
जोधपुर की पाक विस्थापित कॉलोनी में रहने वाली माया और उनका परिवार पहलगाम हमले के बाद से बहुत गमजदा है. 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा 26 नागरिकों की हत्या के बाद गृह मंत्रालय ने पाकिस्तान से धार्मिक और शॉर्ट टर्म वीजा पर भारत आए पाक नागरिकों को पहले 48 घंटे और उसके बाद 29 अप्रैल तक देश छोड़ने के आदेश दिए थे.
माया और उनके पति विष्णु को अब यह डर सता रहा है कि कहीं उन्हें फिर से उस 'नरक' में नहीं जाना पड़े. विष्णु कहते हैं, "पाकिस्तान में अत्याचार और धार्मिक उत्पीड़न से तंग आकर अपनी जिंदगी भर की कमाई और घर-खेत सब लुटाकर हम इस उम्मीद में भारत लौटे थे कि हमें अब अपने वतन की मिट्टी नसीब होगी. हमें मौत मंजूर है, मगर जीते-जी फिर से पाकिस्तान नहीं जाएंगे."
2020 में पाकिस्तान के रहीमयार खान से भारत लौटीं सुनारी और उनके पति दारम की भी पिछले एक सप्ताह से भूख-प्यास और नींद गायब है. जोधपुर में पत्थर की खानों में मेहनत-मजदूरी करने वाले दारम पिछले 7 दिन से काम पर नहीं गए हैं. दारम को डर है कि कहीं उनके काम पर चले जाने के बाद उनके परिवार को जबरन उठाकर पाकिस्तान न भेज दिया जाए.
बस्ती में किसी भी वाहन की आवाज सुनाई देती है तो दारम और सुनारी की धड़कनें बढ़ जाती हैं. धार्मिक वीजा पर भारत आए दारम ने खुद और परिवार की भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर रखा है, मगर अभी तक उनकी यह आस पूरी नहीं हुई है.
दारम के पाकिस्तान से लौटने की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं है. उन्हें अपने परिवार को भारत लाने के लिए पांच बार वीजा हासिल करना पड़ा जिस पर 7 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हो गए. दारम ने जब भी अपने परिवार के पांच सदस्यों के लिए वीजा चाहा, उन्हें कभी भी परिवार के सभी सदस्यों का वीजा एक साथ नहीं मिला. कभी पत्नी का वीजा जारी नहीं हुआ, तो कभी बच्चों का.

आखिर में जब सबका वीजा जारी हुआ तो पासपोर्ट ही एक्सपायर हो गया. इस तरह भारत आने के लिए दारम को छह-सात लाख रुपए खर्च करने पड़े जो उन्होंने जोधपुर और पाकिस्तान में रहने वाले अपने रिश्तेदारों से उधार लिए थे. अब जोधपुर की पत्थर खानों में मजदूरी करके वो उधार चुकाने की कोशिश कर रहे हैं. 2019 में भारत आने वाले दारम और उनके परिवार को अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिली है.
राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर सहित कई जिलों में विष्णु और दारम जैसे अनगिनत परिवार हैं जो इन दिनों गहरी चिंता और डर के साये में जी रहे हैं. इन हिंदू शरणार्थियों को डर है कि अगर वे फिर से पाकिस्तान लौटे, तो उन्हें फिर से धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा. यही वजह है कि इन लोगों ने पाकिस्तान में अपना सब कुछ बेचकर भारत में शरण ली.
धार्मिक और शॉर्ट टर्म वीजा पर भारत आने के बाद से ये परिवार फिर पाकिस्तान नहीं लौटे हैं. राजस्थान में इस तरह के करीब 30 हजार लोग हैं जिन्हें पाकिस्तान से आए हुए 10-20 साल हो चुके हैं, लेकिन नागरिकता नहीं मिल पाई है.
जैसलमेर की एक पाक विस्थापित बस्ती में रहने वाले खेतो राम पाकिस्तान के सिंध प्रांत से दो सप्ताह पहले ही भारत लौटे हैं. पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से तंग आकर जो कुछ भी उनके पास था उन्हें बेचकर अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ खेतो भारत चले आए थे. वे कहते हैं, "अब यहां मर जाएंगे लेकिन फिर से उस नरक में जाना मंजूर नहीं है. हम सरकार से अपील करते हैं कि हमारा पाकिस्तान में अब कुछ नहीं रहा है, इसलिए हमें यहां रहने की अनुमति दी जाए."
केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, खेतो राम को वापस पाकिस्तान जाना पड़ेगा. खेतो की यह आशंका गलत नहीं है क्योंकि पहलगाम हमले के बाद से राजस्थान में शॉर्ट टर्म वीजा पर रहने वाले 109 पाक विस्थापितों को वापस पाकिस्तान भेजा जा चुका है. केंद्र सरकार के आदेश के बाद इंटेलिजेंस विंग और राजस्थान पुलिस ऐसे पाक नागरिकों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की कवायद में जुटी हैं.
हालांकि, पिछले एक सप्ताह में केंद्र सरकार अपने आदेश में कई बार संशोधन कर चुकी है, फिर भी कई साल से राजस्थान में रहने वाले इन पाक विस्थापितों को वापस भेजे जाने का डर सता रहा है. पहलगाम हमले के बाद से केंद्र सरकार पाक विस्थापितों को लेकर चार बार अपना फैसला बदल चुकी है. 23 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) की बैठक में भारत में शॉर्ट टर्म वीजा पर रह रहे पाक विस्थापितों को 48 घंटे में देश छोड़ने का अल्टीमेटम दिया गया था.
केंद्र के इस फैसल की जद में राजस्थान में रह रहे 25 हजार पाक विस्थापित आ रहे थे. इसके बाद 24 अप्रैल को हुई विदेश मंत्रालय की बैठक में यह फैसला लिया गया कि जो लोग पाकिस्तान से धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर लॉन्ग टर्म वीजा पर भारत आए हैं उन्हें देश छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी. सिर्फ उन्हीं लोगों को यहां से जाना होगा जो शॉर्ट टर्म वीजा पर भारत आए हैं. सरकार के इस फैसले से भी राजस्थान में रह रहे करीब 10 हजार पाक विस्थापित प्रभावित हो रहे थे.

इसके बाद 25 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश के तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों और गृह विभाग और सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े अधिकारियों की बैठक ली. इसमें यह फैसला हुआ कि ऐसे विस्थापितों को भी देश छोड़ने की जरूरत नहीं है जिन्होंने विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी (एफआरआरओ) के माध्यम से नागरिकता के लिए आवेदन कर रखा हो. इस दायरे में भी धार्मिक वीजा पर भारत आने वाले करीब तीन हजार लोग आते हैं जिनके पासपोर्ट की अवधि खत्म हो चुकी हैं या फिर जिनके कागजात जयपुर में गृह विभाग के पास रखे हुए हैं.
पाकिस्तान से धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर भारत आने वाले विस्थापितों के अधिकारों और नागरिकता के लिए संघर्षरत सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा कहते हैं, "राजस्थान में इस तरह के हजारों पाक विस्थापित हैं जो गरीबी या अन्य समस्याओं के चलते एफआरआरओ के यहां आवेदन नहीं कर पाए थे. अब इतनी कम अवधि में इतने लोगों के आवेदन कैसे संभव हो पाएंगे. सरकार ने इन्हें 29 अप्रैल तक का अल्टीमेटम दिया है. ऐसे में अब इनके सामने यह संकट खड़ा हो गया है कि ये आवेदन करें या 29 अप्रैल तक बाघा बॉर्डर पर पहुंचे. हमने केंद्र और राज्य सरकार से यह मांग की है कि इन्हें आवेदन के लिए कुछ समय और दिया जाए और सभी एफआरआरओ को यह निर्देशित किया जाए कि वो इनके आवेदन तुरंत स्वीकार करें."
राजस्थान में पाक विस्थापित कॉलोनी में रहने वाले अमरा 15 साल पहले 11 सदस्यों के साथ भारत आए थे. वे बताते हैं, "11 लोगों के पासपोर्ट बनवाने और वीजा हासिल करने पर ढाई लाख रुपए खर्च हो गए. अब यहां आने के बाद भी मुसीबतें पीछा नहीं छोड़ रहीं. 15 साल से नागरिकता के लिए चक्कर काटने पड़ रहे हैं. अब पासपोर्ट रिन्यू के लिए दवाब डाला जा रहा है. अगर दिल्ली जाकर सारे पासपोर्ट रिन्यू करवाता हूं तो फिर से लाखों रुपए खर्च करने होंगे. बिना पासपोर्ट रिन्यू किए सरकार नागरिकता का आवेदन भी स्वीकार नहीं करती. समझ में नहीं आ रहा कि इतना पैसा मैं कहां से लाऊं?..."
इसी तरह, पाक विस्थापित जेठा राम सवाल करते हैं, "पाकिस्तान में जिंदगी भर मेहनत करके हमने जो कमाया था वह भारत आने के लिए खर्च कर दिया. भारत में आने के बाद पिछले छह-सात साल में मेहनत-मजदूरी करके जो हासिल किया है क्या वह भी कुछ दरिंदों की दरिंदगी की वजह से खत्म हो जाएगा."
नागरिकता में क्या अड़चन
भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 में वर्ष 2019 में हुए एक अहम संशोधन के तहत देश में पांच साल से रह रहे लोगों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है. लेकिन राजस्थान के विभिन्न जिलों में करीब 18-19 साल से रह रहे करीब 30 हजार पाक विस्थापितों को भारत की नागरिकता का इंतजार है. सीमांत लोक संगठन के प्रयासों से 2005 में आखिरी बार राजस्थान में रहने वाले 13 हजार पाक विस्थापितों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई थी. इसके बाद से इतनी बड़ी तादाद में नागरिकता कभी नहीं दी गई.
2004 से पहले नागरिकता प्रदान करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास था, उसके बाद यह अधिकार जिला कलेक्टर्स को मिला. केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार देशभर में 31 जिला कलेक्टर्स को नागरिकता प्रदान करने की शक्तियां दी गई हैं जिनमें राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, जालौर, बाड़मेर, पाली, सिरोही और जयपुर जिला कलेक्टर्स शामिल हैं.
काबिलेगौर है कि भारत आने वाले विस्थापितों को भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत नागरिकता प्रदान की जाती है. इस अधिनियम के तहत उसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता दी जा सकती है जिसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में हुआ हो या वो भारत का नागरिक हो. नागरिकता हासिल करने से पहले संबंधित व्यक्ति को उस देश की नागरिकता का त्याग करना होता है जहां से वह आया है.
इस अधिनियम के तहत 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुआ व्यक्ति नागरिकता का हकदार है चाहे उसके माता-पिता का जन्म किसी भी देश में हुआ हो. 1 जुलाई 1987 के बाद पैदा हुए व्यक्ति को तभी भारत की नागरिकता दी जा सकती है जब उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो. 3 दिसंबर 2004 या उसके बाद भारत में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भारत का नागरिक तभी माना जा सकता है जब उसके माता-पिता दोनों भारतीय हो.
वर्ष 2019 में इस अधिनियम में हुए संसोधन के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, बोध, पारसी और ईसाई 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आए हैं तो वे भारत में रह सकते हैं. इस संशोधन के जरिए ऐसे प्रवासियों की नागरिकता की अनिवार्य शर्त को 11 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया. इसके अलावा उन्हें पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी अधिनियम में भी छूट प्रदान की गई. नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) में भारत में सात साल से रह रहे प्रवासियों को नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है.
पाकिस्तान से भारत में आने वाले ज्यादातर विस्थापित तीर्थ यात्रा वीजा के जरिए यहां आए हैं. नागरिकता के लिए आवेदन करते समय पाकिस्तानी पासपोर्ट अवधि पार (एक्सपायर्ड डेट) नहीं होना चाहिए. 10-15 साल से यहां रह रहे ज्यादातर लोगों के पासपोर्ट एक्सपायर्ड हो गए हैं जिसके चलते उन्हें नागरिकता मिलने में परेशानी आती है.
ज्यादातर लोग पासपोर्ट का नवीनीकरण इसलिए नहीं करवाते क्योंकि इसके लिए उन्हें दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास जाकर आवेदन करना होता है. पासपोर्ट नवीनीकरण और दूतावास के चक्कर लगाने में काफी पैसा खर्च होता है.
भारत सरकार की ओर से पाकिस्तान के अल्पसंख्यक यानी हिंदू और सिख समुदाय के लोगों को भारत के तीर्थ स्थानों की यात्रा के लिए समूह तीर्थ यात्रा वीजा दिया जाता है. तीर्थ यात्रा वीजा के लिए प्रत्येक समूह में अधिकतम 50 लोग शामिल होने चाहिए. तीर्थयात्रियों के समूह के लिए एक मुखिया होना चाहिए. मुखिया समूह के सदस्यों के भारत में एक साथ प्रवेश और यात्रा पूरी होने पर एक साथ वापसी के लिए उत्तरदायी है.
मुखिया यात्रा के प्रत्येक स्थान पर संबंधित एफआरआरओ को सूचित करता है. धार्मिक वीजा पर भारत आने के बाद ये लोग पश्चिम राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर और सिरोही जिलों में अपने रिश्तेदारों के पास चले जाते हैं. इनमें ज्यादातर लोग वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी वापस नहीं लौटते.
हिंदू सिंह सोढ़ा का कहते हैं, "1965 से लेकर अब तक करीब एक लाख पाक विस्थापित राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर और सिरोही जिलों में आ चुके हैं. इनमें से 30-40 हजार पाक विस्थापित ऐसे हैं जिन्हें भारतीय नागरिकता का इंतजार हैं."