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देश में पहली बार बिहार में होगी ई-वोटिंग! क्या है इसका सिस्टम और इससे क्या बदलेगा?

बिहार में छह नगर निकाय चुनाव और छह नगर निकाय उपचुनावों के लिए 28 तारीख को करीब 50 हजार वोटर ऑनलाइन वोटिंग करने वाले हैं

ई-वोटिंग से बिहार में मतदान में 20-25 फीसदी बढ़ोतरी हो सकती है
अपडेटेड 26 जून , 2025

जून की 28 तारीख को ऐसा पहली बार होगा जब इस देश के 50 हजार से अधिक मतदाता मोबाइल के जरिये मतदान कर रहे होंगे. और ऐसा बिहार राज्य में होने जा रहा है. दरअसल बिहार के राज्य निर्वाचन आयोग ने छह नगर निकाय चुनाव और छह नगर निकाय उपचुनावों में अपने प्रवासी, निशक्त, बुजुर्ग, असाध्य रोग से पीड़ित और गर्भवती महिला मतदाताओं के लिए ऑऩलाइन वोटिंग की सुविधा दी है और इसे ई-वोटिंग का नाम दिया है. इसके लिए कुल 51,155 मतदाताओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है. ये सब 28 जून को मतदान करेंगे.

यह प्रयोग बिहार जैसे राज्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यहां की बड़ी आबादी पढ़ाई-लिखाई और रोजी-रोजगार के लिए पलायन करती है. इसी वजह से किसी भी चुनाव में यहां मतदान का प्रतिशत 60 फीसदी के आसपास ही रहता है, उससे अधिक नहीं जा पा रहा है. राज्य निवार्चन आयोग ने इसे “कोई मतदाता छूटे नहीं” के लक्ष्य की ओर एक मजबूत कदम बताया है.

हालांकि अभी यह तय नहीं है कि इस तकनीक का इस्तेमाल आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी किया जाएगा या नहीं. बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के दफ्तर के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक फिलहाल ऐसी योजना नहीं है. 

पहले से डिजिटल तरीकों को अपनाता रहा है बिहार का राज्य निर्वाचन आयोग

दरअसल इस तकनीक का इस्तेमाल बिहार राज्य निर्वाचन आयोग की टीम कर रही है, जिसके पास स्थानीय निकायों, जैसे पंचायत और नगर निकायों का चुनाव कराने की जिम्मेदारी होती है.

यह आयोग पहले भी चुनावी प्रक्रियाओं में तकनीक का इस्तेमाल करता रहा है. 2021 में बिहार में पंचायतों के चुनाव के दौरान इस आयोग ने बायोमीट्रिक और फेशियल रिकग्निशन सिस्टम (एफआरएस) प्रक्रिया के जरिये मतदाताओं की पहचान और ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (ओआरसी) के जरिये मतगणना और नतीजे तैयार करने की प्रक्रिया को अपनाया था. आयोग ने चुनाव के बाद ईवीएम मशीनों को रखने की जगह यानी 'वज्रगृह' में डिजिटल लॉक लगाने की भी शुरुआत की थी, जिसे खोले जाने पर सभी प्रत्याशियों तक मैसेज चला जाता था.

राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. दीपक प्रसाद बताते हैं, “इन प्रक्रियाओं को अपनाने से मतदान प्रक्रिया में काफी पारदर्शिता आई. एफआरएस के जरिये हम मतदाता सूची में उपलब्ध फोटो से मतदाता के चेहरे की पहचान कर लेते हैं. इस सॉफ्टवेयर की यह खूबी है कि यह मतदाता के चेहरे में उम्र के साथ आए बदलाव को भी पकड़ लेता है और 15-20 साल पुरानी तसवीर से भी मतदाता के चेहरे का मिलान कर लेता है. ओआरएस की मदद से मतगणना का काम काफी आसान और पारदर्शी हो गया है. यह साफ्टवेयर ईवीएम मशीन के आंकड़ों को वीडियोग्राफी के जरिये रीड कर उसे पीडीएफ में बदल देता है और इसके वीडियो और आंकड़े हमारे पास हमेशा रहते हैं. कोई देखना चाहे तो उसे देख सकता है. अब तो हम वज्रगृह में कैमरा भी लगा रहे हैं. अब उम्मीदवारों को वज्रगृह के पास बैठकर निगरानी करने की जरूरत नहीं.”

राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. दीपक प्रसाद

दरअसल नई तकनीक के पैरोकार दीपक प्रसाद ने जुलाई 2020 में आयोग की जिम्मेदारी संभालने के बाद से इसका लगभग पूरा डिजिटलाइजेशन कर दिया है. वे बताते हैं, “अभी हमारे पास लगभग 55 एप्लीकेशन काम कर रहे हैं. इनका फायदा यह हुआ कि मतगणना को लेकर आने वाले शिकायतें अब नगण्य रह गई हैं. पहले हर चुनाव के बाद दस हजार से अधिक शिकायतें आती थीं, अब मुश्किल से सौ-डेढ़ सौ शिकायतें आ रही हैं.” इससे

पहले दीपक प्रसाद जब बिहार के स्टेट फूड कॉर्पोरेशन के एमडी थे तो उन्हें देश में सबसे पहले पीडीएस सिस्टम को डिजिटल करने का भी श्रेय जाता है. इसी वजह से उन्होंने आयोग में अपनी अलग आईटी टीम खड़ी की, जिसमें अभी 20-25 लोग काम करते हैं. उन्होंने चुनाव के काम में नवोन्मेष के लिए इंटरनेशनल सेंटर ऑफ पार्लियामेंट्री स्टडीज ने पुरस्कृत किया है. अब उनका नया लक्ष्य ई-वोटिंग के जरिये मतदान प्रतिशत को बढ़ाना है. 

ई-वोटिंग प्रवासी बिहारियों के लिए वरदान साबित हो सकती है

दीपक कहते हैं, “हमारा अनुमान है कि बिहार के कुल मतदाताओं में 20 से 25 फीसदी प्रवासी मजदूर हैं. यह ऐसे समझ आता है कि अगर छठ के दौरान चुनाव होता है तो मतदान का प्रतिशत 60 से बढ़कर 75 फीसदी चला जाता है. हम चाहते हैं कि मतदान की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए उनके पास एक विकल्प हो. इस कोशिश में हमें इस बार थोड़ा लाभ मिला है. इस चुनाव में देश के अलग-अलग इलाकों के साथ-साथ दुबई और कतर तक में रहने वाले बिहार के मतदाताओं ने पंजीकरण किया है.”

अब आयोग ई-वोटिंग प्रक्रिया की शुरुआत कर रहा है. यह प्रयोग दो हिस्सों में किया जा रहा है. पहला उन तीन जिलों की छह नगर पंचायतों में हो रहा है, जहां आम चुनाव हो रहे हैं. जिनमें छह मुख्य पार्षद, छह उप मुख्य पार्षद और 84 वार्ड पार्षदों को चुना जाना है. इसके लिए आयोग ने सी-डेक कंपनी की मदद से eVoting SECBHR एप विकसित कराया है और इस चुनाव में ई-वोटिंग की पूरी निगरानी सी-डेक कंपनी ही करेगी. दूसरे हिस्से में पांच जिलों के छह नगरपालिकाओं के लिए उप चुनाव हो रहे हैं. इनमें मुख्य पार्षदों के तीन, उप मुख्य पार्षदों के तीन और वार्ड पार्षद के 37 पदों पर ई वोटिंग की जिम्मेदारी खुद राज्य निर्वाचन आयोग की होगी, इसके लिए अलग एप eVoting (SECBIHAR) को विकसित कराया गया है.

इन दोनों एप का इस्तेमाल करने सिर्फ एंड्रॉयड स्मार्ट फोन पर किया जा सकता है, खासकर जिनके फ्रंट कैमरे की क्षमता दो मेगा पिक्सल से अधिक हो. नियम यह है कि एक मोबाइल पर अधिकतम दो लोग पंजीयन करा सकते हैं और वही दोनों लोग मतदान कर सकते हैं. दिलचस्प है कि दो वोट पड़ने के बाद यह एप खुद-बखुद लॉग-आउट हो जाएगा.
 

ऐसे होता है रजिस्ट्रेशन

आयोग का दावा है कि दोनों एप पूरी तरह सुरक्षित और गोपनीय हैं. इसमें पंजीकरण और वोटिंग के दौरान लाइवलीनेस डिटेक्शन, फेस मैच, लाइव फेस स्कैन, फेस कंपेरीजन, सिक्योर वोट स्टोरेज और ऑडिट ट्रेल जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. आयोग से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि इन दोनों एप में पंजीकरण और वोटिंग दोनों करते वक्त चेहरे की पहचान और उसका मतदाता पहचान पत्र और आधार से मिलान कराया जाता है. फोटो लेते वक्त पलक झपकाने की प्रक्रिया दोहराने कहा जाता है ताकि किसी तसवीर से फोटो लेकर गड़बड़ी न की जा सके. 

इन दोनों एप्स में ई वोटिंग के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया 23 जून तक चली है. आयोग ने इसके लिए टीवी, रेडियो, सिनेमा हॉल, रेलवे स्टेशनों, अखबारों, सोशल मीडिया आदि पर जमकर प्रचार किया है. अब तक 51,157 मतदाताओं ने एप के जरिये ई-वोटिंग के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है. यह कुल मतदाताओं 3,82,269 का 13.38 फीसदी है. आयोग इसे अपने प्रयोग की सफलता मानता है क्योंकि उसने इसके लिए 50,200 मतदाताओं के ई-वोटिंग के लिए पंजीकरण का लक्ष्य रखा था.

आशंकाएं भी हैं

हालांकि जानकार इस प्रक्रिया को लेकर कुछ आशंकाएं भी जाहिर कर रहे हैं. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, “बिहार में मतदान प्रतिशत को बढ़ाना निश्चित तौर पर हमेशा से चुनौतीपर्ण रहा है. बिहार देश में सबसे कम मतदान प्रतिशत वाले राज्यों में से रहा है. ऐसे में तकनीक के इस्तेमाल से वोटिंग बढ़ाना निश्चित तौर पर अच्छा प्रयास है. खासकर प्रवासियों, बुजुर्गों, असाध्य रोगियों आदि के लिए. मगर इसमें दो सवाल हैं. पहला यह कि इस देश में आज भी टेक्नोलॉजिकल डिवीजन है. जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं हैं, वे इस तकनीक का इस्तेमाल कर नहीं पाएंगे और अगर किसी और के स्मार्टफोन से करते हैं तो गड़बड़ी होने की आशंका बनी रहेगी. दूसरी बात, जैसा अब तक के समाचारों से समझ आ रहा है, आयोग ने न तो राजनीतिक दलों को, न उम्मीदवारों को और न ही राज्य के नागरिक समुदाय को इसे लागू करने से पहले भरोसे में लिया है. अपने देश में मतदान में तकनीक का इस्तेमाल विवादों के घेरे में रहा है. इसलिए उन्हें लोगों को भरोसे में लेना चाहिए था.”

इसके जवाब में दीपक प्रसाद करते हैं, “हमारा ऐसा मानना है कि अभी भी बिहार के हर घर में कम से कम एक स्मार्टफोन तो जरूर है. इसलिए हमलोगों ने एक फोन पर दो मतदाताओं को वोट डालने की स्वीकृति दी है. हमने उम्मीदवारों से चर्चा की है, इसलिए आप देखेंगे कि इस कोशिश का कहीं से विरोध नहीं है. हमारी कोशिश सकारात्मक है. वैसे भी अब तक इस तकनीक का इस्तेमाल दुनिया में सिर्फ एक देश इस्टोनिया में किया गया है. हमारा नया प्रयास है, आगे हमें उम्मीद है कि हम इसे बड़े पैमाने पर कर सकेंगे.” 

यह पूछने पर कि क्या भारत सरकार के चुनाव आयोग ने आपसे बिहार चुनाव में इस तकनीक के इस्तेमाल के लिए संपर्क किया है, वे कहते हैं, “अभी तक संपर्क नहीं किया गया है. अगर किया जाता है तो हमलोग सहयोग करेंगे.”

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