गुजरात में 13 मई को एशियाई शेरों की गिनती की प्रक्रिया लगभग खत्म हो गई है. इस दौरान अहमदाबाद जिले के गांवों से लेकर दीव द्वीप तक, अमरेली जिले के पीपावाव बंदरगाह से लेकर देवभूमि द्वारका की तीर्थ नगरी तक शेरों की गिनती की गई.
2020 की तुलना में इस बार 5 हजार वर्ग किलोमीटर तक शेरों की गिनती का दायरा बढ़ाया गया है. 5 साल पहले गुजरात में एशियाई शेरों का दायरा करीब 30 हजार किलोमीटर था, जो अब करीब 35 हजार वर्ग किलोमीटर के करीब हो गया है.
16वें एशियाई टाइगर सेंसस के लिए प्रदेश के करीब 3 हजार प्रशिक्षित वॉलंटियर्स ने क्षेत्रीय, जोनल और उप-जोनल स्तर के अधिकारियों के साथ मिलकर पूरे राज्य में सर्वे किया. इस बार प्रदेश के दो नए जिलों देवभूमि द्वारका और जामनगर को भी इस सेंसस में शामिल किया गया.
इस बार टाइगर सेंसस में अहमदाबाद जिले के दो तालुका ढोलका और धंधुका का भी उल्लेख किया जा सकता है. इसकी वजह यह है कि पिछले पांच वर्षों में यहां कई शेर देखे गए हैं. इसके बाद ही सरकार ने यहां भी शेरों की गिनती कराने का फैसला लिया है.
एक सीनियर फॉरेस्ट ऑफिसर ने बताया कि शेरों के एक झुंड ने अहमदाबाद से सटे बोटाद जिले को अपना घर बना लिया है. इस सरकारी अधिकारी के मुताबिक, "2022 में एक शेर को अहमदाबाद के ढोलका-धंधुका की ओर जाते देखा गया था, लेकिन कुछ समय बाद वह वापस लौट गया. इस पूरे इलाके में जैसे-जैसे शेरों के झुंड का विस्तार होगा, उसी अनुपात में शेरों के रहने वाले क्षेत्र में भी विस्तार होने की संभावना है.”
अधिकारियों का कहना है कि एक शेर के समूह का क्षेत्र आमतौर पर 20 वर्ग किलोमीटर से 500 वर्ग किलोमीटर के बीच हो सकता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि शेर जहां रह रहे हैं, उस क्षेत्र में पानी और शिकार की उपलब्धता कितनी है. कई बार खाना और पानी के लिए शेर अपने क्षेत्र में विस्तार करते हैं.
अहमदाबाद के ढोलका और धंधुका क्षेत्र की सीमा अहमदाबाद जिले के ही दूसरे शहर साणंद और बावला से लगती है, जो औद्योगिक क्षेत्र हैं. साणंद और बावला में ऑटोमोबाइल, सेमीकंडक्टर और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियां हैं.
यही वजह है कि साणंद और बावला के इलाके में शेर नहीं पाए जाते, क्योंकि उनके रहने के लिए यहां अनुकूल परिस्थिति और शिकार के लिए पर्याप्त जंगली जानवर नहीं हैं.
वन विभाग की कोशिश है कि अहमदाबाद के करीब पाए जाने वाले शेरों को करीब 145 किलोमीटर दूर सुरेंद्रनगर जिले के वेलावदर राष्ट्रीय उद्यान की ओर भेजा जाए. इसकी वजह यह है कि इस उद्यान में काफी संख्या में काले हिरण मौजूद हैं और यह एक संरक्षित वन है. हालांकि, अभी तक टाइगर सेंसस में सुरेंद्रनगर इलाके का जिक्र नहीं किया गया है.
दूसरी ओर, खबर है कि शेर तटीय दलदली भूमि को पार कर समुद्री तट दीव तक पहुंच गए हैं. पिछले साल कुछ शेर दीव के द्वीप पर देखे गए थे. वन अधिकारियों ने 2025 के टाइगर सेंसस में इस केंद्र शासित प्रदेश में पहली बार शेरों की मौजूदगी की पुष्टि की है. दीव में शेरों की मौजूदगी एक तरह से नई चुनौती है क्योंकि इस क्षेत्र में जंगलों और शिकार की कमी है. जबकि इनके बिना दीव में शेरों का रहना बेहद मुश्किल है.
इस बीच अधिकारियों को राज्य के उत्तर-पश्चिमी दिशा में जामनगर जिले और उससे सटे देवभूमि द्वारका में भी कुछ शेरों के पहुंचने की जानकारी मिली है. माना जाता है कि शेरों के एक झुंड ने कुछ गांव के खेतों को अपने रहने की जगह बना ली है. हालांकि, जंगल और शिकार के जंगली जानवरों की यहां भी कमी है.
इसी वजह से इस क्षेत्र में पशुधन जैसे गाय, भैंस, बकरी आदि पर शेरों के हमले की खबर सामने आती रहती है. इससे इंसान और शेरों के बीच टकराव को बढ़ावा मिल रहा है.
सौराष्ट्र प्रायद्वीप गुजरात की एकमात्र जगह है, जहां एशियाई शेर जंगल में पाए जाते हैं. हाल में हुई शेरों के जनगणना से यहां रहने वाले शेरों के झुंडों के स्थान, संख्या, उनके गलियारे और आवास की सही जानकारी मिलने की संभावना है. इससे इस पूरे क्षेत्र में शेरों के लिए संरक्षण और विकास की नीतियों को बनाने में अधिकारियों को मदद मिलने की उम्मीद है. गुजरात में शेरों की पहली ऐसी गणना 1936 में हुई थी.
2020 की जनगणना के अनुसार, गुजरात में 674 शेर थे. पिछले तीन दशकों में हर पांच साल में उनकी आबादी में लगभग एक चौथाई की वृद्धि हुई है. इस बार शेरों की संख्या बढ़कर 850 से 900 के बीच होने की उम्मीद है. सौराष्ट्र के इस इलाके को ग्रेटर गिर क्षेत्र या शेर प्रभावित क्षेत्र भी कहा जाता है.
वैश्विक पर्यावरण संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) द्वारा इस मार्च में जारी की गई 'ग्रीन लिस्ट' में अफ्रीकी शेरों और एशियाई शेरों की आबादी को 'काफी हद तक खत्म' श्रेणी में रखा गया है.
यहां रहने वाले एशियाई शेरों को महामारी और प्राकृतिक आपदाओं का भी खतरा रहता है, जिससे उनकी आबादी एक ही क्षेत्र तक सीमित हो जाती है.