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उत्तर प्रदेश में जातियों की जोड़तोड़ कैसे बढ़ा रही BJP की मुसीबत?

उत्तर प्रदेश में बैठकों की बढ़ती हलचल ने BJP की हिंदुत्व छतरी के सामने चुनौती पेश कर दी है

दिल्ली में गुर्जर चौपाल में मौजूद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
दिल्ली में गुर्जर चौपाल में मौजूद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
अपडेटेड 11 सितंबर , 2025

उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस वक्त एक दिलचस्प हलचल चल रही है. लंबे समय तक खामोशी के बाद पिछले एक महीने में अचानक विधायकों और मंत्रियों की जाति-आधारित बैठकें शुरू हुई हैं. इन बैठकों ने न सिर्फ सत्ता दल BJP बल्कि विपक्षी खेमों की राजनीति को भी गर्मा दिया है.

सबसे पहले पिछले महीने ठाकुर विधायकों ने लखनऊ के एक प्रतिष्ठित होटल में “कुटुंब परिवार” नाम से बैठक की. इसमें ठाकुर एकता के प्रतीक के तौर पर महाराणा प्रताप की तस्वीरें और त्रिशूल बांटे गए. इस बैठक को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति समर्थन जताने की कवायद माना गया. 

इसके बाद पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने सरकारी होटल में एक और छोटी बैठक की मेजबानी की. फिर बारी आई कुर्मी विधायकों की. वे “सरदार पटेल वैचारिक मंच” के बैनर तले इकट्ठा हुए. उधर, पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह ने बरेली में लोध समुदाय की बैठक की, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती का आना राजनीतिक हलकों में बड़ा संदेश माना गया. लोध समुदाय ने दिल्ली में भी अवंती बाई लोधी जयंती पर सभा की, जिसमें साक्षी महाराज, बृजभूषण राजपूत और अन्य नेता शामिल हुए. राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि इन बैठकों का कोई स्पष्ट एजेंडा भले न दिखे, पर असल मकसद सत्ता के भीतर अपनी सामुदायिक ताकत का अहसास कराना है.

ब्राह्मण भी पीछे नहीं

लखनऊ में पुराने एनेक्सी भवन के पास एक सरकारी गेस्टहाउस में अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के प्रतिनिधियों के साथ BJP के एक ब्राह्मण मंत्री ने एक बंद कमरे में बैठक की, जहां समुदाय से जुड़े मुद्दों को उठाया गया. राज्य भर के विभिन्न क्षेत्रों से आए 60 से ज़्यादा प्रतिनिधियों ने कथित तौर पर शासन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व की कमी, उपेक्षा और एससी-एसटी कानून के तहत झूठे मुकदमों के कारण उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त की. 

प्रतिनिधियों का नेतृत्व संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष केसी पांडे ने किया. मंत्री ने सभी प्रतिनिधियों को भगवान परशुराम की प्रतिमा के रूप में शॉल और स्मृति चिन्ह भेंट करके सम्मानित किया. संगठन के सीतापुर के ज़िला अध्यक्ष धीरज पांडे ने कहा, "मंत्री ने हमें अपना समर्थन देने का आश्वासन दिया और प्रतीकात्मक सम्मान स्वरूप शॉल और स्मृति चिन्ह देकर हमारा स्वागत किया." उन्होंने आगे कहा, "जिस तरह से मंत्री ने हमसे संपर्क किया और हमारा स्वागत किया, उसने हमें सचमुच छू लिया. हम उनका पूरा समर्थन करेंगे." बैठक में शामिल आकाश तिवारी ने पूछा, "अगर छोटे जाति समूह अपने नेताओं के साथ एकजुट होकर अपनी पहचान बना सकते हैं, तो उत्तर प्रदेश की लगभग 18 फीसदी आबादी वाले ब्राह्मण राजनीतिक क्षेत्र में अपनी जगह क्यों नहीं बना सकते?" 

छोटे समूह क्यों अहम हैं

राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ के बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर सुशील पांडेय बताते हैं, “1990 के दशक तक यूपी की राजनीति ओबीसी, दलित, सवर्ण और मुस्लिम जैसी बड़ी पहचान के आधार पर बंटी रहती थी. लेकिन 2000 के बाद यह बंटवारा और महीन हो गया. यादवों के वर्चस्व से असहज कुर्मी, निषाद, राजभर और गुर्जर जैसे समूह अपनी अलग पहचान की तलाश में हैं.” 

चूंकि वर्ष 2027 का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है ऐसे में योगी सरकार में एक मंत्रि‍मंडल का विस्तार और कई सारे आयोगों व निगमों के चेयरमैन के पदों को भरना जाना है, इसलिए छोटे जातिगत समूह एकजुट होकर अपनी “मोलभाव की शक्त‍ि” बढ़ाना चाहती हैं. “ऐसी बैठकें आमतौर पर वे जातियां करती हैं जिन्होंने राजनीतिक रूप से कुछ हासिल कर लिया है और अब और हिस्सेदारी चाहती हैं. यह ‘ये दिल मांगे मोर’ वाली स्थिति है,” एक अन्य राजनीतिक जानकार कहते हैं.
BJP की मजबूरी

2024 लोकसभा चुनाव में सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले और कांग्रेस के आरक्षण-समर्थन वाले दांव ने BJP को मुश्किल दी थी. कई ओबीसी समूह BJP से छिटकते नजर आए थे. यही वजह है कि BJP भी अब एक बार फिर से जातिगत समीकरण साधने में जुटी है. 21 अगस्त को अलीगढ़ में कल्याण सिंह की पुण्यतिथि को “हिंदू गौरव दिवस” के रूप में मनाना इसी रणनीति का हिस्सा था. 

कल्याण सिंह की पुण्य तिथि पर अलीगढ़ में आयोजित कार्यक्रम में मौजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य नेता
कल्याण सिंह की पुण्य तिथि पर अलीगढ़ में आयोजित कार्यक्रम में मौजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य नेता

कल्याण सिंह लोध समुदाय से थे और BJP उन्हें हिंदुत्व और जातीय संतुलन के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल करती रही है. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी, दोनों डिप्टी सीएम और केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे. एक वरिष्ठ BJP नेता कहते हैं, “इन बैठकों का मकसद केवल समुदाय को साधना नहीं है, बल्कि यह संकेत भी देना है कि हम नेतृत्व को चुनौती दे सकते हैं. कई मंत्री और विधायक खुद को भविष्य की बड़ी भूमिका के लिए तैयार कर रहे हैं.” 

BJP अपने उन समर्थक समुदाय को जोड़ने को पूरी को‍शिश कर रही है जिन्होंने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी से थोड़ा अलगाव दिखाया था. इनमें पासी समाज की भूमिका खास है. 24 अगस्त को लखनऊ के कैसरबाग स्थित गांधी भवन में पारख महासंघ ने पासी समाज का महासम्मेलन किया. इसमें उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और सांसद दिनेश शर्मा ने हिस्सा लिया. पासी समाज को उसके गौरवशाली इतिहास की याद दिलाई गई और तय किया गया कि आगामी फरवरी में रमाबाई आंबेडकर मैदान में विशाल रैली का ऐलान किया जाएगा. 

विपक्ष की चाल

सपा और कांग्रेस इन हालात को भांपकर अपने पत्ते खोल रहे हैं. दिल्ली स्थित सपा कार्यालय में 19 अगस्त को गुर्जर चौपाल का आयोजन किया गया. पश्चिमी यूपी के विभिन्न जिलों से सपा के गुर्जर एवं अन्य नेताओं का जमावड़ा रहा. मुख्य अतिथि सपा प्रमुख अखिलेश यादव रहे. चौपाल में सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी, सरधना विधायक अतुल प्रधान, पूर्व विधायक योगेश वर्मा शामिल थे. इस मौके पर पश्च‍िमी यूपी के युवा नेता आकाश गुर्जर को सपा की सदस्यता भी दिलाई गई. 

पश्चिमी यूपी में गुर्जरों के बीच गुर्जर चौपाल और रैलियों के आयोजन करने की योजना बनी. इस रणनीति के तहत यूपी के 34 जिलों के 132 विधानसभा में छोटी-छोटी चौपाल और रैलियां की जाएंगी. ये चौपाल उन विधानसभा क्षेत्रों में होंगी जहां गुर्जर मतदाताओं की संख्या जाटों से ज्यादा है. इन रैलियों की कमान सपा के पश्चिमी यूपी के नेता और प्रवक्ता राजकुमार भाटी को सौंपी गई है. अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला छोटे समूहों को आकर्षित करने का सबसे आक्रामक प्रयास माना जा रहा है. सुशील पांडेय कहते  हैं, “पहली बार किसी पार्टी ने इतने खुले तौर पर जाति और समुदाय के प्रतीकों को अपने नैरेटिव का हिस्सा बनाया है. यही वजह है कि BJP की ‘सबसे पहले हिंदू’ वाली रणनीति को सीधी चुनौती मिली है.”

यूपी विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं, लेकिन जातिगत लामबंदी ने अभी से चुनावी माहौल बना दिया है. BJP हिंदुत्व की छतरी तले सबको लाने की कोशिश कर रही है, जबकि सपा और कांग्रेस जातीय असंतोष को हवा दे रही हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि BJP के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह खुद को शीर्ष “हिंदू पार्टी” की छवि से आगे बढ़कर एक संतुलित प्रतिनिधि पार्टी के रूप में पेश कर पाए. वहीं, सपा यह जताने की कोशिश करेगी कि उसका पीडीए गठजोड़ दलितों और पिछड़ों को भाजपा की छांव से निकाल सकता है. छोटे समूहों की राजनीति किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं रहेगी. पासी, गुर्जर, राजभर, निषाद, कुर्मी और लोध- सभी अपने नेताओं के इर्द-गिर्द संगठित हो रहे हैं. 2027 तक हर पार्टी इन समूहों के वोट बैंक को साधने के लिए नए-नए प्रतीक गढ़ेगी. 

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