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दिल्ली : आवारा कुत्तों के लिए कैसे हुआ अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन; सुप्रीम कोर्ट ने अब क्या कहा?

दिल्ली वाले सड़क पर विरोध प्रदर्शन के लिए जल्दी नहीं उतरते. उन्होंने सिर्फ कुछ अहम मौकों पर ही सड़क पर उतरकर आवाज उठाई है. आवारा कुत्तों से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 11 अगस्त को ऐसा ही एक विरोध प्रदर्शन देखने को मिला

Stray dogs issue raised in Supreme Court
आवारा कुत्तों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया (Photo: AFP)

भारत के चीफ जस्टिस (CJI) ने 13 अगस्त को आवारा कुत्तों की नियमित नसबंदी और टीकाकरण की मांग वाली एक याचिका का जिक्र करते हुए कहा है कि वे इस मुद्दे पर विचार करेंगे.

हालांकि, यह तुरंत साफ नहीं हो पाया कि CJI 2024 की याचिका का उल्लेख कर रहे थे या हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का, जिस पर पशु कल्याण कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

13 अगस्त को CJI की अदालत में 2024 की एक याचिका का जिक्र किया गया, जिसमें दावा किया गया था कि दिल्ली में नगर निगम अधिकारी नियमित रूप से नसबंदी नहीं कर रहे हैं, जिसके कारण कुत्तों के काटने के मामले बढ़ रहे हैं. इस मामले में जुलाई 2024 में नोटिस जारी किया गया था.

इस दौरान CJI बीआर गवई ने कहा कि इस मुद्दे पर पहले ही आदेश पारित किया जा चुका है. उन्होंने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नगर निकायों को आठ सप्ताह के भीतर दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर आश्रय गृहों में भेजने का निर्देश देने वाले फैसले का हवाला दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया है.

CJI जिस हालिया फैसले का जिक्र कर रहे थे वह 11 अगस्त को आया था और इसके बाद दिल्ली के कुत्ता प्रेमियों के बीच अचानक हलचल मच गई.

अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन

नई दिल्ली में 11 अगस्त की शाम को इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन के बीच फैले कर्तव्य पथ पर सैकड़ों दिल्लीवासी इकट्ठा हुए. ये लोग सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ एकजुटता दिखा रहे थे जिसमें राजधानी की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को शहर की सीमा के बाहर बने ‘पाउंड्स’ में भेजने का निर्देश दिया गया था.

दिल्ली वाले सड़क पर विरोध प्रदर्शन के लिए जल्दी नहीं उतरते. उन्होंने सिर्फ कुछ अहम मौकों पर ही सड़क पर उतरकर आवाज उठाई है, जैसे 1999 में जेसिका लाल हत्याकांड में अदालत ने आरोपियों को बरी किया, 2011 में अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल की मांग के लिए अनशन किया, या दिसंबर 2012 में निर्भया गैंगरेप मामले में. कभी-कभी जश्न के मौके पर भी, जैसे भारत के क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने पर.

11 अगस्त का प्रदर्शन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कुछ घंटों बाद ही हुआ. सोशल मीडिया पर सिर्फ एक घंटे की अपील में, अपने मोहल्ले के कुत्तों से प्यार करने और उनकी देखभाल करने वाले दिल्लीवासी कर्तव्य पथ के लॉन पर जुट गए. इनमें छात्र, वकील, गृहिणियां, रिटायर्ड सरकारी अफसर और कई दूसरे लोग शामिल थे.

प्रदर्शनकारियों के पास न तो कोई तख्ती थी और न ही बैनर. सबसे बड़ी बात, उन्हें दिशा दिखाने वाला कोई ‘लीडर’ भी नहीं था. फिर भी वे लगभग चुपचाप मार्च कर रहे थे. छोटे स्तर के सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर लाइव स्ट्रीमिंग कर रहे थे. कुछ लोग ‘वी शैल ओवरकम’ गा रहे थे, मोमबत्तियां जलाई गईं और मोबाइल फोन की टॉर्चें जल उठीं.

साकेत की 46 साल की गृहिणी अरुणा जॉर्ज ने कहा, “हम चुपचाप यह फैसला नहीं मानेंगे. हमारे कुत्तों का क्या होगा? यह तो मौत का फरमान है और पूरी तरह असंवैधानिक है.” वे अपने पड़ोसियों के साथ वहां पहुंची थीं.

भीड़ में बाकी लोग भी गुस्से से भरे थे. पीतमपुरा के रहने वाले और लॉ इंटर्न विशाल सोनी ने कहा, “मैं ऑफिस से सीधे यहां आया हूं ताकि यह न लगे कि इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई नहीं है.”

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त के फैसले में क्या कहा था

14-सूत्रीय ऐक्शन प्लान में आवारा कुत्तों की सख्त निगरानी से लेकर उन्हें मैनेज करने के लिए बेहतर ढांचा तैयार करने तक के कदम शामिल हैं. लोकल स्तर पर एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) कमेटियां हर महीने समीक्षा बैठक करेंगी. सभी 20 एबीसी सेंटर का गैप एनालिसिस 60 दिन में पूरा होगा और इसके बाद हर तीन महीने में थर्ड-पार्टी से परफॉर्मेंस की समीक्षा होगी. जोन-वाइज नसबंदी रणनीति में 70 फीसद मादा कुत्तों को प्राथमिकता दी जाएगी, मौत की दर 1 फीसदी से कम रखने का लक्ष्य होगा और 80 फीसदी नसबंदी कवरेज पूरा करने के बाद ही नए क्षेत्रों में काम शुरू होगा.

केवल एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त और वैध प्रोजेक्ट सर्टिफिकेट रखने वाली एजेंसियों को ही काम मिलेगा. सभी बिना रजिस्टर्ड ब्रीडर्स और पालतू जानवरों की दुकानों को बंद किया जाएगा. कुत्तों की गिनती के लिए टीमें बनाई जाएंगी, हर पंद्रह दिन में गिनती होगी और काटने या रेबीज की शिकायतों के लिए हेल्पलाइन शुरू की जाएगी. मीट की दुकानों और स्लॉटर हाउस से निकलने वाले कचरे पर सख्त नियंत्रण होगा, गैर-कानूनी यूनिट्स को बंद किया जाएगा. रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस (आरडब्ल्यूए) को गली के कुत्तों के लिए खाने की जगह तय करनी होगी और विवाद सुलझाने के लिए कमेटियां बनानी होंगी.

एबीसी सेंटर्स को अपग्रेड किया जाएगा, जिसमें केनल्स, सर्जिकल यूनिट्स, सीसीटीवी कवरेज, मोबाइल ऑपरेशन थिएटर्स और सफाई की सुविधाएं शामिल होंगी. स्टाफ को स्पेशल ट्रेनिंग के लिए लखनऊ भेजा जाएगा. नसबंदी के बाद कुत्तों को ऐंटी-रेबीज टीके के साथ कैनाइन डिस्टेंपर वायरस और कैनाइन पार्वोवायरस के टीके भी लगाए जाएंगे.

अधिकृत फीडर्स को पहचान पत्र दिए जाएंगे ताकि वे कुत्तों को पकड़ने, टीकाकरण कराने और छोड़ने में मदद कर सकें. बीमार, ठीक हो रहे या आक्रामक जानवरों के लिए आइसोलेशन या क्वारंटीन केनल बनाए जाएंगे. दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, “हम इस आदेश को संवेदनशीलता के साथ और दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य हितों को ध्यान में रखते हुए लागू करेंगे.”

गुप्ता के कैबिनेट सहयोगी कपिल मिश्रा ने और साफ शब्दों में कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने वह छोटी-सी अड़चन भी हटा दी जो इस मुद्दे को सुलझाने में हमारे सामने थी. ये समस्या इतनी बड़ी इसलिए बनी क्योंकि पिछली सरकारों ने कुछ नहीं किया.”

दिल्ली के साथ-साथ आदेश में एनसीआर (नेशनल कैपिटल रीजन) के शहर भी शामिल हैं, जैसे गुरुग्राम, फरीदाबाद और गाजियाबाद. एक्टिविस्ट्स का कहना है कि चूंकि ये आदेश देश की सर्वोच्च अदालत का है, इसलिए हो सकता है कि दूसरे राज्य और हाइकोर्ट भी अपने-अपने इलाकों में ऐसे ही नियम लागू कर दें. इससे आवारा कुत्तों की समस्या का कोई व्यवस्थित और वैज्ञानिक समाधान खत्म हो सकता है.

पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और भारत में एनिमल राइट्स की मुखर पैरोकार मेनका गांधी ने इंडिया टुडे से बातचीत में सवाल उठाया, “हाल ही में (मई 2024) सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच—जिसके मुखिया जस्टिस जे.के. महेश्वरी थे—ने एक फैसला दिया था. अब कैसे एक दूसरी दो जजों की बेंच (जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन) का स्वतः संज्ञान आदेश उसे ओवररूल कर सकता है?”

इस फैसले को “न लागू किया जा सकने वाला” और “अवैज्ञानिक” बताते हुए मेनका गांधी ने कहा कि यह तय कानूनों और दुनियाभर में मान्य वैज्ञानिक तरीकों के खिलाफ है, जिनका इस्तेमाल आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. उनके मुताबिक, अदालत की योजना लागू करने में अधिकारियों को करीब 10,000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा.

गांधी ने कहा, “यह एक ऐसा फैसला है जो सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्वतः संज्ञान लेकर दिया है, यानी इसमें कोई शिकायतकर्ता ही नहीं था. इससे एमसीडी, सरकार और एनिमल लवर्स द्वारा पिछले कई हफ्तों में तैयार किए गए 14 पॉइंट एक्शन प्लान पर किए गए मेहनत पर पानी फिर गया.”

सुप्रीम कोर्ट के इस स्वतः संज्ञान और फैसले की वजह बनी दिल्ली के पूठ कलां में छह साल की बच्ची छवि शर्मा की मौत. 30 जून को उसे एक आवारा कुत्ते ने काट लिया था. जुलाई के आखिर में उसमें रेबीज के लक्षण दिखे और उसकी मौत हो गई. परिवार ने आरोप लगाया कि हालत बिगड़ने पर इलाज में देरी और पर्याप्त देखभाल न मिलने की वजह से उसकी जान गई. वहीं, स्थानीय लोगों ने दावा किया कि उसी कुत्ते के काटने की पहले भी घटनाएं हुई थीं.

12 अगस्त को लोकसभा में विपक्ष के नेता और कुत्तों के प्रति अपने लगाव के लिए जाने जाने वाले राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे पर आवाज उठाई. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को “मानवीय और विज्ञान-आधारित नीति से एक कदम पीछे” बताया. सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने शेल्टर, नसबंदी और सामुदायिक देखभाल का समर्थन किया और कहा कि यह निर्देश इंसानों और कुत्तों के बीच टकराव के लिए दयालु और असरदार हल को भोथरा करता है.

दिल्ली में इस समय 20 एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर हैं. 2019 में दिल्ली विधानसभा की एक उप-समिति के अनुमान के मुताबिक, शहर में लगभग 8 लाख कुत्ते हैं. छवि शर्मा की मौत 2022 के बाद से राजधानी में संदिग्ध रेबीज का एकमात्र मामला मानी जा रही है. तब से पिछले साल तक शहर में कुत्ते के काटने के मामलों का आंकड़ा 25,212 तक पहुंच गया. इस साल जनवरी में ही 3,196 कुत्ता काटने के मामले दर्ज हुए.

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