कांग्रेस नेताओं का दावा है कि सबरीमला में सोने की लूट ने पिनरई विजयन सरकार के खिलाफ हिंदुओं की नाराजगी भड़का दी. लेकिन असल सवाल ये है कि क्या विपक्ष निकाय चुनाव में मिली सफलता को आगे कायम रख पाएगा?
केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) के शानदार प्रदर्शन से राज्य सरकार के खिलाफ आम लोगों में बढ़ती नाराजगी का संकेत मिल रहा है. और यह 2026 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है.
LDF ने तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, त्रिशूर, पलक्कड़, कोझिकोड, वायनाड और कन्नूर जिलों में अपने कई मजबूत गढ़ खो दिए. वहीं, UDF ने कुल 941 में से 505 ग्राम पंचायतों, 152 में से 79 ब्लॉक पंचायतों में जीत हासिल की. इसके अलावा कुल 14 में सात जिला पंचायतों, छह में से चार नगर निगमों और 86 में से 54 नगर पालिकाओं में भी UDF को सफलता मिली.
नतीजे UDF के पक्ष में कुछ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर भी संकेत देते हैं. दक्षिणी जिलों तिरुवनंतपुरम, कोल्लम और पाटनमथिट्टा में हिंदुओं के एक बड़े हिस्से ने LDF के खिलाफ वोट दिया. मध्य केरल यानी कोट्टायम, एर्नाकुलम और त्रिशूर में ईसाइयों ने कांग्रेस का समर्थन किया तो उत्तरी केरल- पलक्कड़ से कासरगोड तक में मुस्लिमों की एकजुटता ने UDF को बड़ी सफलता दिलाई.
विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने कहा, “हमारा LDF के खिलाफ एकजुट होकर काम करना बड़ी जीत में सहायक साबित हुआ. हमने एजेंडा तय किया और सरकार की गलतियों को उजागर किया.” साथ ही जोड़ा, “केरल के लोगों से उन लोगों को वोट देने की उम्मीद कैसे की जा सकती है जिन्होंने सबरीमला का सोना लूटा?”
सबरीमला सोना लूट मामले में CPI(M) के पूर्व विधायक और त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड के पूर्व प्रमुख ए. पद्मकुमार की गिरफ्तारी ने LDF को बैकफुट पर ला दिया था. मुख्यमंत्री विजयन की पार्टी ने गिरफ्तारी के बाद भी पद्मकुमार के खिलाफ कोई कार्रवाई न करके शायद बड़ी गलती की है. वे CPI(M) के पाटनमथिट्टा जिला सचिवालय के सदस्य बने हुए हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला का आरोप है, “सबरीमला में सोने की लूट को इतने वर्षों तक दबाए रखे जाने से एक बड़ी साजिश सामने आती हैं. इससे प्राचीन कलाकृतियों के अंतरराष्ट्रीय तस्करों की मिलीभगत और इसमें सरकार की भूमिका का पता चला है.”
LDF को अपनी कल्याणकारी योजनाओं के बलबूते जीत हासिल करने का भरोसा था, जिसमें Life Mission programme के तहत गरीबों के लिए घर और सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ाने का फैसला शामिल था. बहरहाल, कांग्रेस को खासा असहज कर देने वाला मुद्दा, जिसमें पलक्कड़ के MLA राहुल ममकूटाथिल के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगे थे, भी एक हद से आगे LDF को कोई सियासी फायदा नहीं पहुंचा पाया.
केरल यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रो वाइस-चांसलर और राजनीतिक टिप्पणीकार जे. प्रभाष कहते हैं, “शायद CPI(M) ने अपनी राजनीतिक खूबी गंवा दी है. सत्तारूढ़ पार्टी और उसके नेताओं को लोगों से बात करते समय विनम्रता और संवेदनशीलता दिखानी चाहिए लेकिन CPI(M) और सरकार ने सचिवालय के सामने आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल मामले में जो रुख अपनाया, उसने मतदाताओं पर खासा नकारात्मक असर डाला. सरकार के खिलाफ अंदर ही अंदर नाराजगी की एक लहर चल रही थी, और CPI(M) की संगठनात्मक खामियों ने भी विपक्ष की जीत में अहम भूमिका निभाई.”
चुनाव नतीजों पर विश्लेषण के लिए 15 दिसंबर को तिरुवनंतपुरम में CPI(M) की राज्य सचिवालय की बैठक हुई. दिलचस्प बात ये है कि इसमें किसी भी तरह की सत्ता-विरोधी लहर की राय जाहिर नहीं की गई. विश्लेषकों का कहना है कि यह भरोसा जमीनी स्तर पर शायद बहुत पुख्ता नहीं हो. अगर कांग्रेस अपनी ताजा सफलता की गति बनाए रखती है और इसी तरह एकजुट नजर आती है तो केरल में LDF के लिए सत्ता में आने की हैट्रिक मनाना आसान नहीं होगा.

