गुजरात के रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य की पहाड़ी पर दशकों बाद पहली बार बाघ दिखने से आसपास के इलाके में हलचल मच गई. दरअसल, गुजरात में 1980 के बाद इस साल फरवरी महीने में एक कम उम्र के नर बंगाल रॉयल टाइगर को देखा गया है.
यह बाघ बस यूं ही घूमते हुए यहां नहीं पहुंचा था, बल्कि 3 से 5 साल उम्र का यह बाघ संभव है कि इस इलाके में अपने रहने के लिए सही जगह यानी घर ढूंढ रहा होगा. मई महीने में किए गए कैमरा ट्रैप में भी अभयारण्य में इस बाघ की गतिविधियों को देखा गया था.
कैमरे में कैद फुटेज में बाघ को अपना पहला शिकार करते हुए भी देखा गया. इससे जाहिर होता है कि बाघ यहां कुछ समय के लिए रुकने के इरादे से आया था. बाघ के शिकार के प्रमाण मिलने के बाद और उसे अभयारण्य में अलग-अलग जगहों पर बार-बार देखे जाने के दो महीने बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) अब रतनमहल को टाइगर्स आउटसाइड टाइगर रिजर्व (TOTR) परियोजना में शामिल करने का विचार कर रहा है.
इसके लिए सर्वे और रिसर्च की जा रही है. NTCA के इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य बाघ के लिए संरक्षित गलियारे बनाना और उसके शिकार योग्य जानवरों की आबादी को इस इलाके में बढ़ाना है.
अभयारण्य के पहाड़ी इलाके में 100 से ज्यादा भालू रहते हैं. हालांकि, ये भालू बाघ के लिए एक मामूली शिकार का आधार है, लेकिन चीतल और हिरण के प्रजनन कार्यक्रमों के शुरू करके इस इलाके में इन जानवरों की आबादी बढ़ाई जा सकती है.
बाघ देखे जाने के बाद से ही इस इलाके में मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए सामुदायिक जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं. जंगल के किनारे इंसानों के रहने की वजह से इस क्षेत्र में जागरूकता बेहद जरूरी है.
अगर इस अभयारण्य में एक मादा बाघ इस नर बाघ के रहने लगती है, तो यह जोड़ा इस इलाके में बाघ की आबादी को बढ़ा सकता है. अगर ऐसा होता है तो ये गुजरात के लिए ऐतिहासिक मील का पत्थर होगा. इससे इस अभयारण्य में बिल्ली प्रजाति के तीनों जानवर शेर, तेंदुआ और बाघ एक साथ रह पाएंगे.
हाल के सालों में गुजरात में दिखने वाला यह पहला बाघ नहीं है, लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण है. इससे पहले 2019 में मध्य प्रदेश के रातापानी वन्यजीव अभयारण्य में रहने वाला एक और बाघ 300 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके महिसागर जिले में पहुंचा था. कुछ ही हफ्तों में भूख से उसकी मौत हो गई थी. इस घटना ने गुजरात में बाघों के जिंदा रहने की चुनौतियों को जाहिर किया था.
हालांकि, रतनमहल में दिखने वाला बाघ अलग लग रहा है क्योंकि इसने यहां शिकार किया है. यह बाघ संभवतः विंध्याचल गलियारे से होकर गुजरा होगा, जो मध्य प्रदेश के रातापानी और काठीवाड़ा जैसे बाघ के समृद्ध अभ्यारण्यों से जुड़ा है. यह मध्य प्रदेश और गुजरात के पहाड़ी सीमावर्ती क्षेत्रों से होते हुए गुजरात के दाहोद जिले तक फैला एक ऐतिहासिक मार्ग है.
जंगलों और बिखरे हुए भू-दृश्यों का यह गलियारा, बाघों को राज्यों के बीच विचरण करने का अवसर देता है, जिसकी वजह मध्य प्रदेश में 785 बाघों की बढ़ती आबादी है. यही वजह है कि उप-वयस्क बाघ नए क्षेत्रों की तलाश करने के लिए प्रेरित होते हैं.
रतनमहल में दिखने वाला बाघ काठीवाड़ा या झाबुआ का माना जाता है. गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच वह बाघ घूमता रहता था, सीमा पार जाने पर उसके पदचिह्न मिट जाते थे और फिर कुछ समय बाद नजर आते थे.
हालांकि, बाघों के साथ गुजरात का इतिहास एक विनाश की कहानी है. 1960 के दशक की शुरुआत में राज्य में लगभग 50 बाघ थे, जिनमें से अधिकांश राज्य के दक्षिण में डांग के जंगलों में थे.
1972 तक पहली बाघ गणना में केवल आठ बाघ ही गिने गए और वे सभी डांग में थे. 1979 की गणना में सात बाघ दर्ज किए गए और 1983 तक आखिरी दर्ज बाघ को वाघई के पास एक शिकारी ने गोली मार दी थी.
1992 की जनगणना में घोषित किया गया था कि गुजरात में बाघों की कोई संख्या नहीं है. बाघों के आवासों के घटने, बड़े पैमाने पर अवैध शिकार और मानव अतिक्रमण के कारण चीतल, सांभर और जंगली सूअरों की आबादी भी जंगल में घट गई. इसकी वजह से भोजन के अभाव में बाघों की संख्या में भारी कमी आई.
गिर के जगंलों में रहने वाले एशियाई शेरों के उलट यहां रहने वाले बाघों के पास पर्याप्त शिकार और रहने के लिए आवासों की कमी थी. इससे बाघ गुजरात के जंगलों से गायब हो गए.
भारत में बाघों की अनुमानित संख्या 3,682 है और ये देश भर के नए क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं. राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघ धीरे-धीरे फिर से आबाद हो रहे हैं, और दर्रा और जवाहर सागर अभयारण्यों में बाघ देखे जा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश का रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य, जिसे 2022 में बाघ अभयारण्य घोषित किया गया है. इसमें भी बाघों की शुरुआती गतिविधियां देखी जा रही हैं.
तमिलनाडु में नीलगिरि वनों के बफर जोन में 2013-14 में सात बाघ देखे गए. ऐसा पहली बार हुआ था. मध्य प्रदेश के सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान और ओडिशा के सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व में भी बाघों की आवाजाही बढ़ रही है.
उत्तरी सिमिलिपाल बायो रिजर्व जैसे क्षेत्रों में मजबूत संरक्षण के अभाव और वन्यजीव गलियारों के विस्तार के कारण रतनमहल जैसे क्षेत्रों में बाघ नजर आने लगते हैं. हालांकि, बाघों के अवैध शिकार और आवास की कमी जैसी चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं.
रतनमहल बाघ की यात्रा आनुवंशिक आदान-प्रदान और क्षेत्रीय विस्तार में वन्यजीव गलियारों के महत्व को दिखाती है. यह इस तरह की उपलब्धियों की नाजुकता को भी उजागर करती है कि शिकार, सुरक्षा और सामुदायिक समर्थन के बिना शायद ही बाघ किसी क्षेत्र विशेष में टिक पाएं.
गुजरात का वन विभाग कैमरा ट्रैप और गश्त के जरिए इस इलाके में निगरानी बढ़ा रहा है, जबकि NTCA बाघों के आवास क्षेत्र को पुन: बहाल करने पर जोर दे रहा है. 1980 के दशक में बाघों के रहने के लिए उचित माहौल तैयार करने से जुड़े प्रस्तावों पर कार्रवाई करने में राज्य की विफलता इस तरह से बाघों के अचानक नजर आने पर एक चेतावनी है.
अब, इन अभयारण्य में शिकार के लिए छोटे-छोटे जानवरों की आबादी बढ़ाकर और गलियारों की सुरक्षा पर नए सिरे से ध्यान देकर क्या गुजरात वापस बाघों के रहने के लिए एक बेहतर आवास स्थल हो सकता है?