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बंगाल में मतदाताओं की गिनती क्यों है बेहद मुश्किल काम?

पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) के तहत 2002 और 2025 की मतदाता सूचियों का मिलान किया जा रहा है और यह काम 20 सितंबर तक पूरा होना है

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों का मिलान डिजिटली मुमकिन नहीं है (फोटो : दिव्यज्योति चक्रवर्ती)
अपडेटेड 17 सितंबर , 2025

पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग (EC) का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान आधिकारिक तौर पर अधिसूचना जारी होने से पहले ही शुरू हो चुका है. बूथ-स्तरीय अधिकारियों (BLO) को एक चुनौतीपूर्ण कार्य शुरू करने का निर्देश देने वाले पत्र जिलों में पहुंच चुके हैं और इसके तहत 1 जनवरी 2002 की मतदाता सूचियों का 1 जनवरी, 2025 की मतदाता सूचियों के साथ ही नहीं, इस वर्ष 1 अप्रैल और 1 जुलाई की पूरक मतदाता सूचियों के साथ भी मिलान करना है. यह काम 20 सितंबर तक पूरा करने की समयसीमा निर्धारित की गई है जिसमें गलती या देरी के लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़ी गई है.

पहली नजर में यह एकदम सीधी-सादी प्रक्रिया लगती है. हर एक BLO एक बूथ से जुड़ा होता है. उसे उस बूथ की 2002 और 2025 की सूचियों का मिलान करना है. अगर किसी मतदाता का नाम 2025 की सूची में है तो अधिकारी को यह सत्यापित करना होगा कि क्या 2002 की सूची में भी उसका नाम था.

अगर ऐसा है तो BLO को पुराने विधानसभा क्षेत्र का नाम और संख्या, भाग का नाम और संख्या, और उस एंट्री का नंबर मैन्युअली दर्ज करना होगा. अगर किसी व्यक्ति का नाम 2002 में नहीं है लेकिन माता-पिता के नाम मिल सकते हैं तो माता-पिता का विवरण उसी तरह दर्ज करना होगा.

चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि अगर जरूरत पड़े तो आसपास के बूथों के BLO मतदाताओं की ऐसी जानकारी जुटाने में मदद करें. इस काम की निगरानी सहायक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (AERO), निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ERO) और वरिष्ठ चुनाव आयोग अधिकारियों के जिम्मे है.

यह तो प्रक्रियागत व्यवस्था हुई, लेकिन इन निर्देशों का पालन करना इतना आसान काम भी नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि बंगाल में 75,000 से 80,000 बूथ हैं और इस वर्ष यह संख्या और बढ़ने वाली है. बनगांव के कुछ ब्लॉकों में बूथों की संख्या 400 से ज्यादा है, जबकि राजारहाट-बिधाननगर में यह 500 को पार कर जाती है.

फिर, ग्रामीण बंगाल में संख्या घटकर 150 तक भी हो सकती है. हर बूथ की अपनी अलग मतदाता सूची होती है और इनमें कोई भी दस्तावेज मशीन-रीडेबल नहीं है. इसलिए अधिकारी किसी नाम को कंप्यूटर पर टाइप करके उसके बारे में जानकारी नहीं जुटा सकते. उन्हें मतदाता सूची को प्रिंट करना होगा और उसे लाइन-दर-लाइन, पेज-दर-पेज स्कैन करना होगा, नामों पर निशान लगाना होगा, नंबरों को ट्रेस करना होगा और हाथ से विवरण लिखना होगा. यह दक्षता के बजाय उनकी सहनशक्ति का परीक्षण है.

इस प्रक्रिया के बारे में जानकर ही एहसास होता है कि कार्य किस हद तक थकाऊ है. फिर, उसे लागू करने की तो बात ही छोड़ ही दीजिए. जरा कल्पना करके देखिए कई अधिकारी कागजों के ढेर पर झुके हैं और मतदाताओं के दशकों पुराने इतिहास को मैन्युअली खंगाल रहे हैं. वो भी ऐसे समय में जब “डिजिटल इंडिया” का दावा हमारे लिए गर्व का विषय बन चुका है. ये विचार ही विरोधाभासी लगता है कि इतने अहम काम के लिए सर्च बेस्ड डेटाबेस के बजाय कागजों को खंगाला जा रहा है. बहरहाल, रास्ता तो यही चुना गया है.

जमीनी स्तर पर अधिकारियों को पहले से ही मुश्किलों का अंदाजा है. रिटर्निंग अधिकारी की जिम्मेदारी निभा रहे एक जिला मजिस्ट्रेट ने बताया कि SIR में दूसरी जगह जाकर बस गए मतदाताओं को शामिल नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा, “इस प्रक्रिया में उनका नाम शामिल नहीं किया जाएगा. BLO उनके घर जाएंगे, फॉर्म भरवाएँगे और उन्हें दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में चिह्नित करेंगे. ये ज़्यादातर शहरी मतदाताओं पर लागू होगा. ग्रामीण इलाकों में विवाहित महिलाओं के मामले में भी इसी तरह से लिंक की जांच की जाएगी.” इसलिए, समस्या सिर्फ लिपिकीय ही नहीं, बल्कि जनसांख्यिकीय भी है, क्योंकि कहीं दूसरी जाकर बसना और विवाह के कारण पता बदलने जैसी चीजें पहले से ही एक मुश्किल काम को और अधिक जटिल बना रहे हैं.

एक खंड विकास अधिकारी ने बढ़ते दबाव के बारे में खुलकर बात करते हुए बताया कि अधिकारियों से रखी जा ही अपेक्षाएं किस हद तक असंभव हैं. उन्होंने कहा, “लोगों को क्षेत्रीय अधिकारियों की मुश्किलें समझनी चाहिए. आम नागरिकों या चुनाव आयोग को शायद यही लगता होगा कि ये काम बहुत आसान है और कोई गलती रह जाने पर हैरानी भी जाहिर की जाती है. लेकिन जब समय बहुत कम हो और काम बहुत ज़्यादा हो, तो मानवीय भूल स्वाभाविक है.” उनके शब्दों में कई लोगों की बेचैनी साफ झलकती है- इतनी बड़ी प्रक्रिया में छोटी-सी चूक भी जनता के साथ-साथ उच्च अधिकारियों की तरफ से आलोचना किए जाने का कारण बन सकती है.

समयसीमा तय है, लक्ष्य अटल हैं, और गलती की गुंजाइश बेहद कम है. 20 सितंबर तक व्यापक क्रॉस-चेकिंग पूरी हो जानी हैं.  इसके तुरंत बाद, आधिकारिक अधिसूचना जारी होने के साथ SIR प्रक्रिया के तहत घर-घर जाकर सत्यापन का काम शुरू किया जाएगा. इसके साथ हर गांव, हर कस्बे की गलियों तक पहुंचने की चुनौतियों का एक और दौर शुरू होगा.

यह पूरी प्रक्रिया एक ऐसी सरकारी मशीनरी की तस्वीर सामने रखती है जो लोकतांत्रिक जरूरतों के अनुरूप तालमेल बैठाने के लिए संघर्ष कर रही है. मतदाता सूची में सटीकता और समावेशिता का सिद्धांत निर्विवाद हैं. लेकिन ये लक्ष्य हासिल करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती है, वो तो किसी दूसरे ही युग की प्रतीत होती है, जिसमें कागजों के अंबार, स्मृति और विशुद्ध मानवीय क्षमता से ही सब कुछ निर्धारित होता है.

अंततः, लोकतंत्र के गुमनाम सिपाही BLO को ही इसका सबसे ज्यादा भार वहन करना पड़ता है, जो कड़ी समयसीमा के भीतर भारी-भरकम जिम्मेदारियों को निभाते हैं. ऐसे में मानवीय चूक होना स्वाभाविक ही है. और, आखिर में मतदाता अंतिम सूची की पूर्णता के आधार पर चुनाव आयोग की भूमिका और निष्पक्षता का मूल्यांकन करेंगे लेकिन इस बेहद थकाऊ प्रक्रिया को सफल बनाने में शामिल मानवीय प्रयास काफी हद तक अनदेखे ही रह जाएंगे. 

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