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ग्राउंड रिपोर्ट : क्या वाकई बिहार के फतुहा में हिंदुओं को बेदखल करने की साजिश रच रहा है वक्फ बोर्ड?

बिहार की राजधानी पटना के फतुहा में वक्फ बोर्ड की संपत्ति को लेकर एक विवाद चल रहा है. हाल ही में सांसद और वक्फ संशोधन बिल की जेपीसी के सदस्य संजय जायसवाल भी वहां पहुंचे थे और उन्होंने वक्फ बोर्ड पर हिंदुओं की जमीन कब्जा करने का आरोप लगाया

बिहार बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद डॉ. संजय जायसवाल (बीच में)
बिहार बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद डॉ. संजय जायसवाल (बीच में)
अपडेटेड 17 सितंबर , 2024

सितंबर की 12 तारीख को बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष, सांसद और वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्य संजय जायसवाल अचानक राजधानी पटना के फतुहा में वक्फ की जमीन को लेकर चल रहे विवाद की 'जांच' के लिए पहुंच गये.

वहां अपनी 'जांच' पूरी कर जब वे लौटे तो उन्होंने कहा, "फतुहा के गोविंदपुर में बबलू खान वार्ड पार्षद का चुनाव हारने के बाद वक्फ का मुतव्वली (केयरटेकर) बनकर पूरे इलाके की जमीन पर कब्जा कर रहा है. बिहार का सुन्नी वक्फ बोर्ड इस मामले में उसका सहयोग कर रहा है, जबकि 1910 के खतिहान में साफ लिखा है कि जमीन हिंदुओं के नाम है."

उन्होंने आगे कहा, "2021-22 में बबलू खान ने इस जमीन को अपने नाम ट्रांसफर करा लिया था. कोरोना में उसके पिता की मौत हुई थी, जिसके शव को सरकारी जमीन में दफनाकर उसने जमीन कब्जा करने की कोशिश की है. बेहतर है कि वक्फ अपने जमीन के कागजात को ठीक करे, जो संपत्ति आपकी नहीं है उसे छोड़ दे. मैं इस पूरे मामले को वक्फ बिल को लेकर बनी जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल को सौपूंगा."

फतुहा के गोविंदपुर में दरगाह, कब्रिस्तान, मस्जिद और इमामबाड़े की जमीन पर पिछले दो हफ्ते से विवाद गरम है. इस मसले को लेकर लगातार देश और राज्य के मीडिया में खबरें आ रही हैं. इसी वजह से संजय जायसवाल वहां पहुंचे थे. उनके गोविंदपुर पहुंचने और वहां से लौट कर वक्फ की कार्यशैली पर सवाल उठाने के बाद इस मसले को लेकर विवाद और बढ़ गया है. वक्फ संशोधन बिल को लेकर चल रहे विवाद में यह एक अहम मुद्दा साबित होने लगा है. इस परिस्थिति में पूरे मामले को समझने के लिए इंडिया टुडे फतुहा के गोविंदपुर पहुंचा.

फतुहा के गोविंदपुर में दरगाह में लगा बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड का नोटिस

राजधानी पटना से लगभग 25 किमी दूर गोविंदपुर, पटना के फतुहा नगर परिषद का हिस्सा है. वार्ड नंबर छह में बाजार से एक गली अंदर जाती है, जहां छोटी सी एक मजार है. इसका नाम 'दरगाह पीर खाकीशाह रहमतुल्ला अलेह' है. संक्षेप में स्थानीय लोग इसे दरगाह इमली तल भी कहते हैं.

इसी दरगाह के कैंपस में एक बड़ा सा बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है, "यह संपत्ति बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड की है. वक्फ की संपत्ति की खरीद-बिक्री या किसी तरह का अतिक्रमण वक्फ अधिनियम 1995 (2013) की धारा 52(ए)(2) के तहत गैरजमानती अपराध है." संपत्ति के तौर पर उस बोर्ड पर थाना फतुहा, मौजा- गोविंदपुर कुर्था, खाता-128,130, खेसरा-199, 217, 219, वक्फ का नाम गोविंदपुर दरगाह, इमामवाड़ा, मस्जिद एवं कब्रिस्तान वक्फ स्टेट. वक्फ पंजीयन संख्या एवं दिनांक- बीपीटी 0969, पटना- 29.07.1959 दर्ज है.

इस दरगाह के ठीक सामने इस वक्फ के सचिव सह मुतव्वली मो. हासिम उर्फ बबलू का घर है. ये वही बबलू हैं, जो इस वार्ड के पूर्व पार्षद भी हैं. इन्हीं पर भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने गंभीर आरोप लगाये हैं. पहले तो मीडिया का नाम सुनकर बबलू बात करने से साफ इनकार कर देते हैं. कहते हैं, "मुझे विलेन बनाया जा रहा है. जबकि मैं सिर्फ केयर टेकर हूं. तीन साल के लिए देखरेख की जिम्मेदारी मिली है. उसके बाद छुट्टी हो जाएगी. मुझे इस पचड़े से दूर रखें."

मगर बाद में काफी कोशिश करने पर वे बताते हैं, "मैं 2012 से 2022 तक इस इलाके का वार्ड पार्षद रहा हूं. इस वार्ड में मुश्किल से 50 वोटर मुसलमान होंगे, जबकि एक हजार से अधिक हिंदू मतदाता हैं. वही मुझे जिताते रहे हैं. 2021 में इस इलाके में एसआई (सब-इंस्पेक्टर) विष्णु कुमार रहने आये जो मुख्यमंत्री आवास में पोस्टेड हैं. उनके आने के बाद से ही यहां का माहौल खराब हुआ है. अभी संजय जायसवाल जी कह रहे थे कि मेरे पिता की मृत्यु कोरोना में हुई है, जबकि उनका निधन 2011 में हो गया था. मेरे पास उनका मृत्यु प्रमाणपत्र भी है."

संजय जायसवाल के जमीन कब्जाने के आरोपों को निराधार बताते हुए बबलू दावा करते हैं, "दरगाह की जमीन की लगान रसीद पर मेरा नाम मुतव्वली के तौर पर दर्ज है. कहा जा रहा है कि मैं इस पूरे गांव की जमीन को कब्जा करना चाह रहा हूं. जबकि सच्चाई यह है कि विवाद सिर्फ दो प्लॉट का है. 217 नंबर और 219 नंबर. 217 नंबर में 21 डिसमिल जमीन है और 219 में 12 डिसमिल. वक्फ की जमीन पर कोई कब्जा करेगा तो वक्फ नोटिस भेजेगा ही. इसलिए गांव के 15-16 लोगों को नोटिस भेजा गया है, जिसमें पांच मुसलिम और शेष गैर मुसलिम हैं."

वक्फ के मुतव्वली हासिम उर्फ बबलू खान अपने पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र दिखाते हुए
वक्फ के मुतव्वली हासिम उर्फ बबलू खान अपने पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र दिखाते हुए

वे जमीन के कागजात दिखाते हैं. उनके मुताबिक प्लॉट नंबर 219 जो 12 डिसमिल का है, उसपर दरगाह है और उसके बाद की जमीन पर कुछ मुसलिम परिवार बसे हैं. इसी जमीन पर विष्णु कुमार और उनके कुछ रिश्तेदारों ने कब्जा किया है.

वे दावा करते हैं, "विष्णु कुमार के कहने पर ही 2021 में फतुहा अंचल कार्यालय ने जमीन मापी कराई थी. जिसमें विष्णु कुमार पर ही यह आरोप साबित हुआ कि उन्होंने दरगाह की जमीन पर अतिक्रमण किया है. उनके घर का छज्जा, दरवाजा दरगाह की जमीन में आता है और उन्होंने नाली भी निकाल रखी है. इसके बाद उन्होंने लिखित तौर पर यह कहा था कि वे इसे हटा लेंगे. मगर उन्होंने सीएम का करीबी होने की दबंगई दिखाते हुए माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की है."

उनसे बात करने के बाद हम 219 नंबर प्लॉट को देखने निकलते हैं. इस प्लॉट के एक कोने में दरगाह है और उसके बाद एक कच्चे रास्ते के दोनों तरफ कुछ मुसलमानों के घर और आखिर में एक कुआं है, जिसके आसपास कुछ हिंदुओं के घर हैं. इन्हीं घरों में एक एसआई विष्णु कुमार का भी घर है. विष्णु कुमार तो अपने घर में नहीं मिलते मगर वहां मौजूद लोग बताते हैं कि दरअसल 219 नंबर प्लॉट सरकारी जमीन है. वक्फ इसे जबरन अपनी संपत्ति बता रहा है. इस वजह से उन्हें न रास्ता बनाने दे रहा है और न ही पानी की निकासी की व्यवस्था करने दे रहा है.

उस जमीन पर बसे मुसलमानों के छह परिवारों में से पांच के लोग कहते हैं, "हमारे पास भी वक्फ ने नोटिस भेजा था. जमीन तो दरगाह की ही है, मगर हमलोग तीन पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं. झगड़ा जमीन का है ही नहीं. सारा झमेला रास्ते का ही है. एक बार सड़क बन जाये तो झमेला खत्म हो जायेगा." मुसलमान परिवार के लोग अपना नाम तो नहीं बताते, मगर मुतव्वली बबलू के खिलाफ उनकी नाराजगी नजर आती है.

लोग बताते हैं कि 2021 में दरगाह के पास से होकर दो रास्ते बनाने की तैयारी हुई थी. एक प्लॉट नंबर 219 से होकर विष्णु कुमार के घर तक और दूसरा दरगाह के पीछे से होकर. उस वक्त जमीन की नाप-जोख भी हुई थी. तब मुतव्वली हासिम उर्फ बबलू ने इसका विरोध यह करते हुए कहा था कि यह वक्फ की जमीन है. इससे होकर सड़क नहीं बनवाई जा सकती.

इस पर बबलू कहते हैं, "प्लॉट नंबर 217 से होकर जो रास्ता लोग चाहते हैं, वह दरअसल कब्रिस्तान है. उससे होकर हम रास्ता कैसे दे दें. वक्फ की जमीन हम रास्ते के लिए दे सकते थे. अगर उनके पास रास्ता नहीं होता. उनके पास पहले से हाईवे होकर रास्ता है."

बताया जाता है कि इसके बाद इस इलाके में रास्ते का मुद्दा जोर पकड़ने लगा. 2023 में फिर से नगर परिषद ने जमीन की माप की और पाया गया कि 219 नंबर प्लॉट पर बना आठ बाई चार फीट का इमामबाड़ा रास्ते की जमीन पर पड़ता है और उसे तोड़ दिया गया. जबकि 2021 की माप में इस इमामबाड़े का आधा हिस्सा प्लॉट नंबर 199 पर और आधा रास्ते की जमीन पर था.

इससे पहले 2022 के फतुहा नगर परिषद चुनाव में वार्ड नंबर छह से हासिम उर्फ बबलू के खिलाफ जितेंद्र उर्फ भोटू साव खड़े हुए जो विष्णु कुमार के रिश्तेदार हैं. भोटू साव ने दो बार से पार्षद रहे बबलू को लगभग पांच सौ वोटों से हरा दिया.

वक्फ बोर्ड का नोटिस

इंडिया टुडे से बातचीत में भोटू साव कहते हैं, "पूरा मामला सरकारी और रैयती जमीन को वक्फ की जमीन बताकर लोगों को नोटिस भेजने का है. इसमें प्लॉट नंबर 217 रैयती जमीन है और 219 और 199 सरकारी जमीन. दरगाह की जमीन थोड़ी सी है, नक्शे में भी यह दर्ज है. मगर वह जमीन ज्यादा नहीं है. न ही कब्रिस्तान और इमामबाड़ा जिक्र है, जिसको वक्फ बोर्ड बता रहा है."

वे आगे बताते हैं, "चुनाव से पहले यहां कोई विवाद नहीं था. चुनाव हारने के बाद वक्फ का बोर्ड टांगा गया. हारने के बाद छह महीने, साल भर बबलू चुप रहा, फिर लोगों को नोटिस भिजवाने लगा. अब बताइये उसके कार्यकाल में नल जल योजना उधर गई. वह इसका काम खुद करवाया है. मगर जब सड़क-नाला बनने लगा तो बोला जमीन वक्फ की है. यह ठीक बात है कि मैं विष्णु का रिश्तेदार हूं. मगर इस मामले से विष्णु का कोई लेना देना नहीं है."

भोटू साव मानते हैं कि दरगाह के पीछे कब्रिस्तान है. वे कहते हैं, "वहां कफन-दफन होता है, इससे कैसे इनकार कर सकते हैं. हालांकि खतिहान में कब्रिस्तान का जिक्र नहीं है. मगर वहां मुसलमानों के शव दफन होते हैं. 219 प्लॉट पर बबलू मियां ने ही मुसलमान परिवारों को बसाया है और उससे किराया वसूलता था. कहता था, मेरा रैयती जमीन है. बाद में लोगों को पता चला कि जमीन वक्फ बोर्ड की है."

हालांकि हासिम उर्फ बबलू का दावा है कि वक्फ का बोर्ड दिसंबर, 2021 में लगा है. वे चुनाव से पहले से वक्फ के अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चला रहे हैं. बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि फतुहा के गोविंदपुर मौजे में वक्फ के तीन प्लॉट 199, 217 और 219 हैं, जिनमें प्लॉट नंबर 219 की 12 डिसमिल जमीन पर दरगाह है और कुछ मुसलमान परिवार बसे हैं. 217 की 21 डिसमिल जमीन कब्रिस्तान है और 199 की दो डिसमिल जमीन में मस्जिद है और इमामबाड़ा था जो टूट गया है.

इस तरह कुल 35 डिसमिल जमीन है. इनमें से 12 डिसमिल जमीन 1974-75 में बाजार समिति ने अधिग्रहीत कर ली थी, अब 23 डिसमिल जमीन बची है. 217 पर नौ परिवारों ने अपना घर बना लिया जिन्हें नोटिस भिजवाया गया है. 219 पर बसे छह मुसलिम परिवारों में से एक किराया देते हैं, इसलिए शेष पांच को नोटिस भिजवाया गया है और इनके अलावा इस प्लॉट का अतिक्रमण करने वाले पांच गैर मुसलिम परिवारों को भी नोटिस भेजा गया है. यह नोटिस 18 जनवरी, 2024 को बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड के सीईओ के नाम से जारी किया गया है.

इस मामले में सांसद संजय जायसवाल और वार्ड पार्षद भोटू साव का यह कहना सही लगता है कि जमीन हिंदुओं की और सरकारी है क्योंकि खतियान में प्लॉट नंबर 199 और 219 के आगे अभिधारी (बंदोबस्तधारी) का नाम गैर मजरूआ मालिक लिखा है. मगर दोनों के खाते में अभियुक्ति (अवैध दखलकार) की जगह पर दरगाह का जिक्र है. 199 में जहां जुतायल दरगाह लिखा है, वहीं 219 में इमली जमीन व इमली दरख्त मुतव्वली दरगाह लिखा है.

जमीन के जानकार बताते हैं कि इसका मतलब सरकारी जमीन होने के बावजूद नक्शा बनते वक्त इस पर दरगाह का कब्जा था. प्लॉट नंबर 217 में अभिधारी का नाम तिनकौड़ी महतो वल्द मोती लाल कौम कोइरी है. जबकि अभियुक्ति में छह तार पर निफ्स (आधा) हिस्सा रैयत, निफ्स हिस्सा दरगाह और चार तार पर निफ्स हिस्सा तिलक महतो, निफ्स हिस्सा दरगाह लिखा है. 

असल विवाद प्लॉट नंबर 217 को लेकर है. इस प्लॉट के आधे से अधिक हिस्से पर आठ परिवारों ने वर्षों से अपना घर बना रखा है. इनमें से कुछ लोग खुद को तिनकौड़ी लाल का वारिस बताते हैं, कुछ लोगों ने जमीन खरीदी है. इनमें भी एक सुदीप साव हैं, वे भी सीएम आवास में एसआई हैं. बबलू इन्हें भी साजिशकर्ता बताते हैं. इस प्लॉट में आधे से कुछ कम हिस्सा खाली जमीन है, जहां मुसलमान कफन-दफन करते हैं और वक्फ कहता है कि यह कब्रिस्तान है.

वक्फ मानता है कि यह पूरी की पूरी जमीन उसकी है. वक्फ के रजिस्टर में इसका विवरण भी दर्ज है. जब वक्फ ने इस पर बसे आठ परिवारों को नोटिस भेजा तो सात परिवार हाई कोर्ट चले गये. 20 अप्रैल, 2024 को सुनाये गये अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा, "यह सच है कि जमीन के कागजात में तिनकौड़ी लाल का नाम दर्ज है, और पिटीशनर नंबर 2 राजकिशोर महतो खुद को उनका कानूनी वारिस बताते हैं. मगर केडेस्टरल सर्वे के वक्त सर्वेक्षणकर्ताओं को वहां 10 ताड़ के पेड़ मिले, जिनमें चार को दरगाह का बताया. वक्फ की तरफ से जरूरी कागजात पेश नहीं किये जा सके. मगर इस मामले का फैसला किसी सक्षम सिविल कोर्ट में ही हो सकता है. इसलिए पिटिशनरों को सिविल कोर्ट में न्याय के लिए जाना चाहिए."

इस मामले को लेकर हाई कोर्ट गये आवेदकों में से एक रामलाल साव कहते हैं, "वक्फ ने इस जमीन पर आठ लोगों को नोटिस भेजा है. जबकि यह रैयती जमीन है. तिनकौड़ी लाल के नाम से हैं. वक्फ ने कोई दस्तावेज पेश नहीं किया. हम जिस घर में रह रहे हैं वह 45-50 साल पहले बना है, जिसे हमने खरीदा है. इस जमीन के मालिकों ने बाजार समिति से 1978 में दो डिसमिल जमीन का मुआवजा प्राप्त किया है. वक्फ की जमीन होती तो बाजार समिति हमें कैसे मुआवजा देती."

वे 30 जून, 2023 का जिलाधिकारी के आदेश की एक कॉपी दिखाते हैं, जिसके आधार पर वे बताते हैं कि प्लॉट की जमाबंदी रैयत के नाम से है. मगर साथ ही वे यह भी कहते हैं कि चूंकि मामला वक्फ बोर्ड से संबंधित है इसलिए इसका फैसला वक्फ बोर्ड के ट्रिब्यूनल में ही हो सकता है.

खुद को तिनकौड़ा लाल का वंशज बताने वाले अशोक महतो जिनकी फतुहा में हार्डवेयर की दुकान है, कहते हैं, "सारा झमेला एक आदमी की वजह से है. यहां हम हिंदू-मुसलमान बरसों से एक साथ मिलजुल कर रह रहे हैं. कभी कोई विवाद नहीं है. यह आदमी बबलू दस साल हमलोगों का पार्षद रहा, तब कोई झमेला नहीं हुआ. चुनाव हारा तो सबको परेशान करने लगा. नोटिस भिजवाने लगा. हम चुनाव में उसके विरोध में थे, तो हमको भी नोटिस भिजवा दिया. जबकि जमीन मेरे पिताजी के नाम से है."

बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मो. इर्शादुल्लाह
बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मो. इर्शादुल्लाह

इस पूरे मामले जब हमने बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मो. इर्शादुल्लाह से संपर्क किया तो वे कहते हैं, "गोविंदपुर में तीन प्लाट में वक्फ की कुल 35 डिसमिल जमीन थी, जिसमें 217 प्लॉट की 12 डिसमिल जमीन बाजार समिति ने अधिग्रहीत कर ली. अब वहां हमारी 23 डिसमिल जमीन पर जिन लोगों ने कब्जा किया है, उन्हें हमने नोटिस भेजा है. यह हमारा अधिकार है. 217 नंबर प्लॉट में जिनका दावा है कि यह रैयती जमीन है उन्हें हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट में जाने कहा है. उन्हें न्याय के लिए सिविल कोर्ट जाना चाहिए. वे लोग बेवजह मीडिया वालों और नेता को बुला रहे हैं और मामले को धार्मिक और राजनीतिक रंग दे रहे हैं."

इस सवाल पर कि हिंदू की जमीन कैसे वक्फ बोर्ड के पास जा सकती है, वे कहते हैं, "पुराने जमाने में बहुत सारे हिंदू राजा-महाराजा और जमींदारों ने अपनी जमीन वक्फ की है. राजगीर और पावापुरी में ऐसे मामले हैं. पटना के हाई कोर्ट मजार में भी एक हिंदू का वक्फ डीड हमारे पास है. इसलिए इसमें कोई अनहोनी बात नहीं है. यह देश की गंगा जमुनी तहजीब है कि हिंदू दरगाह के लिए और मुसलमान मंदिर के लिए जमीन देते रहे हैं."

यह पूछने पर कि क्या वक्फ का विवाद सिर्फ वक्फ ट्रिब्यूनल में ही सुना जा सकता है. वे कहते हैं, "ऐसी बात नहीं है, वक्फ का ट्रिब्यूनल वक्फ के विवाद की पहली अदालत है. इसके फैसले से असंतुष्ट लोग सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट कहीं भी जा सकते हैं. वक्फ के ट्रिब्यूनल में जज की नियुक्ति भी हाई कोर्ट से होती है, हम नहीं करते."

वे आगे यह भीकहते हैं, "इस मामले में यह गलत बात फैलाई जा रही है कि बिहार का सुन्नी वक्फ बोर्ड पूरे गांव को खाली करवा रहा है. सच यह है कि हमारा विवाद सिर्फ अपनी 23 डिसमिल पर कब्जा करने वालों के साथ है. 10-15 परिवार हैं. जिसमें मुसलमान भी हैं. सच यह है कि हमारी खुद की एक चौथाई संपत्ति पूरे बिहार में कब्जे की शिकार है. हम मुकदमा लड़ते लड़ते परेशान हैं. तीन से चार सौ मुकदमे हमारे अदालतों में हैं. ऐसे में संजय जायसवाल, विजय सिन्हा और गिरिराज सिंह जैसे जिम्मेदार लोगों के बयानों को सुनकर अफसोस होता है."

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