बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 4 फरवरी को 6,837 नवनियुक्त जूनियर इंजीनियर और प्रशिक्षकों को नियुक्ति पत्र सौंपे हैं. माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री की इस कवायद के पीछे इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव हैं. वहीं पिछले साल 15 अगस्त को बिहार के सीएम ने 12 लाख नौकरियां देने का वादा किया था, जिसमें से सरकार का दावा है कि 9.13 लाख नौकरियां दी जा चुकी हैं और 10 लाख और नौकरियां देने की योजना है.
बिहार सरकार के इन इरादों-वादों से लग तो रहा है कि वह रोजगार के मसले पर गंभीर है, वहीं दूसरी तरफ वह इन नौकरियों से चुनावी लाभ लेने की तैयारी में भी है. दरअसल राजद के साथ मिलकर 17 महीने चलने वाली सरकार में दी गई नौकरियों का श्रेय पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव लेते रहे हैं. ऐसे में 12 लाख नौकरियां देकर नीतीश कुमार, तेजस्वी की नौकरियां बांटने वाली छवि तोड़कर, बिहार विधानसभा चुनाव में अपना वर्चस्व एक बार फिर से स्थापित करना चाहते हैं.
क्या है नीतीश कुमार की रणनीति?
साल 2020 में राजद के युवा नेता तेजस्वी ने 10 लाख सरकारी नौकरियां देने के अपने साहसिक वादे से विधानसभा चुनाव अभियान को गति दी थी. इस वादे ने राज्य के निराश युवाओं को काफी उत्साहित किया था. नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर दिखाता है कि वे खासे चतुर रणनीतिकार हैं, लेकिन उन्हें भी तेजस्वी के इस दांव की अहमियत समझ आई थी. अब वे इस मामले पर पहल करके 2025 के चुनावों की धारा अपनी ओर मोड़ना चाहते हैं.
राजद सरकार पर निशाना साधते हुए नीतीश कुमार ने कहा है कि 2005 से पहले बिहार की स्थिति बहुत दयनीय थी. केंद्र में सरकार की अगुवाई कर रही बीजेपी को भी इसका श्रेय देते हुए बिहार के सीएम का कहना था कि उनकी सरकार केंद्र सरकार के सहयोग से राज्य को आगे ले जा रही है. नीतीश कुमार ने कहा, "मैं उन सभी विभागों का धन्यवाद देता हूं, जिनके माध्यम से आप सभी का चयन हुआ है. मैं बिहार के सभी जिलों का दौरा कर रहा हूं और लोगों की समस्याओं और जरूरतों से अवगत हो रहा हूं. सभी समस्याओं का जल्द ही समाधान किया जाएगा. विभागों में रिक्त पदों की पहचान की जा रही है और जल्द ही बड़े पैमाने पर नियुक्तियां की जाएंगी."
नीतीश के बयान से साफ़ है कि रोजगार के मुद्दे पर बढ़त लेकर चुनाव में कूदने के मूड में हैं. इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव के मुताबिक, बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के बाद नीतीश सिर्फ़ सत्ता के संरक्षक नहीं रह गए हैं. राज्य के महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए वे खुद को ठोस बदलाव लाने वाले नेता के रूप में पेश कर रहे हैं. एक ऐसा नेता, जो नौकरी के वादों को तनख्वाह में तब्दील करता है. बिहार में नौकरियां देना सिर्फ़ नीति नहीं है - यह सम्मान और सामाजिक गतिशीलता की जीवन रेखा है, खासकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में. नीतीश सर्जिकल सटीकता के साथ इस मांग को पूरा करना चाहते हैं.
4 फरवरी को बिहार के सीएम ने अलग-अलग विभागों के 6,341 जूनियर इंजीनियरों और श्रम संसाधन विभाग के 496 अनुदेशकों को नियुक्ति पत्र बांटे. पिछले साल बिहार सरकार ने 2,16,823 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र सौंपे थे. इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा मौजूद थे. वित्त विभाग का प्रभार भी संभाल रहे सम्राट चौधरी ने कहा कि मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव से पहले 12 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने के वादे को पूरा करने के लिए काम कर रहे हैं. बिहार के डिप्टी सीएम का यह भी कहना था कि राजद नीतीश कुमार के किए गए काम का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है.
सम्राट चौधरी ने कहा, "नीतीश जी ने नियुक्ति पत्र देकर साबित कर दिया है कि एनडीए सरकार जो भी वादा करती है, उसे पूरा करने के लिए तैयार है. राज्य सरकार युवाओं को नौकरी दे रही है और निर्माण, पर्यटन और हस्तशिल्प जैसे कई क्षेत्रों में लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर रही है."
बिहार में नीतीश के पक्ष में हैं कौन से समीकरण?
बिहार की राजनीति में नीतीश का स्थायी प्रभुत्व पारंपरिक राजनीति के गुणा-गणित को चुनौती देता है. अमिताभ श्रीवास्तव आंकड़ों की मदद से बताते हैं कि नीतीश का जातिगत आधार, कुर्मी, आबादी का मात्र 2.87 प्रतिशत है, जो किसी भी पैमाने से एक कमजोर आधार ही माना जाएगा. लेकिन नीतीश ने अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी), महा-दलितों और लव-कुश (कुर्मी-कोइरी समुदाय) के मतदाताओं का एक कारगर गठबंधन बनाया है, जिससे उन्हें बिहार के 36 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं की वफादारी हासिल हुई है. दो दशकों के दौरान विकसित हुआ यह गठबंधन बीजेपी और राजद दोनों की चुनौतियों के खिलाफ उनकी ढाल रहा है.
2020 के चुनावों में, नीतीश को तेजस्वी की युवा अपील और बीजेपी समर्थित चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के विरोधी रवैए से उत्साहित राजद का सामना करना पड़ा था. ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जेडी(यू) ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, 32.8 प्रतिशत वोट शेयर बनाए रखा. यह नीतीश के समर्थकों के लिए उनके मॉडल के शासन में भरोसे का प्रमाण था. कल्याणकारी योजनाओं और सामाजिक सशक्तिकरण के मिश्रण ने नीतीश कुमार को एक टिकाऊ ब्रांड बनाया है जो जाति के अंकगणित और राजनीतिक गठबंधनों के ज्वार से परे है.
अमिताभ के मुताबिक, "गठबंधन बदलने की वजह से नीतीश कुमार को अक्सर अवसरवादी कहा जाता है, लेकिन उन्होंने इस तरह अपनी अपरिहार्यता को पुख्ता किया है. बीजेपी और राजद दोनों ने, यह पहचानते हुए कि उनका समर्थन आधार बिहार में सत्ता हासिल करने की कुंजी है, बार-बार नीतीश को लुभाया है. केवल एक जीतन राम मांझी के कार्यकाल के दौरान एक संक्षिप्त अंतराल को छोड़ दें तो साल 2005 के बाद से बिहार में हर सरकार उनके इर्द-गिर्द घूमती रही है."
साल 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश का ध्यान नौकरियों और शासन के साथ-साथ अपनी विरासत को मजबूत करने पर भी है. बिहार के युवाओं की आकांक्षाओं को संबोधित करके, वे न केवल विपक्ष का मुकाबला कर रहे हैं, बल्कि राज्य के राजनीतिक स्तंभ के रूप में अपनी छवि को भी पुष्ट कर रहे हैं. कई राजनीतिक विश्लेषक ऐसा कयास लगा रहे हैं कि साल 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश के लिए एक और टर्म जीतने का नहीं, बल्कि अपनी विरासत जारी रखने का चुनाव है.