टोयोटा फॉर्च्यूनर, ट्रैक्टर और यहां तक कि मर्सिडीज कार सरीखे भव्य इनाम, देश भर के प्रतिभागी, और लाखों की तादाद में दर्शक. महाराष्ट्र में विजेताओं के लिए बंपर इनाम वाली बैलगाड़ी दौड़ों का चलन जोरों पर है, और भला क्यों न हो, अगले साल की शुरुआत में होने वाले स्थानीय निकायों के चुनावों को ध्यान में रखकर स्थानीय नेताओं में उनके आयोजन की होड़ जो मच गई है.
राज्य सरकार ने भी प्रो बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन का वादा किया है, जो इस देहाती खेल को भव्य और भड़कीली चमक दे सकता है. 9 बरस पहले यानी 2014 में प्रो बैलगाड़ी दौड़ और बैलों को वश में करने वाले तमिलनाडु के जल्लीकट्टू सरीखे दूसरे पारंपरिक खेलों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रोक लगा दी गई थी.
फिर मई 2023 में अदालत ने इन खेलों की इजाजत देने वाले कानूनी संशोधनों की वैधता पर मुहर लगा दी. महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के नेता और दो बार ‘महाराष्ट्र केसरी’ का प्रतिष्ठित खिताब जीतने वाले पहलवान चंद्रहार पाटील ने बताया कि बीते चार साल के दौरान इस खेल के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है और यह भी कि उन्होंने सांगली जिले में एक बैलगाड़ी दौड़ आयोजित की थी. पाटील ने कहा, “प्रतिभागियों की संख्या पहली बार आयोजित इस दौड़ में शामिल 100 लोगों से बढ़कर अब 2,500 पर पहुंच गई है.” इस साल दर्शकों में 6,00,000 के आसपास लोग थे और प्रतिभागी कर्नाटक, पंजाब, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और कुछ दूसरे प्रदेशों से आए.
पाटील ने भव्य इनामों में सात ट्रैक्टरों और 180 दोपहिया वाहनों के अलावा दो फॉर्च्यूनर एसयूवी भी दीं. अगले साल वे प्रथम पुरस्कार में बीएमडब्ल्यू देने का मनसूबा बना रहे हैं. यह नवंबर में पाटील का ही आयोजन था जिसमें शिंदे ने प्रो कबड्डी सरीखे खेलों की तर्ज पर प्रो बैलगाड़ी दौड़ की घोषणा की.
महाराष्ट्र में करीब नौ प्रकार की बैलगाड़ी दौड़ों का आयोजन किया जाता है. इनमें शामिल हैं विदर्भ की लोकप्रिय दौड़ शंकरपट; पुणे और अहिल्यानगर जिलों में होने वाली बैलगाड़ा शर्यत, यानी बैलगाड़ी दौड़ें; कोल्हापुर के गढ़हिंगलाज तालुका में होने वाली चिखलगुट्टा, जिसमें बैल पानी और कीचड़ से भरे धान के खेतों में दौड़ लगाते हैं; कोल्हापुर के इचलकरंजी में आयोजित ‘लाकूड ओंडका’, जिसमें बैल लकड़ी का भारी लट्ठा खींचते हुए दौड़ते हैं; सांगली जिले की ‘अरत-परत’, जिसमें ये जानवर करीब 500 मीटर की दूरी तक दौड़कर जाते और फिर शुरुआती मुकाम पर लौट आते हैं; और साथ ही समुद्र तटों पर होने वाली दौड़ें या ‘किनारा दौड़’, जो कोंकण की पट्टी में लोकप्रिय हैं.
पुणे के हडपसर से सांगली और सोलापुर तक की पट्टी में ‘छकड़ी दौड़’ होती हैं, जिनमें बैल छोटी गाड़ी को खींचते हुए दौड़ते हैं. ऑल इंडिया बुलक कार्ट रेस एसोसिएशन, महाराष्ट्र, के कार्यकारी अध्यक्ष संदीप बोडागे ने बताया कि ये दौड़ गणेशोत्सव के बाद शुरू होती हैं और अगले साल मई तक चलती रहती हैं; हर तालुका में एक दिन में 10 से 12 ऐसी दौड़ हो सकती हैं.
बोडागे यह भी कहते हैं कि इस पारंपरिक खेल पर प्रतिबंध का असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इन दौड़ों में इस्तेमाल होने वाले खिल्लार और हल्लीकर सरीखी स्थानीय नस्लों के बैलों के संरक्षण पर पड़ा. अब इन जानवरों की खरीद-फरोख्त गांव के बाजारों में होती है, जिसका सालाना टर्नओवर करोड़ों में होता है और फायदा किसानों, ट्रांसपोर्टरों और दूसरों को मिलता है.
कभी मशहूर मराठा फौजों की घुड़सवार सेनाओं में इस्तेमाल किए जाने वाले भीमथड़ी नस्ल के घोड़ों का भी इस्तेमाल इन आयोजनों में बैलों को रास्ता बताने के लिए किया जाता है. लिहाजा इन प्रतिस्पर्धाओं ने पिछली दो सदियों से उपेक्षा के शिकार इन घोड़ों के संरक्षण में भी मदद की है.
इन आयोजनों से जुड़े लोगों का कहना है कि आने वाले स्थानीय निकायों के चुनावों की वजह से ये दौड़ें भव्य स्तर पर आयोजित की जा रही हैं. पुणे जिले के भोसारी से BJP के विधायक महेश लांडगे ने एक बैलगाड़ी दौड़ का आयोजन किया जिसमें विजेताओं को अर्थ मूवर, बोलेरो एसयूवी, ट्रैक्टर और बुलेट मोटरसाइकिल भेंट में दी गई. उन्होंने बताया कि भोसारी में एक और दौड़ के आयोजन की तैयारी चल रही है, जिसमें विजेता को मर्सिडीज दी जाएगी.
पुणे जिले के खेड़ से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के पूर्व विधायक दिलीप मोहिते पाटील ऐसी दौड़ आयोजित करने वाले नेताओं में हैं. सतारा जिले के पुसेगांव में संत सेवागिरी महाराज की याद में आयोजित दौड़ सरीखे आयोजनों से बहुत सारा सम्मान और ग्लैमर भी जुड़ा है, फिर भले ही दिए जाने वाले इनाम चाहे जो हों.

