
विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में एक बड़े घोटाले की आहट सुनाई दे रही है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की रिपोर्ट के आधार पर बिहार पुलिस की विशेष निगरानी इकाई ने 30 अप्रैल को एक ब्रोकर रिशु श्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज की.
इस FIR में दर्ज सूचनाएं गंभीर हैं. इसके मुताबिक राज्य के कई विभागों में रिशु श्री अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ मिलकर विभाग द्वारा जारी टेंडर की शर्तों को इस तरह रखवाता था, जिससे उसके क्लाइंट को फायदा मिल सके.
ईडी के मुताबिक राज्य के जल संसाधन विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग और भवन निर्माण विभाग में प्राथमिक तौर पर गड़बड़ियों की सूचना हैं. इसमें कई वरीय अधिकारियों की भागीदारी बताई जा रही है. ईडी को इस बात का भी अंदेशा है कि रिशु श्री इन अधिकारियों की काली कमाई को देश और विदेश के अलग-अलग ठिकानों में निवेश करता रहा है.
इस तरह रिशु श्री की पहचान एक बड़े दलाल के रूप में हुई है, जो टेंडर मैनेज करवाने और अधिकारियों के पैसों को निवेश कराने का काम करता था.
फिलहाल बिहार पुलिस की विशेष निगरानी इकाई ने रिशु श्री, उसके दो सहयोगी संतोष और पवन और जल संसाधन विभाग के निवर्तमान सचिव संजीव हंस के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज किया है. इसमें अज्ञात सरकारी अधिकारियों और अन्य अज्ञातों के खिलाफ भी कार्रवाई की संभावना छोड़ी गई है.
यह एफआईआर काफी शुरुआती किस्म का है. इसमें सिर्फ एक वरीय अधिकारी नामजद हैं, जो पहले से दूसरे मुकदमों में फंसे हुए हैं. दूसरे विभाग के वरीय पदाधिकारियों का नाम नहीं आया है. साथ ही इन विभागों के मंत्रियों के खिलाफ कोई जांच नहीं हुई है. अनुत्तरित सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ रिशु श्री ही ऐसा दलाल था, जो इस तरीके से टेंडर मैनेज करवाता था, या फिर उसके जैसे और भी दलाल इसमें शामिल हो सकते हैं? इन तमाम सवालों का जवाब ईडी की जांच से ही सामने आएगा.
रिशु श्री ईडी की जांच के दायरे में इसलिए आया, क्योंकि ईडी वित्तीय अनियमितताओं के मामले में वरीय आईएएस अधिकारी संजीव हंस के खिलाफ जांच कर रही थी. संजीव हंस के जल संसाधन विभाग में सचिव रहते हुए 2018 में बीरपुर, सुपौल में एक फिजिकल मॉडलिंग सेंटर बनाने का टेंडर जारी हुआ था.
तकरीबन 125 करोड़ की लागत से बनने वाला यह सेंटर कोसी और बिहार की दूसरी नदियों के प्रवाह के अध्ययन का केंद्र बनने वाला था. विभाग के मुताबिक लगभग 20 एकड़ में फैला यह सेंटर नदियों के हाइड्रोलिक गुणों का अध्ययन करने के मामले में पुणे के बाद देश का दूसरा अतिविशिष्ट संस्थान है.
इसका मकसद कोसी सहित बिहार की प्रमुख नदियों के बहाव की प्रवृत्ति का अध्ययन, कोसी बराज के गेट के संचालन का स्टडी मॉडल, उत्तर बिहार में बाढ़ का बेहतर प्रबंधन, नदियों के कटाव और गाद की समस्या से निपटने के लिए अधिक कारगर योजना तैयार करना और नदियों से जुड़े डेटा के विश्लेषण के आधार पर नीतियों का निर्माण करना था.

ईडी की जांच में पता चला कि इस टेंडर में रिशु श्री ने ऐसी शर्तें रखवाईं जिससे उसके क्लाइंट अहमदाबाद की सेवरोक्स कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को ठेका मिल गया. बाद में रिशु ने अपने स्टाफ संतोष कुमार की कंपनी मातृसेवा कंस्ट्रक्शन को इस प्रोजक्ट का सब-कांट्रैक्ट दिलवा दिया.
संतोष रिशु की कंपनी रिलायबल इंफ्रा सर्विस प्राइवेट लिमिटेड में काम करते थे. इस कंपनी को मिले सब-कांट्रैक्ट के जरिए रिशु को इस परियोजना का ठेका दिलवाने के एवज में 8 से 10 फीसदी के करीब कमीशन मिल गया. हालांकि पिछले साल यह सेंटर बनकर तैयार हो गया है.
बाद में जब ईडी ने मातृसेवा के पटना स्थित दफ्तर में छापेमारी की तो कंपनी के एक निदेशक ने बताया कि कंपनी की तरफ से विभाग के तत्कालीन सचिव संजीव हंस को 67 लाख रुपये दिए गए हैं. इसके अलावा रिशु के खाते से संजीव हंस के साथ अवैध रिश्ते में रह रही एक महिला को भी बीस लाख रुपए दिए गए हैं.

दरअसल बिहार सरकार में अहम पदों पर रहे इस आईएएस अधिकारी के खिलाफ ईडी काफी पहले से जांच कर रही थी. इस मामले की शुरुआत एक महिला वकील की शिकायत पर हुई थी, जिसमें उसने संजीव हंस और झंझारपुर के बड़े नेता गुलाब यादव पर गैंगरेप का आरोप लगाया था.
गुलाब यादव को संजीव हंस का सहयोगी माना जाता है. गुलाब यादव ने 2024 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. पहले वे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में थे. उनकी बेटी जिला परिषद अध्यक्ष हैं और पत्नी विधान पार्षद हैं. उनकी दूसरी पत्नी पुणे में कारोबारी हैं. ईडी ने दिसंबर, 2024 में संजीव हंस और गुलाब यादव की पत्नी को भी समन जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया था. बाद में संजीव हंस के आर्थिक अनियमितताओं के मामले खुलने लगे. इसी में रिशु श्री भी जांच के दायरे में आया.

ईडी से पूछताछ में रिशु ने कई महत्वपूर्ण सुराग दिए हैं. उसका कहना है कि ठेके के अलावा वह विभाग के कर्मियों को बिल पास कराने के एवज में भी 2 से 3.5 फीसदी कमीशन देता रहा है. उसने यह भी कबूल किया कि उसने बिहार सरकार के नगर विकास एवं आवास विभाग और भवन निर्माण विभाग के कई अधिकारियों को भी इसी तरह कमीशन दिए हैं. एफआईआर में इसकी गहराई से जांच किए जाने की अनुशंसा की गई है.
ईडी ने खास तौर पर नगर विकास विभाग से जुड़े बिहारशरीफ और मुजफ्फरपुर की 33 ड्रेन बायोरेमेडीशन परियोजनाओं में गड़बड़ी की बात कही है.
इन जानकारियों के आधार पर ईडी ने 27 मार्च को सात जगहों पर छापेमारी की. इस तलाशी अभियान में ईडी को 11.64 करोड़ की नकदी मिली और बिहार निर्माण विभाग (बीसीडी) के मुख्य अभियंता तारिणी दास, बिहार सरकार के वित्त विभाग के संयुक्त सचिव मुमुक्षु चौधरी, नगर विकास और आवास विभाग (यूडीएचडी) के कार्यपालक अभियंता उमेश कुमार सिंह, बिहार शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड (बीयूआईडीसीओ) के उप परियोजना निदेशक अयाज अहमद, बिहार चिकित्सा सेवा और आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड (बीएमएसआईसीएल) के डीजीएम (परियोजना) सागर जायसवाल, बिहार चिकित्सा सेवा और आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड (बीएमएसआईसीएल) के डीजीएम विकास झा तथा बिहार निर्माण विभाग (बीसीडी) के कार्यपालक अभियंता साकेत कुमार के नाम सामने आए हैं.
ईडी का कहना है कि पिछले सात-आठ साल से यह काम कर रहे रिशु श्री ने भारी कमाई की है. दिल्ली में रियल स्टेट में उसने काफी पैसा निवेश किया है. जांच में ईडी को उसके नाम से संपत्तियों के 61 सेल डीड मिले हैं. पटना और हाजीपुर में उसके दो पेट्रोल पंप हैं. पिछले दो साल में उसने बीएमडब्लू और लैंड क्रूजर जैसी आधा दर्जन से अधिक कारें खरीदी हैं.
ईडी का कहना है कि पिछले पांच सालों में रिशु ने दुबई और यूरोपीय देशों की लगातार यात्राएं की हैं और जांच एजेंसी का अनुमान है कि उसने बिहार सरकार के कई अधिकारियों की काली कमाई का इन देशों में निवेश किया है.

ईडी, पटना के संयुक्त निदेशक सत्यकाम दत्ता की रिपोर्ट में रिशु पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे इस प्रकार हैं:
1. सरकारी टेंडरों को प्रभावित करना
2. संबंधित विभागों के कर्मियों और अधिकारियों को लाभ पहुंचाना.
3. विभिन्न टेंडरों की महत्वपूर्ण जानकारियों को समय से पहले हासिल कर लेना.
4. उनके जरिये इन टेंडरों को खुद के लिए और अपने नेक्सस से जुड़े लोगों के लिए हासिल करना.
5. इसमें संजीव हंस और अन्य वरीय अधिकारियों की मदद लेना.
इस मामले में जब हमने बिहार पुलिस की विशेष निगरानी इकाई से संपर्क किया तो वहां बताया गया कि अभी उनके पास उतनी ही सूचना है, जो एफआईआर में दर्ज है. जब इन आरोपों की गंभीरता से जांच होगी तो पता चलेगा कि यह कितना बड़ा मामला है और इसमें कौन-कौन लोग शामिल हैं.
जानकार बताते हैं कि रिशु श्री इस तरह की गड़बड़ियों में अकेला नाम नहीं है. बिहार सरकार के विभिन्न विभागों से जुड़े दो दर्जन से अधिक ऐसे लोग जरूर हैं, जो इस तरह का काम करते हैं. रिशु इनमें खास था, क्योंकि वह स्मार्ट था, पढ़ा-लिखा और आसानी से पैसे इनवेस्ट करना जानता था.
वह अधिकारियों की जरूरतों और शौक के बारे में पता करता रहता था और उसी के हिसाब से उन्हें महंगे तोहफे देता रहता था. इसलिए एक सप्लायर से वह बड़ा खिलाड़ी बन गया. उसकी कई बेनामी कंपनियां हैं, जिनका इस्तेमाल वह इस काम में करता है. सरकार के बड़े और मुख्यमंत्री के कुछ चहेते अधिकारियों से उसके नजदीकी संबंध हैं.
रिशु श्री के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर राज्य के कई बड़े नेताओं के साथ उसकी तसवीरें मिलती हैं, जो उसकी शादी और दूसरे पारिवारिक आयोजनों में उसके घर आए हैं.
राज्य के बीस से अधिक आईएएस अधिकारी फेसबुक पर उसकी मित्रता सूची में हैं. माना जा रहा है कि एफआईआर के बाद वह सपरिवार विदेश चला गया है. अगर मामले की जांच आगे बढ़ी तो इसमें कई बड़े नाम आ सकते हैं.