आमतौर पर मंडल की राजनीति से अपने को दूर रखने वाली कांग्रेस में अब एक नया बदलाव 7 अगस्त को दिखा. ये वही तारीख है जब 34 साल पहले 7 अगस्त, 1990 को मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की गई थीं. इस मौके पर उत्तर प्रदेश माइनॉरिटी कांग्रेस, यूपी ओबीसी कांग्रेस ओर यूपी फिशरमैन कांग्रेस ने मिलकर लखनऊ के माल एवेन्यु स्थित प्रदेश कांग्रेस कार्यालय नेहरू भवन में पहली बार मंडल दिवस का आयोजन किया.
मंडल दिवस पर आयोजित गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उप-वर्गीकरण, वक्फ संशोधन विधेयक और जाति जनगणना के मुद्दे पर एक महीने का अभियान शुरू किया. पार्टी का लक्ष्य दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी स्थिति मजबूत करना है.
दिलचस्प है कि इससे पहले 26 जुलाई से अल्पसंख्यक कांग्रेस, ओबीसी कांग्रेस और फिशरमैन कांग्रेस ने जातिगत जनगणना कराने और आरक्षण पर लगी 50 प्रतिशत की पाबंदी हटाने की मांग को लेकर एक हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत भी की. यह अभियान छत्रपति साहू जी महाराज द्वारा 26 जुलाई 1902 में कोल्हापुर रियासत में लागू किए गए 50 प्रतिशत आरक्षण की वर्षगांठ पर आयोजित राष्ट्रीय भागीदारी सम्मेलन में शुरू किया गया. इस तरह कांग्रेस ने दलितों और पिछड़ों की कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी विभिन्न तारीखों से अपने अभियानों की शुरुआत कर इन जातियों से सीधा ‘कनेक्ट’ करने की कोशिश की है.
इसी क्रम में कांग्रेस ने यूपी में अगस्त क्रांति दिवस (9 अगस्त) से राजीव गांधी सरकार द्वारा 1989 में दलित उत्पीड़न निरोधक क़ानून के पास किए जाने की वर्षगांठ (11 सितंबर) तक प्रदेश भर में जातिगत जनगणना कराने, प्रस्तावित वक़्फ़ क़ानून का विरोध करने, पूजा स्थल अधिनियम 1991 की रक्षा करने, कॉलेजियम व्यवस्था खत्म करने, सुप्रीमकोर्ट द्वारा एससी-एसटी आरक्षण को विभाजित करने के फैसले का विरोध करने और आरक्षण पर से 50 प्रतिशत की पाबंदी हटाने की मांग के समर्थन में सामाजिक संगठनों से संपर्क, सेमीनार और विचार गोष्ठी आयोजित करने की रणनीति बनाई है.
इन मांगों के समर्थन में 10 लाख लोगों के हस्ताक्षर भी इकट्ठा किए जा रहे हैं. यूपी कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के प्रमुख शाहनवाज आलम बताते हैं, “केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार ने दलितों पर अत्याचार करने के लिए ही दलित कानून को कमजोर किया है. कांग्रेस एससी और एसटी के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए पार्टी की कोशिशों को उजागर करेगी. हम जाति जनगणना, वक्फ संशोधन विधेयक और यहां तक कि एससी-एसटी कोटा के उप-वर्गीकरण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए जनता तक पहुंचेंगे.”
लोकसभा चुनाव- 2024 में इंडिया गठबंधन की सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ मिलकर कांग्रेस ने 6 लोकसभा सीटें जीतीं हैं जो उत्तर प्रदेश में पार्टी का 2009 के बाद सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. कांग्रेस ने यूपी की 80 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इनमें अमेठी, रायबरेली, सीतापुर, बाराबंकी, सहारनपुर और इलाहाबाद लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी.
इनके अलावा 6 लोकसभा सीटें ऐसी भी हैं जिनमें कांग्रेस उम्मीदवारों को 50 हजार वोट से कम के नजदीकी मुकाबले में हार मिली थी. इस तरह कांग्रेस ने 17 में से 12 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया था. लखनऊ में जय नारायण डिग्री कालेज में राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रमुख ब्रजेश मिश्र बताते हैं, “लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरह से चुनाव प्रचार के दौरान संविधान की पुस्तक हाथ में लेकर संविधान बचाने की बात कही. उससे दलित और ओबीसी मतदाताओं में इंडिया गठबंधन के प्रति झुकाव बढ़ा.” अब कांग्रेस दलितों और ओबीसी के मुद्दे उठाकर इन समुदाय के साथ अपने जुड़ाव को और पुख्ता करना चाहती है.
एक महीने के कार्यक्रम के दौरान पार्टी नेताओं को गांव स्तर पर लामबंद होने, पर्चे बांटने और संबंधित समुदायों के साथ चर्चा करने के लिए कहा गया है. पार्टी की ओबीसी, अल्पसंख्यक और मछुआरा शाखा जिला स्तर पर अभियान चलाएगी, जबकि जाति जनगणना के लिए समर्थन जुटाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा. पार्टी ने राज्य में अपने पदाधिकारियों को डॉक्टरों, शिक्षकों और अन्य पेशेवरों जैसे समुदायों में बुद्धिजीवियों और प्रमुख लोगों से जुड़ने का प्रयास करने का भी निर्देश दिया है.
राज्य में कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के प्रमुख शाहनवाज आलम बताते हैं, "यह एक जन जागरूकता अभियान होगा जो 11 सितंबर को राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए समाप्त होगा. हम वक्फ संशोधन विधेयक के बारे में भी जागरूकता पैदा करेंगे, जो सरकार को वक्फ भूमि के प्रॉपर्टी डीलर में बदल देगा, एससी-एसटी कोटे का उप-वर्गीकरण, जो इसके मूल उद्देश्य को बदल देगा, हम जाति जनगणना की मांग करेंगे." इसके आगे उनका यह भी कहना था, "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एससी-एसटी एक्ट का भी ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है और ज्यादातर मामलों में स्थानीय स्तर पर ही मामले निपटाए जा रहे हैं. इसी वजह से अभियान के समापन के लिए 11 सितंबर की तारीख चुनी गई है, ताकि हम इस बात पर प्रकाश डाल सकें कि एससी-एसटी एक्ट के तहत मामलों को कैसे हतोत्साहित किया जा रहा है."
कांग्रेस के अल्पसंख्यक, ओबीसी विभाग के साथ फिशरमैन (मछुआरा) कांग्रेस को अलग से जोड़ने के पीछे भी एक रणनीति है. अभी तक फिशरमैन कांग्रेस नाम का संगठन ज्यादा चर्चा में नहीं था. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, “यूपी में यादव मतदाता सभी जिले में नहीं हैं जबकि मछुआरा समुदाय पूरे प्रदेश में फैला हुआ है. इस समुदाय के लिए सबसे ज्यादा काम इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने किया है. कांग्रेस सरकार ने ही नदियों के किनारे बालू के खनन में मछुआरों को प्राथमिकता देने का कानून बनाया था. भाजपा सरकार दलितों और पिछड़ों के साथ अन्याय कर रही है. इससे मछुआरा समाज भी प्रताड़ित है. मछुआरा समाज से सीधा संपर्क साधने के लिए ही फिशरमैन कांग्रेस को सक्रिय किया गया है.”
कांग्रेस नेताओं ने बताया कि जागरूकता अभियान के दौरान इन मुद्दों पर आसानी से समझ में आने वाले प्रारूप में ‘प्रिटेंड’ सामग्री वितरित की जाएगी. इसके बाद पार्टी इन मुद्दों पर गांवों, जिलों और राज्य स्तर पर चौपालों और नुक्कड़ सभाओं का आयोजन करेगी. जिस तरह से कांग्रेस यूपी में दलितों, ओबीसी और मुसलमानों के बीच पैठ बनाने को सक्रिय हुई है, इससे उसकी सहयोगी समाजवादी पार्टी के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) वोटबैंक पर सेंधमारी के प्रयास के तौर पर भी राजनीतिक विश्लेषक देख रहे हैं.
26 अगस्त से शुरू हुए कांग्रेस के हस्ताक्षर अभियान के बैनर और पोस्टर पर बसपा के संस्थापक कांशीराम, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और बी. पी. मंडल को जगह दी गई. वहीं सपा भी इन्हीं प्रतीकों के जरिए साइकिल के लिए नए वोटबैंक की जुगत लगा रही है. कांग्रेस की तरह ही सपा ने भी 9 अगस्त से 10 सितंबर तक चलने वाले 'छात्र-नौजवान पीडीए जागरूकता' अभियान की शुरुआत की है.
तो क्या कांग्रेस सपा के पीडीए वोटबैंक में सेंधमारी कर पाएगी? प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, “कांग्रेस का प्रयास अपने उस वोटबैंक को वापस पार्टी से जोड़ना है जो बीते कुछ वर्षों में दूसरी पार्टियों से जुड़ गया है. दलित, ओबीसी, ब्राह्मण, मुस्लिम पहले कांग्रेस के ही समर्थक वोटबैंक थे. मछुआरा समाज के लिए अलग से फिशरमैंन कांग्रेस को सक्रिय करना भी इसी रणनीति का हिस्सा है. इससे इंडिया गठबंधन ही और मजबूत होगा न कि सपा को नुकसान होगा.”