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यूपी में दिनेश शर्मा अचानक भाजपा के लिए जरूरी क्यों हो गए?

पिछले डेढ़ साल से साइड लाइन चल रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को राज्यसभा उपचुनाव का उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने एक तीर से साधे कई निशाने

दिनेश शर्मा राज्यसभा उपचुनाव के लिए नामांकन भरते हुए
दिनेश शर्मा राज्यसभा उपचुनाव के लिए नामांकन भरते हुए
अपडेटेड 6 सितंबर , 2023

वर्ष 2020 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने साइडलाइन चल रहे वरिष्ठ नेता हरद्वार दुबे को राज्यसभा भेजकर राजनीतिक विश्लेषकों को अचरज में डाल दिया था. दुबे की जून माह में असामयिक मृत्यु के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए 3 सितंबर को दिनेश शर्मा के नाम की घोषणा भी उतनी ही चौंकने वाली थी. वह भी तब जब दिनेश शर्मा विधान परिषद के सदस्य हैं और उनका कार्यकाल वर्ष 2027 तक है. 

जाहिर है कि दिनेश शर्मा के राज्यसभा जाने के बाद यूपी में विधान परिषद की सीट खाली हो जाएगी. 5 सितंबर को दिनेश शर्मा ने राज्यसभा उपचुनाव के लिए नामांकन किया. इस सीट पर 15 सितंबर को उपचुनाव होना है. यूपी विधानसभा में भाजपा की ताकत को देखते हुए, शर्मा आसानी से राज्यसभा पहुंच जाएंगे. उन्हें 2026 तक राज्यसभा का कार्यकाल मिलेगा जो उनके विधानपरिषद सदस्य के रूप में कार्यकाल से एक वर्ष कम होगा. 

इससे यह भी संकेत मिलता है कि दिनेश शर्मा वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं. भाजपा नेता को राज्यसभा उपचुनाव का उम्मीदवार बनाने का भगवा दल का निर्णय यूपी भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी, जिन्हें प्रदेश का एक प्रमुख ब्राह्मण नेता माना जाता है, को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त करने के ठीक एक महीने बाद आया है. बाजपेयी खुद पिछले साल मई में संसद के ऊपरी सदन के लिए नामित हुए थे. 

लखनऊ विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग के प्रोफेसर शर्मा (59) ने पिछले कई मौकों पर भगवा दल के लिए अपनी उपयोगिता साबित की है. उन्हें अगस्त 2014 में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था, जब लोकसभा चुनाव में पार्टी ने भारी जीत दर्ज की थी और नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे. 

शर्मा ने वर्ष 2014-15 में भाजपा के सदस्यता अभियान का भी नेतृत्व किया, जो अंततः गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था. भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शिष्य के रूप में पहजाने जाने वाले शर्मा दो बार (2006-12 और 2012-17 के बीच) लखनऊ के मेयर रहे हैं. वर्ष 2017 में भाजपा के शानदार बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद, शर्मा को योगी आदित्यनाथ सरकार में उपमुख्यमंत्री के रूप में शामिल करने के साथ राज्य विधान परिषद में भी भेजा गया था. 

हालांकि, वर्ष 2022  के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सत्ता में लौटी तो उनकी जगह यूपी के पूर्व कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने ले ली. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले 2021 में दिनेश शर्मा को राज्य विधान परिषद में दोबारा भेजा गया. परिषद में उनका कार्यकाल 30 जनवरी, 2027 तक है. 

राज्यसभा सीट के लिए शर्मा के नामांकन को ब्राह्मण समुदाय को एकजुट करने के लिए भाजपा के नए प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का तर्क है कि हरद्वार दुबे को आम तौर पर 2019 में 'ब्राह्मण कोटा' के तहत राज्यसभा के लिए चुना गया था. दुबे की मृत्यु के बाद शर्मा का चयन भी 'ब्राह्मण कोटा' के तहत किया गया है. 

लेकिन विधान परिषद में लंबा कार्यकाल के बचा रहने के बावजूद दिनेश शर्मा को राज्यसभा भेजे जाने को राजनीतिक विश्लेषक दूसरे नजरिए से देख रहे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र एवं वरिष्ठ एडवोकेट सोमेश शुक्ल बताते हैं, “ब्राह्मण वैसे तो भाजपा का कोर वोटर रहा है लेकिन अवध और पूर्वांचल में भगवा खेमे के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसकी छवि एक ब्राह्मण नेता की हो. लक्ष्मीकांत बाजपेयी को छोड़कर राज्यसभा में यूपी से ब्राह्मण नेता सुधांशु त्रिवेदी, सीमा द्व‍िवेदी और अशोक बाजपेयी अवध या पूर्वांचल से ही ताल्लुक रखते हैं लेकिन ये इस समुदाय विशेष पर अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.” 

गोरखपुर निवासी और पूर्व राज्यसभा सदस्य शिव प्रताप शुक्ल के हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाने के बाद से भाजपा ऐसे नेता की तलाश में थी जिसकी कम से कम अवध और पूर्वांचल में अच्छी पहचान हो. उधर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालने के एक वर्ष बाद भी भूपेंद्र चौधरी अभी तक अवध और पूर्वांचल के वरिष्ठ भाजपा नेताओं से तालमेल बिठाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं. 

ऐसे में भाजपा को संगठन में एक ऐसे नेता की तलाश थी जिसका कम से कम अवध में पुराने और नए सक्रिय भाजपा नेताओं से अच्छा समन्वय हो. दिनेश शर्मा पार्टी की इन कसौटियों में खरे उतरे हैं. सोमेश शुक्ल बताते हैं, “योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक बसपा छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए हैं तो दूसरी ओर लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद कांग्रेस से भगवा दल में आए हैं. ये दोनों नेता अभी तक भाजपा के वरिष्ठ ब्राह्मण नेताओं और कार्यकर्ताओं से समन्वय बिठाने में उतना कामयाब नहीं हो पाए हैं जितना दिनेश शर्मा हैं.” 

वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पसंद होने के बावजूद प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल न होने के बाद भी दिनेश शर्मा ने अपनी सक्रियता बनाए रखी थी. राजनीतिक रूप से हाशिए पर होने के बावजूद शर्मा ने पार्टी के पुराने और नए कार्यकर्ताओं के साथ अपने संबंध और मजबूत किए. जनता के बीच लगातार जाकर केंद्र और राज्य सरकार के कार्यों का प्रचार प्रसार किया. 

घोसी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक दारा सिंह चौहान को विधायक पद से इस्तीफा दिलाकर उन्हें भाजपा में शामिल कर दोबारा घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव में उम्मीदवार बनाना भी सुदूर पूर्वांचल के भाजपा कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरा है. पार्टी कार्यकर्ताओं का तर्क है कि भाजपा में दूसरी पार्टी से आने वाले नेताओं को जितनी तवज्जो मिल रही है उतनी उन कार्यकर्ताओं नेताओं को नहीं मिल रही जो आड़े वक्त में भी भगवा दल के साथ थे. सोमेश शुक्ल बताते हैं, “शर्मा को राज्यसभा भेजकर भाजपा ने अपने काडर को संदेश दिया है कि जो हर परिस्थ‍िति में पार्टी के साथ रहते हैं, पार्टी हमेशा उनका ध्यान रखती है. पूर्वांचल में दारा सिंह चौहान के चलते सवर्ण समाज में पनपी नाराजगी को दूर करने में भी पार्टी दिनेश शर्मा का उपयोग कर सकती है.” 

इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले शर्मा के पक्ष में एक बात और मजबूती से जाती है कि उन्हें संघ के पदाधिकारियों का भी भरोसा हासिल है. इन्हीं खूबियों के चलते वे ज्यादा दिनों तक साइडलाइन न रह सके. राज्यसभा उपचुनाव में उम्मीवार बनाने के बाद से शर्मा को आने वाले दिनों में पार्टी संगठन या सरकार में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने की अटकलें भी लगनी शुरू हो गई हैं.

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