केरल के समुद्री तट पर हाल ही में दो जहाज हादसों ने समुद्री सुरक्षा और मछली पकड़ने वाले समुदाय की आजीविका को बुरी तरह से प्रभावित किया है. 24 मई को कोच्चि तट के पास लाइबेरिया का जहाज एमएससी एल्सा 3 डूब गया और 10 जून को अझिक्कल तट के पास सिंगापुर का जहाज एमवी वान हाई 503 में आग लग गई.
ये दोनों हादसे ऐसे समय में हुए, जब विशाखापत्तनम बंदरगाह पूरी तरह शुरू होने ही वाला है. जहां ये दुर्घटना हुई हैं, वहां से हर रोज सैकड़ों जहाज गुजरते हैं. इन हादसों का सीधा असर समुद्री जीवों पर पड़ा है और जहरीले पदार्थों के फैलने की आशंका देखते हुए 11 जून से ही मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है.
इस प्रतिबंध के कारण केरल के 10 लाख मछुआरों की आजीविका प्रभावित हुई है. सरकारी मदद के अभाव में उनकी मुश्किलें दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.
दक्षिण केरल के सबसे बड़े मछली पकड़ने वाले गांव वलियाथुरा के 53 वर्षीय अल्फोंस मथियास कहते हैं, “किसी को इसकी परवाह नहीं है कि हम कैसे जिंदा रहेंगे.” पहले मानसून के तट पर पहुंचने के कारण और फिर इन हादसे की वजह से मछली पकड़ने पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण मथियास पिछले 20 दिनों से मछली पकड़ने के लिए समुद्र में नहीं गए हैं.
वे कहते हैं, “पहले भी भारी बारिश के कारण मछली पकड़ने पर प्रतिबंध था. अब दो जहाजों के डूबने से राज्य के दक्षिणी तट पर प्लास्टिक के कण फैलने और समुद्र की सतह पर जहरीले पदार्थ तैरने की वजह से मछली पकड़ना असंभव हो गया है.”
साथ ही समुद्र में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा, “विभिन्न प्रकार की मछली प्रजातियों के लिए यह प्रजनन का समय है, लेकिन इस तरह की घटनाओं से उनपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. ऐसे ही पहले की तुलना में अब तेजी से मछलियां कम हो रही हैं. इसकी बड़ी वजह समुद्र तल में प्लास्टिक प्रदूषण का बढ़ना, तेल रिसाव और विषाक्त पदार्थों का रिसाव है.”
केरल में ज्यादातर मछुआरे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं. राज्य में समुद्री मछली की पकड़ 2022-23 में 6.9 लाख टन से घटकर 2023-24 में 5.81 लाख टन रह गई है. केरल मछली उत्पादन में तमिलनाडु और कर्नाटक के बाद सभी राज्यों में तीसरे स्थान पर आ गया है.
जलवायु परिवर्तन, छोटे-छोटे मछली के पकड़े जाने और मछली पकड़ने के अवैज्ञानिक तरीकों के कारण पिछले एक दशक में समुद्री मछली पकड़ने में भारी गिरावट देखी गई है.
राज्य के समुद्री क्षेत्र में लगभग 45,707 रजिस्टर्ड मछली पकड़ने वाले जहाज हैं, जिनमें सात गहरे समुद्र के जहाज हैं. इसके अलावा 6,948 मोटर चालित और 3,894 गैर-मोटर चालित जहाज भी हैं. सबसे ज्यादा पारंपरिक मछुआरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली 34,858 कटमरैन नावें रजिस्टर्ड हैं.
केरल मत्स्य विभाग द्वारा मछली उत्पादन पर उपलब्ध कराए गए जिलेवार आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 में एर्नाकुलम में सबसे अधिक समुद्री मछली उत्पादन दर्ज किया गया है. इसके बाद सबसे ज्यादा मछली कोल्लम और कोझिकोड में पकड़ा जाती हैं.
इन तीन जिलों ने कुल समुद्री मछली उत्पादन में 68.7 फीसद का योगदान दिया है. राज्य के तटीय क्षेत्रों से पकड़ी गई प्रमुख समुद्री मछली प्रजातियों में चिरोसेन्ट्रस, कैट फिश, कैरांगिड्स और पेनेइड प्रॉन यानी पेनेइड झींगा शामिल हैं.
वरिष्ठ जीवविज्ञानी डॉ. शाजू थॉमस कहते हैं, "जहाजों के डूबने से केरल की जलीय जैव विविधता पर दूरगामी परिणाम होंगे.” उनके मुताबिक प्रकृति को होने वाला नुकसान स्थायी और अपरिवर्तनीय होता है, लेकिन हमारे नीति-निर्माता इस बात को नहीं समझते हैं. वे नुकसान का आकलन करते समय हमारे जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के बारे में बिल्कुल भी चिंता नहीं करते हैं.
एक तरफ जहां सरकार ‘विझिंजम बंदरगाह’ पर यातायात बढ़ाने के लिए चिंतित है. वहीं, दूसरी तरफ मछलियों के प्रजनन के मौसम के दौरान हुई दुर्घटनाओं से बुरी तरह प्रभावित मछुआरा समुदाय खुद को आने वाले कठिन दिनों के लिए तैयार कर रहा है.