उत्तर प्रदेश की सड़कों पर अब इंजन की गरज कम और मोटर की सरसराहट अपेक्षाकृत ज्यादा सुनाई देने लगी है. लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाले शुभम वर्मा रोज़ ऑफिस जाने के लिए अब पेट्रोल स्कूटी नहीं चलाते. उन्होंने कुछ महीने पहले इलेक्ट्रिक स्कूटर खरीदा है.
शुभम मुस्कराते हुए बताते हैं, “पहले हर हफ्ते आठ सौ से हज़ार रुपये पेट्रोल पर खर्च होता था, अब चार्जिंग में सौ रुपये से ज़्यादा नहीं लगता. रखरखाव भी आसान है.” शुभम जैसे लाखों उपभोक्ता अब इस बदलाव का हिस्सा बन चुके हैं. सरकार का दावा है कि आने वाले कुछ वर्षों में यह बदलाव न सिर्फ लोगों की जेब बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी बड़ा सहारा देगा.
योगी सरकार ने ई-वाहनों की खरीद पर अगले पांच साल में 440 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने का फैसला किया है. अब तक तीन साल में केवल 85 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि अगले दो वर्षों के लिए 355 करोड़ का लक्ष्य तय किया गया है. इस बड़े प्रोत्साहन का मकसद स्पष्ट है- राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ाना, प्रदूषण घटाना और उद्योग को नई ऊर्जा देना.
उच्च स्तरीय प्राधिकृत ई-व्हीकल समिति की बैठक में 17 अक्टूबर को यह तय किया गया कि उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रिक वाहन एवं गतिशीलता नीति-2022 को दो वर्ष और बढ़ाया जाएगा. पहले इस नीति में तीन साल तक पंजीकरण शुल्क और रोड टैक्स में 100 प्रतिशत छूट थी, जिसकी वैधता 13 अक्टूबर 2025 तक थी. अब यह छूट 2027 तक लागू रहेगी. इसका मतलब है कि राज्य में पंजीकृत हर ई-वाहन को अगले दो साल तक पूरा टैक्स माफ रहेगा. समिति ने यह भी पाया कि देश के अन्य प्रमुख राज्य- दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु भी 100 प्रतिशत छूट दे रहे हैं. यूपी ने भी यही राह चुनी है ताकि ई-वाहनों की अपनाने की दर और बढ़ सके.
नीति आयोग की वर्ष 2024 की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को ‘परफॉर्मर स्टेट’ बताया गया है. रिपोर्ट कहती है कि देश में बिकने वाले कुल ई-वाहनों में यूपी की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है. यह वही राज्य है जो कुछ साल पहले तक ऑटोमोबाइल उद्योग के मामले में पिछड़ा माना जाता था. आज यूपी इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट में दिल्ली और महाराष्ट्र को भी पीछे छोड़ चुका है. फिलहाल यहां पंजीकृत ई-वाहनों की संख्या 4.14 लाख से अधिक है, जबकि दिल्ली में 1.83 लाख और महाराष्ट्र में 1.79 लाख ई-वाहन हैं.
यह बढ़त केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि बाजार की दिशा तय करने वाली भी है. सरकार के मुताबिक, यूपी में ई-वाहनों की सबसे ज्यादा मांग पर्यटन स्थलों और घनी आबादी वाले शहरों में बढ़ी है. अयोध्या, वाराणसी, मथुरा और लखनऊ जैसे शहरों में ई-रिक्शा, ई-स्कूटर और ई-बसें आम हो चुकी हैं. अयोध्या में सबसे अधिक नए चार्जिंग स्टेशन लगाए जा रहे हैं. कुल 16 नगरीय निकायों में 300 से अधिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं. सरकार का लक्ष्य है कि अगले दो वर्षों में हर प्रमुख मार्ग और शहर में चार्जिंग की समस्या खत्म हो जाए.
इस नीति के पीछे पर्यावरणीय पहलू भी उतना ही महत्वपूर्ण है. उत्तर प्रदेश के कई शहर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं. वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में लगातार गिरावट के बाद सरकार ने ई-वाहनों को शून्य उत्सर्जन वाले विकल्प के रूप में आगे बढ़ाया है. अनुमान है कि राज्य में मौजूदा 4 लाख ई-वाहनों से हर साल करीब 2.5 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई है. अगर अगले दो वर्षों में इनकी संख्या दोगुनी हो जाती है, तो यह कमी 5 लाख टन तक पहुंच सकती है. यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए, बल्कि पेट्रोलियम आयात पर होने वाले खर्च में कमी के लिहाज से भी अहम है.
राज्य की इलेक्ट्रिक वाहन नीति का दूसरा बड़ा लक्ष्य स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देना है. हालांकि फिलहाल यूपी में बड़े पैमाने पर EV उत्पादन इकाइयां नहीं हैं. इस वजह से सरकार ने यह शर्त हटा दी है कि केवल राज्य में निर्मित वाहनों को ही सब्सिडी मिलेगी. अब बाहर से आने वाले वाहनों को भी समान लाभ मिलेगा. इससे उपभोक्ताओं को राहत तो मिलेगी ही, उद्योगों को भी बाजार की गारंटी मिलेगी.
सरकार “इन्वेस्ट यूपी” के तहत बने समर्पित ऑटो डेस्क के जरिए वैश्विक कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित कर रही है. जापान और जर्मनी की कई कंपनियों ने EV विनिर्माण इकाइयां लगाने में रुचि दिखाई है. अनुमान है कि 30 हजार करोड़ रुपये तक का निवेश राज्य में आएगा, जिससे लगभग 10 लाख नौकरियां सृजित होंगी.
वर्तमान में देश में लगभग 33,000 EV चार्जिंग स्टेशन हैं, जिनमें से करीब 35 प्रतिशत फास्ट चार्जर हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश की जनसंख्या और वाहन संख्या को देखते हुए यह आंकड़ा काफी कम है. इसलिए सरकार चार्जिंग नेटवर्क को प्राथमिकता दे रही है. लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर फास्ट चार्जिंग कॉरिडोर बनाने की योजना है. ऊर्जा विभाग और नगर विकास विभाग मिलकर चार्जिंग पॉइंट्स की लोकेशन तय कर रहे हैं. साथ ही निजी कंपनियों को भी चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए जमीन और सस्ती बिजली दरों का प्रोत्साहन दिया जा रहा है.
ई-वाहनों की तेजी से बढ़ती बिक्री के कई आर्थिक मायने हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर अगले दो वर्षों में यूपी में EV की संख्या 10 लाख तक पहुंचती है, तो प्रतिवर्ष करीब 1,500 करोड़ रुपये के ईंधन की बचत होगी. यह बचत सीधे-सीधे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति और राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी. साथ ही पेट्रोल-डीजल की मांग घटने से पर्यावरणीय लागत में भी कमी आएगी. EV बाजार के विस्तार ने कंपनियों की रणनीति बदल दी है. टाटा मोटर्स, महिंद्रा, हीरो इलेक्ट्रिक, ओला इलेक्ट्रिक और ग्रीन सेल जैसी कंपनियां राज्य में अपने नेटवर्क का तेजी से विस्तार कर रही हैं. सरकार चाहती है कि चार्जिंग स्टेशन और सर्विस नेटवर्क दोनों समान रूप से बढ़ें, ताकि उपभोक्ताओं का भरोसा बना रहे. परिवहन विभाग ने अगले साल तक 500 से अधिक ई-बसें सड़कों पर उतारने की योजना बनाई है. लखनऊ, कानपुर, मेरठ और वाराणसी इसके प्रमुख केंद्र होंगे.
हालांकि जमीन पर अभी चुनौतियां कम नहीं हैं. छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में चार्जिंग स्टेशनों की कमी और बिजली कटौती बड़ी दिक्कत हैं. प्रयागराज के ई-रिक्शा चालक सलीम अहमद बताते हैं, “चार्जिंग पॉइंट कम हैं, इसलिए कई बार रात में घंटों लाइन लगानी पड़ती है.” कई निजी खरीदारों ने सब्सिडी की प्रक्रिया को भी जटिल बताया है. साथ ही सेकंड हैंड E-वाहनों की बिक्री और बैटरी बदलने की नीति पर अभी स्पष्टता नहीं है. इन व्यावहारिक चुनौतियों के बावजूद सरकार का रुख स्पष्ट है. राज्य EV नीति के जरिये आर्थिक, पर्यावरणीय और औद्योगिक तीनों मोर्चों पर एक साथ काम करना चाहती है.
उत्तर प्रदेश अब केंद्र सरकार की FAME-I और FAME-II (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles in India) योजनाओं का सबसे बड़ा लाभार्थी बन चुकी है. इन योजनाओं के तहत चार्जिंग ढांचे और वाहनों की खरीद पर यूपी को सबसे अधिक आर्थिक सहायता मिली है. अब सरकार फेम थ्री नीति की तैयारियों में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है. नीति आयोग में तैनात रहे एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि उत्तर प्रदेश के पास जनसंख्या, बाजार और नीति—तीनों की ताकत है. “अगर अगले दो साल में चार्जिंग ढांचा मजबूत हो गया, तो यूपी देश का सबसे बड़ा EV हब बन सकता है,” अधिकारी कहते हैं.
इस नीति के चलते कई स्थानीय स्तर पर भी नए अवसर बन रहे हैं. लखनऊ में कुछ स्टार्टअप चार्जिंग स्टेशन प्रबंधन और बैटरी स्वैपिंग सेवाओं पर काम कर रहे हैं. कानपुर और नोएडा में EV बैटरी रीसाइक्लिंग यूनिट्स की योजना है. इससे राज्य में EV पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण को बल मिलेगा. सरकार की मंशा है कि यूपी को न सिर्फ ई-वाहनों के उपयोग में, बल्कि उनके निर्माण और बैटरी विनिर्माण में भी आत्मनिर्भर बनाया जाए. यह दिशा तय हो चुकी है कि अगले पांच वर्षों में राज्य को EV और बैटरी विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाया जाएगा. इसके लिए निवेश और नीति, दोनों की रफ्तार बढ़ाई जा रही है. EV की बढ़ती लोकप्रियता से उत्तर प्रदेश अब सिर्फ उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता राज्य बनने की तैयारी में है. हालांकि आगे की राह आसान नहीं है. लखनऊ के आटोमोबाइल विशेषज्ञ सुधीर पुंडीर बताते हैं “ नीति का असली असर तब दिखेगा जब चार्जिंग स्टेशन हर जिले में पहुंचेंगे, बैटरी तकनीक स्थानीय स्तर पर विकसित होगी और उपभोक्ताओं को सब्सिडी का लाभ समय पर मिलेगा.”
फिलहाल तस्वीर उम्मीद जगाती है. लखनऊ से लेकर अयोध्या और गोरखपुर तक ई-रिक्शा और ई-स्कूटरों की बढ़ती मौजूदगी साफ दिखाती है कि जनता इस परिवर्तन को अपना रही है. अगर सरकार की योजना तय रफ्तार से आगे बढ़ी, तो उत्तर प्रदेश न सिर्फ ईंधन बचाने में अग्रणी बनेगा, बल्कि हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में देश का नेतृत्व भी कर सकता है. राज्य की सड़कों पर दौड़ते ये शांत, बिना धुएं वाले वाहन शायद उस भविष्य की झलक हैं जहां विकास की गति तेज होगी, लेकिन हवा पहले से ज्यादा साफ.