
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने अपने एक आदेश में राजधानी के महिला आयोग (DCW) में काम कर रहे 223 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. 2 मई को सक्सेना ने इन कर्मचारियों की नियुक्ति को "अनियमित" और "अवैध" मानते हुए इन्हें तत्काल प्रभाव से नौकरी से हटाने की मंजूरी दी है. कर्मचारियों की बर्खास्तगी की ये कार्रवाई 2017 में उस समय के उपराज्यपाल (LG) को सौंपी गई जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है.
उस जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि आम आदमी पार्टी (आप) की मौजूदा राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल जब DCW की अध्यक्ष थीं तब उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर इन कर्मचारियों की नियुक्ति की. कथित तौर पर इसके लिए उन्होंने किसी से अनुमति भी नहीं ली. ऐसे में पूरा मामला क्या है? आइए समझते हैं.
दरअसल, LG ऑफिस से कर्मचारियों को हटाने के लिए जो आदेश जारी हुआ, उसमें कहा गया है कि DCW एक्ट के तहत सिर्फ 40 कर्मचारी ही पैनल में काम करने के लिए स्वीकृत हैं. लेकिन आयोग ने मालीवाल के अध्यक्ष रहते 223 और नए पद सृजित किए. और इसके लिए न वित्त विभाग से मंजूरी ली गई और न ही उपराज्यपाल से. आदेश में यह भी कहा गया है कि आयोग को संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) पर कर्मचारी रखने का हक नहीं है, फिर भी उसने इस आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति की.

महिला एवं बाल विकास विभाग के अतिरिक्त निदेशक द्वारा जारी आदेश में यह भी कहा गया है कि भर्तियों से पहले जरूरी पदों की सटीक संख्या जानने के लिए कोई आकलन नहीं किया गया था. आयोग को बार-बार यह सूचित किया गया था कि वह वित्त विभाग की मंजूरी के बिना कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगा, "जिसमें सरकार को अलग से वित्तीय भार वहन करना पड़े." जांच में यह पाया गया कि ये नियुक्तियां तय प्रक्रियाओं के हिसाब नहीं की गईं. इसके अलावा कर्मचारियों के मेहनताने और भत्ते में बढ़ोत्तरी बिना पर्याप्त कारणों और नियमों के खिलाफ की गई.
मालीवाल ने LG के इस कदम को तुगलकी फरमान करार देते हुए कहा कि बिना इन कर्मचारियों के आयोग को चलाना मुमकिन नहीं है. उन्होंने सोशल साइट एक्स पर लिखा, "LG साहब ने DCW के सारे कॉन्ट्रैक्ट स्टाफ को हटाने का एक तुगलकी फरमान जारी किया है. आज महिला आयोग में कुल 90 स्टाफ हैं, जिनमें सिर्फ 8 लोग सरकार द्वारा दिए गए हैं, बाकी सब 3-3 महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर हैं. अगर सब कॉन्ट्रैक्ट स्टाफ हटा दिया जाएगा, तो महिला आयोग पे ताला लग जाएगा."
LG साहब ने DCW के सारे कॉंट्रैक्ट स्टाफ को हटाने का एक तुग़लकी फ़रमान जारी किया है। आज महिला आयोग में कुल 90 स्टाफ है जिसमें सिर्फ़ 8 लोग सरकार द्वारा दिये गये हैं, बाक़ी सब 3 - 3 महीने के कॉंट्रैक्ट पे हैं। अगर सब कॉंट्रैक्ट स्टाफ हटा दिया जाएगा, तो महिला आयोग पे ताला लग जाएगा।…
— Swati Maliwal (@SwatiJaiHind) May 2, 2024
उन्होंने आगे लिखा, "ऐसा क्यों कर रहे हैं ये लोग? खून पसीने से बनी है ये संस्था. उसको स्टाफ और संरक्षण देने की जगह आप जड़ से खत्म कर रहे हो? मेरे जीते जी मैं महिला आयोग बंद नहीं होने दूंगी. मुझे जेल में डाल दो, महिलाओं पर जुल्म मत करो!" उन्होंने कहा कि मैं समझ नहीं पा रही हूं कि कोई व्यक्ति इतनी छोटी, नकारात्मक और महिला विरोधी सोच कैसे रख सकता है? इसी साल जनवरी में आप से राज्यसभा सांसद बनने से पहले मालीवाल दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष थीं. 2015 में आयोग की अध्यक्ष बनने के बाद वे करीब 9 साल तक इस पद पर रहीं.
बहरहाल, कर्मचारियों की बर्खास्तगी का ये मामला राजधानी में प्रशासन को लेकर आप और उपराज्यपाल के बीच टकराव का एक नया कारण बनता दिख रहा है. पहले भी कई मुद्दों पर इन दोनों के बीच टकराहट सामने आती रही है. लेकिन असल मुद्दा यही रहता है कि केंद्रशासित प्रदेश, जिसकी अपनी विधानसभा भी है, इस पर वास्तविक अधिकार किसका है? ऐसे में आइए जानते हैं कि पिछले कुछ समय में सक्सेना और आप का नाता कैसा रहा है?
LG और आप सरकार के बीच सबसे महत्वपूर्ण टकरावों में से एक तो चर्चित दिल्ली शराब नीति को लागू करना ही रहा है. आप ने LG पर सरकार के हर मामले में टांग अड़ाने का आरोप लगाया था और कहा कि उन्होंने ही सरकार को नजरअंदाज कर हर मुद्दे पर मुख्य सचिव को आदेश जारी करने की अनुमति दी. वहीं, LG ने केंद्रीय जांच ब्यूरो से कथित तौर पर शराब नीति को लागू करने में हुई गड़बड़ियों को जांच करने की सिफारिश की. नतीजा यह हुआ कि मनीष सिसोदिया गिरफ्तार हुए और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी अभी जेल में हैं.
आप भी लगातार उपराज्यपाल पर 'रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ' सहित कई योजनाओं को लागू करने में देरी करने का आरोप लगाती रही है. 2022 में LG ऑफिस ने दिल्ली सरकार के थिंक टैंक के पूर्व अध्यक्ष जैस्मीन शाह को काम करने से रोक दिया था. शाह पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए LG ऑफिस का दुरुपयोग करने का आरोप था. इसी साल फरवरी में ही सक्सेना और केजरीवाल के बीच पत्रों के माध्यम से तल्खी सामने आई थी. यह मामला बकाए पानी बिलों के वन टाइम सेटलमेंट मामले से संबंधित था. आप ने सक्सेना पर इसे रोकने का आरोप लगाया था. जबकि उपराज्यपाल ने इसका खंडन करते हुए कहा था कि जल, वित्त और शहरी विकास विभागों के तहत योजनाओं की मंजूरी में उनकी कोई भूमिका नहीं है-क्योंकि ये सीधे दिल्ली सरकार के अंतर्गत आते हैं.