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छत्तीसगढ़ : बीजेपी की आपसी रस्साकशी के बीच पार्टी कोरबा सीट जीत पाएगी?

छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में भाजपा की बड़ी चिंता कोरबा सीट को लेकर है. कोरबा वही लोकसभा क्षेत्र है जो देश में मोदी मैजिक के बाद भी कांग्रेस को राज्य में शून्य होने से बचाता आया है

कोरबा सीट से भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडे
कोरबा सीट से भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडे
अपडेटेड 7 मई , 2024

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की केंद्रीय राजनीति की एक बड़ी नाम सरोज पांडे इस बार कोरबा लोकसभा सीट से प्रत्याशी हैं. 2008 में वे दुर्ग की मेयर थीं. तभी पार्टी ने उन्हें विधानसभा चुनाव में मौका देते हुए वैशाली नगर सीट से चुनाव लड़ाया. यहां उन्होंने जीत दर्ज की. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदीप चौबे को हराकर वे सांसद चुनी गईं. इस तरह सरोज एक ही समय दुर्ग की मेयर, वैशाली नगर की विधायक और लोकसभा सांसद बन गईं. 

2014 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट पर सरोज पांडे कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू से चुनाव हार गईं. 2018 में वे छत्तीसगढ़ के कोटे से राज्यसभा की सांसद बनीं. तेज तर्रार नेता होने की वजह से सरोज की केंद्रीय नेतृत्व में अच्छी पैठ बन गई. वे भाजपा की राष्ट्रीय महामंत्री रहते हुए महाराष्ट्र की प्रभारी रह चुकी हैं. केंद्रीय नेतृत्व उनके नाम पर भरोसा करता है. इसलिए 2014 में हार के बाद भी उन्हें 2018 में राज्यसभा भेजा गया.

सरोज पांडे 2014 की मोदी लहर में भाजपा नेताओं की आपसी गुटबाजी की वजह से हार गई थीं. उस समय प्रदेश में भाजपा के ही रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. स्थानीय पार्टी नेता बताते हैं कि सरोज की उनसे बनती नहीं थी. वहीं विधानसभा अध्यक्ष रह चुके प्रेम प्रकाश पांडे उनके धुर विरोधी थे. दुर्ग लोकसभा के स्थानीय भाजपा नेताओं में ज्यादातर साहू समाज से आते हैं. उनके बीच यह संदेश फैलाया गया कि साहू समाज का टिकट काटकर ब्राह्मण प्रत्याशी को दुर्ग से सांसद बनाया जा रहा है. स्थानीय नेताओं ने चुनाव में जी-जान से काम नहीं किया और सरोज को हार का सामना करना पड़ा.

ऐसी गुटबाजी की आशंका इस बार भी है. सरोज के केंद्रीय नेतृत्व से अच्छे संबंध होने की वजह से राज्य में भाजपा की राजनीति करने वाले एक खेमे से उनकी नहीं बनती. पार्टी के सामान्य लोकाचार में एक मंच पर नजर आने के बाद भी सियासी तौर पर शह-मात का खेल चलता रहता है. सरोज के छत्तीसगढ़ से चुनाव जीतकर जाने पर राज्य के संगठन में उनका दखल बढ़ना स्वाभाविक है. राज्य के संबंध में जो निर्णय मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल समेत संगठन के नेताओं की मौजूदगी में लिए जा सकते हैं, उनमें सरोज का भी अहम रोल होगा. 2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा के भीतरखाने से सरोज को बतौर राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने की आवाजें भी उठी थीं. केंद्रीय राजनीति में सरोज का बढ़ता कद राज्य के नेतृत्व के लिए सुखद संकेत नहीं है. इन परिस्थितियों के बाद भी मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रिमंडल के सदस्य सरोज को चुनाव जिताने कोरबा में कैंप कर रहे हैं.
 
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद से यह माना जा रहा था कि कोरबा से किसी स्थानीय प्रत्याशी को टिकट दिया जाएगा. टिकट की घोषणा हुई तो इसमें दुर्ग से सरोज का नाम आया. वे अब अपनी टीम के साथ कोरबा में चुनाव प्रचार में डटी हुई हैं. भाजपा से जुड़े स्थानीय कार्यकर्ता बताते हैं कि सरोज पार्टी की बहुत बड़ी नेता हैं लेकिन सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ उनका सीधा जुड़ाव नहीं है.

शुरुआत में भाजपा के स्थानीय नेता उनके साथ प्रचार में अनमने भाव से जाते थे. लेकिन 1 मई को कटधोरा में अमित शाह ने रैली के बाद रेस्ट रूम में स्थानीय नेताओं की क्लास लगा दी. स्थानीय नेताओं को किसी भी कीमत पर कोरबा सीट जीतने का लक्ष्य दिया गया है. राज्य के वित्त मंत्री ओपी चौधरी इस क्षेत्र में कैंप कर रहे हैं. जबकि कोरबा से विधानसभा प्रत्याशी रह चुके विकास महतो को आदिवासी क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई है. सभी स्थानीय नेताओं को जिम्मेदारी देकर शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि 2019 की गलती 2024 में नहीं दोहराई जाए. कोरबा को जीतना भाजपा के लिए अब नाक का सवाल बन चुका है.
 
कहानी सिर्फ इतनी भर नहीं है. कोरबा सीट पर गोंड नेता हीरा सिंह मरकाम की बनाई हुई गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) ​जीत या हार का समीकरण तय करती आई है. 2023 के विधानसभा चुनाव में पाली तानाखार सीट से हीरा सिंह मरकाम के बेटे तुलेश्वर सिंह ने जीत दर्ज की है. जब कोरबा सीट पर गोंगपा के वोट बढ़ते हैं तो कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है. 2009 के लोकसभा चुनाव में गोंगपा को 32962 वोट मिले तो कांग्रेस के चरणदास महंत भाजपा की करुणा शुक्ला को 20737 वोटों से हराने में कामयाब हुए. 2014 में गोंगपा का वोट बढ़कर 52753 हो गया. तब इस चुनाव में भाजपा के बंशीलाल महतो ने कांग्रेस के चरणदास महंत को 4265 वोटों से हरा दिया. 2019 के चुनाव में गोंगपा का वोट घटकर 37417 हुआ तो भाजपा के ज्योति नंदन दुबे के सामने कांग्रेस की ज्योत्सना महंत ने 26249 मतों से जीत दर्ज की. 

इस चुनाव में भी गोंगपा की ओर से श्याम सिंह मरकाम प्रत्याशी हैं. भाजपा के नेता गोंगपा के वोटों की बढ़त सुनिश्चित कर अपनी जीत का रास्ता तय करना चाहते हैं. कोरबा सीट से सरोज पांडे की जीत राज्य में नया सियासी समीकरण बनाएगी. राज्य में भाजपा का स्थानीय नेतृत्व अधूरे मन से पूरी मेहनत कर रहा है ताकि अमित शाह की नजरों में इज्जत और राज्य में अपनी सियासत दोनों को बचाया जा सके.

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