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कांग्रेस : 63 साल बाद पटना में CWC की बैठक जीत का टोटका है या लंबी लड़ाई की तैयारी?

पटना में 24 सितंबर को हुई विस्तारित कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक का असर चुनाव पर पड़े या न पड़े पार्टी ने इसके जरिए यह जरूर जताया कि वह विधानसभा चुनाव को लेकर काफी गंभीर है

पटना में विस्तारित कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक
अपडेटेड 25 सितंबर , 2025

“2023 में तेलंगाना के हैदराबाद में इसी तरह एक्सटेंडेड कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हुई थी और दो महीने बाद वहां हमारी सरकार बनी. इसी तरह पटना में अभी हमारी एक्सटेंडेड वर्किंग कमिटी की बैठक हुई है और काउंटडाउन शुरू हो गया है. दो महीने में यहां भी महागठबंधन की सरकार बनेगी.” पटना में 24 सितंबर को सदाकत आश्रम में आयोजित कांग्रेस वर्किंग कमिटी या CWC की विस्तारित बैठक के बाद प्रेस ब्रीफिंग में जयराम रमेश ने यह कहते हुए अपनी बात खत्म की. 

उनकी इस टिप्पणी से इस कयासबाजी को बल मिला कि बिहार की राजधानी पटना में 63 वर्षों बाद बुलाई गई कांग्रेस वर्किंग कमिटी की इस बैठक का सबसे बड़ा मकसद बिहार चुनाव में पार्टी की दावेदारी को मजबूत करना था और कुछ-कुछ टोटकेबाजी भी! इन सबसे इतर, कांग्रेस ने इस मौके पर कुछ अहम चुनावी मुद्दों को भी धार दी.

कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अपने राजनीतिक प्रस्तावों के अंतर्गत वोट चोरी, विदेश नीति की विफलता, जीएसटी की वजह से आम लोगों को आठ सालों तक हुए नुकसान के मुद्दों पर बात की. मोदी सरकार ने कथिततौर पर राहुल गांधी के दबाव में जाति जनगणना का फैसला लिया है, इस पर बैठक में बात हुई. पार्टी ने फैसला किया है कि 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच वोट चोरी के मसले पर पांच करोड़ पत्र चुनाव आयोग को भेजे जाएंगे. साथ ही कांग्रेस ने पार्टी और संगठन को मजबूत करने के लिए DCC (जिला कांग्रेस समिति) के अध्यक्ष जैसे पद के सृजन की बात की. 

इसके साथ ही वर्किंग कमिटी ने बिहार के मतदाताओं के नाम से एक अपील भी जारी की. इसमें उनसे खासतौर पर कहा गया कि आजादी के बाद बनी कांग्रेस की सरकारों ने बिहार में जिस स्तर का औद्योगीकरण किया था, वह अबकी सरकार नहीं कर पा रही है. पार्टी ने इस दौरान वोट चोरी के खिलाफ देशव्यापी मुहिम में बिहार के लोगों से मिले समर्थन की सराहना की और राज्य में बेरोजगारी, पलायन, पेपर लीक,  अदाणी की कंपनी को एक रुपये में जमीन देने और शराब माफिया के बेलगाम होने जैसे मसले उठाए और इनके हवाले से मौजूदा ‘डबल इंजन' सरकार की आलोचना भी की.

वैसे, कांग्रेस वर्किंग कमिटी के फैसलों से इतर सबसे बड़ी घोषणा राहुल गांधी ने अति पिछड़ों के सम्मेलन में की. महागठबंधन के सभी दलों की मौजूदगी में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि अगर उनकी सरकार बनती है तो दलितों की तर्ज पर अति पिछड़ों के लिए भी अलग ‘अत्याचार निवारण कानून’ बनेगा. स्थानीय निकायों में उनके आरक्षण की सीमा 20 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दी जाएगी. इसके अलावा अति पिछड़ों के हित में आठ और प्रस्ताव पारित हुए.

अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र जारी करते राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और तेजस्वी यादव

साल 2025 बिहार में कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक अहम साल कहा जा सकता है. यही बात राहुल गांधी के लिए भी कही जा सकती है क्योंकि 24 सितंबर को वे इस साल सातवीं बार बिहार आए. फिर उनके साथ कांग्रेस वर्किंग कमिटी के 129 सदस्य और विस्तारित सदस्य भी आए. कुल मिलाकर पार्टी और संगठन के लिए यह बेहद खास मौका बन गया.

खास मौका होना भी चाहिए क्योंकि पिछले चार दशको में विधानसभा चुनावों पार्टी का प्रदर्शन लगातार नीचे गया है (देखें ग्राफ). यहां आखिरी बार कांग्रेस 1985 में अपने दम पर चुनाव जीती थी. उसके बाद अगर 2015 (27 सीटें) और 2020 (19 सीटें) छोड़ दें तो पार्टी की सीटें लगातार कम हुई हैं.  वहीं लोकसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन लगातार कमजोर रहा है. पिछले 35 सालों में 1998 में वह सबसे ज्यादा 5 सीटें जीतने में कामयाब हो पाई थी. तब झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था.

बिहार विधानसभा चुनावों में (झारखंड सहित) कांग्रेस का प्रदर्शन
बिहार विधानसभा चुनावों में (झारखंड सहित) कांग्रेस का प्रदर्शन
बिहार विधानसभा चुनावों (झारखंड अलग होने के बाद) कांग्रेस का प्रदर्शन
बिहार विधानसभा चुनावों में (झारखंड अलग होने के बाद) कांग्रेस का प्रदर्शन

इस अहम बैठक की बात करें तो यह इस लिहाज से भी बिहार कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण रही क्योंकि 1962 के बाद पहली बार कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक बिहार में हुई, 63 साल के इंतजार के बाद! 1962 में यह बैठक तब हुई थी जब पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थी और नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस के अध्यक्ष थे. तीसरे आम चुनावों से ठीक पहले हुई उस बैठक में ज्यादातर बातचीत चुनावी तैयारियों को लेकर हुई थी. यह अविभाजित बिहार में होने वाला कांग्रेस का चौथा महाधिवेशन था. पहला बाकीपुर (1912), दूसरा गया (1922) और तीसरा रामगढ़ (1940) में हुआ था.

इसके बाद बिहार में कभी कांग्रेस का न कोई महाधिवेशन हुआ,  न वर्किंग कमिटी की बैठक हुई. मगर इस साल जिस तरह कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत बिहार में झोंक रखी है, उस लिहाज से यह कहीं से अप्रत्याशित भी नहीं थी. पार्टी कार्यकर्ताओं के मुताबिक उन्हें जब बमुश्किल एक हफ्ता पहले यह कहा गया कि यहां CWC का आयोजन करना है, वह भी सदाकत आश्रम में तो उनके हाथ-पांव फूल गए. मगर आनन-फानन में पार्टी ने सारी तैयारियां कर लीं.

देश के इतिहास में सदाकत आश्रम की बहुत अहमियत है

पार्टी के सूत्र बताते हैं कि एक प्रस्ताव किसी होटल में बैठक करने का भी आया था मगर फैसला सदाकत आश्रम में इसलिए हुआ कि पार्टी बिहार और देश के लोगों को इस जगह का महत्व बताना चाहती थी. वह सदाकत आश्रम जो आजादी की लड़ाई से जुड़ा रहा है. हेरिटेड टाइम्स के संपादक मो. उमर अशरफ बताते हैं, “असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने जब स्वदेशी शिक्षण संस्थानों को खोले जाने की अपील की थी, तब बिहार में भी 1920 में बिहार विद्यापीठ खुला. इसी दौरान मौलाना मजहरूल हक ने दीघा में खैरू मियां के आम के बगीचे में सदाकत आश्रम की बुनियाद रखी. 6 फरवरी, 1921 को महात्मा गांधी ने इसका औपचारिक उद्घाटन किया."

मजहरूल हक ने ही यहां एक प्रेस की बुनियाद डाली और मदरलैंड अखबार शुरू किया. जिसमें आजादी के पक्ष में लिखने के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. दिलचस्प है कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जब रिटायर हुए तो उन्होंने अपने जीवन के आखिरी दिन यहीं गुजारे. फिलहाल यही सदाकत आश्रम बिहार प्रदेश कांग्रेस का दफ्तर है. 

CWC की बैठक का हाल

सुबह 10.30 बजे शुरू हुई विस्तारित कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक लगभग साढ़े चार घंटे चली और इसमें कमिटी के 51 सदस्यों ने अपनी बात रखी. बिहार की तरफ से इस कमिटी में प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद, विधान परिषद में पार्टी विधायक दल के नेता मदन मोहन झा, किशनगंज के सांसद मोहम्मद जावेद, कटिहार के सांसद तारिक अनवर, पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार, परमानेंट इनवाइटी अखिलेश प्रसाद और कन्हैया कुमार शामिल हुए. 

इनके अलावा बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु भी मौजूद रहे. खबर थी कि सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी इस बैठक में भाग लेने आएंगी. मगर बताया गया कि सोनिया गांधी अपने खराब स्वास्थ्य की वजह से और प्रियंका इस वजह से कि दो दिन बाद महिला संवाद में भाग लेने वे मोतिहारी आएंगी ही, पटना नहीं आईं.

बैठक के बाद कांग्रेस की तरफ से केसी वेणुगोपाल और जयराम रमेश ने पत्रकारों को ब्रीफ करते हुए बताया कि बैठक में एक राजनीतिक प्रस्ताव पारित हुआ, दूसरा बिहार के मतदाताओं के नाम अपील का प्रस्ताव. रोचक बात यह हुई कि बिहार के मतदाताओं के नाम की अपील पढ़ने का जिम्मा पार्टी की स्टूडेंट विंग NSUI के प्रभारी कन्हैया कुमार को दिया गया, जो बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं.

कांग्रेस नेता बताते हैं कि CWC की बैठकें अमूमन दिल्ली में हुआ करती थीं मगर हाल के दिनों कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने मिलकर ऐसी बैठकें दिल्ली के बाहर करानी शुरू की हैं. पिछले आठ महीनों में ऐसी तीन बैठकें दिल्ली के बाहर हुई हैं,  बेलगावी (कर्नाटक),  अहमदाबाद और अब पटना में. 

पटना की बैठक के बारे में टिप्पणी करते हुए टाटा सामाजिक संस्थान के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र कहते हैं, “बीते कुछ समय से कांग्रेस में यह बदलाव दिख रहा है कि वह CWC की बैठकें दिल्ली से बाहर कर रही हैं, खासकर जहां संदेश देना वहां. बिहार में यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिहार हिंदी पट्टी का एक मात्र राज्य है जहां बीजेपी अपना सीएम नहीं बना पाई है. कांग्रेस यूपी-बिहार में खुद को मजबूत करके ही देश में मजबूत हो सकती है.”

पुष्पेंद्र बिहार में कांग्रेस के लिए संभावनाएं भी देखते हैं. उनके मुताबिक, “यह नीतीश कुमार के अवसान का समय है और उनके समर्थक वोटरों पर सबकी निगाह है. बिहार में कांग्रेस को छोड़कर सभी का अपना वोटबैंक है, जो सेचुरेशन पर है. ऐसे में कांग्रेस अपने नए संकल्प और नए चेहरे से नए वोटरों को आकर्षित कर सकती है, जो अंत में महागठबंधन को ही लाभ पहुंचाएंगे. वैसे भी कांग्रेस का मकसद सिर्फ चुनाव नहीं, अपनी पार्टी को बिहार में मजबूत करना है. इसलिए CWC की इस बैठक का अपना सांकेतिक महत्व है.”

जहां CWC की विस्तारित बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पारित हुए वहीं बैठक के ठीक बाद महागठबंधन के नेताओं ने अति पिछड़ा समाज के प्रतिनिधियों के बीच अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र जारी किया. इस संकल्प पत्र में उनकी दस शीर्ष मांगों को जगह दी गई. इनमें से दो का जिक्र पहले किया जा चुका है,  इसके अलावा आरक्षण सीमा 50 फीसदी से आगे बढ़ाने, भूमिहीनों को जमीन देने, निजी स्कूलों में निर्धारित RTE कोटे में आरक्षण, सरकारी ठेके में आरक्षण जैसे वादे किए गए.

बिहार में महागठबंधन के लिहाज से कई अर्थों में यह बड़ी पहल है. एक तो राज्य में अति पिछड़ों की आबादी सबसे अधिक 36 फीसदी है, दूसरी बात अमूमन राज्य की 112 अति पिछड़ी जातियों में ज्यादातर नीतीश कुमार की समर्थक मानी जाती हैं. वे महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद से परहेज करती नजर आती हैं. ऐसे में ये वादे उन्हें करीब लाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं.

इस फैसले के बारे में बात करते पर राष्ट्रीय अति पिछड़ा अधिकारी-कर्मचारी मोर्चा के अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी कहते हैं, “ये वादे स्वागत योग्य हैं. हमारी सभी मांगें तो नहीं मगर कई मांगों पर विचार किया गया है. मगर महागठबंधन अति पिछड़ों के प्रति कितना ईमानदार है इसकी परीक्षा तब होगी जब वे चुनाव में टिकट का वितरण करेंगे. अगर टिकट वितरण में भी इसी तरह हमारी आबादी को प्रतिनिधित्व देते हैं, तभी उन्हें अति पिछड़ों का हितैषी माना जाएगा.” 

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