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यूपी के कारोबारी कैसे निकाल रहे ट्रंप के टैरिफ का तोड़?

अमेरिकी टैरिफ से यूपी में कारोबार का संतुलन बिगड़ा. योगी सरकार नई निर्यात नीति और विशेष रियायतों के साथ यूरोप, रूस, यूके और मिडल ईस्ट में व्यापार विस्तार की तैयारी कर रही है

subsidies for leather business
भारत की 'लेदर कैपिटल' का कारोबार ट्रंप टैरिफ से बुरी तरह प्रभावित हुआ है
अपडेटेड 28 अगस्त , 2025

अमेरिका का भारतीय सामानों पर 50 फीसदी टैरिफ 27 अगस्त से लागू हो गया है. हालांकि महीने की शुरुआत में इसकी घोषणा के साथ ही देश में इसका असर दिखना शुरू हो गया था. यूपी के प्रमुख निर्यातक केंद्र- कानपुर, आगरा, मुरादाबाद और भदोही, अमेरिकी बाज़ार पर लंबे समय से निर्भर रहे हैं. लेकिन अब अमेरिकी टैरिफ़ ने कारोबार का संतुलन बिगाड़ दिया है. 

जूता, लेदर, कालीन और हैंडीक्राफ्ट उद्योग के लिए अमेरिकी बाज़ार अब महंगा साबित हो रहा है, जिससे न सिर्फ़ ऑर्डर कैंसिल हुए हैं बल्कि कई उत्पादकों ने अमेरिका को माल भेजना ही बंद कर दिया है. मगर तस्वीर पूरी तरह निराशाजनक नहीं है. यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार और यहां के उद्यमी मिलकर अमेरिकी निर्भरता से बाहर निकलने और नए बाज़ार खोजने की जुगत में जुट गए हैं.

कानपुर, जिसे भारत की "लेदर कैपिटल" कहा जाता है, वहां का निर्यात सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. कानपुर का लेदर और चर्म उत्पाद उद्योग अमेरिका पर सबसे ज़्यादा निर्भर रहा है. पिछले वित्तीय वर्ष में कानपुर से 10,000 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था, जिसमें अकेले अमेरिका की हिस्सेदारी 2,500 करोड़ की थी. इसमें से लगभग 1,000 करोड़ रुपये के लेदर प्रोडक्ट्स जाते थे. लेकिन 50 फीसदी टैरिफ़ लागू होने के बाद संभावनाएं ध्वस्त हो गईं. 

यूपी लेदर इंडस्ट्री के जानकार बताते हैं कि अब निर्यातकों ने यूरोप की ओर रुख किया है. जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, पोलैंड, नीदरलैंड, स्वीडन, स्विट्जरलैंड और डेनमार्क जैसे देशों में करीब 3,500 करोड़ रुपये के उत्पाद कानपुर से जा रहे हैं. जर्मनी लेदर प्रोडक्ट्स का सबसे बड़ा खरीदार है, जहां सालाना 727 करोड़ रुपए का निर्यात होता है. 

इसी तरह आगरा का जूता और हैंडीक्राफ्ट उद्योग भी अमेरिका पर काफी हद तक निर्भर था. आगरा से सालाना 1,200 करोड़ रुपये के हैंडीक्राफ्ट निर्यात होते हैं, जिसमें से आधा हिस्सा अमेरिका जाता था. टैरिफ़ के बाद ऑर्डर कैंसिल हुए और कारोबारी अब यूरोप व यूके पर फोकस कर रहे हैं. आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्ट चैंबर के उपाध्यक्ष राजीव वासन साफ कहते हैं, “निर्यातक दुविधा में हैं. एक झटके में 1,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुकसान सामने है.” इसी तरह हाथरस और मुरादाबाद जैसे क्लस्टर भी झटके में हैं.”

फुटवियर और चमड़ा उद्योग विकास परिषद  के चेयरमैन पूरन डावर के मुताबिक यूरोपियन बाज़ार में यूपी के जूता और लेदर प्रोडक्ट्स की मांग पहले से रही है. अब यहां और ज़्यादा विस्तार की तैयारी है. खासकर स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे और आयरलैंड जैसे देशों के साथ हाल ही में भारत-यूरोपियन FTA  (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर होने से 1 अक्टूबर से व्यापार के नए अवसर खुलेंगे.” 

डावर आगे यह भी जानकारी देते हैं कि रूस में जूता और इंजीनियरिंग गुड्स की मांग बढ़ी है. कानपुर से रूस को पहले से ही लेदर प्रोडक्ट्स भेजे जाते हैं और अब कारोबारी यहां अपने नेटवर्क को और मज़बूत कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर अमेरिकी दबावों के बावजूद चीन में भारतीय उत्पादों की मांग बनी हुई है. कानपुर से चीन को अभी सालाना 600 करोड़ रुपये के उत्पाद जाते हैं. अब यहां विस्तार की गुंजाइश देखी जा रही है. साथ ही ब्रिटेन पहले से ही यूपी के लेदर और फुटवियर का बड़ा बाज़ार है. आगरा से 555 करोड़ रुपये और कानपुर से 1,800 करोड़ रुपये का कारोबार हर साल होता है. भारत-यूके “फ्री ट्रेड एग्रीमेंट” होने से यह अवसर और बड़ा हो सकता है. 

यूपी में निर्यातकों की संस्थाएं भी बैठकों और मंथन में जुटी हैं. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के सहायक निदेशक आलोक श्रीवास्तव कहते हैं,“अमेरिका को जितना निर्यात होता है, उतना यूरोप में भी हो सकता है. आने वाले समय में यूरोप, रूस और यूके नए निर्यात केंद्र बन सकते हैं. ” वहीं चर्म निर्यात परिषद के क्षेत्रीय चेयरमैन असद इश्तियाक़ के मुताबिक यूरोप और रूस के साथ यूके में पहले से ही निर्यात हो रहा है. अब इसे बढ़ाने की ज़रूरत है. जिन देशों तक अभी माल नहीं पहुंचा, वहां भी नए नेटवर्क बनाए जा रहे हैं. मिडल ईस्ट और अफ्रीकी देशों की तरफ भी यूपी के व्यापारी देख रहे हैं. सऊदी अरब, यूएई, कतर और ओमान में जूतों और तैयार कपड़ों की बड़ी खपत है. खासकर दुबई, जो री-एक्सपोर्ट हब है, वहां से उत्पादों को आगे अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक पहुंचाया जा सकता है. कारोबारी वर्ग अब छोटे देशों पर भी फोकस कर रहा है- जैसे ग्रीस, रोमानिया, पुर्तगाल, लिथुआनिया, फिनलैंड और ऑस्ट्रिया. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के अधिकारी भी मानते हैं कि यूरोप और मिडल ईस्ट, दोनों मिलकर अमेरिका जितना बड़ा बाज़ार उपलब्ध करा सकते हैं.

योगी सरकार भी अमेरिकी टैरिफ़ के असर को कम करने के लिए नई निर्यात पॉलिसी पर काम कर रही है. सूत्रों के मुताबिक, इस पॉलिसी में कुछ खास प्रावधान शामिल होंगे, जैसे- निर्यात संवर्धन कोष : ग्लोबल सम्मेलनों और ट्रेड फेयर में “ब्रांड यूपी” को प्रमोट करने के लिए खास फंड बनाया जाएगा. विशेष रियायतें : ऐसे निर्यातक जिनका 60-70 फीसदी निर्यात अमेरिका को होता था, उनके लिए विशेष राहत पैकेज होगा. परफॉर्मेंस-लिंक्ड इंसेंटिव : निर्यात को परफॉर्मेंस के आधार पर इंसेंटिव से जोड़ा जाएगा. एफटीए वाले देशों पर फोकस : स्पेन, इटली, ब्राजील और मलेशिया जैसे देशों में जहां मांग है लेकिन निर्यात कम है, वहां कारोबार बढ़ाने की रणनीति बनेगी. ईज ऑफ डूइंग एक्सपोर्ट : ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की तर्ज पर अब निर्यातकों के लिए एक नया फ्रेमवर्क लागू होगा. इसमें ऑनलाइन क्लीयरेंस, डिजिटल इंफॉर्मेशन हब और वन-स्टॉप सुविधा शामिल होगी. डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स : निर्यातकों को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया मार्केटिंग पर इंसेंटिव मिलेगा. मिशन निर्यात प्रगति:  मार्केट रिसर्च, नए देशों की पहचान और निर्यातकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम इसमें शामिल होंगे.

हाल ही में सीएम योगी ने टैरिफ़ और जीएसटी दरों के बदलाव पर अधिकारियों के साथ बैठक की. इसमें निर्यातकों को सहूलियत देने और जीएसटी दरों (5 और 18 फीसदी) को लागू करने की रणनीति पर चर्चा हुई. यूपी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया टुडे से कहा, “हम अमेरिका से हुए नुकसान को लेकर चिंतित हैं, लेकिन अब फोकस यूरोप और एशिया में अवसर खोजने पर है. हर क्लस्टर को नया बाज़ार तलाशने में मदद दी जा रही है.”

हालांकि नए बाज़ार तलाशने की कोशिश हो रही है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं. इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के पदाधिकारी मानते हैं कि यूरोप और रूस में पहले से चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों के उत्पाद मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं. यूरोप और लैटिन अमेरिका तक सामान पहुंचाना महंगा पड़ता है. ग्लोबल स्तर पर ब्रांड यूपी को खड़ा करने के लिए उत्पाद की क्वालिटी और पैकेजिंग को अंतरराष्ट्रीय मानकों तक ले जाना होगा. फिर भी, सरकार और उद्योगपति मानते हैं कि यह संकट एक अवसर भी है. अमेरिकी निर्भरता घटाकर अगर यूपी के उद्योग वैश्विक स्तर पर विविधता ला सके तो यह लंबे वक्त में फायदेमंद साबित होगा.

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