अप्रैल की 20 तारीख को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने नीमच जिले के गांधी सागर अभ्यारण्य के एक बाड़े में दो चीतों को छोड़ा. कुनो राष्ट्रीय उद्यान से इन दोनों चीतों को यहां भेजा गया है. इनमें से एक 6 वर्षीय चीते का नाम प्रभास है, जबकि दूसरे का नाम है पावक.
इस तरह सितंबर 2022 में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से आए चीतों के लिए मध्य प्रदेश में एक और ठिकाना मिल गया है. आने वाले समय में अफ्रीका के बोत्सवाना से लाए गए चार और चीतों को गांधी सागर अभ्यारण्य में छोड़े जाने की उम्मीद है.
गांधी सागर अभ्यारण्य मंदसौर और नीमच जिलों में 368 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. नीमच के गांधी सागर अभ्यारण्य में इन चीतों को छोड़े जाने के बाद इस बात की चर्चा होने लगी है कि क्या सरकार ने चीता के संरक्षण में एक बड़ा बदलाव किया है? अब तक इन चीतों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में अपेक्षाकृत छोटे 5 वर्ग किलोमीटर के बाड़ों में रखा जाता था.
अफ्रीका या दूसरे देशों से लाए जाने वाले इन चीतों को रखने के लिए यहां छोटे-छोटे बाड़े बनाए गए हैं. कुछ समय बाद इन्हें बाड़ों से बाहर जंगल में छोड़ दिया जाता रहा है.
अब तक 24 में से 16 चीतों को जंगल में छोड़ा जा चुका है. बाकी 8 को बाड़ों में ही रखा गया है. कुनो के जंगल में चौबीसों घंटे एक प्रशिक्षित टीम चीतों की निगरानी करती है. इसके बावजूद चीता रिजर्व से बाहर निकल आते हैं, जिससे वन्यजीव प्रबंधक परेशान हैं.
कुनो अभ्यारण्य के बाहर स्थित बस्तियों में चीतों का घुसना अब सामान्य हो गया है. हाल ही में एक ऐसी घटना भी सामने आई, जिसमें एक चीता ने गांव के कई पशुओं पर हमला किया. इसके बाद गांव के लोगों ने चीता पर पत्थर फेंके.
कई बार कुनो में रहने वाले चीतों के अंतर-राज्यीय सीमा पार करने की खबर भी सामने आई है. इसके बाद ट्रैक कर उन्हें वापस लाया गया. भारतीय वन सेवा (IFS) के एक अधिकारी ने कहा, "वन्यजीव प्रबंधकों के बीच खुले में घूमने वाले चीतों को लेकर चिंताएं हैं. बंद बाड़े में इन जंगली बिल्लियों को रखना ज्यादा सुरक्षित और व्यावहारिक लगता है."
इसी बात को ध्यान में रखकर कुनो के छोटे बाड़े के बजाय गांधी सागर अभ्यारण्य में 64 वर्ग किलोमीटर का बड़ा बाड़ा बनाया गया है. यह इतना बड़ा है कि इसमें चीता प्रजनन कर सकते हैं. यहां बनाया जाने वाला ये बाड़ा तीन तरफ से बंद है, जबकि इसकी चौथी सीमा गांधी सागर बांध की ओर है, जहां से चीतों का भाग पाना मुश्किल है. इस बाड़े को 15.4 वर्ग किलोमीटर में बांटा गया है, जिसमें दो नर चीते छोड़े गए हैं.
चीता प्रभास और पावक ने कुनो से गांधी सागर अभ्यारण्य तक करीब 300 किलोमीटर की दूरी एक विशेष वाहन में तय की है. अभ्यारण्य के रामपुरा पठार में इन बाड़ों को बनाने की तैयारी पिछले कुछ महीनों से चल रही थी.
चीता के इस बाड़े में शिकार के लिए करीब 500 चीतल और हिरणों को रखा गया है. चूंकि चीते पिछले कुछ सालों से भारत में रह रहे हैं और खुद ही शिकार करते हैं, इसलिए उन्हें कुनो से नीमच के अभ्यारण्य में लाने के बाद बाड़े में छोड़ने से पहले क्वारंटीन नहीं किया गया.
मंदसौर के प्रभागीय वन अधिकारी संजय रायखेरे बताते हैं, "चीतों को बाड़े में रखा जाएगा, जिसमें पर्याप्त मात्रा में शिकार उपलब्ध है. अगर जरूरत पड़ी तो और भी शिकार प्रजातियां इसमें रखी जा सकती हैं."
18 अप्रैल को रिलीज से पहले हुई बैठक में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव भी मौजूद थे. उन्होंने श्योपुर जिले के 80 से ज्यादा गांवों के 400 'चीता मित्रों' को भोपाल स्थित भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (IIFM) में प्रशिक्षण देने का निर्देश दिया.
'चीता मित्र' स्वयंसेवक होते हैं, जो रिजर्व के बाहर चीतों की सुरक्षा में तैनात होते हैं. ये स्थानीय लोगों के बीच चीतों से होने वाले फायदों के बारे में जागरूक करते हैं.