
भाजपा 1998 से लगातार दिल्ली प्रदेश की सत्ता से बाहर है. इसके बाद दिल्ली में 2003, 2015 और 2020 में तीन विधानसभा चुनाव ऐसे हुए हैं, जब केंद्र में बीजेपी की सरकार रही.
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं ने सभी सात सीटें भाजपा को दीं. लेकिन दोनों बार तकरीबन सात महीने के अंतराल पर हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुत बुरी हार का सामना करना पड़ा.
यह तब हुआ जब नरेंद्र मोदी के तौर पर भाजपा के पास एक ऐसा चेहरा है, जिसके नेतृत्व में भाजपा कई राज्यों में पहली बार सरकार बनाने में कामयाब हुई और दो बार केंद्र में पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल हुई. ऐसे में मोदी और अमित शाह की जोड़ी के लिए दिल्ली के विधानसभा चुनाव अब तक एक जटिल पहेली ही साबित हुई हैं.
इस अनसुलझी पहेली की गुत्थियों को सुलझाते हुए दिल्ली की सत्ता से तकरीबन 27 वर्षों का वनवास दूर करने के लिए इस बार भाजपा ने कई स्तर पर रणनीतियां बनाई हैं. प्रदेश भाजपा के नेताओं समेत दिल्ली के चुनाव प्रबंधन में लगे भाजपा के केंद्रीय नेताओं से बातचीत से यह पता चलता है कि पार्टी बहुत व्यापक स्तर पर योजना बनाकर काम कर रही है. चुनाव के माइक्रो मैनेजमेंट पर काम कर रहे पार्टी के नेता इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि इस बार जीत भाजपा की ही होगी.
1990 के दशक में सोशल इंजीनियरिंग का जो फॉर्मूला पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय संगठन महासचिव केएन गोविंदाचार्य लेकर आए थे, उसे भाजपा ने पिछले कई लोकसभा चुनावों और कई विधानसभा चुनावों में सफलतापूर्वक लागू किया है.
इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए प्रदेश के मतदाताओं के विभिन्न वर्गों को साधने की कोशिश कर रही है. प्रदेश भाजपा के एक नेता की मानें तो इसके लिए पार्टी ने 2023 के दिसंबर से ही काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन इसे गति दी गई 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद.
इस बारे प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''हमने दो स्तर पर तैयारी शुरू की. मैक्रो तौर पर नैरेटिव गढ़ने का काम किया गया. इसमें अरविंद केजरीवाल और आप के ईमानदारी के दावे को ध्वस्त करने के लिए कैंपेन डिजाइन किया गया. इसके तहत शीशमहल से लेकर आप सरकार के विभिन्न घोटालों को पार्टी प्रमुखता से उठा रही है. हमारी इन कोशिशों की वजह से केजरीवाल की ईमानदार नेता वाली छवि अब नहीं रही. वहीं दूसरी तरफ पार्टी ने अलग-अलग सामाजिक वर्गों को लेकर माइक्रो स्तर पर रणनीति तैयार की. इसमें जाति, वर्ग और क्षेत्र के आधार पर योजना बनाई गई है.''
दरअसल, भाजपा ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग के तहत अलग-अलग जातियों को ध्यान में रखकर जो रणनीति बनाई, उसके तहत हर जाति के प्रमुख चेहरों को चुनाव में भी उतारा गया. उदाहरण के तौर पर गुर्जर समाज से आने वाले रमेश बिधूड़ी और जाट समाज से आने वाले प्रवेश वर्मा का टिकट भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में काट दिया था. दोनों दो बार के सांसद हैं. लेकिन इन दोनों को भाजपा ने विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया. रमेश बिधूड़ी को कालकाजी से मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ तो प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली से आप के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने उम्मीदवार बनाया गया.
अपने विवादास्पद बयानों से भाजपा की किरकिरी कराने वाले बिधूड़ी की उम्मीदवारी के मुख्यधारा में वापसी की पृष्ठभूमि के बारे में प्रदेश भाजपा के एक नेता बताते हैं, ''2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर जब पार्टी में कुछ महीने पहले मंथन शुरू हुआ तो यह बात समझ में आई कि भाजपा और आप के वोट प्रतिशत में जो तकरीबन 16 प्रतिशत का अंतर है, उसे कम करके अगर भाजपा को जीतना है तो सोशल इंजीनियरिंग के रास्ते पर आगे बढ़ना होगा. पार्टी का अनुमान है कि दिल्ली में तकरीबन पांच प्रतिशत गुर्जर आबादी है. ऐसे में इस बात पर सहमति बनी कि अगर बिधूड़ी को उम्मीदवार बनाया जाता है तो यह आबादी पार्टी के साथ जुड़ सकती है.''
यही बीजेपी नेता आगे दलील देकर बताते हैं, ''ग्रामीण दिल्ली में तकरीबन 70 गांव ऐसे हैं, जहां गुर्जर समाज के लोगों का प्रभुत्व है. बदरपुर, तुगलकाबाद, संगम विहार, घोंडा, गोकलपुर, ओखला और करावल नगर जैसे विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां गुर्जर वोट निर्णायक साबित होता है.'' भाजपा यह उम्मीद लगाए बैठी है कि आप के साथ कड़े मुकाबले वाले विधानसभा चुनाव में रमेश बिधूड़ी गुर्जर वोटों को पार्टी के पाले में लाकर इन विधानसभा क्षेत्रों में कमल खिलाने में मददगार साबित हो सकते हैं.
दिल्ली में जाट मतदाताओं की संख्या तकरीबन आठ प्रतिशत है. इन वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा ने अलग से योजना बनाई. इस बारे में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा को लेकर न सिर्फ जाट समाज में बल्कि बाहरी दिल्ली के दूसरे वर्गों में भी एक सकारात्मक भाव रहा है. इसलिए उनके बेटे और दो बार के लोकसभा सांसद प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली से केजरीवाल के खिलाफ उम्मीदवार बनाया गया. हमें उम्मीद है कि जाटों के एक बड़े वर्ग को भाजपा के पाले में लाने में प्रवेश वर्मा की उम्मीदवारी मददगार साबित होगी. आप के बड़े नेता कैलाश गहलोत के भाजपा में आने से भी हमें मदद मिलेगी.''
जाट समाज में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए भाजपा सिर्फ प्रवेश वर्मा और गहलोत का ही इस्तेमाल नहीं कर रही बल्कि दूसरे राज्यों के प्रमुख जाट नेताओं को भी दिल्ली में लगााया है. उदाहरण के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को दिल्ली के उन क्षेत्रों में लगाया गया है, जहां मूल तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले जाट मतदाता प्रभावी स्थिति में हैं. नांगलोई, बादली, नरेला और मुंडका जैसे विधानसभा क्षेत्र में बालियान पिछले कई दिनों से सक्रिय हैं.
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और हरियाणा से राज्यसभा सांसद चुने गए दुष्यंत कुमार गौतम को करोल बाग विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट से गौतम को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने पूरे दिल्ली में आप के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है.
दिल्ली में दलित मतदाताओं की संख्या तकरीबन 16 फीसदी है. दलितों के बीच भाजपा की रणनीति के बारे में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''दलित मतदाता हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है. क्योंकि आप की योजनाओं का सीधा लाभ इस वर्ग तक पहुंचा है. हमें अपने कार्यकर्ताओं और सर्वे एजेंसियों से जो इनपुट मिला, उसके आधार पर हमें यह दिखा कि बस्तियों में रहने वाले दलितों और झुग्गियों में रहने वाले दलितों के मुद्दे अलग-अलग हैं. झुग्गियों में रहने वाले दलितों को मुफ्त बिजली-पानी आदि का लाभ सीधे तौर पर महसूस हो रहा है. वहीं बस्तियों में रहने वाले लोगों पर इसका उतना प्रभाव नहीं है. ऐसे में हमने बस्तियों में रहने वाले दलितों पर अधिक फोकस किया है और हमें उम्मीद है दलित बस्तियों में हमें अच्छे वोट मिलेंगे.''
पार्टी नेताओं से बातचीत करने पर यह भी पता चलता है कि दिल्ली प्रदेश में जो तकरीबन 30 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी मतदाता हैं, उनके अलग-अलग वर्गों के लिए भी पार्टी ने अलग-अलग रणनीति बनाई है. पार्टी का ओबीसी मोर्चा पिछले कई दिनों से हर दिन कम से कम तीन अलग-अलग जाति आधारित छोटी-बड़ी सभाएं कर रही है.
तकरीबन चार प्रतिशत यादव मतदाताओं के लिए दूसरे प्रदेशों के यादव नेताओं को जनसंपर्क अभियान में लगाया गया है. इसी तरह से अन्य ओबीसी जातियों के लिए, भले ही उनका मत प्रतिशत कम हो, उनके समाज के नेताओं को दूसरे प्रदेशों से बुलाकर दिल्ली में काम कराया जा रहा है. बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को भी इसी रणनीति के तहत दिल्ली में सक्रिय किया गया है.
जाति के अलावा क्षेत्र के आधार पर सोशल इंजीनियरिंग करने की रणनीति को भी भाजपा ने अंजाम दिया है. दिल्ली में पूर्वांचली मतदाताओं की संख्या तकरीबन 32 से 35 प्रतिशत है. पिछले तीन विधानसभा चुनावों से इस वोट बैंक का एक बहुत बड़ा हिस्सा आप के पाले में है.
इसमें सेंध लगाने के लिए दिल्ली प्रदेश भाजपा ने अपने पूर्वांचल मोर्चा के माध्यम से लगातार गतिविधियां चलाई हैं. केजरीवाल के एक बयान के बाद पार्टी ने पूर्वांचल के लोगों के सम्मान का मुद्दा बेहद आक्रामक ढंग से उठाया. इस वोट बैंक के बीच कैसे काम करना है, इसे लेकर दिसंबर, 2024 के अंत में भाजपा मुख्यालय में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी.
इसमें बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रमुख भाजपा नेताओं ने भी हिस्सा लिया था. भाजपा इन दोनों राज्यों के प्रमुख नेताओं से दिल्ली में प्रचार कराया है. वहीं इन दोनों राज्यों के सांसद और सांगठनिक नेता भी जनसंपर्क अभियान में लगे हुए हैं. इसी तरह से भाजपा अपने पुजारी प्रकोष्ठ के माध्यम से मंदिरों को भी अपनी बातों के प्रचार के केंद्र के तौर पर इस्तेमाल करने की रणनीति पर काम किया है. पार्टी का अनुमान है कि 20,000 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर दिल्ली में हैं और इन सभी मंदिरों पर साप्ताहिक हनुमान चालीसा पाठ के माध्यम से लोगों को जोड़ने की कोशिश की गई है.
पार्टी नेताओं का कहना है कि पुजारी प्रकोष्ठ के कार्यों के दबाव की वजह से ही केजरीवाल ने मंदिरों के लिए आर्थिक सहयोग का वादा किया.
भाजपा ने मुख्यमंत्री पद का कोई उम्मीदवार नहीं घोषित किया है. पार्टी ने इसे एक रणनीति के तौर पर हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में आजमाया. जिस तरह से हरियाणा में अलग-अलग सामाजिक वर्ग के नेताओं की तरफ से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की जा रही थी, उसी तरह की स्थिति पार्टी ने दिल्ली में भी योजना के तहत बनाई है. दिल्ली की मुख्यमंत्री यह कह रही हैं कि अगर भाजपा जीत गई तो रमेश बिधूड़ी मुख्यमंत्री बन जाएंगे.
ऐसा करके वे भले ही अपने समर्थकों को एकजुट करने की कोशिश रही हों लेकिन इससे दूसरी तरफ बिधूड़ी के समर्थक और खास तौर पर गुर्जर समाज के लोगों में यह संदेश जा रहा है कि उनका नेता मुख्यमंत्री बन सकता है. इसी तरह की बात प्रवेश वर्मा और दुष्यंत गौतम को लेकर भी उनके समर्थक सार्वजनिक तौर पर यही कह रहे हैं.
पार्टी को लगता है कि इससे हर नेता के समर्थकों में उम्मीद जाग रही है और इसका फायदा पार्टी को चुनाव में होगा. भाजपा नेताओं को यह भी उम्मीद है कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत पिछली बार के तकरीबन 4 प्रतिशत के मुकाबले बढ़ेगा और इसका फायदा उसे मिलेगा.
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