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BJP के लिए सरदार पटेल की जयंती कैसे फिर एक बड़ा राजनीतिक मौका बन रही है?

31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती है और इससे पहले BJP ने उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति को ध्यान में रखकर कई कार्यक्रम तैयार किए हैं

पीएम मोदी गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार पटेल की मूर्ति के पास भाषण देते हुए (फाइल फोटो)
अपडेटेड 28 अक्टूबर , 2025

लखनऊ के हजरतगंज में मौजूद प्रधान डाकघर (GPO) के पास खड़ी सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के आसपास इन दिनों असामान्य हलचल है. साफ-सफाई से लेकर रंग-रोगन तक का काम तेजी से चल रहा है. वजह है, 31 अक्टूबर. लौहपुरुष के नाम से विख्यात सरदार पटेल की 150वीं जयंती. 

यह सिर्फ एक श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि आने वाले महीनों की राजनीतिक रणनीति का संकेत भी है. BJP इसे एक बड़े आयोजन में बदलने की तैयारी में है. पार्टी इस मौके को सिर्फ ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि इसे सामाजिक और चुनावी समीकरणों को साधने के मौके के तौर पर देख रही है.

वह भी ऐसे समय में, जब बिहार विधानसभा चुनाव अपने चरम पर हैं और उत्तर प्रदेश 2027 के चुनावी मोड में धीरे-धीरे प्रवेश कर रहा है, पटेल की विरासत का राजनीतिक इस्तेमाल अपने आप में एक संकेत है कि BJP की निगाह अब फिर से OBC मतदाताओं पर है, खासकर कुर्मी समुदाय पर. 

राष्ट्रीय एकता के साथ सामाजिक संदेश

12 अक्टूबर से पूरे उत्तर प्रदेश में शुरू हुए कार्यक्रमों की श्रृंखला में 31 अक्टूबर को हर जिले में ‘रन फॉर यूनिटी’ का आयोजन होगा. यह कार्यक्रम 11 वर्षों से लगातार मनाया जा रहा है, लेकिन इस बार खास है क्योंकि यह पटेल की 150वीं जयंती का वर्ष है. योजना के मुताबिक, हर जिले से पांच प्रतिनिधि ज्यादातर खिलाड़ी और कलाकार गुजरात के करमसद (पटेल की जन्मस्थली) तक जाएंगे और फिर वहां से केवड़िया स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ तक 150 किलोमीटर लंबी पदयात्रा में हिस्सा लेंगे. 

प्रदेश सरकार ने इस आयोजन को एक ‘राष्ट्रीय एकता और जनजागरण अभियान’ के रूप में पेश किया है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह आयोजन केवल प्रतीकात्मक नहीं है. इसका एक बड़ा राजनीतिक अर्थ है. लखनऊ के प्रतिष्ठ‍ित अवध गर्ल्स कालेज की प्राचार्य और राजनीति शास्त्र विभाग की प्रमुख बीना राय बताती हैं, “BJP पटेल की 150वीं जयंती से दो स्तरीय रणनीति साध रही है. एक, विपक्ष के संविधान और सामाजिक न्याय वाले नैरेटिव के जवाब में ‘राष्ट्रीय एकता’ को केंद्र में लाना और दूसरा, कुर्मी समुदाय में अपनी पैठ को फिर से मजबूत करना.”


2014 के लोकसभा चुनाव से पहले BJP ने यह समझ लिया था कि यूपी में यादव वोटबैंक समाजवादी पार्टी के साथ मजबूती से जुड़ा है. इसलिए उसने एक जैसी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले कुर्मी और मौर्य समुदायों पर ध्यान केंद्रित किया. सामाजिक न्याय समिति (2001) की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी की कुल पिछड़ी जातियों में यादव 19.40 फीसदी हैं, जबकि कुर्मी 7.46 फीसदी हैं. मूल रूप से खेती-बाड़ी पर निर्भर इस जाति की सामाजिक संरचना सघन है. पूर्वांचल में वर्मा, चौधरी, पटेल; कानपुर-बुंदेलखंड में पटेल, कटियार, सचान; और रुहेलखंड में गंगवार और वर्मा उपनामों से यह समुदाय फैला है. 

यूपी के 25 जिलों में इनकी प्रभावी मौजूदगी है. BJP ने 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में इस वर्ग को साधकर जबरदस्त फायदा उठाया था. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में संकेत बदले. सिराथू सीट से सपा उम्मीदवार और अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को हराया, जो प्रतीकात्मक रूप से यह बताने के लिए काफी था कि कुर्मी वोटबैंक में दरार आई है. 

लखनऊ के बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुशील पांडेय कहते हैं, “वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में यह साफ दिखा कि कुर्मी मतदाताओं ने पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार की जाति को प्राथमिकता दी. कुर्मी उम्मीदवारों को तब हर दल में वोट मिला.” आंकड़ों से भी यह रुझान साफ है. 2022 के विधानसभा चुनाव में कुल 41 कुर्मी विधायक चुने गए, जबकि 2017 में यह संख्या 37 थी. लेकिन BJP के कुर्मी विधायकों की संख्या 26 से घटकर 22 रह गई. जबकि समाजवादी पार्टी के कुर्मी विधायक 2 से बढ़कर 14 हो गए.

यूपी BJP के अंदर भी यह चर्चा है कि आगामी चुनावों में पार्टी को हिंदुत्व के साथ-साथ सामाजिक समीकरणों पर भी उतनी ही मेहनत करनी होगी जितनी वर्ष 2014 से 2019 के बीच की थी. वर्ष 2022 में कुर्मी मतदाताओं का रुझान सपा की ओर थोड़ा झुका, जिससे कई सीटों पर BJP को नुकसान हुआ. BJP की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) अब भी साथ है, लेकिन कमेरावादी धड़े की नेता पल्लवी पटेल के उभार ने एक नया समीकरण पैदा कर दिया है. यही वजह है कि पटेल जयंती का उत्सव पार्टी के लिए सिर्फ ऐतिहासिक नहीं, बल्कि सामरिक भी है. 

बिहार में पटेल बनाम नीतीश का संकेत

BJP की नजर सिर्फ यूपी पर नहीं है. बिहार में भी पटेल की विरासत को राजनीतिक प्रतीक के तौर पर सामने लाने की रणनीति साफ दिख रही है. पार्टी जानती है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक प्रमुख कुर्मी नेता हैं और अन्य गैर-यादव OBC समूहों में लोकप्रिय हैं. 

बिहार की 2023 की जाति जनगणना के अनुसार, कुर्मी राज्य की कुल आबादी का 2.8 फीसदी से अधिक हैं. ऐसे में BJP के लिए पटेल एक राष्ट्रीय और जातीय दोनों स्तरों पर उपयोगी चेहरा हैं. पार्टी पटेल को “राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार” के रूप में पेश करते हुए यह संदेश देना चाहती है कि कुर्मी पहचान केवल नीतीश कुमार तक सीमित नहीं है. BJP इसे अपने व्यापक वैचारिक ढांचे में समाहित करना चाहती है. 

बिहार में तैनात यूपी BJP के एक कुर्मी नेता बताते हैं कि पटेल के नाम पर चलने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला “संविधान बचाओ” के विपक्षी अभियान का जवाब है. यानी BJP यह दिखाना चाहती है कि वह संविधान और एकता की असली वारिस है. पटना में मौजूद एक वरिष्ठ BJP पदाधिकारी ने बताया, “नीतीश अब भी EBC(अति पिछड़ा वर्ग) चेहरा हैं, लेकिन पटेल के ज़रिए पार्टी कुर्मी वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है. मोदी का चेहरा ऊंची जातियों और दलितों में काम करता है, योगी का चेहरा हिंदुत्व को संभालता है, और पटेल की विरासत OBC में पार्टी की पकड़ फिर से मजबूत करेगी.”

विपक्षी नैरेटिव को जवाब 

सरदार पटेल की जयंती को BJP ने 2014 से ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाना शुरू किया था. वर्ष 2018 में जब ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन हुआ, तब से यह दिन पार्टी के लिए वैचारिक और प्रतीकात्मक दोनों अर्थों में अहम हो गया. इस बार का आयोजन विशेष है क्योंकि 31 अक्टूबर से लेकर 26 नवंबर तक, जब देश ने संविधान को अपनाया था, एक लंबा “यूनिटी टू कॉन्स्टिट्यूशन” अभियान चलाया जाएगा. 

इस दौरान BJP की कोशिश रहेगी कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के नैरेटिव को दोहराया जाए. राजनीतिक विश्लेषक सुशील पांडेय कहते हैं, “BJP ने महसूस किया है कि विपक्ष ‘संविधान खतरे में है’ और ‘सामाजिक न्याय बचाओ’ जैसे नारों के ज़रिए निचले तबके के वोटरों को जोड़ने में जुटा है. इसके जवाब में पार्टी ‘एकता’ और ‘राष्ट्रवाद’ की भावनाओं को फिर से उभारना चाहती है. पटेल इस नैरेटिव के केंद्र में हैं क्योंकि उन्होंने रियासतों का विलय कर भारत को एक किया था.”

31 अक्टूबर से शुरू होकर 26 नवंबर तक चलने वाले ‘सरदार@150 यूनिटी मार्च’ में देशभर से हज़ारों युवा शामिल होंगे. यूपी में हर ज़िले से पांच प्रतिनिधि भेजे जा रहे हैं. यह अभियान भले “युवा जागरूकता” के नाम पर हो, लेकिन इसके जरिए BJP अपने स्थानीय संगठन को सक्रिय कर रही है. BJP के एक वरिष्ठ प्रदेश नेता के शब्दों में, “हर जिला, हर विधानसभा और हर ब्लॉक में पटेल की जयंती मनाने से कार्यकर्ता फिर से ग्राउंड पर आएंगे। चुनाव अभी दूर है, लेकिन संगठन की ऊर्जा बनाए रखना जरूरी है. पटेल की छवि ऐसा प्लेटफॉर्म देती है जहां राष्ट्रीय गौरव और स्थानीय पहचान दोनों को साथ जोड़ा जा सकता है.”

विपक्ष इस पूरे अभियान को राजनीतिक एजेंडा मानता है. कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत कहते हैं, “BJP हर प्रतीक को अपने हित में मोड़ने की कोशिश करती है. पटेल की विरासत कांग्रेस और आज़ादी की लड़ाई से जुड़ी है, लेकिन BJP उसे अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बना रही है.” हालांकि BJP के लिए यह दोहरी रणनीति है, एक तरफ वैचारिक रूप से विपक्ष के ‘संविधान बचाओ’ अभियान का मुकाबला करना, दूसरी तरफ सामाजिक स्तर पर उन वर्गों में पकड़ मजबूत करना, जो हाल के वर्षों में दूर हुए हैं. 31 अक्टूबर के आयोजन के बाद जब नवंबर में पटेल जयंती से जुड़ा राष्ट्रीय कार्यक्रम ‘संविधान दिवस’ तक बढ़ेगा, तो यह अभियान राष्ट्रीय एकता की थीम से जुड़ा रहेगा. पर उसका असली असर चुनावी मैदान में दिखेगा, यूपी और चुनावी राज्य बिहार दोनों में.

सरदार पटेल की 150वीं जयंती BJP के लिए श्रद्धांजलि से कहीं बढ़कर है. यह एक राजनीतिक अवसर है, जहां राष्ट्रीय एकता का प्रतीक, सामाजिक समीकरणों की कुंजी और वैचारिक प्रतिस्पर्धा का जवाब, तीनों एक साथ फिट बैठते हैं. BJP का संदेश साफ है, लौहपुरुष की मूर्ति के सामने सिर्फ माला नहीं चढ़ाई जाएगी, बल्कि उनके नाम पर एक बार फिर से राजनीतिक एकता की नई मूर्ति गढ़ी जाएगी.

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