अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा ये गुजरात के सबसे बड़े शहरों में से हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों में ये शहर राज्य में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ व्यापक पुलिस कार्रवाई का केंद्र बन गए हैं.
इस अभियान की सख्ती खासकर अहमदाबाद के चंदोला झील इलाके में देखने को मिल रही है, जो मुख्य रूप से मुस्लिम झुग्गी इलाका है. इसे 'गुजरात का धारावी' भी कहा जाता है.
अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ यह अभियान 26 अप्रैल को शुरू हुआ. इसमें 1000 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है, और 29 अप्रैल को चंदोला झील के पास सियासतनगर के बंगाली वास में कम-से-कम 2000 घरों को विवादास्पद रूप से ध्वस्त किया गया.
इस कार्रवाई ने राष्ट्रीय सुरक्षा और पर्यावरणीय नुक्सान की चिंताओं को जन्म दिया है, और वैधानिकता, मानवाधिकार और कम्युनल टार्गेटिंग को लेकर बहस छेड़ दी है. गुजरात हाई कोर्ट ने डेमोलिशन (ध्वस्तीकरण) का संज्ञान लेते हुए कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
यह अभियान 26 अप्रैल को सुबह 3 बजे शुरू हुआ. अहमदाबाद क्राइम ब्रांच, स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप, इकोनॉमिक ऑफेंसेस विंग और लोकल पुलिस ने मिलकर कार्रवाई को अंजाम दिया. इसमें अहमदाबाद में 890 संदिग्धों को हिरासत में लिया गया; सूरत में 134 और वडोदरा में 27 अप्रैल तक 200 लोगों को हिरासत में लिया गया.
यह अभियान खुफिया रिपोर्टों के आधार पर शुरू किया गया, जिसमें अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को सुरक्षा खतरों से जोड़ा गया. इन अवैध प्रवासियों पर अल-कायदा और इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े होने की आशंका है. इसके अलावा इन पर चंदोला झील के आसपास पर्यावरणीय उल्लंघन के आरोप भी हैं.
गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष सांघवी ने इस ऑपरेशन को "ऐतिहासिक जीत" करार दिया, और अवैध प्रवासियों के खिलाफ राज्य की जीरो-टॉलरेंस नीति पर जोर दिया. सांघवी ने चेतावनी दी, "अगर एक भी घुसपैठिए को शरण दी गई, तो उनकी हालत खराब कर दी जाएगी."
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद इस ऑपरेशन ने और तेजी पकड़ी. इस नरसंहार में 26 लोग मारे गए, जिनमें गुजरात के सैलानी भी शामिल थे. इसके बाद पूरे राज्य में सुरक्षा अलर्ट जारी किया गया है.
अहमदाबाद में, 26 अप्रैल को हिरासत में लिए गए लोगों को शहर की सड़कों पर 4 किमी तक परेड कराई गई. उनकी परेड कांकरिया फुटबॉल ग्राउंड से शुरू होकर क्राइम ब्रांच के गायकवाड़ हवेली मुख्यालय तक हुई. इस पहल को ड्रोन फुटेज के जरिए दर्ज किया गया और बाद में पुलिस ने व्यापक रूप से प्रसारित किया.
हालांकि इस सार्वजनिक प्रदर्शन का उद्देश्य रोकथाम करना हो सकता है, लेकिन इससे संदिग्धों के साथ व्यवहार के बारे में नैतिक सवाल उठ खड़े हुए हैं. इन संदिग्धों में कई महिलाएं और नाबालिग भी शामिल हैं.
वडोदरा में 1,700 'संदिग्ध लोगों' की जांच की गई, जिनमें से नौ को अवैध बांग्लादेशी नागरिक के रूप में पुष्टि हुई. पूरे गुजरात में अब तक 6,500 से अधिक संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें 450 को बिना दस्तावेज वाले बांग्लादेशी के रूप में पहचाना गया.
28 अप्रैल को अहमदाबाद में 300 हिरासत में लिए गए लोगों को उनकी भारतीय नागरिकता सत्यापित होने के बाद रिहा कर दिया गया. इनमें बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के निवासी शामिल थे. 29 अप्रैल तक अहमदाबाद में 143 लोगों की निर्वासन की प्रक्रिया शुरू की गई थी; फरवरी में 15 और मार्च में 35 लोगों को इसी तरह की छोटे पैमाने की कार्रवाइयों के बाद निर्वासित किया गया था.
नवीनतम अभियान गुजरात में अब तक का सबसे बड़ा 'क्रैकडाउन' है, जहां मुस्लिम बस्तियों को अक्सर एक अंधेरे हिस्से के रूप में देखा जाता है, जो नागरिकों और अवैध प्रवासियों के बीच के अंतर को धुंधला कर देता है. ये अवैध प्रवासी अतिक्रमित भूमि पर अमानवीय परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं.
पुलिस ने दस्तावेजों, पूछताछ और अतिक्रमणों की सैटेलाइट इमेजरी के जरिए अवैध प्रवासियों की पहचान की. डिटेन किए गए कई लोगों के पास वैध भारतीय दस्तावेज नहीं थे; अहमदाबाद में 70 के पास कोई कागजात नहीं थे और 100 से अधिक के पास जाली आधार, पैन, वोटर आईडी कार्ड और पासपोर्ट थे. कुछ लोगों ने पश्चिम बंगाल से होने का दावा किया, लेकिन वे पारिवारिक संबंध या पैदा होने का सबूत नहीं पेश कर पाए. अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने 1985, 2011 और 2024 की सैटेलाइट इमेज और ड्रोन फुटेज सहित तकनीक का इस्तेमाल करके अवैध बस्तियों को मैप किया और पहचान की पुष्टि की.
कार्रवाई को और तेज करते हुए 29 अप्रैल को अहमदाबाद नगर निगम और स्थानीय पुलिस ने अब तक का सबसे बड़ा विध्वंस अभियान शुरू किया, जिसने शहर को तनाव में रखा. अधिकारियों का दावा है कि अवैध कॉलोनियों के निर्माण के अलावा अवैध प्रवासियों ने चंदोला झील के किनारे पर अतिक्रमण किया, इसे पिराना लैंडफिल साइट से कचरे से भर दिया और नर्मदा जल पाइपलाइन को बाधित कर दिया. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक 1,200 हेक्टेयर झील पिछले 15 सालों में सिकुड़ती गई है.
ऐसी भी रिपोर्टें आईं कि जैसे ही 70 बुलडोजर मशीनें, 200 ट्रक और 2000 पुलिस कर्मी डिमोलिशन के लिए तड़के सुबह इकट्ठा होने लगे, हजारों लोग अहमदाबाद से भाग गए. दिलचस्प बात यह है कि ज्यादातर 'अवैध घरों' में एक निजी बिजली वितरण कंपनी ने बिजली कनेक्शन दिया था. 28 अप्रैल को एक व्यक्ति द्वारा इन कनेक्शनों को काटते हुए एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसका मतलब कई लोगों ने यह निकाला कि 'अवैध कॉलोनियां' असल में एक खुला रहस्य हैं.
इस ऑपरेशन के तहत सरगना लल्लू बिहारी पठान और उसके बेटे फतेह को गिरफ्तार किया गया. बाप-बेटे की यह जोड़ी कथित तौर पर चंदोला झील से अवैध रूप से जमीन हड़पकर बनाए गए 5,000 यार्ड के शानदार प्रॉपर्टी से एक विशाल अंडरग्राउंड नेटवर्क को ऑपरेट करती थी. इनकी पूरी संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया. इस नेटवर्क ने कथित तौर पर प्रवासियों को स्थानीय बाजारों में दिहाड़ी मजदूर, कबाड़ डीलर या रिक्शा चालक के रूप में शामिल करने की सुविधा प्रदान की, जबकि कई अन्य को सेक्स व्यापार या दूसरे जैसे अवैध धंधों में लगाया गया था.
कुछ संदिग्धों के कथित तौर पर ड्रग कार्टेल, मानव तस्करी और अल-कायदा स्लीपर सेल से जुड़े होने की बात सामने आई, जिसने अवैध प्रवासन और संगठित अपराध के बीच संभावित गठजोड़ को लेकर चिंता बढ़ा दी. इन दावों की जांच चल रही है.
अहमदाबाद पुलिस आयुक्त जी.एस. मलिक बताते हैं, "बंगाली वास वह जगह है जहां कई अवैध बांग्लादेशी रहते हैं. उनके खिलाफ पहले भी कार्रवाई की गई थी. विध्वंस भी किए गए थे. तीन दिन पहले, पुलिस ने बड़े पैमाने पर छापेमारी अभियान चलाया, जिसमें 180 से अधिक बांग्लादेशियों की पहचान की गई."
29 अप्रैल को गुजरात हाई कोर्ट ने डिमोलिशन पर रोक के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया. इसे 18 प्रभावित लोगों ने दायर किया था. अदालत ने कहा कि सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण हटाने के लिए पूर्व सूचना की जरूरत नहीं है. याचिकाकर्ताओं के वकील आनंद याग्निक ने तर्क दिया था कि निवासियों को 15 दिन का नोटिस मिलना चाहिए क्योंकि वे 50 सालों से इलाके में रह रहे हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ता और गुजरात अल्पसंख्यक समन्वय समिति के संयोजक मुजाहिद नफीस ने कहा: "कब्जे वाली जमीन उनकी नहीं हो सकती. यह सरकारी जमीन है और वे वहां रह रहे हैं क्योंकि वे गरीबी और अभाव के कारण जमीन खरीदने में असमर्थ हैं. अहमदाबाद के नगर निगम और पुलिस आयुक्त के हाथ में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि याचिकाकर्ता झील की जमीन पर रह रहे थे."
बांग्लादेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के प्रवासी लोग गुजरात के औद्योगिक केंद्रों जैसे सूरत और अहमदाबाद में निर्माण, कपड़ा और अन्य क्षेत्रों में कम वेतन वाली नौकरियों के लिए आकर्षित होते हैं. राज्य की आर्थिक समृद्धि, ढीली सीमाओं और ढीले प्रवर्तन के कारण यह अवैध मजदूरों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया है.
फिर भी, सरकार का ध्यान निर्वासन पर है. गुजरात के पुलिस महानिदेशक विकास सहाय ने इन लोगों की वापसी के लिए केंद्र और सीमा सुरक्षा बल के साथ समन्वय की पुष्टि की है.