पश्चिम बंगाल जहां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक विवाद के जरिए राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है. यह विवाद एक युवक की कथित दोहरी नागरिकता से जुड़ा है.
इस तूफान के केंद्र में 32 साल के न्यूटन दास हैं, जो एक तरफ बांग्लादेश में हाल में हुए कोटा विरोधी आंदोलन में प्रदर्शनकारी के रूप में सामने आए तो वहीं दूसरी तरफ, वे पश्चिम बंगाल के साउथ 24 परगना के काकद्वीप में रजिस्टर्ड वोटर के रूप में सामने आए हैं.
हंगामा मचाने वाली तस्वीरों में न्यूटन की जुलाई 2024 की एक फोटो है, जिसमें बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में हुए आंदोलन के दौरान उन्हें हाथ में लाठी थामे और झंडा लहराते हुए दिखाया गया है. इन प्रोटेस्ट के चलते शेख हसीना सरकार गिर गई थी. अब बंगाल में विपक्षी बीजेपी पूछ रही है: बांग्लादेश में राजनीतिक आंदोलन के बीच में रहने वाला व्यक्ति भारत में भी वोटिंग का अधिकार कैसे रख सकता है?
चुनावी रिकॉर्ड के मुताबिक, न्यूटन काकद्वीप में वोटर हैं, जो मथुरापुर लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है. मतदाता सूची में उनका नाम 2014 से दर्ज है और उनका दावा है कि उन्होंने 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उम्मीदवार मंटूराम पाखीरा को वोट दिया था. पाखीरा फिलहाल काकद्वीप विधानसभा सीट से विधायक हैं.
न्यूटन ने दावा किया कि 2017 में उनका वोटर आईडी खो जाने के बाद स्थानीय टीएमसी नेताओं ने उन्हें डुप्लीकेट कार्ड दिलाने में मदद की थी.
बीजेपी इसे गंभीर मामला बता रही है. पार्टी नेताओं का कहना है कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका में विरोध प्रदर्शन में न्यूटन का हिस्सा लेना बंगाल में वोटर रजिस्ट्रेशन में व्यवस्थागत सड़ांध का जीता जागता सबूत है. बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने चुनाव आयोग (EC) के सामने इस मुद्दे को उठाया है, जिसमें बांग्लादेशी नागरिकों द्वारा जाली दस्तावेजों के जरिए भारतीय मतदाता सूची में जगह बनाने की शिकायत शामिल है.
न्यूटन ने इस पूरे विवाद को गलत बताते हुए सिरे से खारिज किया है. उनका दावा है कि वायरल फुटेज में छेड़छाड़ की गई है और वह अपने संपत्ति के उत्तराधिकार मामले को सुलझाने के लिए बांग्लादेश गए थे. एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा: "हां, मैं बांग्लादेश में था, लेकिन केवल विरासत के मामलों के कारण. मेरा विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का कोई इरादा नहीं था. यह सब वहां के हालात के चलते बस यूं ही हो गया था."
लेकिन उनके बड़े भाई तपस दास ने साफ किया है कि न्यूटन का जन्म बांग्लादेश में हुआ था और भारत आने के बाद उन्होंने अपनी किशोरावस्था के दौरान बंगाल के नामखाना में पढ़ाई की थी. तपस ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनके माता-पिता भारतीय नागरिक नहीं थे और न्यूटन भी "बांग्लादेश में मतदाता होना चाहिए".
आग में घी डालने का काम न्यूटन का सोशल मीडिया प्रोफाइल कर रहा है. उनकी हिस्ट्री से पता चलता है कि वे टीएमसी नेताओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं. उन्हें काकद्वीप इलाके के प्रमुख युवा विंग के नेता देबाशीष दास के साथ जन्मदिन मनाते और केक काटते हुए देखा गया है.
देबाशीष ने उनके परिचित होने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि वे स्कूल के साथी थे जो 2021 में फिर से जुड़े, लेकिन उन्होंने सीमा पार न्यूटन की गतिविधियों के बारे में किसी भी जानकारी से इनकार किया.
जैसा कि अनुमान था, बीजेपी पूरी ताकत से इस मामले में आगे बढ़ रही है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि टीएमसी के संरक्षण में पूरी तरह से "घुसपैठ उद्योग" चल रहा है. मजूमदार ने सोशल मीडिया पर कहा, "यह सिर्फ एक न्यूटन की बात नहीं है. उसके जैसे हजारों बांग्लादेशी नागरिक हैं, जिनके पास भारतीय दस्तावेज हैं, जो हमारे चुनावों में वोट देते हैं और टीएमसी की ढहती हुई इमारत को बचाते हैं."
मजूमदार ने ममता पर घुसपैठियों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "असफल मुख्यमंत्री ने घुसपैठ को अपनी तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा बना लिया है. ऐसे 'मतदाताओं' और लाठी-धारियों के समर्थन से वे पश्चिम बंगाल पर शासन नहीं कर रही हैं - वे एक ग्रेटर बांग्लादेश का खाका तैयार कर रही हैं."
यह विवाद टीएमसी उम्मीदवार अलो रानी सरकार से जुड़े एक पुराने प्रकरण से असहज समानता रखता है, जिन्होंने 2021 का विधानसभा चुनाव लड़ा था और बाद में पाया गया कि वे बांग्लादेशी नागरिक हैं.
काकद्वीप में पंचायत सदस्यों ने पुष्टि की कि न्यूटन का नाम मतदाता सूची में है, लेकिन उन्होंने उसके बांग्लादेशी मूल के बारे में अनजान होने का दावा किया. दक्षिण 24 परगना के स्थानीय अधिकारी चुप रहे, लेकिन एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि न्यूटन के खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं हुई है, भले ही बीजेपी इस मुद्दे पर जनता का ध्यान खींच रही है. सूत्र ने कहा, "जब तक हमें आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं मिलता, तब तक कार्रवाई के लिए बहुत कम आधार है."
बहरहाल, विवाद की टाइमिंग इससे ज्यादा अहम नहीं हो सकती थी. 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए बीजेपी के पास टीएमसी के खिलाफ अपने तरकश में एक नया तीर है. और जैसे-जैसे पार्टी बंगाल में राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमा पार से घुसपैठ और पहचान के खतरे के अपने नैरेटिव को आगे बढ़ा रही है, संभावना है कि न्यूटन दास, जो कभी एक गुमनाम राजनीतिक सिपाही थे, खुद को एक बड़े तूफान के केंद्र में पाएं.