इस बार पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के लिए जैसे ही प्रचार अभियान थमा, इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (I-PAC) के तीन निदेशकों में से एक प्रतीक जैन ने अपने 500 से अधिक कर्मचारियों से कहा - जाइए, और जाकर अब बढ़िया से आराम कीजिए.
दरअसल, जैन का अपने कर्मचारियों को शुक्रिया कहने का यह एक अपना तरीका था. प्रचार अभियान के दौरान इन कर्मचारियों की जबरदस्त मेहनत की बदौलत ही तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) 42 में से 29 सीटों पर शानदार जीत हासिल करने में कामयाब हो सकी.
लेकिन I-PAC ने इस बार चार जून को जीत का जश्न काफी निजी तौर पर सेलिब्रेट किया. यह 2021 के विधानसभा चुनावों के विपरीत था जब मीडिया का एक बड़ा समूह कोलकाता में I-PAC कार्यालय में डेरा डाले था और उस समय कंपनी के प्रमुख रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ चुनाव के नतीजों पर रिपोर्टिंग कर रहा था. ताजा जीत के इस मौके पर कंपनी के एक कर्मचारी ने कहा, I-PAC ने अब प्रचार पर ध्यान लगाने के बजाय अपने उद्देश्यों के लिए कठिन मेहनत करने को प्राथमिकता दी है.
इस बार के लोकसभा चुनाव में ज्यादातर एग्जिट पोल्स और खुद प्रशांत किशोर ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बंगाल में स्पष्ट बढ़त और सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा दिया था. जबकि I-PAC के सूत्र हमेशा यह कहते आ रहे थे कि इस बार टीएमसी 25 से कम सीटें नहीं जीतेगी, जो पिछले लोकसभा चुनाव (2019) से तीन अधिक हैं. इस राजनीतिक परामर्श फार्म ने ममता बनर्जी की पार्टी के लिए एक शानदार जीत सुनिश्चित करके एक बार फिर से अपनी योग्यता साबित की है. साथ ही, यह भी बताया है कि वह प्रशांत किशोर की छाया से भी बाहर निकल आई है.
इंडिया टुडे से बातचीत में प्रतीक जैन ने कहा, "मुझे उन लोगों पर तरस आता है जो भाजपा को सलाह देते हैं. उनकी उम्मीदवार सूची एक आपदा थी. इसके विपरीत हमारे करीब सभी उम्मीदवार सफल रहे. I-PAC और टीएमसी दोनों ने जमीन पर कड़ी मेहनत की और इस जीत को संभव बनाया."
प्रशांत किशोर के 2021 में आधिकारिक तौर पर I-PAC छोड़ने के बाद कंपनी का नेतृत्व इसके तीन निदेशकों- ऋषि राज सिंह, विनेश चंदेल और प्रतीक जैन के हाथों में रहा है. 34 वर्षीय जैन के पास इस क्षेत्र में 10 साल से अधिक समय से काम करने का अनुभव है. वे बंगाल में टीएमसी की चुनावी सफलताओं की रणनीति बनाने का श्रेय ले सकते हैं, जो सभी ठोस डेटा और शोध पर आधारित रहा.
वहीं, उनके पूर्व सहयोगी प्रशांत ने सूबे में टीएमसी को एक बड़ा झटका लगने की भविष्यवाणी की थी. लेकिन जैन ने उन्हें गलत साबित कर दिया. इन दिनों बंगाली हास्य में कहा भी जा रहा है कि पीके और पीजे (प्रतीक जैन) के बीच की लड़ाई में जीत आखिर पीजे की हुई. हालांकि जैन इसे उस तरह से नहीं देखते. वे कहते हैं, "मैं इसे हम दोनों के बीच झगड़ा नहीं कहना चाहता. वे (किशोर) अब कंपनी के साथ नहीं हैं. लेकिन यह सच है कि लोगों को इस बात पर संदेह था कि क्या बिना प्रशांत के I-PAC चल सकता है? लेकिन हमें खुशी है कि हम अपने दम पर आगे आए और एक बड़ी जीत सुनिश्चित की."
यहां सवाल उठ सकता है कि आखिर I-PAC ने इसे कैसे किया? दरअसल, पिछली गर्मियों में जब टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी पंचायती चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन में जनमत संग्रह का सहारा ले रहे थे. तब उनके सामने दो शिकायतें सामने आईं. पहला - नरेगा मजदूरी, और दूसरा - पीएम आवास योजना - का पेंडिंग भुगतान. भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने राज्य में इन योजनाओं में भारी अनियमितताओं का हवाला दिया था और फंडिंग रोक दी थी. हालांकि टीएमसी ने इन आरोपों को खारिज किया था.
इसके अगले कुछ महीनों में व्यापक शोध और जमीनी स्तर पर सर्वेक्षणों के आधार पर टीएमसी ने केंद्र सरकार को 'बंगाल विरोधी' के रूप में पेश करने के लिए एक राज्यव्यापी अभियान शुरू किया. इसके लिए उसने I-PAC की मदद ली. इस नैरेटिव ने आखिरकार पार्टी के लोकसभा चुनाव अभियान 'जोनोगोनेर गोरजों, बांग्ला बिरोधिदर बिशोरजों' को आकार दिया. जिसका मतलब था - लोगों का गुस्सा बंगाल विरोधी ताकतों को डुबो देगा.
पिछले साल 17 जून को जब अभिषेक की राज्यव्यापी यात्रा समाप्त हुई. और इस साल 10 मार्च को जब कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड रैली में टीएमसी ने औपचारिक रूप से लोकसभा चुनाव अभियान की घोषणा की. तब टीएमसी ने कोलकाता, दिल्ली में दो बड़े आंदोलन किए. इसके अलावा बंगाल के सभी जिलों में पार्टी ने आंदोलन किया. ये सारा अभियान भाजपा द्वारा राज्य कल्याण के लिए फंडिंग को रोकने के नैरेटिव पर आधारित था.
इसके अलावा टीएमसी ने राज्य भर में एक करोड़ से ज्यादा घरों को कवर करते हुए पहली बार सफलतापूर्वक वीडियो आधारित डोर-टू-डोर अभियान चलाया. इसका उद्देश्य लोगों को पार्टी के इस संदेश के बारे में जागरूक करना था कि भाजपा बंगाल विरोधी है और उसे वोट देने का मतलब राज्य के खिलाफ वोट देना है. इस अभियान को I-PAC ने ही डिजाइन किया था.
महिला मतदाताओं को एकजुट करने के लिए भी अभियान मॉड्यूल तैयार किए गए थे. इसमें इस बात पर फोकस किया गया कि भाजपा की 'वास्तविकता' कथित तौर पर 'नारी शक्ति' के उसके दावों को झुठलाती है. भाजपा की योजनाओं की तुलना ममता सरकार की महिला सशक्तिकरण पहलों से की गई. जैसे कि लक्ष्मी भंडार योजना के तहत सूबे की महिलाओं को मासिक भत्ता मिलता है. महिला केंद्रित गतिविधियों के आयोजन से लेकर मतदान के दिन महिला मतदाताओं को जुटाने तक इन सभी आधारों को कवर किया गया.
I-PAC के सूत्रों के मुताबिक, महिलाओं के लिए खास तौर पर डोर-टू-डोर आउटरीच के तहत लगभग 7,80,000 घरों को कवर किया गया. जबकि 21,000 से अधिक स्थानीय बैठकों में करीब 6,00,000 के करीब महिलाएं मौजूद रहीं. वहीं, हाशिए पर पड़े वर्गों के मतदाताओं से जुड़ने के लिए एक विशेष अभियान 'तपशिलिर संगलाप' शुरू किया गया. माना जाता है कि इस अभियान ने पार्टी के एससी/एसटी नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया. इस कार्यक्रम ने 77 दिनों में 33 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों को कवर किया, जिसमें करीब 21 लाख व्यक्तियों से संपर्क साधा गया.
जैन खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, "हमने फरवरी में ही जोरदार तरीके से काम शुरू कर दिया था. ऐसा इसलिए क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद हर सर्वेक्षण, सभी डेटा और समाचार रिपोर्ट टीएमसी के खिलाफ जा रहे थे. टीएमसी की रेटिंग गिर गई थी और भाजपा की लहर शुरू हो गई थी. हमें तुरंत काम करना था और हमने किया. हमने भाजपा को बंगाल की सेहत के लिए खराब बताने की रणनीति बनाई. और यह कारगर साबित हुआ."
I-PAC के इन प्रयासों को वैधता तब मिली जब 4 जून को जीत के बाद आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता ने जैन की टीम का विशेष तौर पर उल्लेख किया. उन्होंने कहा, "मैं तृणमूल के सभी जमीनी कार्यकर्ताओं और पश्चिम बंगाल में I-PAC की पूरी टीम को धन्यवाद देती हूं." उन्होंने स्पष्ट किया कि यह काम करने वाली नई टीम है और "दूसरा व्यक्ति" (किशोर) उनके साथ नहीं है.
- अर्कमय दत्ता मजूमदार