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क्या अपने पिता रामविलास पासवान की परछाईं से बाहर आ गए हैं चिराग?

अक्टूबर 2020 में जब रामविलास पासवान का निधन हुआ तब चिराग ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से किनारा कर लिया था लेकिन फिर दो साल बाद वे वापस गठबंधन में आ गए

चिराग पासवान
चिराग पासवान
अपडेटेड 12 जून , 2024

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद नरेंद्र मोदी तीसरी बार केंद्र के सत्ता में आए हैं और उन्होंने अपने एनडीए गठबंधन के साथी चिराग पासवान को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के उत्तराधिकारी ने अपने प्रदर्शन से साबित किया है कि 2014 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने के बाद से उन्होंने किस तरह अपने लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक स्थान बनाया है.

2014 में भी चिराग ने अपने पिता को भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और तब लोजपा-भाजपा का गठबंधन एक गेम-चेंजर साबित हुआ था, क्योंकि रामविलास पासवान ने जिन सात सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से छह पर जीत हासिल की थी. इससे पहले ​​2009 में, राजद के सहयोगी के रूप में, लोजपा एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई थी.

चिराग पासवान भले ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाकर अब राष्ट्रीय परिदृश्य में आए हैं, लेकिन अपनी राजनीतिक यात्रा में उन्होंने कम उतार-चढ़ाव नहीं देखे हैं. पिता की मृत्यु के बाद से चिराग पासवान ने बहुत कुछ देखा.
 
अक्टूबर 2020 में जब रामविलास पासवान का निधन हुआ तब चिराग ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से किनारा कर लिया. यह फैसला आसान नहीं था और कई आशंकाएं इसके इर्द-गिर्द मंडराती थीं. इसी चुनाव में चिराग पासवान ने खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया था.  
 
नतीजा वही आया, जैसा सभी ने सोचा था - वे एक विधानसभा सीट को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर हार गए. हद तब हो गई जब नतीजों के बाद उनका इकलौता विधायक भी उनसे अलग होकर नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गया.
 
समय के साथ चुनौतियां बढ़ती ही गईं. दो साल के भीतर ही 2022 में चिराग पासवान को केंद्रीय मंत्री के तौर पर उनके पिता को आवंटित सरकारी बंगला खाली करने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन इसके पहले जून 2021 में चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) पर कब्ज़ा कर लिया. उन्होंने सभी सांसदों को अपने पाले में कर चिराग को अलग-थलग कर दिया. इसके बाद पारस को नरेंद्र मोदी कैबिनेट में जगह मिली, लेकिन धीरे-धीरे उनका प्रभाव कम होता गया.
 
नतीजन पार्टी दो गुटों में विभाजित हो गई जिनमें से एक का नेतृत्व चिराग कर रहे थे और दूसरे का पारस. इन चुनौतियों के बीच चिराग ने अपनी स्थिति मजबूत करने और पिता की विरासत को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया.
 
समय बीता और आख़िरकार आया 2024 जब लोकसभा चुनाव होने थे. इस वक्त तक ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक और मीडिया ने चिराग पासवान को किनारे लगा दिया था. मगर मार्च में भाजपा ने चिराग को एक जीवन-रेखा दी. एनडीए के तहत बिहार में चुनाव लड़ने के लिए पांच अहम लोकसभा सीटें चिराग पासवान को दी गईं और पारस को एक भी नहीं मिली.
 
इंडिया टुडे की अपनी रिपोर्ट में अमिताभ श्रीवास्तव बताते हैं, "पारस के ऊपर चिराग को तरजीह देने का भाजपा का फैसला इस धारणा को रेखांकित करता है कि बिहार की आबादी में 5.3 फीसद भागीदारी रखने  वाला पासवान वोट बैंक मुख्य रूप से चिराग के नेतृत्व का समर्थन करता है."
 
अमिताभ अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि भाजपा के प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले, लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में चिराग की चुनावी रणनीति एक सोची-समझी शतरंज की चाल की तरह थी. विपक्षी महागठबंधन से आठ लोकसभा सीटों की पेशकश के बावजूद लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग ने एनडीए में बने रहने का विकल्प चुना. उनका तर्क व्यक्तिगत वफादारी में नहीं बल्कि चतुर राजनीतिक गणित में निहित था.
 
चिराग को यह एहसास था कि उनके मूल मतदाता, पासवान, जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय जनता दल के समर्थन आधार की नींव रखने वाले यादवों के साथ बिल्कुल भी मेल नहीं खा सकते. इसीलिए भाजपा की ओर से पारस की जगह चिराग को चुनना एक महत्वपूर्ण फैसला था.
 
चार जून को 41 साल के चिराग ने न केवल अपनी राजनीतिक स्थिति पर फिर से कब्ज़ा जमाया, बल्कि बिहार में अपनी पार्टी को सभी पांच सीटों पर जीत दिलाकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन भी किया. इसी के बाद जब 9 जून को केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनकी नियुक्ति हुई तो वह सीधे तौर पर चिराग के डटे रहने की क्षमता का एक और प्रमाण था.
 
लोकसभा चुनावों में बिहार में खूब तमाशा हुआ. 40 सीटों में से एनडीए ने 30 सीटें हासिल कीं; फिर भी इसके प्रमुख घटक भाजपा और जेडी(यू) के वोट शेयर और सीटों, दोनों में 2019 के प्रदर्शन की तुलना में गिरावट हुई. भाजपा की सीटें 17 से गिरकर 12 हो गईं, जबकि जेडी(यू) की सीटें 16 से घटकर 12 रह गईं.
 
अमिताभ इंडिया टुडे की रिपोर्ट में लिखते हैं, "इस सबके बीच चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सफलतापूर्व ऊपर उठी. सभी ट्रेंड्स को धता बताते हुए, इस पार्टी ने अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा. चिराग का यह प्रदर्शन रामविलास पासवान वाली लोजपा के 2019 के प्रदर्शन को दिखाता है जब इसने बिहार में लड़ी गई सभी छह सीटों पर जीत हासिल की थी. चिराग ने हाजीपुर सीट पर भी शानदार जीत हासिल की, जो पहले उनके पिता के पास थी.
 
2024 में चिराग की सफलता उनकी रणनीतिक अहमियत बताती है. 2019 के चुनावों में जब लोजपा को छह सीटें जीतकर भी केवल एक मंत्री पद (पारस) की पेशकश की गई थी, इस बार चिराग की पांच सीटें बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में अधिक महत्व रखती हैं. मोदी सरकार 3.0 के साथ ही शायद चिराग अब महज रामविलास के बेटे नहीं रहे, चिराग पासवान बन गए हैं.

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