उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार, संगठन और संघ के बीच तालमेल मजबूत करने की कवायद चल रही है. राजधानी लखनऊ के निराला नगर स्थित संघ भवन में 14 सितंबर से शुरू हुई पूर्वी क्षेत्र की तीन दिवसीय समन्वय बैठक में सरकार, संगठन और संघ के शीर्ष पदाधिकारी जुटे. इस बैठक का मकसद स्पष्ट था कि सभी स्तरों पर तालमेल बेहतर हो और सामाजिक व शैक्षिक मोर्चे पर संयुक्त प्रयास तेज किए जाएं.
बैठक में यह तय हुआ कि संघ से जुड़े प्रकरणों के समाधान के लिए BJP के तीन नेताओं को जिम्मेदारी दी जाएगी. मुख्यमंत्री स्तर के मामलों को देखने के लिए प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह को नामित किया गया. मंत्रियों से जुड़े मामलों के लिए प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य को जिम्मा मिला. जबकि संगठन स्तर के मामलों के लिए किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कामेश्वर सिंह को नामित किया गया.
इन तीनों पदाधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वे संघ से आने वाले सुझाव या शिकायतें सरकार और संगठन तक पहुंचाएं और उनका निस्तारण कराएं. बैठक के पहले दिन सामाजिक समूह और शिक्षा समूह की अलग-अलग बैठकें हुईं. सामाजिक समूह की बैठक में सरकार, संगठन और संघ मिलकर समन्वय के साथ काम करने पर सहमति बनी. वहीं शिक्षा समूह की बैठक में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की मौजूदा स्थिति, छात्र संगठनों की भूमिका और शिक्षण संस्थानों में माहौल सुधारने पर चर्चा हुई.
संघ और BJP ने तय किया कि छात्रों और शिक्षकों के बीच अपनी पैठ को गहरा किया जाएगा और संभावित विवादों को टालने की कोशिश होगी. यह पहल इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि हाल ही में बाराबंकी के एक शिक्षण संस्थान में संघ के अनुषंगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और स्थानीय छात्रों के बीच विवाद हुआ था, जिसे सुलझाने में संघ और BJP संगठन को सक्रिय भूमिका निभानी पड़ी थी.
बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से शुरू होकर महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती 2 अक्टूबर तक चलने वाले सेवा पखवाड़े को भी केंद्र में रखा गया. सेवा पखवाड़े के दौरान समाज के हर वर्ग में पहुंच बनाने के लिए कई गतिविधियों की योजना बनी. चिकित्सा शिविरों से लेकर स्वच्छता अभियान और जागरूकता कार्यक्रमों तक, इन गतिविधियों के जरिए सामाजिक जुड़ाव बढ़ाने और विचारधारा के प्रसार की रणनीति पर जोर रहा;
समन्वय बैठक के समानांतर संघ ने उत्तर प्रदेश में अपने संगठनात्मक ढांचे में बड़ा फेरबदल किया है. 60 से अधिक जिला प्रचारकों को बदला गया है. हर प्रांत में 10 से 15 प्रचारकों की जिम्मेदारियां बदली गई हैं; पश्चिम यूपी, ब्रज, अवध, गोरक्ष, काशी और बुंदेलखंड जैसे छह प्रांतों में यह प्रक्रिया पूरी की गई. यह बदलाव संघ के शताब्दी वर्ष समारोहों की तैयारी के साथ-साथ चुनावी रणनीति से भी जुड़ा हुआ माना जा रहा है. पुराने और कम सक्रिय प्रचारकों की जगह युवा और ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को लाकर संघ ने यह संदेश दिया है कि बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्यों के हिसाब से संगठन अपने ढांचे को नया रूप देने में पीछे नहीं रहेगा.
इस फेरबदल का समय भी अहम है. वर्ष 2019 में BJP ने उत्तर प्रदेश से 62 लोकसभा सीटें जीती थीं, लेकिन 2024 में यह संख्या घटकर 33 रह गई. इस गिरावट ने BJP और संघ दोनों को चिंतित किया. संघ को महसूस हुआ कि जमीन पर पकड़ कमजोर हुई है और विपक्ष ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक यानी पीडीए का नैरेटिव खड़ा कर BJP के जातिगत समीकरणों को चुनौती दी है.
यही कारण है कि संघ ने संगठनात्मक फेरबदल के जरिए प्रचारकों को ऐसी जगह तैनात किया है जहां वे जातिगत और सामाजिक समीकरणों को बेहतर तरीके से समझकर काम कर सकें. संघ का मानना है कि जिला प्रचारक संगठन की रीढ़ होते हैं. वे स्थानीय स्तर पर संवाद कायम करने और समाज को जोड़ने का काम करते हैं. इसलिए अगर प्रचारक सक्रिय और प्रभावशाली होंगे तो BJP की पकड़ भी मजबूत होगी. यही वजह है कि कम प्रदर्शन करने वाले पदाधिकारियों को हटाकर नई पीढ़ी को जिम्मेदारी दी गई है.
संगठनात्मक गतिविधियों के साथ-साथ संघ ने बड़े पैमाने पर हिंदू सम्मेलनों की योजना भी बनाई है. शताब्दी वर्ष समारोह के तहत संघ पूरे देश में एक लाख से ज्यादा हिंदू सम्मेलन आयोजित करेगा. इनमें जातिगत मतभेद, सामाजिक असमानता और आंतरिक भ्रांतियों जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी. दशहरा से शुरू होने वाले ये सम्मेलन संघ के लिए महज धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक इंजीनियरिंग का बड़ा माध्यम होंगे. संघ पदाधिकारियों का कहना है कि हिंदू समाज की सबसे बड़ी चुनौती जातिगत भेदभाव और निचली जातियों का सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन है. सम्मेलनों का उद्देश्य इन विभाजनों को संवाद और पारस्परिक सम्मान के जरिए कम करना है. अगर यह प्रयास सफल होते हैं तो BJP को सीधे तौर पर फायदा मिलेगा क्योंकि विपक्ष का पीडीए नैरेटिव कमजोर पड़ जाएगा.
राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ के अवध कालेज की प्राचार्य बीना राय बताती हैं, “BJP को संघ की इस सक्रियता से कई फायदे मिल सकते हैं. पहला, जमीनी स्तर पर प्रचारकों के जरिए गांव-कस्बों में पैठ बढ़ेगी. दूसरा, हिंदू सम्मेलन और सामाजिक अभियानों से जातिगत खाई पाटने की कोशिश होगी, जिससे ओबीसी और दलित वोटों पर असर पड़ेगा. तीसरा, शिक्षण संस्थानों में प्रभाव बढ़ाने से युवा मतदाता BJP के करीब आएंगे. चौथा, सेवा पखवाड़े जैसी पहलों के जरिए समाज सेवा की छवि बनाकर नए लोगों को जोड़ा जा सकेगा;”
राजनीतिक विश्लेषक स्वीकारते हैं कि यह राह चुनौतियों से भरी है. उत्तर प्रदेश की राजनीति जातिगत आधार पर टिकी है. विपक्ष लगातार सामाजिक न्याय और पीडीए का नैरेटिव मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. बीना राय बताती हैं, “BJP-संघ का हिंदू एकता का एजेंडा तभी सफल होगा जब पिछड़ी और दलित जातियों को इसमें वास्तविक भागीदारी का एहसास होगा. दलित और ओबीसी वर्ग में संघ की छवि अब भी ऊंची जातियों के संगठन की बनी हुई है. अगर हिंदू सम्मेलन महज प्रतीकात्मक रह गए तो इसका उल्टा असर भी हो सकता है.”
एक और चुनौती BJP के भीतर अंतर्विरोधों की है. कई बार संगठन और सरकार के बीच खींचतान सामने आ चुकी है. समन्वय बैठकों के जरिए इस खाई को पाटने की कोशिश हो रही है, लेकिन यह कितना कारगर होगा, कहना मुश्किल है. युवाओं का रुझान भी एक अहम पहलू है. बीना राय के मुताबिक आज का युवा रोजगार, शिक्षा और अवसर जैसे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देता है. वैचारिक मुद्दों का असर सीमित होता है. अगर संघ और BJP इन बुनियादी सवालों पर संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए तो केवल विचारधारा के दम पर समर्थन जुटाना कठिन होगा.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि संघ की मौजूदा रणनीति BJP के लिए दोहरी धार वाली तलवार है. अगर जातिगत खाई पाटने और युवाओं को जोड़ने की कोशिश सफल होती है तो BJP को विपक्ष के नैरेटिव को कमजोर करने में मदद मिलेगी. लेकिन अगर यह कोशिश सतही रह गई तो BJP का आधार और कमजोर हो सकता है. संघ का शताब्दी वर्ष केवल उत्सव का मौका नहीं, बल्कि विस्तार का अवसर है. संगठन चाहता है कि उसकी पकड़ समाज के हर वर्ग, हर क्षेत्र और हर समुदाय में मजबूत हो. प्रचारकों का फेरबदल, हिंदू सम्मेलन, सेवा पखवाड़ा और शिक्षा समूह पर फोकस, सब उसी बड़े एजेंडे का हिस्सा हैं.
उत्तर प्रदेश BJP और संघ दोनों के लिए सबसे अहम राज्य है. यह न केवल लोकसभा में सबसे ज्यादा सीटें देता है बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की दिशा भी यहीं से तय होती है. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में सीटों में आई गिरावट के बाद संघ और BJP दोनों को एहसास हुआ है कि बिना जमीनी सक्रियता और जातिगत संतुलन के चुनावी सफलता पाना कठिन होगा. इस पृष्ठभूमि में संघ की बढ़ती सक्रियता को समझना जरूरी है. पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक संघ की भूमिका निर्णायक होगी. BJP के लिए यह समर्थन वरदान साबित हो सकता है, लेकिन शर्त यही है कि संघ के प्रयास वास्तविक सामाजिक बदलाव का रूप लें. अगर दलित और पिछड़ी जातियों को लगे कि उन्हें बराबरी की हिस्सेदारी मिल रही है तो BJP को बड़ा फायदा होगा. लेकिन अगर यह कोशिश केवल चुनावी गणित तक सीमित रह गई तो विपक्ष के पीडीए नैरेटिव के सामने BJP कमजोर पड़ सकती है.