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पूर्व राज्यपाल और एनएसजी के मुखिया रहे निखिल कुमार कैसे चूके लोकसभा की उम्मीदवारी?

निखिल कुमार 2009 और 2014 में बिहार की औरंगाबाद लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं और इस बार भी वे इस सीट से उम्मीदवार बनने की आस लगाए बैठे थे

 निखिल कुमार 2009 और 2014 में बिहार की औरंगाबाद लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं
निखिल कुमार 2009 और 2014 में बिहार की औरंगाबाद लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं
अपडेटेड 5 अप्रैल , 2024

केरल के राज्यपाल रहे निखिल कुमार को एक बार फिर निराशा हाथ लगी है. दरअसल, भारतीय पुलिस सेवा में रहने के दौरान वे दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे. इसके अलावा वे आईटीबीपी और एनएसजी के महानिदेशक भी रह चुके हैं.

भारतीय पुलिस सेवा से रिटायर होने के बाद बाद 2004 में वे कांग्रेस के टिकट पर बिहार की औरंगाबाद लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. हालांकि, 2009 में उनको जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह के खिलाफ चुनावी हार का सामना करना पड़ा. 

तब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी. उसी साल अक्टूबर में उन्हें नगालैंड का राज्यपाल बना दिया गया. बाद में वे बतौर राज्यपाल केरल भेजे गए. औरंगाबाद निखिल कुमार के परिवार की पुश्तैनी सीट रही है.

इसी सीट से उनके पिता सत्येंद्र नारायण सिन्हा सबसे अधिक छह बार सांसद रहे. बाद में सिन्हा थोड़े दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री भी बने. 1999 में इसी सीट से निखिल कुमार की पत्नी श्यामा सिंह भी सांसद चुनी गईं.

राज्यपाल बनने के बावजूद भी निखिल कुमार औरंगाबाद से 2009 में मिली हार को भूल नहीं पाए. यही वजह थी कि लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद से मिली हार को जीत में तब्दील करने के इरादे से उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले केरल के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया लेकिन वे 2014 में भी भाजपा के सुशील कुमार सिंह से चुनाव हार गए.

इस हार के बावजूद निखिल कुमार औरंगाबाद में लगातार सक्रिय रहे. 2019 के लोकसभा चुनाव में वे फिर से कांग्रेस उम्मीदवार बनना चाहते थे. उस चुनाव में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन में थी. औरंगाबाद सीट मांझी की 'हम' पार्टी को चली गई और निखिल कुमार के चुनाव लड़ने के मंसूबे पर पानी फिर गया.

इस बार जब मांझी की पार्टी एनडीए का हिस्सा बन गई तो निखिल कुमार को उम्मीद थी कि जिस सीट उनके अलावा उनके पिता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा और उनकी पत्नी श्यामा सिंह सांसद रही हैं, वह सीट कांग्रेस के पास ही रहेगी.

औरंगाबाद से अब तक सबसे अधिक आठ बार अगर किसी पार्टी ने जीत दर्ज की है तो वह कांग्रेस ही है. इस नाते बिहार में औरंगाबाद की पहचान कांग्रेस की पारंपरिक सीट की रही है. ऐसे में स्वाभाविक था कि एक बार फिर निखिल कुमार इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में उतरने के लिए उम्मीद लगाए बैठे थे.

इसी उम्मीद में निखिल कुमार दिल्ली के ​पॉश डिफेंस कॉलोनी का अपना घर छोड़कर लगातार औरंगाबाद के गांवों की खाक छान रहे थे. पिछले कई महीने से वे औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के विभिन्न हिस्से में सघन जनसंपर्क अभियान चला रहे थे. लेकिन एक बार फिर पूर्व राज्यपाल के साथ खेला हो गया. कांग्रेस की इस पारंपरिक सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने अभय कुशवाहा को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया.

निखिल कुमार कहते रह गए कि वे चुनाव जरूर लड़ेंगे लेकिन उनकी पार्टी कांग्रेस ने भी औरंगाबाद सीट बचाने के लिए कोई स्टैंड नहीं लिया. इससे औरंगाबाद में निखिल कुमार के समर्थकों में नाराजगी ऐसी बढ़ी की इंडिया गठबंधन की ओर से राजद के उम्मीदवार के नामांकन में कांग्रेस के जिला स्तर के पदाधिकारी और कार्यकर्ता नहीं गए.

हालांकि, इस सीट पर नामांकन की आखिरी तारीख समाप्त हो गई है. इसका मतलब यह हुआ कि अब निखिल कुमार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. लेकिन फिर भी उनके समर्थकों की नजर इस बात पर है कि निखिल कुमार अगला कदम क्या उठाते हैं.

इस सीट को लेकर कांग्रेस और राजद की खींचतान में भले ही सीधा नुकसान निखिल कुमार का हुआ लेकिन इसका सबसे बड़ा लाभ भाजपा के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह को होता हुआ दिख रहा है. क्योंकि इस सीट पर सबसे अधिक संख्या राजपूत मतदाताओं की है. निखिल कुमार और सुशील कुमार सिंह दोनों राजपूत समाज से ही हैं. 

ऐसे में अगर निखिल कुमार चुनावी मैदान में होते तो राजपूत वोट बैंक में बंटवारा होता. निखिल कुमार इस सीट पर इसलिए ही इंडिया गठबंधन के मजबूत उम्मीदवार माने जा रहे थे. क्योंकि राजद के साथ होने से मुस्लिम और यादव मतदाता उनके साथ रहते और अगर इनमें राजपूतों का वोट भी जुड़ता तो भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती थीं. लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि अब राजपूत समाज का पूरा वोट भाजपा उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह को मिलेगा और इस बात की पूरी संभावना है कि बतौर सांसद वे लगातार चौथी बार औरंगाद से निर्वाचित हो जाएंगे.

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