25 अगस्त 2025 का दिन था और जगह थी जोधपुर के लालसागर स्थित हनुवंत आदर्श विद्या मंदिर परिसर का सभागार. मंच सजा था, माइक चमक रहा था और सभागार में सत्ता, समाज व परंपरा का सुंदर समागम दिखाई पड़ रहा था.
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, जोधपुर के पूर्व राज परिवार से जुड़े गज सिंह, विधायक बाबू सिंह राठौड़, हमीर सिंह भायल, रविंद्र सिंह भाटी और राजपूत समाज की कई प्रतिष्ठित हस्तियां मंच और सामने की कुर्सियों पर विराजमान थीं. केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ऑपरेशन सिंदूर के बाद राष्ट्र, सुरक्षा और संस्कारों की गंभीर बातों पर संबोधन के लिए माइक संभाल चुके थे.
राजनाथ सिंह ने संबोधन से पहले वहां उपस्थित विशिष्टजनों के नाम लेने की परंपरा निभाई. नामों की यह यात्रा बड़े सलीके से आगे बढ़ रही थी मगर जैसे ही उन्होंने बाड़मेर के शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी का नाम लिया, सभागार की चुप्पी टूटी और तालियां की गड़गड़ाहट के साथ जोश के साथ खूब शोर उठा. कुछ पलों के लिए मंच और सभागार दोनों ठिठक गए. यह सब देखकर राजनाथ सिंह मुस्कराए और भाटी की तरफ मुखातिब होकर व्यंग्यात्मक लहजे से पूछा - क्या हाल हैं रविंद्र सिंह.
इससे ठीक 11 दिन पहले 14 अगस्त 2025 को नागौर में वीर दुर्गादास जयंती के कार्यक्रम में भी कुछ ऐसा ही दृश्य नजर आया. राजस्थान की उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी मंच से अपना संबोधन दे रही थी उसी दौरान सभा में विधायक रविंद्र सिंह भाटी की एंट्री हुई. भाटी के समर्थक हूटिंग और नारेबाजी करने लगे तो दीया कुमारी असहज हो गईं. दीया ने भाटी पर तंज कसते हुए कहा, ''अभी सोशल मीडिया का जमाना है और भाटी सोशल मीडिया पर बहुत छाए हुए हैं मगर अकेले सोशल मीडिया से काम नहीं चलेगा, आपको काम भी करना होगा रविंद्र जी.''
दीया के संबोधन के बीच में भाटी समर्थक लगातार नारेबाजी करते रहे तो दीया कुमारी उखड़ गईं और कहा, ''अगर आप शांत नहीं हुए तो मैं अपना भाषण बीच में ही छोड़कर चली जाऊंगी.''
इन दोनों वाकयों के बाद 13 दिसंबर को राजस्थान के बाड़मेर जिले के सीमावर्ती बाखासर गांव में राजनाथ सिंह, दीया कुमारी और रविंद्र सिंह एक साथ मंच पर नजर आने वाले थे.
1971 के भारत-पाक युद्ध के जांबाज बलवंत सिंह बाखासर की मूर्ति अनावरण के इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजनाथ सिंह और दीया कुमारी ने मंजूरी भी दे दी थी मगर ऐनवक्त पर दोनों ने आने से इंकार कर दिया. इसके पीछे जो वजह बताई जा रही है वो हैं रविंद्र सिंह भाटी और मानवेंद्र सिंह जसोल. नागौर के घटनाक्रम के बाद दीया कुमारी रविंद्र सिंह भाटी के साथ मंच साझा नहीं करना चाहतीं और थार के दिग्गज नेता मानवेंद्र सिंह जसोल को नहीं बुलाए जाने से राजनाथ सिंह असहज थे. मानवेंद्र सिंह जसोल BJP के दिग्गज नेता व पूर्व रक्षा व विदेश मंत्री स्व. जसवंत सिंह जसोल के पुत्र हैं और थार के बड़े राजपूत नेता माने जाते हैं.
बाखासर के इस कार्यक्रम में राजनाथ और दीया का न आना सियासी हलको में चर्चा का विषय बना हुआ है. दोनों नेताओं की अनुपस्थिति को महज संयोग माना जाए या सियासी संदेश, इसे लेकर बहस गरम है. शुरुआत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उससे जुड़े संगठनों की भी इस कार्यक्रम में भागीदारी तय मानी जा रही थी मगर राजनाथ सिंह का दौरा रद्द होने के बाद RSS की प्रदेश इकाई भी पीछे हट गई.
स्थानीय राजनीति के जानकार लोकेंद्र सिंह किलानौत भी इस पूरे मामले से जुड़ी चर्चाओं की पुष्टि करते हुए बताते हैं, ''बलवंत सिंह बाखासर के मूर्ति अनावरण कार्यक्रम की योजना RSS की सहयोगी सीमाजन कल्याण समिति ने बनाई थी. राजनाथ सिंह, दीया कुमारी और गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे दिग्गज राजपूत नेताओं की मौजूदगी में कार्यक्रम होना था. बलवंत सिंह का परिवार थार के कद्दावर नेता मानवेंद्र सिंह जसोल और रविंद्र सिंह भाटी को भी कार्यक्रम में बुलाना चाहता था मगर भाटी के नाम पर दीया कुमारी और मानवेंद्र के नाम पर गजेंद्र सिंह सहमत नहीं थे. मानवेंद्र सिंह की नाराजगी के बारे में जब राजनाथ सिंह और दीया कुमारी को पता चला तो उन्होंने भी कार्यक्रम में आने से इंकार कर दिया.''
बाखासर के इस कार्यक्रम को गजेंद्र सिंह शेखावत के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है. सियासी जानकारी मानते हैं कि इस कार्यक्रम के जरिए गजेंद्र सिंह शेखावत यह संदेश देना चाहते थे कि मारवाड़ और थार बेल्ट में राजपूत राजनीति की कमान उन्हीं के हाथ में है. बाखासर के इस कार्यक्रम ने राजपूत समाज के भीतर नए ध्रुवीकरण को भी उजागर किया है. अब यहां रविंद्र सिंह भाटी, दीया कुमारी, गजेंद्र सिंह शेखावत, जसवंत सिंह जसोल जैसे कई ध्रुव नजर आने लगे हैं. उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी शाही परिवार, सत्ता व संगठन में दिल्ली तक मजबूत पकड़ के कारण अपना खास प्रभाव रखती हैं वहीं रविंद्र सिंह भाटी युवाओं और सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हैं.
गजेंद्र सिंह शेखावत पिछले कुछ सालों से मारवाड़ की सियासत के मजबूत क्षत्रप बनकर उभरे हैं. जोधपुर, नागौर के बाद अब वे पश्चिम राजस्थान की सियासत में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं. पूर्व सांसद मानवेंद्र सिंह जसोल दिग्गज राजपूत नेता जसवंत सिंह जसोल की सियासी विरासत के उत्तराधिकारी हैं तथा थार की सियासत के बड़े क्षत्रप माने जाते हैं.
कौन हैं ‘छाछरो युद्ध’ के हीरो बलवंत सिंह बाखासर
बलवंत सिंह बाखासर को 1971 के युद्ध में पाकिस्तान छाछरो में हुई पहली ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के हीरो के तौर पर जाना जाता है. युद्ध से पहले बलवंत सिंह की पहचान एक डकैत के तौर पर थी मगर 1971 के युद्ध में उन्होंने जिस अदम्य साहस का परिचय दिया उसके बाद उनकी छवि एक हीरो के तौर पर उभर कर सामने आई.
बलवंत सिंह का जन्म पाक सीमा पर बसे बाड़मेर के बाखासर गांव में हुआ था. बलवंत सिंह के पोते रतन सिंह बताते हैं, ''हमारी पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अमरकोट में रिश्तेदारी थी. दादा (बलवंत सिंह) का वहां आना-जाना था. लिहाजा वे सीमा पार के इलाके से पूरी तरह वाकिफ थे. ऐसी ही जानकारी उन्हें कच्छ (गुजरात) के रण की भी थी. इसी के चलते लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह ने युद्ध शुरू होने से पहले ही बाखासर जाकर बलवंत सिंह साथ मीटिंग की और उनसे सहयोग मांगा. बलवंत सिंह की मदद से ही भारतीय सेना छाछरो के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को खदेड़ पाई.''
पाकिस्तान की ओर से होने वाली लूटपाट ने बलवंत सिंह को बचपन में ही हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया था. उन्होंने पाकिस्तान की तरफ से आने वाले कई लुटेरों को मौत के घाट उतारा था. 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ा तब भारतीय सेना के पास ऐसा कोई मार्गदर्शक नहीं था जो रेगिस्तान को बेहतर तरीके से जानता हो. उस वक्त 10 पैरा रेजिमेंट के कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल व जयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य भवानी सिंह ने बलवंत सिंह से मदद मांगी.
बलवंत सिंह ने सेना को रेगिस्तान के गुप्त रास्तों से ले जाकर 7 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के छाछरो कस्बे तक पहुंचा दिया. बलवंत सिंह के मार्गदर्शन के चलते ही पाकिस्तान के 100 से अधिक गांव, छाछरो चौकी और अमरकोट तक का 3600 वर्ग किमी क्षेत्र भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया. इस युद्ध में उनकी सूझबूझ और साहस के कारण सरकार ने बलवंत सिंह पर दर्ज सभी केस वापस लिए और उन्हें सीमांत सुरक्षा का अनौपचारिक संरक्षक घोषित किया गया.

