
चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) ने अपनी पांचों सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. इन प्रत्याशियों में कई नए चेहरे भी हैं. उनके बहनोई अरुण भारती जमुई से चुनावी मैदान में उतरे हैं तो भागलपुर के पूर्व उप मेयर राजेश वर्मा को खगड़िया से टिकट दिया गया है.
मगर इस सूची में सबसे चौंकाने वाला नाम शांभवी चौधरी का है, जिन्हें चिराग ने अपने चचेरे भाई प्रिंस की जगह समस्तीपुर सीट से टिकट दिया है. शांभवी का नाम इसलिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि वे बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री और नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाने वाले अशोक चौधरी की बेटी हैं.
यह हैरत की बात इसलिए भी है, क्योंकि हाल-फिलहाल तक जदयू और लोजपा (रामविलास) के बीच भीषण अदावत रही है. बिहार में जब नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़कर महागठबंधन के साथ सरकार बनाई थी तो अक्सर जदयू नेता यह कहा करते थे कि भाजपा के इशारे पर चिराग पासवान ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचाया, इसलिए विधानसभा में जदयू विधायकों की संख्या काफी घट गई.
खुद चिराग पासवान नीतीश के एनडीए में आने के बाद भी उन पर हमलावर रहे और हाल ही में एक रैली में उन्होंने इशारों में यहां तक कहा कि बिहार की बदहाली की वजह नीतीश कुमार हैं, वे जब तक सीएम रहेंगे बिहार में विकास नहीं हो सकता. इसके बावजूद अशोक चौधरी अपनी बेटी शांभवी को चिराग की पार्टी से टिकट दिलवाने में सफल हो गए.
सवाल दूसरे भी हैं. आखिर अशोक चौधरी ने अपनी बेटी को लोजपा (रामविलास) के बदले जदयू से क्यों टिकट नहीं दिलवाया? हाल-फिलहाल तक शांभवी के बदले उनके पति सायन कुणाल का नाम टिकट के दावेदारों में था. इस वजह से अशोक चौधरी और ललन सिंह के बीच अंदरूनी तौर पर अदावत की स्थिति बन गई थी, मगर अशोक चौधरी ने शायन के बदले अपनी बेटी शांभवी को क्यों टिकट दिलाया. ये बातें अमूमन लोगों को समझ नहीं आ रहीं.

इस सवाल को समझने के लिए जब हमने लोजपा के लोगों से अनौपचारिक बातचीत की तो पता चला कि शांभवी को टिकट मिलने की असली वजह जमुई सीट है. इस सीट से चिराग खुद सांसद हैं और अब उन्होंने अपने बहनोई अरुण भारती को चुनाव में उतारा है. हालांकि इस सीट को लेकर लोजपा नेता बहुत आश्वस्त नहीं हैं. जबकि अशोक चौधरी का जमुई लोकसभा के कई इलाकों में अच्छा असर है. उनके पिता महावीर चौधरी लंबे समय तक इस इलाके में सक्रिय रहे. अशोक चौधरी खुद भी वहां हाल के दिनों में काफी सक्रिय रहे हैं. चिराग को ऐसा लगता है कि अशोक चौधरी अगर दिल खोलकर मदद कर देते हैं तो उनके बहनोई की जीत की संभावना बढ़ जाएगी. इसी के बदले उन्होंने उनकी बेटी शांभवी को समस्तीपुर की अपनी पारंपरिक सीट पर चुनाव लड़ने का मौका दिया है.
समस्तीपुर की सीट पर पहले उनके चाचा रामचंद्र पासवान सांसद रहे, उनके निधन के बाद चचेरे भाई प्रिंस राज सांसद हैं. ऐसे में इस सीट में शांभवी आसानी से जीत सकती हैं. कहा यह भी जा रहा है कि लोजपा (रामविलास) को भले ही एनडीए में पांच सीटें मिलीं, मगर शायद समझौते के वक्त ही यह तय हो गया था कि इनमें से एक सीट पर जदयू का प्रत्याशी होगा. इसलिए शांभवी को वह टिकट मिला है. कहा यह भी जाता है कि चिराग और नीतीश के बीच कटुता खत्म कराने और दोनों को करीब लाने में अशोक चौधरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसी वजह से हाल के दिनों में नीतीश और चिराग एक साथ एक तसवीर में नजर आए थे.
महज 25 साल की शांभवी चौधरी जो महज एक दिन पहले लोजपा की सदस्य बनी हैं, कहती हैं, "मैं वैचारिक रूप से खुद को लोजपा के अधिक करीब पाती हूं. मुझे चिराग भैया का बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट का नारा अधिक अपील करता है. वैसे भी चिराग भैया से मेरे पति सायन कुणाल की नजदीकी रही है. वे हमारे लिए बड़े भाई की तरह रहे हैं. इसलिए मैंने इच्छा जाहिर की. मुझे भरोसा तो नहीं था, मगर उन्होंने मुझे टिकट दे दिया, अब मुझे खुद को साबित करना है."
शांभवी का जन्म पटना में ही हुआ है. शुरुआती पढ़ाई लिखाई नोट्रे डैम अकादमी से हुई और उन्होंने ग्रेजुएशन लेडी श्रीराम कॉलेज, पीजी दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से किया. उनके पति सायन कुणाल बिहार के चर्चित आईपीएस और महावीर मंदिर न्यास के सचिव किशोर कुणाल के बेटे हैं. शांभवी फिलहाल किशोर कुणाल द्वारा स्थापित स्कूल ज्ञान निकेतन गर्ल्स स्कूल की निदेशक हैं. अपनी इस जिम्मेदारी के बारे में उनका कहना है, "मैं इस स्कूल के जरिये वंचित परिवार की लड़कियों की मदद करने की कोशिश करती हूं. कई रेप सर्वाइवर की पढ़ाई अपने स्कूल में कराती हूं. इसके अलावा मैं दिल से एनीमल लवर हूं और सड़क पर जीने वाले कुत्तों और गायों को बेहतर माहौल देने की कोशिश करती हूं. उनके लिए खाना उपलब्ध कराना मेरा पैशन है."
यह पूछे जाने पर कि उन्हें टिकट दिया जाना क्या परिवारवाद नहीं है. उन्हें टिकट देकर क्या लोजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय नहीं हुआ? वे कहती हैं, "यह मुमकिन है कि परिवार की वजह से मुझे टिकट मिल गया. मगर मेरा चुना जाना मेरे व्यक्तित्व और वोटरों पर निर्भर है. अगर वोटर चाहेंगे, उन्हें मैं पसंद आऊंगी तभी वे मुझे चुनेंगे. वैसे मैं एक पढ़ी लिखी और संवेदनशील उम्मीदवार तो हूं ही."