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मैनपुरी लोकसभा सीट पर डिंपल के सामने मुलायम की विरासत बचाए रखने की चुनौती

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पहली बार हो रहे चुनाव में सपा उम्मीदवार डिंपल यादव को भाजपा उम्मीदवार जयवीर सिंह से मिल रही दोतरफा चुनौती

मैनपुरी में सपा कार्यकर्ताओं से भेंट स्वीकर करतीं डिंपल यादव
मैनपुरी में सपा कार्यकर्ताओं से भेंट स्वीकर करतीं डिंपल यादव
अपडेटेड 2 मई , 2024

इटावा जिले से मैनपुरी को जाने वाले हाइवे पर 23 किलोमीटर चलने के बाद दाहिनी ओर एक चौड़ी सड़क सैफई गांव की ओर जाती है. यह समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का पैतृक गांव है.

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हो रहे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान सैफई गांव में मायूसी छाई है. हालांकि गांव के पूर्वी छोर पर मौजूद मुलायम सिंह यादव की कोठी की तरफ बढ़ते ही उदासी भरे माहौल में हलचल दिखाई देती है. 

यह कोठी एक बार फिर मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनी है. मुलायम परिवार की बड़ी बहू और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी लोकसभा सीट से सपा प्रत्याशी हैं. रोज सुबह सात बजे से सैफई की कोठी में सपा कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लग जाता है. 

डिंपल एक-एक करके सभी कार्यकर्ताओं से मिलती हैं. चुनावी तैयारियों का फीडबैक लेती हैं. सुबह ठीक 10 बजे उनका काफिला चुनाव प्रचार के लिए कोठी से निकल पड़ता है. रास्ते में किसी ने भी हाथ दिया तो डिंपल सुरक्षा की परवाह किए उनके बीच पहुंच जाती हैं. मुलायम परिवार की बहुरानी के साथ सेल्फी लेने का क्रेज युवाओं में हैं और डिंपल किसी को निराश नहीं करतीं.

मैनपुरी लोकसभा सीट को सपा का गढ़ माना जाता है. वर्ष 1996 में मुलायम सिंह यादव यहां से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े थे. उसके बाद लगातार सपा के प्रत्याशी यहां से अजेय रहे हैं. मुलायम सिंह यादव की 10 अक्टूबर 2022 को मृत्यु के बाद हुए लोकसभा उपचुनाव में डिंपल ने पौने तीन लाख वोटों से जीत हासिल कर अपने ससुर की विरासत संभाली. 

इस तरह वह मैनपुरी लोकसभा सीट की पहली महिला सांसद भी बनीं. हालांकि उपचुनाव में डिंपल को 'नेताजी' की मृत्यु से उपजी सहानुभूति लहर का भी फायदा मिला था. डेढ़ साल बाद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में हालात थोड़े बदले हैं. इस बार सहानुभूति की स्थ‍िति भले न दिख रही हो लेकिन डिंपल यादव चुनावी प्रचार में मुलायम सिंह यादव से अपने भावनात्मक रिश्ते को भी बड़ी सादगी से जाहिर करती हैं. 

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ चाचा शिवपाल यादव, रामगोपाल समेत पूरे सैफई परिवार की मौजूदगी में डिंपल यादव ने नामांकन के लिए जाने से पहले सैफई मेला ग्राउंड के बगल में मौजूद मुलायम सिंह यादव की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की. 30 जनवरी को सपा उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में नाम आने के अगले ही दिन से डिंपल यादव ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था. 

डिंपल अपनी हर सभाओं में मंच पर मौजूद मुलायम सिंह यादव के करीबी बुजुर्ग नेताओं के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के बाद ही चुनाव प्रचार को आगे बढ़ाती हैं. डिंपल 'नेताजी' के सपनों को पूरा करने की बात कहकर वोट मांगती हैं.

मैनपुरी के गोट नगर में एक चुनावी सभा में पहुंची डिंपल ने 80 वर्षीय बुर्जुग रामरतन यादव के पैर छुए तो उनके आंसू छलक आए. रामरतन स्थानीय बोली में कहते हैं, "औरन के प्रत्याशी तो डिंपल के सामने नाय ठहरिहैं, अबकी मुलायम कै बहुरिया जीत के सारै रिकार्ड तोड़िहैं."

जातीय समीकरणों की बात करें तो मैनपुरी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा चार लाख यादव मतदाता है. इनके बाद शाक्य मतदाताओं की संख्या ढाई लाख के लगभग है. क्षत्रिय मतदाता दो लाख के आसपास हैं, जबकि ब्राह्मण, पाल, बघेल, कश्यप और अनुसूचित जाति के मतदाता एक-एक लाख हैं. लोधी मतदाताओं की संख्या सवा लाख मानी जाती है, मुस्लिम मतदाता 70 हजार के करीब हैं. 

समाजवादी पार्टी यादव मतों को एकजुट रखने के साथ अन्य जातियों को जोड़ने में जुटी है. मैनपुरी और अन्य सीटों पर केवल मुलायम सिंह यादव परिवार के ही सदस्यों को टिकट देने के सपा के निर्णय ने इस बार एक आम आलोचना को भी जन्म दिया है. 

मैनपुरी शहर में स्टेशनरी का काम करने वाले राजू शाक्य बताते हैं, "भले ही जातिगत समीकरणों के हिसाब से सपा मैनपुरी में भाजपा पर थोड़ा भारी दिख रही है लेकिन अब इस बात पर भी चर्चा शुरू हो गई है कि पार्टी ने एक ही परिवार के पांच यादव उम्मीदवारों को ही टिकट क्यों दिया है."

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राजू तर्क देते हैं कि यह मुलायम सिंह यादव की रणनीति यह नहीं रही. मुलायम ने अपने परिवार के सदस्यों को संसद पहुंचाने के लिए उपचुनाव का सहारा लिया था. और बड़ी संख्या में दूसरे यादव उम्मीदवारों को भी आम चुनाव में टिकट देकर संसद पहुंचाया. 

राजू का मानना है कि सपा परिवार के अलावा किसी और यादव को टिकट ना देने से सपा ने बीजेपी को मौका दे दिया है. इसका फायदा बीजेपी सपा को घेरने में उठा सकती है. अगर वह इसमें सफल हुई तो सपा को मैनपुरी में दिक्कतें भी आ सकती हैं. 

हालांकि मैनपुरी में सपा की दावेदारी मजबूत करने के लिए अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह‍ यादव लगातार सभाएं करके सभी जातियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. मैनपुरी लोकसभा सीट भाजपा के लिए एक चुनौती है, भले ही वह उत्तर प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक शक्ति हो. मैनपुरी का किला भाजपा के लिए अब तक दुरुह ही बना हुआ है. 

पिछले दशक में इस सीट पर चार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें दो उपचुनाव भी शामिल हैं, लेकिन हर बार सपा ने 50% से अधिक वोट हासिल किए हैं, जबकि दो मौकों पर सपा ने कुल वोटों का 60% पार कर लिया. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए कुछ सकारात्मक संदेश भी आए. 

मैनपुरी लोकसभा सीट के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से, भाजपा ने दो मैनपुरी और भोंगांव सीटों को जीता और अन्य तीन में सपा ने जीत हासिल की. हालांकि भाजपा मैनपुरी लोकसभा सीट को जीतने के लिए पूरा जोर लगा रही है. यह उन हारी हुई सीटों की सूची में शामिल है जिन्हें जीतने के लिए बीजेपी खास रणनीति पर काम कर रही है. 

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और भाजपा के पूर्व प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल पिछले कई वर्षों से इस दिशा में मेहनत कर रहे हैं. भाजपा ने इस बार समाजवादी पार्टी का अभेद दुर्ग मैनपुरी लोकसभा सीट जीतने की जिम्मेदारी पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह को सौंपी है. ब्लॉक प्रमुख से विधायक बनने तक सिंह ने मैनपुरी में अपनी राजनीतिक पहचान बनाई है. 

जयवीर सिंह को विश्वास है कि मुलायम सिंह यादव की अनुपस्थ‍िति में हो रहे मैनपुरी लोकसभा सीट पर चुनाव को पहली बार जीतकर वे इतिहास रचेंगे.

सिंह कहते हैं, "यादव परिवार के विपरीत, जो केवल चुनावों के दौरान दिखाई देते हैं, मैं स्थानीय हूं और यहां के लोग मुझे जानते हैं. मेरे पास विकास कार्य और केंद्र की योजनाएं हैं, जो वोट में तब्दील होंगी. पहले अधिकांश ब्लॉक प्रमुख या विधायक एक ही यादव परिवार से होते थे लेकिन मैंने गढ़ को भेद दिया, ब्लॉक चुनाव जीता, विधायक का चुनाव जीता और अब लोकसभा चुनाव भी जीतूंगा."

यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियों को एकजुट कर सफलता का स्वाद चखने वाली भाजपा की रणनीति इस बार बदली हुई है. पार्टी यादव मतदाताओं के वोट में सेंधमारी की कोशिश भी कर रही है. पार्टी अब यादव मतदाताओं के बीच एक ही परिवार का कब्जा होने की बात प्रचारित कर अपना दांव खेल रही है.

मैनपुरी लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार जयबीर सिंह
मैनपुरी लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार जयवीर सिंह

इसी क्रम में जयवीर सिंह के नामांकन के दौरान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की मौजूदगी असल में यादव मतदाताओं के बीच एक पार्टी की सोच को बदल देने की रणनीति ही थी. भाजपा के लिए भले ही यादव मतदाताओं में पैठ बनाना आसान नहीं है लेकिन पार्टी किसी भी कीमत पर सपा को वॉकओवर देने के मूड में नहीं है.

मैनपुरी में भाजपा का सोशल मीडिया प्रबंधन संभाल रहे वीरेंद्र कुमार बताते हैं, "पूर्व के चुनावों में भाजपा जब-जब मैदान में उत्तरी उसका संगठन बहुत मजबूत नहीं था. करहल, किशनी और जसवंतनगर विधानसभाओं के तो सैकड़ों बूथ ऐसे रह जाते थे, जहां पार्टी के बस्ते तक नहीं लग पाते थे. वर्ष 2014 के बाद से अब तक संगठन का जबर्दस्त विस्तार हुआ है. लगभग हर बूथ पर भाजपा अपनी समितियां गठित कर चुकी है. इसी विस्तार के बूते भाजपा ने 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव के जीत को अंतर को 94 हजार मतों तक समेट दिया था."

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी सीट पर 44.01 प्रतिशत मत हासिल कर भाजपा ने इस सीट पर अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन वर्ष 2022 के उपचुनाव में यह बढ़त बरकरार न रही.

उपचुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत घटकर 34.39 प्रतिशत पर आ गया. जयवीर सिंह अब यादव जाति के स्थानीय क्षत्रपों को जोड़कर मैनपुरी में मुलायम परिवार के तिलिस्म को तोड़ना चाहते हैं. सिंह ने 14 अप्रैल को मुलायम सिंह‍ यादव के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले चौधरी नत्थू सिंह यादव के पौत्र धीरज यादव को भाजपा में शामिल कर सपा के कोर वोट बैंक को खींचने की कोशिश की.

उधर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर अपने पूर्व घोषित प्रत्याशी गुलशन देव शाक्य को बदलकर शिव प्रसाद यादव को उम्मीदवार बनाया है. शिव प्रसाद यादव बसपा से वर्ष 2007 में भरथना विधानसभा से विधायक रह चुके हैं. उसके बाद वे भाजपा में आ गए थे. वर्ष 2023 में उन्होंने अपनी खुद की 'सर्वजन सुखाय पार्टी' का गठन किया था. शिव प्रसाद यादव घोसी गोत्र के यादवों को कमरिया गोत्र के यादवों के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश में लंबे समय से लगे हुए हैं. 

 मैनपुरी लोक सभासीट पर बसपा उम्मीदवार शिव प्रसाद यादव
मैनपुरी लोक सभासीट पर बसपा उम्मीदवार शिव प्रसाद यादव

पिछले वर्ष शिव प्रसाद ने मैनपुरी के रामलीला मैदान में अपनी पार्टी के बैनर तले एक बड़ी रैली की, जिसमें घोसी यादव समाज को एकजुट करने का आह्वान किया था. वे कहते हैं, "सपा ने केवल कमरिया गोत्र के यादवों को ही आगे बढ़ाया है. इससे घोसी गोत्र के यादवों में असंतोष है जोकि इस बार लोकसभा चुनाव में स्पष्ट होगा."

मैनपुरी के सपा नेता बसपा उम्मीवार शिव प्रसाद यादव को अंदरखाने भाजपा से मिले होने का आरोप लगा रहे हैं. इन आरोपों पर उनका कहना है कि भाजपा के बड़े नेताओं के सामने सपा ने उनकी सुविधा का उम्मीदवार उतारा है और सपा के बड़े नेताओ या उनके पुत्रों के सामने भाजपा ने उनकी सुविधा का उम्मीदवार दिया है. इससे तो सपा और भाजपा की ही मिलीभगत दिख रही है. शिवप्रसाद कमरिया और घोसी गोत्र के यादव मतदाताओं के बीच एक लकीर खींचकर मैनपुरी लोकसभा सीट की जंग को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

सपा के लिए मैनपुरी लोकसभा सीट काफी अहम है क्योंकि पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपने जीते जी इसे विपक्षी दलों के लिए अजेय बनाए रखा. अब सपा के अपने मास्टर पहलवान के बगैर उसकी विरासत को संभाले रखने की कठिन चुनौती भी है. 

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