साल भर वीरान रहने वाले पुष्कर के रेतीले धोर नवंबर के पहले हफ्ते से देशी-विदेशी सैलानियों और ऊंट-घोड़ों से पटे पड़े हैं. सावित्री पहाड़ी की तलहटी में दूर-दूर तक हर तरफ बड़े-बड़े तंबू और अस्तबल नजर आते हैं. जो इस ओर इशारा करते हैं कि डेढ़ सौ साल बाद भी अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले की चमक कम नहीं पड़ी है.
पुष्कर ऊंट मेले के नाम से मशहूर इस मेले में इस बार ऊंट की जगह घोड़े ज्यादा आए हैं. इस बार मेले में 23 करोड़ के भैंसे और 11 करोड़ के एक घोड़े ने हर किसी की नज़र अपनी ओर खींची है. पुष्कर मेले के बीचों-बीच बड़ी सी जगह में दर्जनों टेंट लगाकर बनाए गए वीर स्टडी फार्म में 11 करोड़ रुपए के कर्मदेव और 7 करोड़ रुपए के ब्रह्मदेव को देखने के लिए भारी भीड़ जुट रही है.
फार्म के संचालक गुरुप्रताप सिंह गिल (गैरी गिल) दावा करते हैं, "कर्मदेव और ब्रह्मदेव देश के सबसे ऊंचे घोड़ों में शुमार हैं. कर्मदेव की ऊंचाई 72 इंच और ब्रह्मदेव की ऊंचाई 70 इंच है." गैरी गिल के फार्म में 85 घोड़े हैं जिनमें से 9 घोड़े स्टैलियन हैं. इनमें ब्रह्मदेव, कर्मदेव, लाल विराट, नागेश्वर, बाहुबली और शाहबाज जैसे स्टैलियन घोड़े प्रमुख हैं.
स्टैलियन घोड़े की खास बात ये होती है कि इनकी कद-काठी बहुत बेहतर होती है तथा गर्दन मोटी और शिखायुक्त (क्रैस्टी) होती है. इन घोड़ों में टेस्टेस्टेरोन हार्मोन ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है जिसके कारण इन्हें ब्रिडिंग के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. स्टैलियन घोड़ों का शरीर बधियाकरण किए हुए घोड़ों से ज्यादा मांसल और हस्ट-पुष्ट होता है.
घोड़ों में वंश परंपरा का भी अहम योगदान होता है. कर्मदेव और ब्रह्मदेव की एक खासियत ये भी है कि इनका खानदान बहुत गौरवशाली रहा है. कर्मदेव तूफान और ब्रह्मदेव आलीशान खानदान का घोड़ा है. कर्मदेव के बारे में यह कहा जा रहा है कि यह महाराणा प्रताप के चेतक घोड़े की नस्ल का मारवाड़ी घोड़ा है. वह तूफान के बेटे द्रोण से पैदा हुआ है.
कर्मदेव की मां देवदरबार लाइन की है. कर्मदेव के पिता द्रोणा और दादा तूफान भी ऊंची कद-काठी के घोड़े रहे हैं. द्रोणा जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह के पास रहा है. ब्रह्मदेव पंचकल्याणक घोड़ा है जिसके माथे और पैरों के नीचले हिस्से का सफेद रंग है. इस घोड़े को शुभ माना जाता है. आलीशान का बेटा काला कांटा, काला कांटा का बेटा जंगवीर और जंगवीर का बेटा ब्रह्मदेव है.
कर्मदेव और ब्रह्मदेव के नामकरण की भी एक अलग कहानी है. गुरुप्रताप बताते हैं, "4 साल और 3 महीने पहले कोविड में जिस दिन कर्मदेव का जन्म हुआ, उसी दिन मैंने 5 घोड़े बेचे. मुझे यह कर्मदेव के जन्म का कर्म लगा. इसी कारण उसका नाम कर्मदेव रखा. ब्रह्मदेव पंचकल्याणक घोड़ा है, उसके जैसा घोड़ा ब्रह्मांड में मिलना मुश्किल है, इसलिए उसका नाम ब्रह्मदेव रख दिया. दो दांत निकलने पर कर्मदेव की कीमत 11 करोड़ रुपए लग चुकी है, लेकिन फिलहाल हमारा इसे बेचने का मन नहीं है. कर्मदेव के 3 बच्चे हैं और ब्रह्मदेव के एक बच्चा है. जब इन दोनों की नस्ल से 20-22 घोड़े पैदा हो जाएंगे तभी वो इन्हें बेचने के बारे में विचार करेंगे."
पुष्कर पशु मेले में आए ज्यादातर घोड़े हॉर्स शो और ब्रीडिंग के काम आते हैं. कर्मदेव और ब्रह्मदेव के साथ ब्रीडिंग की कीमत ढाई लाख रुपए है, वहीं इस मेले में कई ऐसे घोड़े हैं जिनके साथ ब्रीडिंग का खर्च 50 हजार से लेकर दो लाख रुपए तक है. कुछ साल पहले तक पुष्कर पशु मेले में आने वाले घोड़ों को जहां पैरों से बांधकर रखा जाता था वहीं अब हर घोड़े के लिए अलग-अलग पैडॉक (ठहरने का स्थान) बनाए जाने लगे हैं. अलग-अलग टैंट में बनाए गए इन पैडॉक में घोड़ों की सुख-सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा जाता है. पैडॉक शुरू करने का श्रेय भी गुरुप्रताप सिंह को ही जाता है.
ऐसा भी नहीं है कि पुष्कर पशु मेले में हर घोड़े की कीमत करोड़ों रुपए हो. यहां लाए जाने वाले हजारों घोड़ों की कीमत औसतन 50 हजार से पांच लाख रुपए के बीच ही है. पंजाब के फरीदकोट से 30 घोड़ों के साथ पुष्कर आए रणजीत सिंह कहते हैं, "मैं पिछले 25 साल से पुष्कर मेले में आ रहा हूं. हर बार हमारे आधे घोड़े बिक जाते हैं जिनकी औसत कीमत 1 लाख से पांच लाख के बीच ही रहती है."
समय के साथ पुष्कर पशु मेले में कई बदलाव भी आए हैं. इस मेले में पशुओं से भी ज्यादा गाड़ियां नजर आने लगी हैं. ब्रह्माघाट के पास लगने वाला यह मेला अब पुष्कर के बाहर रेत के टीलों में शिफ्ट हो गया है, लेकिन वहां भी पशुओं से ज्यादा गाड़ियों की भागा-भागी नजर आती है.
उदयपुर में घोड़ों का फार्म चलाने वाले दिनेश जैन कहते हैं, "आज पुष्कर मेले में शोबाजी ज्यादा हो गई है. मैं 40 साल से इस मेले में आ रहा हूं. आज इस मेले में घोड़ों से ज्यादा गाड़ियां हैं जो सीधे घोड़े के मुंह तक आने लगी हैं जिसके कारण घोड़े असहज महसूस कर रहे हैं. कभी पुष्कर ऊंट मेले के नाम से जाना जाने वाला यह मेला अब कुछ महंगे घोड़ों, ऊंटों और भैंसों तक सिमट कर रह गया है."
रॉल्स रॉयस से महंगा भैंसा
पुष्कर पशु मेले में इस बार चर्चा अनमोल की है. अनमोल किसी शख्स का नहीं बल्कि एक भैंसे का नाम है. अनमोल की कीमत 23 करोड़ रुपए बताई जा रही है. यह पहली बार है कि पुष्कर मेले में किसी भैंसे की इतनी कीमत बताई जा रही है. हालांकि, भैंसे के मालिक परमिंदर गिल उसे बेचने के लिए तैयार नहीं हैं. वो दावा करते हैं कि उत्तर प्रदेश के पशु मेले में इसकी 23 करोड़ रुपए कीमत लग चुकी है.
परमिंदर का यह भी कहना है कि अनमोल की 'मां' 25 किलोग्राम दूध देती थी और अनमोल की पहली 'बेटी' ने 21 किलोग्राम दूध दिया है. भैंसे को बेचने के सवाल पर परमिंदर गिल कहते हैं, "यह हमारा भाई है, भाई को कोई बेचता थोड़े ही है."
हरियाणा के सिरसा जिले से आए अनमोल भैंसे का वजन 1500 किलोग्राम है और उसकी लंबाई 13 फीट है. यह भैंसा कई प्रतियोगिताओं का विजेता रहा है. ऊंचाई पांच फीट आठ इंच है. यह मुर्रा नस्ल का भैंसा है. अनमोल रोजाना 300 ग्राम ड्राई फ्रूट और दो किलोग्राम फल खाता है. अनमोल के सीमन की कीमत प्रति सीमन 250 रुपए है. जब इसे घर से दूर कहीं लेकर जाना होता है तो यह शराब भी पीता है. परमिंदर कहते हैं, "वैसे तो यह 3 बोतल तक शराब पी जाता है, लेकिन जब भी इसे हम कहीं बाहर लेकर जाते हैं तो थकान मिटाने के लिए एक बोतल अंग्रेजी शराब पीता है."