अवहेलना की और शस्त्रागार लूटने वालों का बचाव करते हुए उनके काम को सही ठहराया.

कुकी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट (KOHUR) के नेतृत्व में नागरिक समाज समूहों ने आरोप लगाया कि टेप के जरिये सामने आई बातचीत से पता चलता है कि हिंसा की साजिश में तत्कालीन मुख्यमंत्री की मिलीभगत थी, जिसमें 200 से ज़्यादा लोग मारे गए.

हालांकि, बीरेन सिंह ने दलील दी कि टेप “छेड़छाड़” करके बनाए गए हैं ताकि ऐसे संवेदनशील समय में शांति प्रयासों को पटरी से उतारा जा सके. फिर 2024 के आखिर में KOHUR  ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अदालत की निगरानी में रिकॉर्डिंग की जांच कराने की मांग की. एक निजी फोरेंसिंक एजेंसी Truth Labs ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया गया था कि टेप में सुनी जा रही आवाज और बीरेन सिंह की आवाज के प्रमाणित नमूने में 93 फीसद समानता है.

सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार इस वर्ष फरवरी में मामले पर संज्ञान लिया और केंद्रीय फ़ोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) को टेप की जांच करने का निर्देश दिया, उसी महीने बीरेन सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था. CFSL के किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाने के कारण अगस्त में मामला देश के प्रमुख फोरेंसिक संस्थान गांधीनगर स्थित NFSL को सौंपा गया. लैब को यह निर्धारित करने का काम सौंपा गया था कि क्लिप असली हैं, एडिटिड हैं या छेड़छाड़ की गई हैं, और क्या आवाज बीरेन सिंह की आवाज से मेल खाती है.

बीरेन सिंह के लिए NFSL का निष्कर्ष राहत भरा रहा है. यह रिपोर्ट पहले से ही किए जा रहे उनके इस दावे की पुष्टि करती है कि टेप छेड़छाड़ करके बनाए गए थे, जिससे पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी पर किसी भी तरह का राजनीतिक दबाव दबाव घटा है. सोशल मीडिया पर आमतौर पर सक्रिय रहने के बावजूद बीरेन सिंह NFSL के निष्कर्ष सार्वजनिक होने के बाद से फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं. यह बताता है कि वे हर कदम सावधानी से रखना चाहते हैं.

कुकी संगठनों के लिए NFSL की यह रिपोर्ट एक बड़ा झटका है. मणिपुर हिंसा की साजिश में बीरेन सिंह के शामिल होने के उनके आरोपों को अब तकनीकी आधार पर गलत ठहराया जा रहा है. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे एक्टिविस्ट वकील प्रशांत भूषण ने तुरंत Truth Labs की फोरेंसिक रिपोर्ट पेश कर इसका खंडन किया, जिसमें कहा गया है कि 50 मिनट की रिकॉर्डिंग में 93 फीसद आवाज मेल खाती है और इसमें कोई एडिटिंग नहीं पाई गई है.

भूषण की यह तीखी टिप्पणी कि भाजपा के एक पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ सबूतों की जांच करने वाली NFSL एक सरकारी लैब है, कुकी समूहों में सरकारी संस्थानों के प्रति बढ़ते अविश्वास को दिखाती है.

न्यायाधीशों के लिए भी यह मामला काफी नाजुक बन गया है. सरकारी लैब के निष्कर्षों को स्वीकारने से ऐसी धारणा बन सकती है कि मामले में कथित तौर पर लीपापोती की गई है. दूसरी तरफ, NFSL के निष्कर्षों पर सवाल उठाने और NFSL और Truth Labs की परस्पर विरोधी रिपोर्टों को देखते हुए समानांतर सत्यापन का आदेश देना, परोक्ष रूप से यही संकेत देगा कि राजनीतिक मामलों में देश के प्रमुख फोरेंसिक संस्थान पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

जस्टिस संजय कुमार की बेहद सावधानीपूर्वक लिखी गई यह टिप्पणी—“यह एक प्रमुख फोरेंसिक लैब मानी जाती है”—दर्शाती है कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ जानती है कि मामला कितना तनावपूर्ण है. चूंकि NFSL की रिपोर्ट छेड़छाड़ की पुष्टि करती है, इसलिए कोर्ट अब इस पर फोकस कर सकती है कि रिकॉर्डिंग का स्रोत क्या है और इसमें कब और किसने फेरबदल किया.

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायिक संयम बरतने का आग्रह किया और अब “शांत” राज्य में “हस्तक्षेप” न करने पर जोर दिया. लेकिन जैसा मणिपुर का हालिया इतिहास दर्शाता है, शांति अभी अनिश्चित बनी हुई है. जांच का विस्तार करने या एक सीमा रेखा खींचने वाले कोर्ट के अगले कदम से न केवल आरोपों की विश्वसनीयता तय होगी बल्कि ये भी पता चलेगा कि जब तकनीक, राजनीति और सच्चाई आपस में टकराएं तो भारत की न्यायिक व्यवस्था कितनी दूर तक जा सकती है.

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