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क्या बिहार में कांग्रेस को अपने बूते खड़ा कर पाएंगे नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार?

बिहार में कांग्रेस ने राजद सुप्रीमो लालू यादव के चहेते अखिलेश प्रसाद सिंह को हटा कर दलित नेता राजेश कुमार को अध्यक्ष पद की कमान दी है

राहुल गांधी के साथ राजेश कुमार (एकदम बाएं)
राहुल गांधी के साथ राजेश कुमार (एकदम बाएं)
अपडेटेड 20 मार्च , 2025

मंगलवार, 18 मार्च की रात जैसे ही अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा हुई. पटना नगर कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष राकेश कपूर ने अपने फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया, "बिहार कांग्रेस बंधन मुक्त हुआ." 

जब इंडिया टुडे ने उनसे पूछा कि बंधन मुक्त होने से उनका क्या आशय है तो उन्होंने कहा, "राजद से मुक्ति. अखिलेश बाबू तो कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए भी राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के ही आदमी थे. राजद के हिसाब से ही चलते थे. पिछले साल के लोकसभा चुनाव में हमने देखा ही है कि टिकट बंटवारे में कैसे पूर्णिया में पप्पू यादव का टिकट कट गया, लेकिन अखिलेश बाबू के पुत्र को टिकट मिल गया."

उन्होंने आगे कहा, "मुझे लगता है कांग्रेस आलाकमान यह सब देख रहा था. सही मौका आने पर उसने पार्टी को राजद के प्रभाव मुक्त करने के लिए यह फैसला लिया है."

पटना सिटी में सामाजिक कार्यों से जुड़े बुजुर्ग कांग्रेसी राकेश कपूर ने जो बेबाक टिप्पणी की, उसमें पार्टी के कई जमीनी कार्यकर्ताओं के स्वर मिले हुए हैं. बिहार कांग्रेस बंधन मुक्त हुआ, ऐसा लिखने वाले अकेले राकेश कपूर ही नहीं हैं, बिहार के कई कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने भी इसी तरह की मिलती-जुलती टिप्पणी की है. 

वहीं, दूसरी तरफ अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र आकाश कुमार सिंह जो इस लोकसभा चुनाव में महाराजगंज सीट से चुनाव लड़े थे, ने पोस्ट किया, "जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है." उनके इस पोस्ट को अपने पिता को कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटाए जाने के खिलाफ दी गई प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया और कई कांग्रेसी कार्यकर्ता उनकी पोस्ट पर उनकी और उनके पिता की खिंचाई करने पहुंच गए.

बड़े कांग्रेसी नेता इसे रूटीन बदलाव कह रहे हैं और यह भी कहते हैं कि राजेश कुमार का कांग्रेस अध्यक्ष बनना 2022 में ही तय हो गया था. उस वक्त के कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास उनके नाम की सिफारिश करके गए थे. पार्टी ने तब की परिस्थितियों की वजह से अखिलेश प्रसाद सिंह को अध्यक्ष बनाया और अब राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाया गया है.

पार्टी प्रवक्ता ज्ञान रंजन कहते हैं, "यह संगठनात्मक बदलाव है, जो पार्टी हित में किया गया है. दो बार से विधायक रहने वाले और अनुसूचित जाति से आने वाले राजेश कुमार की इस वक्त पार्टी को जरूरत समझी गई होगी, तभी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उन्हें यह जिम्मेदारी दी है. वैसे पूर्व अध्यक्ष अखिलेश जी का भी कार्यकाल शानदार रहा है. राजेश जी भी इस सिलसिले को आगे ले जाएंगे."

मगर सच यह है कि यह बदलाव पिछले एक महीने से बिहार कांग्रेस में चल रहे बदलाव की आखिरी कड़ी है, जिसकी शुरुआत कृष्णा अल्लावरू को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाने से हुई थी और जिसके तहत राजद और तेजस्वी यादव के अनकहे विरोध के बावजूद कन्हैया को 'नौकरी दो, पलायन रोको' यात्रा के जरिये सक्रिय किया गया. संदेश साफ था - हम राजद के सहयोगी हैं, उन पर निर्भर पार्टी नहीं.

कांग्रेस को राजद के प्रभाव से मुक्त करने की पहल 18 जनवरी, 2025 को राहुल गांधी की पटना यात्रा में भी दिखी. एक अरसे बाद संविधान सुरक्षा सम्मेलन में पटना आए राहुल गांधी कांग्रेस के कार्यालय सदाकत आश्रम गये, मगर उन्होंने वहां बहुत कम वक्त दिया. उस वक्त प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने उनसे मंच से कहा, "आप जितना वक्त दक्षिण के राज्यों और यूपी को देते हैं, उतना बिहार को दें तो हम 1990 के पहले का कांग्रेस तैयार कर देंगे." राजनीतिक टिप्पणीकारों ने उस वक्त यह नोट कर लिया कि प्रदेश अध्यक्ष और राहुल गांधी के बीच बातचीत का इतना गैप है कि जो बात बंद कमरे में कही जानी चाहिए, वह मंच से कही जा रही है.

उस बार राहुल गांधी लालू परिवार से मिलने उनके आवास जरूर गए, मगर तेजस्वी यादव के बुलावे पर ही. तेजस्वी ने ये निमंत्रण मौर्या होटल के दरवाजे पर पत्रकारों और समर्थकों की भारी भीड़ के बीच दिया था. उसके ठीक बाद जब राहुल गांधी फरवरी के पहले हफ्ते में दलित समुदाय से आने वाले स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी की जयंती के कार्यक्रम में अचानक पटना आ गए तो यह इशारा मिल गया था कि संविधान की सुरक्षा और जाति आधारित गणना की पुरजोर वकालत करने वाले राहुल के लिए बिहार में दलित प्राथमिकता में हैं, इसी वजह से कांग्रेस ने पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी को पार्टी में शामिल करा लिया. संविधान सुरक्षा सम्मेलन में भागीरथ मांझी देर रात राहुल के पास वाली कुर्सी पर बैठे रहे.

इसलिए जब दलित समुदाय की रविदास जाति से आने वाले कांग्रेस के भरोसेमंद नेता राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाया गया तो किसी को बहुत हैरत नहीं हुई. वे एक राजनीतिक परिवार से आते हैं, उनके पिता दिलकेश्वर राम दो बार मंत्री रह चुके हैं, खुद राजेश कुमार औरंगाबाद के कुटुंबा से दो बार से विधायक चुने जा रहे हैं, उन्हें पार्टी ने विधान सभा में मुख्य सचेतक भी बनाया है. 56 साल के राजेश जमीनी नेता और मिलनसार व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं. उनकी सहजता पार्टी कार्यकर्ताओं को आकर्षित करती है. इसकी एक वजह यह भी है कि कार्यकर्ताओं की यह शिकायत रही है कि अखिलेश प्रसाद सिंह उन्हें समय नहीं देते, उनसे मिलना मुश्किल होता था.

मोहन प्रकाश के बाद बिहार के प्रभारी बने कृष्णा अल्लावरू ने पहले ही दिन पार्टी कार्यकर्ताओं की इस भावना को समझ लिया था. उन्होंने सदाकत आश्रम में अपने पहले ही संबोधन में कहा था कि उनके लिए वे कार्यकर्ता महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यहां मंच या सामने की कुर्सियों पर जगह नहीं मिली, और जो बाहर खड़े हैं. एक समय में वे भी इसी स्थिति में हुआ करते थे. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से पटना और दिल्ली की दौड़ छोड़कर क्षेत्र में मेहनत करने की अपील की थी. 

अल्लावरू ने कहा, "पार्टी को बारात के घोड़ों की नहीं, बल्कि रेस के घोड़ों की जरूरत है." उनके आने के बाद पार्टी के सामान्य कार्यकर्ताओं में बड़ा उत्साह नजर आया और जब वे 'नौकरी दो, पलायन रोको' के बहाने कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति में लेकर आ गए तो यह उत्साह चरम पर पहुंच गया. क्योंकि माना जाता है कि मुसलमानों के बीच खासे पॉपुलर कन्हैया को बिहार में सक्रिय करने से कांग्रेस इसलिए परहेज करती रही है क्योंकि राजद और तेजस्वी उनके साथ सहज नहीं हैं.

कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता इस बात को लेकर दबाव महसूस करते थे और चाहते थे कि वे अपनी पार्टी में क्या करते हैं, इससे दूसरी पार्टी चाहे वह गठबंधन में साझेदार ही क्यों न हो, उन्हें आपत्ति नहीं होनी चाहिए. कृष्णा ने पार्टी कार्यकर्ताओं की इस भावना को भी ताकत दी और नियुक्ति के एक माह बीतने पर भी उन्होंने लालू या तेजस्वी से मुलाकात नहीं की है.

बहरहाल पिछले एक महीने से कांग्रेस बिहार में लगातार सक्रिय है. कृष्णा अल्लावरू और कन्हैया के अलावा अलका लांबा और इमरान प्रतापगढ़ी के दौरे भी बिहार में हो रहे हैं और 'नौकरी दो, पलायन रोको' में राहुल गांधी इस साल तीसरी बार बिहार आने वाले हैं. कांग्रेस के अंदरूनी स्रोत बताते हैं कि मकसद राजद से अलगाव नहीं, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी मोलतोल (बारगेनिंग) करने की पॉवर को बढ़ाना है. क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में जब पार्टी 70 सीटें लेकर सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत पाई, तो कांग्रेस को महागठबंधन में कमजोर कड़ी माना जाने लगा. अपनी सक्रियता और बदलाव से कांग्रेस इस छवि को तोड़ना चाहती है. पार्टी के नेता यह भी कहते हैं कि पार्टी की 2020 में बेहतर जीत न होने की एक वजह यह भी थी कि उन्हें 70 सीट तो मिलीं, मगर वे उनकी पसंद की सीटें नहीं थीं.

पार्टी ने बिहार में एजेंसियों के जरिए सर्वेक्षण कराया है और 100 ऐसी सीटें चुनी गई हैं, जहां पार्टी मजबूत है. पार्टी के नेता कहते हैं, "भले हमें कम सीटें मिले, मगर ऐसी सीटें मिले जहां हम परफॉर्म कर सकते हैं, हम ऐसी सीटों पर दावा करेंगे." पार्टी नेताओं के सामने 2015 विधानसभा चुनाव का उदाहरण है, जब 42 सीटों पर लड़कर कांग्रेस ने 27 सीटें जीत ली थीं. तब सीपी जोशी ने राजद से सीटों को लेकर हार्ड बार्गेनिंग की थी. उस वक्त भी बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष दलित समुदाय से आने वाले अशोक चौधरी ही थे.

अध्यक्ष बनने के बाद राजेश कुमार ने मीडिया से कहा है कि उनका पहला लक्ष्य इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 23 फीसदी तक ले जाना है. वे कहते हैं, "दलित समुदाय से तो मैं आता ही हूं, इसके अलावा हम अल्पसंख्यक और सवर्ण समुदाय को भी साथ लेकर चलेंगे." मैसेज साफ है, वे कांग्रेस को उस दौर में ले जाना चाह रहे हैं, जब सवर्ण, मुस्लिम और दलित पार्टी के कोर वोटर रहे थे.

राजेश कुमार जिस रविदास जाति से आते हैं, बिहार की जाति आधारित गणना के हिसाब से राज्य में उनकी आबादी 5.25 फीसदी है. रविदास जाति कांग्रेस को वोट करती रही है. 2020 के चुनाव में भी रविदास जाति के चार विधायक चुनाव जीते. राजेश के अलावा, प्रतिमा दास, विश्वनाथ राम और मुरारी गौतम. सासाराम के सांसद मनोज राम भी रविदास जाति से ही आते हैं. ऐसे में राजेश कुमार का पार्टी की कमान संभालना रविदास जाति का कांग्रेस के प्रति प्रेम को और बढ़ाएगा.

भले ही ऊपरी तौर पर यह लगता है कि यह सारी कवायद राजद से कांग्रेस के संबंध को बिगाड़ सकती है, मगर इस कदम से कांग्रेस ने महागठबंधन की उस कमजोर कड़ी का समाधान करने की भी कोशिश की है. महागठंधन में फिलहाल कोई बड़ी दलित पार्टी शामिल नहीं है. दलितों की राजनीति करने वाले बिहार के दो बड़े नेता चिराग पासवान और जीतनराम मांझी एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के साथ हैं. पशुपति कुमार पारस जरूर महागठबंधन के साथ आए हैं, मगर उनकी पकड़ पासवान जाति के बीच बहुत मजबूत नहीं रही. ऐसे में राजेश कुमार न सिर्फ कांग्रेस बल्कि महागठबंधन के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकते हैं.

शायद इसी वजह से इंडिया टुडे से बात करते हुए राजद के वरिष्ठ प्रवक्ता चितरंजन गगन कहते हैं, "राजद और कांग्रेस के बीच दरार की बात मीडिया की फैलाई हुई है. कांग्रेस किसे अध्यक्ष बनाती है, यह उसका फैसला है. अगर कांग्रेस मजबूत होती है, तो इसका फायदा महागठबंधन को ही होगा."

वहीं, बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, "यह एक तरह से कांग्रेस के लिए बड़ा अवसर है. नीतीश और जदयू के कमजोर होने से बिहार में एक मध्यममार्गी पार्टी की जगह खाली हो रही है. कांग्रेस जो अपने मूल स्वभाव में मध्यममार्गी पार्टी है, इस स्पेस को आसानी से भर सकती है. मुझे राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाने का कदम इसी दिशा में बढ़ा नजर आ रहा है."

वे आगे कहते हैं, "अगर राजद से विरोध की बात होती तो वह किसी पिछड़े को भी अपना अध्यक्ष बना सकती थी. राहुल गांधी जिस तरह जाति जनगणना की जोरदार वकालत करते हैं, ऐसे में उनके लिए यह स्वाभाविक था. मगर शायद राजद के बारे में सोच कर ही उन्होंने किसी ओबीसी या यादव को अध्यक्ष नहीं बनाया, बल्कि एक दलित को चुना. इस तरह पार्टी गंभीरता से 1980 के पहले के दौर में लौटती नजर आ रही है, जब वह सर्वसमावेशी हुआ करती थी. 1980 के बाद पार्टी ने अपनी कमान ज्यादातर सवर्णों और खासकर ब्राह्मण नेताओं को सौंपी, इस वजह से भी पार्टी से दूसरे वोटर छिटके और भागलपुर दंगों ने इस पर आखिरी कील ठोक दी."

पुष्पेंद्र कहते हैं, "हालांकि अभी एक छोटा कदम उठाया गया है, असली काम है जिलों में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे सवर्णों को नाराज किए बगैर बदलाव करना. वहां दलितों-पिछड़ों को जगह दिलाना. अगर राजेश ऐसा कर पाएं तभी वे सफल होंगे. उन पर सवर्णों को नाराज किए बगैर पार्टी को आगे बढ़ाने की चुनौती है."

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