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केंद्र में कैसे घटा यूपी के आईएएस अफसरों का दबदबा?

बीते सालों के दौरान केंद्रीय प्रतिनियुक्त‍ि पर तैनात यूपी कैडर के आईएएस अफसरों की संख्या में लगातार गिरावट आई. इस समय केंद्र में सचिव रैंक के मात्र चार अफसर ही तैनात

बिहार में चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर IAS अधिकारियों का तबादला
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 10 जून , 2025

करीब डेढ़ दो दशक पहले यूपी के आईएएस अफसरों की केंद्र सरकार में तूती बोलती थी. बड़ी संख्या में यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्त‍ि पर तैनात होकर महत्पूर्ण मंत्रालयों में अपनी सेवाएं देते थे. 

राज्य कैडर के कई आईएएस अधिकारी केंद्र में महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रह चुके हैं. इनमें बतौर कैबिनेट सेक्रेटरी तैनात रहे बी.के. चतुर्वेदी, पी.के. सिन्हा, अजीत सेठ, कमल पांडेय, प्रभात कुमार, सुरेंद्र सिंह जैसे अफसरों के नाम शामिल हैं. लेकिन अब केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर राज्य कैडर के आईएएस अधिकारियों में उत्तर प्रदेश का कम प्रतिनिधित्व सत्ता के गलियारों में चिंता का विषय बन गया है. 

यूपी कैडर के केवल 32 आईएएस अधिकारी ही इस समय केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. इसमें सचिव रैंक के अफसरों की संख्या मात्र चार है. वर्ष 1989 बैच के आईएएस अधिकारी देवेश चतुर्वेदी को सचिव, कृषि विभाग, 1990 बैच की अर्चना अग्रवाल को सदस्य सचिव, एनसीआर प्लानिंग बोर्ड, नई दिल्ली, 1991 बैच के कामरान रिजवी को सचिव भारी उद्योग और 1991 बैच की आईएएस अधिकारी निवेदिता शुक्ला वर्मा को सचिव रसायन एवं उर्वरक के पद पर तैनात किया गया है. खास बात यह भी है कि यूपी के 6 आईएएस अधिकारी ऐसे हैं, जो किसी न किसी मंत्री के निजी सचिव हैं.  

उत्तर प्रदेश में देश का सबसे बड़ा आईएएस अधिकारियों का कैडर है, जिसमें करीब 652 अधिकारी हैं. इसमें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए अधिकतम कोटा 141 का फिक्स है. नियुक्त‍ि विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, “दो दशक पहले तक केंद्र में यूपी के आईएएस अफसरों का दबदबा रहता था. यह संख्या 70-75 होती थी. कैबिनेट सेक्रेटरी, होम सेक्रेटरी, फाइनेंस सेक्रेटरी, डिफेंस सेक्रेटरी जैसे बड़े पदों पर यूपी के अफसर तैनात रह चुके हैं. लेकिन, आज की तारीख में यूपी के अफसर इस तरह के महत्वपूर्ण पदों से दूर हैं.” आलम यह है कि इस समय वर्ष 1992, 1993 और 1994 के बैच का उत्तर प्रदेश कैडर का कोई भी अधिकारी  केंद्र में काम नहीं कर रहा है. इन बैचों के कुछ अधिकारी, जो पहले केंद्र में सेवा दे चुके हैं, या तो पैनल में शामिल नहीं हुए हैं या प्रतिनियुक्ति के लिए कार्यमुक्त नहीं हुए हैं. 

केंद्र सरकार के मंत्रालयों/एजेंसियों द्वारा दिया जाने वाला उत्कृष्टता पुरस्कार भी अधिकारियों को केंद्र में प्रतिनियुक्त‍ि के योग्य नहीं बना सका है. अधिकारियों का मानना है कि केंद्र सरकार में वरिष्ठ स्तर के पदों पर अधिकारियों के पैनल में शामिल होने की प्रक्रिया में कुछ साल पहले शुरू की गई 360 डिग्री मूल्यांकन की प्रणाली केंद्र में यूपी कैडर के अधिकारियों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हो सकती है. यूपी सचिवालय में तैनात एक वरिष्ठ आईएएस अफसर बताते हैं “हर आईएएस अफसर का हर साल परफॉर्मेंस इवेल्यूएशन होता है. पहले इसी के आधार पर केंद्र में तैनाती मिल जाती थी. लेकिन, कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने एक स्क्रीनिंग कमेटी बना दी है. इसमें रिटायर्ड अफसरों को रखा गया है. इनका काम सिर्फ परफॉर्मेंस इवेल्यूएशन ही नहीं, आईएएस अफसर के लिए पब्लिक से भी फीडबैक लेना भी है.”

इस तरह के फीडबैक लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा जाता है. प्रधानमंत्री कार्यालय भी फिर उसे अपने पैमाने पर परखता है. उसके बाद किसी अधिकारी को केंद्र में किसी पद के लिए सूचीबद्ध किया जाता है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन कहते हैं, "360 डिग्री सिस्टम अपारदर्शी है और इसकी समीक्षा की जानी चाहिए. हाल ही में प्रधानमंत्री पुरस्कार के लिए यूपी कैडर के एक आईएएस अधिकारी का चयन किया गया था और उन्हें सचिव स्तर के पैनल में शामिल करने के लिए भी उपयुक्त नहीं पाया गया? अगर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले अधिकारियों की संख्या में कमी जारी रही, तो एक समय ऐसा भी आ सकता है जब यूपी कैडर के किसी भी अधिकारी को पैनल में शामिल नहीं किया जाएगा." 

केंद्र में जाने के इच्छुक कुछ अधिकारियों को एनओसी न दिए जाने को लेकर भी समस्या बढ़ रही है. कई ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें केंद्र में प्रतिनियुक्त‍ि पर जाने के लिए रिलीव नहीं किया गया है या उन्हें शुरुआती चरण में ही एनओसी नहीं दी गई है. यूपी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते, "हम अच्छे अधिकारियों को नहीं जाने देना चाहते. हमें उत्तर प्रदेश में उनकी जरूरत है." 

इस बदलाव का एक और बड़ा कारण आईएएस अधिकारियों की प्रमुख सचिव से अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) स्तर पर पदोन्नति में देरी है. जानकार बताते हैं कि 1995 बैच के आईएएस को कई अन्य राज्यों में एसीएस के रूप में पदोन्नत किया गया है. यूपी में विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) ने 1993 बैच के आईएएस को एसीएस स्तर पर पदोन्नति देने की संस्तुति की है. हालांकि, राज्य सरकार ने अभी तक इस कदम को मंजूरी नहीं दी है. 

अधिकारियों के मुताबिक समस्या यह भी है कि वर्ष 1990 से 2005 तक यूपी को बहुत ही कम आईएएस अफसर दिए गए. इसके चलते इस कैडर के वरिष्ठ अधिकारियों की कमी हो गई है. वर्ष 1991 में पांच, 1992 में दो, 1993 में तीन, 1994 में चार, 1997 में पांच, 1998 में सात, 1999 में छह, 2001 में चार, 2002 में छह और वर्ष 2005 में पांच आईएएस अधिकारियों को ही यूपी कैडर अलाट किया गया. 

अलबत्ता वर्ष 2011 से इसमें सुधार हुआ और यूपी को औसतन 16-20 अधिकारी मिलने लगे. अफसरों की कमी के चलते भी यूपी कैडर के अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कम हैं. जिलाधिकारी बनने का लालच भी आईएएस अफसरों के केंद्रीय प्रतिनियुक्त‍ि पर जाने में आड़े आ रहा है. डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर कोई भी अफसर केंद्र में तैनाती नहीं चाहता. राज्य में रहने से वह किसी भी जिले का डीएम बन सकता है या फिर सचिवालय में उसे अच्छी पोस्टिंग मिल सकती है. बहरहाल अभी जो हालात हैं उनसे तो यही लगता है कि केंद्र सरकार में यूपी कैडर के आईएएस अफसरों की तैनाती का “गोल्डन टाइम” बीत चुका है और इसे दोबारा आने में लंबा अरसा लगेगा.

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