इस बार राजस्थान के विधानसभा चुनाव में पूर्व राजघरानों के सदस्यों ने न सिर्फ जमकर भागीदारी की, बल्कि जोरदार प्रदर्शन भी किया. ऐसे लोगों में फिलहाल तो सबसे ज्यादा चर्चा दीया कुमारी की है. दीया कुमारी जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह और पद्मनी देवी की इकलौती बेटी हैं.
भाजपा ने दीया को विद्याधर नगर से उम्मीदवार बनाया जहां से उन्होंने 71 हजार 368 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है. इस बार के विधानसभा चुनाव में यह किसी भी उम्मीदवार की सबसे बड़ी जीत है. दीया ने 2013 में सियासत में कदम रखा और सवाई माधोपुर से भाजपा की विधायक चुनी गईं.
2019 में भाजपा ने उन्हें राजसमंद से लोकसभा उम्मीदवार बनाया और दीया कुमारी साढ़े पांच लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीतकर सांसद बनीं. दीया कुमारी की दादी गायत्री देवी भी जयपुर से तीन बार सांसद रह चुकी हैं. गायत्री देवी 1962, 1967 और 1971 में स्वतंत्र पार्टी से जयपुर की सांसद बनीं. 1971 के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया. इसके बाद जयपुर राजघराने का कोई भी सदस्य जयपुर से विधायक या सांसद नहीं बन पाया. हालांकि 1989 में दीया कुमारी के पिता ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर जयपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन एक गरीब परिवार से आने वाले गिरधारी लाल भार्गव से वे 84 हजार वोटों से चुनाव हार गए. इसके 24 साल बाद जयपुर घराने से जुड़ी दीया कुमारी ने राजनीति में कदम रखा है.
जयपुर के पूर्व राज परिवार से जुड़ी दीया कुमारी ही नहीं बल्कि राजस्थान की कई अन्य पूर्व रियासतों को भी सियासत पसंद आ रही है. राजस्थान में इस बार भी कई पूर्व राजघराने और ठिकानेदार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं.
भाजपा में धौलपुर घराने का दबदबा
झालरापाटन से छठी बार विधायक चुनी गई धौलपुर के पूर्व राजपरिवार की बहू वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. वसुंधरा राजे 2003 से लगातार विधायक चुनी जा रही हैं. 1985 में वे पहली बार भाजपा के टिकट पर धौलपुर से विधायक चुनी गईं. इसके बाद उन्होंने झालावाड़ को अपना निर्वाचन क्षेत्र बनाया और 1989 में पहली बार यहां से सांसद चुनी गईं. वर्ष 1991, 1996, 1998, 1999 तक वसुंधरा राजे लगातार पांच बार यहां से लोकसभा पहुंचीं. इसके बाद वर्ष 2004, 2009, 2013 और 2019 में उनके बेटे दुष्यंत झालावाड़ से सांसद चुने जा रहे हैं.
इस बार भरतपुर घराने दबदबा जाता रहा
इस बार सियासत में भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वेंद्र सिंह बाजी हार गए. उनको दिवंगत भाजपा नेता दिगंबर सिंह के पुत्र शैलेष सिंह ने 7895 वोटों से शिकस्त दी है. भरतपुर राजपरिवार के गिरिराज शरण सिंह 1952 में पहली बार भरतपुर से सांसद चुने गए थे. 1957 में गिरिराज शरण सिंह बाबू राज बहादुर से चुनाव हार गए. इसके बाद 1967 में विश्वेंद्र सिंह के पिता और पूर्व राजपरिवार के सदस्य ब्रजराज सिंह भरतपुर के सांसद बने.
वर्ष 1989 में विश्वेंद्र सिंह जनता दल के टिकट पर यहां से सांसद चुने गए और इसके बाद 1999 और 2004 में वे भाजपा की टिकट पर लोकसभा पहुंचे. 1991 में यहां से विश्वेंद्र सिंह की बहन कृष्णेंद्र कौर दीपा पूर्व विदेश मंत्री स्व. नटवर सिंह को हराकर भाजपा की सांसद बनीं तो 1996 में विश्वेंद्र सिंह की पत्नी महारानी दिव्या सिंह को यहां से जीत मिली. 2008 में विश्वेंद्र सिंह ने कांग्रेस का दामन थामा और डीग-कुम्हेर से विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के दिगंबर सिंह से वे चुनाव हार गए. 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने दिगंबर सिंह को हराकर अपना बदला लिया. 2018 में विश्वेंद्र सिंह ने दिगंबर सिंह के बेटे शैलेष सिंह को चुनाव हराया.
विश्वेंद्र सिंह के चाचा स्व. मानसिंह भी सात बार विधायक रहे हैं. मानसिंह ने 21 फरवरी 1985 को अपनी खुली जीप से टक्कर मारकर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के हेलीकॉप्टर और मंच को क्षतिग्रस्त कर दिया था. बाद में पुलिस ने मानसिंह की जीप पर गोलियां चलाईं जिससे उनकी मौत हो गई.
विधायक चुनी गई कोटा राजपरिवार की बहू
कोटा के पूर्व राजपरिवार की बहू कल्पना देवी बीजेपी की टिकट पर 25 हजार 522 वोटों से जीतकर विधायक चुनी गई हैं. वे कोटा से कांग्रेस के सांसद रहे इज्जेराज सिंह की पत्नी हैं. कोटा के पूर्व महाराजा बृजराज सिंह दो बार लोकसभा सदस्य रहे और फिर राजनीति से विदाई ले ली. उनके बेटे इज्जेराज सिंह कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय थे. इज्जेराज 2009 में कोटा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे. 2014 में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के सामने वो चुनाव हार गए. इसके बाद इज्जेराज और उनकी पत्नी कल्पना देवी भाजपा में शामिल हो गए.
70 साल से सियासत में सक्रिय बीकानेर रियासत
बीकानेर के पूर्व राजपरिवार की सिद्धी कुमारी लगातार चौथी बार विधायक चुनी गई हैं. बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से उन्होंने कांग्रेस के यशपाल गहलोत को 19 हजार 303 वोटों से शिकस्त दी है. बीकानेर राजपरिवार का सियासत प्रेम शुरुआत से ही रहा है. बीकानेर के अंतिम राजा करणी सिंह 1952 से लेकर 1971 तक लगातार सांसद चुने गए. वे 1952, 1957, 1962, 1967, 1971 में बीकानेर संसदीय क्षेत्र से लगातार सांसद निर्वाचित हुए. करणी सिंह की पौत्री और नरेंद्र सिंह बहादुर की बेटी सिद्धी कुमारी 2008, 2013, 2018 और अब 2023 में बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से लगातार सांसद चुनी जा रही हैं.
मेवाड़ राजपरिवार के सियासत में कदम
मेवाड़ राजपरिवार ने भी इस बार राजस्थान की सियासत में कदम बढ़ा दिए हैं. मेवाड़ राजपरिवार से जुड़े विश्वराज सिंह मेवाड़ ने इस बार राजस्थान के सियासी दिग्गज डॉ. सीपी जोशी को नाथद्वार से 7504 वोटों से शिकस्त दी है. विश्वराज मेवाड़ राजघराने के महेंद्र सिंह मेवाड़ के पुत्र हैं.
इससे पहले विश्वराज सिंह के पिता व उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ भी एक बार कांग्रेस के टिकट पर चित्तौड़गढ़ से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. उदयपुर के पूर्व राजपरिवार से जुड़े लक्ष्यराज सिंह के भी इस बार सियासत में कदम बढ़ाने की चर्चाएं थी. माना जा रहा है कि वो लोकसभा चुनाव में भागीदारी के लिए तैयार हैं.
छोटे ठिकानेदारों की सियासत में बड़ी छलांग
राजस्थान में बड़ी रियासत ही नहीं बल्कि छोटे ठिकानेदारों को भी सियासत भाती रही है. इनमें भींडर, शाहपुरा, रावतसर, बाली, खींवसर, सिरोही जैसे कई ठिकाने और पूर्व रियासत प्रमुख हैं. भींडर ठिकाने के रणधीर सिंह 2003 और 2013 में वल्लभनगर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके हैं. भींडर में वे इस समय जनता सेना नाम के एक संगठन के प्रमुख हैं. इस बार उनकी पत्नी दीपेंद्र कुंवर वल्लभनगर से चुनाव मैदान में थी, लेकिन भाजपा के उदयलाल डांगी के सामने उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है. इस बार खींवसर ठिकाने के गजेंद्र सिंह खींवसर और बाली के पुष्पेंद्र सिंह भी भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए हैं.