इस साल नवरात्रि में गुजरात के लोगों का उत्साह और भी बढ़ गया है, क्योंकि राज्य की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने आयोजकों को पूरी रात गरबा कार्यक्रम जारी रखने की अनुमति दे दी है. इस साल पूरी नौ रातों तक वहां लोग लाउडस्पीकर पर संगीत चलाकर गरबा का लुत्फ उठा सकते हैं, और मौज-मस्ती कर सकते हैं.
हालांकि, इससे पहले नियम यह था कि रात 11 बजे तक ही लाउडस्पीकर पर संगीत बज सकता था. इसके बाद लोग चाहें तो बिना लाउडस्पीकर के नाचना जारी रख सकते थे, लेकिन इससे लोगों का उत्साह कम हो जाता था और गरबा व्यवसाय पर भी असर पड़ता था. बहरहाल, समय-सीमा में इस ढील के पीछे राजनीति भी है.
राज्य में गरबा प्रेमियों और व्यावसायिक तौर पर गरबा कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले लोगों ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल से इसके लिए समय-सीमा में ढील देने की मांग की थी. इन्हीं मांगों पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री पटेल ने गरबा कार्यक्रमों के लिए छूट दी है.
दरअसल, गरबा आयोजक अपने इन कार्यक्रमों के लिए जो एंट्री पास बेचते हैं, उनकी कीमत बहुत ज्यादा होती है. समय-सीमा में छूट मिलने से उनके व्यवसाय पर सकारात्मक असर पड़ेगा. इसके अलावा, राज्य सरकार का यह फैसला स्थानीय व्यापारियों और हॉस्पिटेलिटी जैसे कामों में लगे उन लोगों के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि गरबा प्रेमी रात भर स्थानीय रेस्तरां और स्ट्रीट फूड दुकानों का चक्कर लगाते रहते हैं.
अपने एक वीडियो संदेश में राज्य के गृहमंत्री हर्ष सांघवी ने कहा कि पुलिस को देर रात तक लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं. सांघवी ने आयोजकों से भी यह अनुरोध किया कि वे लोग खुद इस बात को सुनिश्चित करें कि जो लोग जश्न में शरीक नहीं होना चाहते, उन्हें किसी तरह का डिस्टर्बेंस न हों.
गरबा गुजराती लोक नृत्य का एक रूप है जो हिंदुओं के त्योहार नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान किया जाता है. 'गरबा' नाम संस्कृत शब्द 'गर्भ' से आया है, जिसका मतलब है - जीवन और सृजन. देवी अम्बा को समर्पित यह नृत्य गर्भ (उर्वरता) का प्रतीक मिट्टी के बर्तन के चारों ओर किया जाने वाला एक मुक्त प्रवाह वाला नृत्य है. अलावा इसके, सूर्यास्त के बाद होने वाले इस नृत्य को एक जलते हुए दीपक, छवि या देवी दुर्गा की मूर्ति के चारों ओर एक चक्र बनाकर भी किया जाता है. इस नृत्य में लयबद्ध तरीके से संगीत, गायन और ताली बजाई जाती है.
कुछ दशक पहले तक गरबा एक सुखद सामुदायिक उत्सव हुआ करता था, जिसे ज्यादातर शेरी गरबा के रूप में किया जाता था. इसमें सड़कों पर नृत्य किया जाता था, और करीब हर दूसरे मोहल्ले में इसका आयोजन होता था. इन उत्सवों में लाउडस्पीकर होते थे, लेकिन एंट्री पास जैसा कुछ नहीं होता था. यानी त्योहारों में तब व्यावसायिक पहलू हावी नहीं था.
लेकिन हाल के सालों में, आयोजकों ने गरबा को एक व्यावसायिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित करना शुरू कर दिया है, उत्सव को नौ रातों से आगे बढ़ा दिया है और नवरात्रि को एक प्रमुख स्थानीय उद्योग में बदल दिया है.
नवरात्रि का ये उत्साह युवाओं और जवां दिल वाले लोगों में समान रूप से व्याप्त है. इसलिए बीजेपी के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी था कि उसकी सरकार लोगों के मूड को खराब न करे. तीन दशक तक सरकार रहने के बाद पार्टी को राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है.
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी को राज्य में चल रहे सदस्यता अभियान में बड़ा झटका लगा है. इस अभियान के तहत पार्टी ने दो करोड़ सदस्यों को जोड़ने का लक्ष्य रखा है, लेकिन निर्धारित समय के आधे से ज्यादा बीत जाने के बाद भी सिर्फ 75 लाख नए सदस्य ही बन पाए हैं. स्थानीय नेताओं पर लोगों को सदस्य बनाने के लिए धोखा देने के आरोप लग रहे हैं, जिससे वहां के लोगों का सत्ताधारी पार्टी से जुड़ने का आकर्षण कम होता जा रहा है.
इसके अलावा, अगस्त-सितंबर में मानसून के दौरान वडोदरा में आई बाढ़ ने भी गुस्साए लोगों को सड़कों पर आने के लिए भड़काने का काम किया. स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने अपने क्षेत्र में बीजेपी नेताओं को घुसने तक नहीं दिया और सरकार से खराब बुनियादी ढांचे के लिए जवाब मांगा. हालांकि पार्टी ने नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की. मुख्यमंत्री पटेल ने कई बार वड़ोदरा का दौरा किया और समय पर समाधान और मुआवजे का आश्वासन दिया, लेकिन लोगों की इस नाराजगी ने बीजेपी में जरूर एक विशेष चिंता को जन्म दिया.
गुजरात के शहरी वोटर बीजेपी के प्रति सबसे अधिक वफादार माने जाते हैं. और पार्टी के सदस्यता अभियान को आसान बनाने के लिए राज्य में उत्सवी माहौल को बढ़ावा देना पार्टी के एजेंडे के कई बिंदुओं में से एक है. इस साल के लोकसभा चुनावों में 2019 के मुकाबले कुल मतदान 64.5 फीसदी से घटकर 59.5 फीसदी रह गया था. यह स्थिति वहां के स्थानीय वोटरों के मोहभंग को बताती है. इस गिरावट को थामने के लिए बीजेपी को एक बूस्ट देने की जरूरत थी, और यह त्योहारी सीजन इसकी शुरुआत हो सकती है.