वरिष्ठ BJP नेता प्रेम कुमार को विधानसभा का अध्यक्ष चुने जाने के बाद यह लगभग तय हो गया कि जिन पदों के सहारे बिहार में सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार अपने हाथ में रखते थे, वे इस बार BJP के खाते में जा चुके हैं. ये पद गृह विभाग और विधानसभा अध्यक्ष के हैं.
ऐसे में ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या हालिया विधानसभा चुनाव में अपनी सीटें लगभग दोगुनी कर लेने के बावजूद नीतीश उतने मजबूत नहीं हैं, जितने पिछले विधानसभा चुनाव के बाद थे. तब 43 सीटें जीतने के बावजूद गृह विभाग उन्होंने अपने पास रखा था और जब चाहा BJP की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ गए और जब मर्जी हुई महागठबंधन छोड़कर NDA में वापस आ गए.
उन्होंने तब महज 43 विधायकों के बल पर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंकने और विपक्षी दलों को एकजुट करने की भी कोशिश की थी. मगर पिछले एक साल में 12 लोकसभा और 85 विधानसभा सीटें जीतकर भी वे इस हैसियत में नजर नहीं आ रहे कि BJP के गृह विभाग और विधानसभा अध्यक्ष के पद के लिए अड़ पाते.
जानकार मानते हैं कि किसी भी गठबंधन की सरकार में और खासकर बिहार में गृह विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग ऐसे होते हैं, जहां से पूरी सत्ता संचालित होती है. इसलिए 2005 में पहली बार NDA सरकार का मुखिया बनने के बाद से लगातार नीतीश कुमार ने इन दोनों विभागों को अपने पास ही रखा था. इस बार सामान्य प्रशासन विभाग तो उनके पास है, जिसे अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति का अधिकार है लेकिन गृह विभाग उनके डिप्टी सम्राट चौधरी को मिला है. वे BJP विधायक दल के नेता भी हैं. इससे यह भी माना जा रहा है नीतीश कुमार के गद्दी छोड़ने के बाद अगर BJP का कोई सीएम बनता है तो वे सम्राट ही होंगे.
नीतीश के कमजोर होने की चर्चा के बीच उनकी पार्टी JDU की तरफ से एक काउंटर नैरेटिव पहले से चल रहा था. पहले यह कहा गया कि चूंकि सामान्य प्रशासन विभाग अभी भी नीतीश के पास ही है और इसके बिना गृह विभाग बहुत महत्व नहीं रखता, इसलिए असल सत्ता अभी भी नीतीश के पास ही है.
पार्टी की तरफ से अप्रत्यक्ष रूप से यह प्रचार भी किया गया कि भले ही गृह विभाग BJP की तरफ चला गया हो मगर जितने पैसे वाले विभाग हैं, वे JDU के पास ही हैं. एक आकलन मीडिया में आया कि JDU के मंत्रियों के पास जो विभाग हैं, उनका बजट 1.38 लाख करोड़ रुपए है, वहीं BJP के मंत्रियों के विभागों का बजट सिर्फ 81.5 हजार करोड़ है.
आखिरकार इस बहस में JDU की तरफ से आधिकारिक टिप्पणी विजय कुमार चौधरी की तरफ से आई. उन्होंने कहा, “गृह विभाग छिन गया, यह तो यह सुर्खियों में है. लेकिन उससे भी बड़ा विभाग वित्त और वाणिज्य हमारे पास है, इसको लेकर कभी सुर्खियां नहीं बनीं. वित्त और वाणिज्य से बड़ा कोई विभाग नहीं है.”
बिहार सरकार में ज्यादातर वक्त BJP के पास ही वित्त और वाणिज्य विभाग गया है. मगर ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कभी JDU के पास ये विभाग नहीं रहे. 2022 से 2024 के बीच विजय कुमार चौधरी ही खुद वित्त मंत्री रहे और वर्तमान वित्त मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव पहले वाणिज्य कर मंत्री रह चुके हैं. जबकि पिछले बीस सालों में यह पहला अवसर है कि जब गृह विभाग BJP के पास गया है.
हालांकि गृह विभाग सम्राट चौधरी को दिए जाने के बाद लोग यह उम्मीद जता रहे थे कि इसके बदले में शायद नीतीश कुमार की BJP से विधानसभा अध्यक्ष के पद को लेकर कोई डील हो गई होगी. यह अलग बात है कि इस पद के लिए प्रेम कुमार का नाम भी लगातार चर्चा में था. माना जा रहा था कि चूंकि नई परिस्थितियों में विपक्षी दलों के कमजोर होने और उनमें टूट की संभावना अधिक होने की स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होगी इसलिए नीतीश विधानसभा अध्यक्ष का पद नहीं छोड़ेंगे. हालांकि जब प्रेम कुमार ने यह पद संभाल लिया तो जानकारों की पहली प्रतिक्रिया थी कि अब नीतीश अपनी मोल-भाव की क्षमता को खो चुके हैं और इस गठबंधन में अब बड़ा भाई BJP ही है. मुखिया जरूर नीतीश हैं, मगर फैसले BJP ले रही है.
तो ऐसा क्यों हुआ? इसके जवाब में वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद कहते हैं, “विधानसभा अध्यक्ष का पद BJP को मिलना इतना महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह पद पिछले पांच वर्षों से BJP और राजद के पास रहा है. एक तरह से JDU इस पद पर अपना दावा पहले ही छोड़ चुकी है. हां, गृह विभाग को छोड़ने से यह जरूर जाहिर हो रहा है कि नीतीश अब कमजोर हो गए हैं और उन्हें BJP के इशारे पर चलना पड़ रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि विपक्ष कमजोर हुआ है और इससे नीतीश की मोल-भाव की ताकत खत्म हो गई है. जहां तक वित्त विभाग का सवाल है, यह JDU के पास पहले भी रहा है, गृह विभाग पहली बार BJP के गया है. कुल मिलाकर वित्त विभाग की बात कहकर JDU बस अपना चेहरा बचा रहा है.”
अहमद विपक्ष के हवाले से नीतीश के मोल-भाव करने की क्षमता खत्म होने की बात कह रहे हैं और इससे उनका मतलब है कि पिछली सरकार में जब राजद मजबूत थी तो 43 सीटें होने के बावजूद नीतीश कुमार के पास सरकार बचाने का दूसरा विकल्प था, लेकिन अब वह नहीं है.
टाटा सामाजिक संस्थान के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र इस मसले को अलग तरीके से देखते हैं. वे कहते हैं, “विधानसभा अध्यक्ष पद पहले भी BJP के पास रहा है मगर इस नई विधानसभा में अध्यक्ष का पद कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. क्योंकि विपक्ष की पार्टियां काफी छोटी हो चुकी हैं, इनमें टूट और दल-बदल की भारी संभावना है. इसलिए इस बार BJP हर कीमत पर विधानसभा अध्यक्ष का पद अपने पास रखना चाहती होगी. ऐसा लगता है कि नई सरकार की खुशियां खत्म होने के बाद आनेवाले महीने बिहार में अनिश्चितता और उथल-पुथल भरे होंगे.”
वैसे JDU से जुड़े लोग इस मसले पर कुछ अलग राय भी रखते हैं. वे औपचारिक रूप से तो नहीं मगर अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम को JDU के कमजोर होने के तौर पर नहीं देखना चाहिए. इसे इस तरह समझा जाए कि BJP मजबूत होने की कोशिश कर रही है. पिछले दो विधानसभा में BJP यह देख चुकी है कि नीतीश कभी भी उसे छोड़कर राजद की तरफ चले जाते हैं. अब इस बार BJP चाहती है कि नीतीश किसी सूरत में उसे छोड़कर राजद की तरफ न जाएं. क्योंकि एक तो JDU का राजद के साथ जाने का मतलब केंद्र की सत्ता पर भी संकट आना है, वहीं इसका अर्थ यह भी है कि अपनी आखिरी पारी में वे अपने समर्थकों की विरासत राजद को सौंप देंगे.
JDU के एक वरिष्ठ नेता यह दलील भी देते हैं कि इस चुनाव में BJP ने देखा है कि नीतीश के समर्थकों की वजह से NDA को इतनी भारी जीत मिली, वह इन समर्थकों के बेस को बिल्कुल खोना नहीं चाहती. इसलिए हर तरह से सुनिश्चित होना चाहती है कि नीतीश इस बार राजद के साथ न जाएं. इन्हीं नेता के मुताबिक गृह विभाग या विधानसभा अध्यक्ष पद के BJP के पाले में जाने से JDU को कोई नुकसान नहीं है. बदली परिस्थितियों में नीतीश की कुर्सी तब तक सुरक्षित है, जब तक वे चाहेंगे. क्योंकि पिछले दो चुनाव में लगातार मजबूत हुआ JDU अब बिहार ही नहीं केंद्र की सत्ता में भी भागीदार है. BJP बिहार के चक्कर में दिल्ली की सत्ता को खतरे में नहीं डाल सकती.
नीतीश की पार्टी के एक और नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “BJP दिल्ली और बिहार में अपनी सत्ता सुरक्षित रखने की कोशिश कर रही है. जबकि JDU का फोकस इस बार पैसों पर है और बिहार के विकास के लिए केंद्र से अधिक से अधिक सहयोग हासिल करने पर है.”

