
राजधानी पटना के एलसीटी घाट पर गंगा नदी के किनारे टेंटों की कतारें सजी हैं. सामने एक गेट बना है, जिस पर लिखा है 'बिहार सत्याग्रह आश्रम'. यह चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर का नया ठिकाना है.
बीपीएससी अभ्यर्थियों के पक्ष में 14 दिनों तक किए अनशन को उन्होंने यहीं गंगा किनारे तोड़ा था और उसके बाद पूजन-हवन कर वे इसी आश्रम में ठहर गए और कहा कि यहीं से उनके सत्याग्रह के दूसरे चरण की शुरुआत होगी.
दो साल तक बिहार के गांव-गांव में घूमने के बाद दो अक्तूबर, 2024 को जब प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी की स्थापना की तो उन्होंने दावा किया था कि उनकी पार्टी 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और अकेले अपने दम पर सरकार बनाएगी. मगर इस चुनावी साल में जब राज्य की हर पार्टी गठबंधन और सीटों के बंटवारे में जुटी है, जनसुराज पार्टी के सर्वमान्य चेहरा प्रशांत किशोर का आश्रम बनाकर सत्याग्रह शुरू करना, उनके विरोधियों ही नहीं समर्थकों और पार्टी के बड़े नेताओं को भी पच नहीं रहा. ऐसे में यह बड़ा सवाल उठने लगा है कि आखिर किस दिशा में जा रही है जनसुराज की राजनीति.
इसी जुड़ा पहला सवाल तो यह है कि आखिर इस बिहार सत्याग्रह आश्रम में क्या होगा?

विदेशी टेंट और जर्मन हैंगर से बने इस सत्याग्रह आश्रम में पहुंचते ही जो पोस्टर सबसे पहले आपका ध्यान खींचता है, उस पर लिखा है 'ध्वस्त शिक्षा और भ्रष्ट परीक्षा व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह'. उसके बाद कुछ डेस्क दिखती हैं, जहां आने वाले युवाओं का रजिस्ट्रेशन हो रहा होता है और उसके आगे धातु की बनी हुई महात्मा गांधी की एक विशाल प्रतिमा दिखती है. अंदर टोलियों में जगह-जगह युवा बैठे होते हैं. एक जगह 50-60 युवा बैठे मिलते हैं और उन्हें कोई युवा ही संबोधित कर रहा होता है. थोड़ी देर में प्रशांत किशोर अपने साथियों के साथ वहां आते हैं और वहां अपने वाहिनी (पदयात्री) के साथियों के साथ बैठक शुरू कर देते हैं.
इस तरह शिक्षा, परीक्षा, युवा और महात्मा गांधी की उस शिविरि में खास मौजूदगी है. प्रशांत किशोर ने खुद कहा है कि अब बिहार के युवाओं के लिए गांधी के रास्ते पर चलकर सत्याग्रह करने की जरूरत है. उनके साथी बताते हैं कि वे कम से कम होली तक यहीं रहेंगे. इस बीच उनका लक्ष्य एक लाख युवाओं को प्रशिक्षित करना है. उन्होंने शेखपुरा हाउस वाली अपनी जगह को छोड़ दिया है, जो अब तक पटना में उनका ठिकाना हुआ करता था.
प्रशांत के करीबी और जनसुराज पार्टी के जनरल सेक्रेटरी किशोर कुमार मुन्ना बताते हैं, "अभी यह तय हुआ है कि यहां युवाओं के तीन तरह के प्रशिक्षण होंगे. पहला तीन दिन का, दूसरा एक हफ्ते का और तीसरा 21 दिनों तक. उनके यहीं रहने की व्यवस्था होगी. प्रशिक्षण में उन्हें सत्याग्रह का गांधी का रास्ता सिखाया जायेगा ताकि वे शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से अपनी लड़ाइयां लड़ सकें. हमारा लक्ष्य अगले आठ हफ्तों में एक लाख युवाओं को प्रशिक्षित करना है. इसके अलावा पूरे राज्य का कोई भी पीड़ित व्यक्ति यहां आकर अपनी बात रख सकता है. यहां जल्द 15-20 हजार लोगों के रहने की व्यवस्था होगी."

युवाओं को राजनीति और सत्याग्रह सिखाने की प्रशांत की यह योजना नई नहीं है. काफी पहले से उनके मन में यह योजना चलती रही है. पदयात्रा और जनसुराज अभियान से भी काफी पहले फरवरी, 2020 में जब उन्होंने 'बात बिहार की' अभियान की शुरुआत की थी, तब भी उन्होंने दस लाख बिहारी युवाओं को साथ लाने और राजनीति में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा था. उनके करीबी साथी कहते हैं कि बीपीएससी आंदोलन से जुड़ने और अनशन करने के बावजूद छात्रों को सरकार से न्याय न दिला पाने की कसक उनके मन में रह गई. इसलिए उन्होंने सबकुछ छोड़कर सत्याग्रह और युवाओं के प्रशिक्षण का यह अभियान शुरू किया है.
मगर उनके इस अभियान और खुद को सत्याग्रह और युवाओं के प्रशिक्षण तक सीमित कर लेने से राज्य के कोने-कोने तक फैले जनसुराज के नेता और कार्यकर्ता दुविधा की स्थिति में हैं. अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर प्रदेश स्तर के एक नेता कहते हैं, "शिक्षा और परीक्षा का मुद्दा बड़ा है, मगर बिहार में दूसरे भी बड़े मुद्दे हैं. हर जिले में कोई न कोई ऐसा मुद्दा है, जिस पर अलग-अलग तरीके से संघर्ष की जरूरत है. ऐसे में संघर्ष को पटना में केंद्रित करना ठीक नहीं. इसके अलावा यह चुनावी साल है और इस वक्त हमें पार्टी और उम्मीदवारों के बारे में सोचना चाहिए."
पार्टी बनने से पहले प्रशांत किशोर ने घोषणा की थी कि दिसंबर, 2024 तक हर विधानसभा क्षेत्र से पांच-पांच संभावित उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी जाएगी. फिर वे अपना अभियान चलाएगें, आखिर में उस विधानसभा के वोटर तय करेंगे कि इनमें से किसको जनसुराज का टिकट मिलेगा. मगर आज की तारीख तक यह घोषणा नहीं हुई है.

इस मसले पर किशोर कुमार मुन्ना कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि सत्याग्रह आश्रम में सिर्फ शिक्षा और परीक्षा के मसले पर ही बात होगी. जनता से जुड़े तमाम मसलों पर बात होगी. राज्य के हर इलाके से लोग आएंगे तो अपनी समस्याएं भी लेकर आएंगे और लौटकर, प्रशिक्षण लेकर जाएंगे तो अपने इलाके के मसलों पर सत्याग्रह करेंगे."
मगर इन बातों से जनसुराज के बड़े नेता बहुत खुश नहीं हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव और बिहार के पूर्व मंत्री मोनाजिर हसन पार्टी से पहले ही किनारा कर चुके हैं. हाल में अति पिछड़ा समूह के बड़े नेता रामबली चंद्रवंशी ने भी मीडिया में आकर सार्वजनिक रूप से पार्टी की कार्यशैली की आलोचना की.
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "पार्टी में जेएसपीटी (जनसुराज प्रोफेशनल टीम) का दबदबा है. अभी राजनेताओं की पार्टी नहीं बनी है. पार्टी की स्थापना के चार महीने बाद भी आज तक पार्टी का अकाउंट तक नहीं खुला है."
जेएसपीटी के आधिपत्य की बात कई नेता कहते हैं. इंडिया टुडे से बातचीत में कोर कमिटी से इस्तीफा देने वाले कद्दावर नेता मोनाजिर हसन बहुत उग्र होकर कहते हैं, "ये भाड़े के टट्टू पार्टी के राजनीतिक नेताओं को नीचा दिखाते हैं. जेएसपीटी ही पार्टी को लीड कर रही है, अगर यही हाल रहा तो 2025 के चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुलेगा." हसन के एक समर्थक कहते हैं, "पार्टियों में नाराजगी चलती रहती है. मोनाजिर साहब जदयू में थे तो जब वे नाराज होते तो नीतीश जी खुद फोन करते. मगर यहां सबको मालूम है, पर प्रशांत किशोर जी को आज तक उनसे बात करने का वक्त नहीं मिला."
देवेंद्र यादव खुल कर कुछ नहीं कहते, मगर कहा जा रहा है कि उनकी नाराजगी भी इन्हीं मसलों को लेकर है. वहीं एक अन्य कद्दावर नेता आफाक अहमद भी पार्टी की गतिविधियों से दूर नजर आते हैं. कहा जाता है कि उनकी भी इन मसलों की वजह से नाराजगी है, मगर चूंकि प्रशांत किशोर की वजह से ही वे विधान परिषद सदस्य बने हैं, इसलिए वे खुल कर कुछ नहीं कहते.
जेएसपीटी के प्रोफेशनल लंबे समय से प्रशांत के करीबी रहे हैं. ये लोग उनकी पुरानी संस्था आईपैक के साथ भी जुड़े रहे थे. ऐसा माना जाता है कि ये उनके आंख-कान और नाक हैं. जनसुराज से जुड़ने वाले राजनेताओं के साथ प्रशांत उतने सहज नहीं हो पाए हैं, जितना सहज संबंध उनका जेएसपीटी के प्रोफेशनल्स के साथ है. वे अमूमन उन्हीं लोगों के साथ घिरे रहते हैं.
कई नेता यह कहते हैं कि कम से कम हर जिले के चार-पांच नेताओं से प्रशांत की वन टू वन बातचीत होनी चाहिए थी. मगर वे किसी भी नेता से बात करने के लिए जेएसपीटी के साथियों को बीच में ले आते हैं. उनके और प्रशांत किशोर के बीच जेएसपीटी की अनिवार्य मौजूदगी रहती है. यह बात पुराने राजनेताओं को अखरती है.
इन सवालों पर बात करते हुए किशोर कुमार मुन्ना कहते हैं, "जनसुराज एक ऐसी पार्टी है, जहां हर फैसला बहुमत से होता है. ऐसा नहीं कि कोई बड़ा नेता कुछ कहे और उनकी बात मान ली जाए. प्रशांत भी कोई फैसला लोगों से पूछकर ही लेते हैं. जहां तक जेएसपीटी का सवाल है, वह हमारा साधन है. उसके दम पर ही हमलोग इतने कम समय में इतनी बड़ी पार्टी बन पाए हैं. प्रशांत लगातार काम करते हैं, उनके काम को जेएसपीटी के साथी ही संभालते हैं. इसलिए जब किसी को उनके मिलना होता है तो इन लोगों के सहारे ही मिलना होता है. ऐसा नहीं कि प्रशांत लोगों से नहीं मिलते. खूब मिलते हैं, हां प्वाइंट टू प्वाइंट बाते करते हैं." मुन्ना के मुताबिक रामबली चंद्रवंशी, मोनाजिर हसन और देवेंद्र यादव जैसे नेताओं की 'असहमतियों' पर पार्टी की नजर है और पार्टी इनको सुलझाने की दिशा में काम कर रही है.