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दानिश अली से राहुल गांधी की मुलाकात के गहरे सियासी मायने भी हैं

लोकसभा में बसपा सांसद दानिश अली पर भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी की आपत्तिजनक टिप्पणियों के खिलाफ कांग्रेस खासी सक्रिय दिख रही है. इस घटना के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अली से मुलाकात भी की है

कांग्रेस नेता राहुल गांधी बसपा सांसद दानिश अली के साथ
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बसपा सांसद दानिश अली के साथ
अपडेटेड 23 सितंबर , 2023

भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा संसद में दानिश अली के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने के एक दिन बाद, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 22 सितंबर को नई दिल्ली में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अमरोहा से सांसद दानिश अली से उनके आवास पर मुलाकात की थी.

बसपा सांसद से एकजुटता दिखाने के लिए, राहुल गांधी ने अमरोहा के सांसद को गले लगाया. वायनाड सांसद ने अली को अपना समर्थन घोषित करते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट में अपना 'नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान'  नारा भी दोहराया. 

लोकसभा के घटनाक्रम के बारे में दानिश अली बताते हैं, “भाजपा सांसद सदन में बोल रहे थे. भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि कुछ लोग चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी कुत्ते की तरह मरें. मैंने हस्तक्षेप किया और कहा कि किसी ने भी माननीय प्रधानमंत्री के बारे में ऐसा नहीं कहा. फिर उन्होंने मुझे ऐसे नामों से बुलाया जिनमें 'आतंकवादी' भी शामिल था. मैं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी से पूछना चाहता हूं कि उनकी शाखाओं में क्या सिखाया जाता है? क्या भाजपा सांसद ने प्रधानमंत्री मोदीजी की पाठशाला में यही सीखा है?” 

सदन में हंगामे के बाद निचले सदन के अध्यक्ष ने टिप्पणी को हटा दिया और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसके लिए तुरंत माफी मांगी. जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व छात्र  और छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय दानिश अली बिधूड़ी के खिलाफ सदन में विशेषाधिकार प्रस्ताव लाए और कहा कि अगर लोकसभा अध्यक्ष ओम ओम बिड़ला बिधूड़ी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते हैं, तो वे संसद छोड़ने पर विचार कर सकते हैं. बसपा सरकार विरोधी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा नहीं है. इसके बावजूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी का अचानक दानिश अली के घर पहुंचना दोनों दलों के बीच रिश्ते सुधारने की एक बड़ी कवायद जान पड़ती है. राहुल गांधी से मुलाकात पर दानिश अली ने कहा, ''वे मेरा मनोबल ऊंचा रखने और अपना समर्थन देने के लिए यहां आए... उन्होंने कहा कि मैं अकेला नहीं हूं और जो भी लोग लोकतंत्र के साथ खड़े हैं, वे मेरे साथ खड़े हैं...''

सदन में बसपा से ज्यादा कांग्रेस इस मुद्दे पर मुखर दिखाई दे रही है. कांग्रेस के लोकसभा नेता अधीर चौधरी ने इस घटना पर ओम बिड़ला को पत्र लिखा और कहा कि संसद के इतिहास में अल्पसंख्यक समुदाय के किसी सदस्य के खिलाफ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया और वह भी अध्यक्ष की उपस्थिति में. अधीर चौधरी ने रमेश बिधूड़ी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की मांग भी की है. 

दानिश अली प्रकरण पर कांग्रेसी नेताओं की सक्रियता यह जाहिर कर रही है कि पार्टी यूपी में ‘इंडिया’ गठबंधन का विस्तार करना चाहती है. यूपी के राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चाएं चल रही हैं कि दोनों पार्टि‍यां फिर से संपर्क में हैं, हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती घोषणा कर चुकी हैं कि उनकी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी. कई कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी और मायावती के बीच बातचीत का दावा भी कर रहे हैं. 

गांधी परिवार के करीबी होने का दावा करने वाले एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, "मायावती और प्रियंका गांधी के बीच दो बार फोन पर बात हो चुकी है." इस बीच यूपी में कांग्रेस और ‘इंडिया’ में शामिल समाजवादी पार्टी के बीच सबकुछ ठीक नहीं दिख रहा है. हालांकि घोसी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने सपा उम्मीदवार को समर्थन दिया था, लेकिन सपा ने उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा किया. घोसी में जहां सपा उम्मीदवार को जीत मिली, वहीं बागेश्वर में कांग्रेस हार गई. इसके बाद यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने सपा को कांग्रेस प्रत्याशी की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया था. ‘इंडिया’ गठबंधन में खुद को बड़े भाई की भूमिका में मानकर चल रही सपा को बैलेंस करने के‍ लिए कांग्रेसी नेता बसपा को इसमें शामिल करने का जोर लगाए हुए हैं. 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर दलित नेता ब्रजलाल खाबरी को हटाकर अजय राय को कमान सौंपना बसपा को एक सकारात्मक संदेश देने की ही रणनीति थी. इसके साथ ही आज समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर को ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल न करके भी बसपा के लिए पूरी गुंजाइश बनाकर रखी गई है. राजनीतिक टिप्पणीकार और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में इतिहास विभाग के प्रोफेसर सुशील पांडे बताते हैं, "बसपा और कांग्रेस के एक साथ आने से जीतने की संभावना सपा और कांग्रेस की तुलना में अधिक है. सपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में विफल साबित हुआ था. चुनाव बाद खुद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि कांग्रेस का वोट सपा को ट्रांसफर ही नहीं हुआ था. जबकि बसपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन एक ऐसे दलित-मुस्ल‍िम गठजोड़ की नींव रखेगा जिस पर अगर सही दिशा में प्रयास किया गया तो दूसरी जातियां व अपर कास्ट का झुकाव भी हो सकता है.”

पांडेय के मुताबिक अगर कांग्रेस बसपा का गठबंधन नहीं भी होता है तो भी कांग्रेस अपने बूते पश्च‍िमी यूपी में दलित-मुस्ल‍िम गठजोड़ का पूरा प्रयास करेगी. दानिश अली के प्रति बेहद सकारात्मक रवैया कांग्रेस को कम से कम पश्च‍िमी यूपी की मुस्लिम राजनीति में गहरी पैठ दिलाने की कोशि‍श करेगा. 

अमरोहा से बसपा सांसद दानिश अली की पहले से कांग्रेस से करीबी दिखाई देती रही है. कर्नाटक में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान अली जद (एस) और कांग्रेस के चुनाव बाद गठबंधन के पीछे मुख्य चेहरे के रूप में सामने आए थे. जद (एस) सुप्रीमो एचडी देवेगौड़ा के भरोसेमंद और पार्टी के तत्कालीन महासचिव दानिश अली को दोनों पार्टियों द्वारा गठित पांच सदस्यीय गठबंधन समन्वय और निगरानी समिति का संयोजक नामित किया गया था.
2019 के लोकसभा चुनाव में दानिश अली यूपी के अमरोहा से बसपा के उम्मीदवार बने. अमरोहा अली के गृहनगर हापुड़ से बहुत दूर नहीं था.

उस वक्त अली ने कहा था कि बसपा से उनकी उम्मीदवारी जद (एस) की सहमति से थी. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की लेकिन सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में दानिश हली अमरोहा संसदीय सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. अमरोहा संसदीय क्षेत्र में मुसलमानों का प्रभुत्व है, और यहां बड़ी संख्या में दलित भी रहते हैं. दानिश अली ने लगभग 51% वोट हासिल कर तत्कालीन मौजूदा बीजेपी सांसद कुंवर सिंह तंवर को 63,000 से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. 

माना जाता है कि नई दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में छात्र जीवन के दौरान युवा जनता दल के साथ-साथ जनता दल की छात्र इकाई के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल अली को जद (एस) की ओर ले गया था. वे सभी मुद्दों पर अपने मन की बात कहने के लिए जाने जाते हैं, चाहे वह उनके निर्वाचन क्षेत्र में हों या दिल्ली में. इस दौरान अली तेजी से राष्ट्रीय राजनीति में बसपा के अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में उभरे हैं. कुछ समय के लिए उन्होंने लोकसभा में 10 सदस्यीय बसपा विधायक दल का नेतृत्व भी किया. 

पार्टी लाइनों से परे संबंधों के लिए पहचाने जाने वाले अली ने पिछले महीने ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक से पहले बिहार में जेडीयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर हलचल मचा दी थी. वह भी उस वक्त जब बसपा ने इस विपक्षी खेमे से दूरी बना रखी थी. अली ने बाद में स्पष्ट किया कि यह दौरा निजी था और वे नीतीश को उनके छात्र नेता के दिनों से जानते हैं. रमेश विधूड़ी के साथ संसद में टकराव हाल के दिनों में किसी भाजपा नेता के साथ अली का पहला सार्वजनिक विवाद नहीं है. अमरोहा रेलवे स्टेशन के नए स्वरूप के शुभारंभ के अवसर पर 6 अगस्त को एक कार्यक्रम के दौरान उनकी तीखी बहस भाजपा एमएलसी हरि सिंह ढिल्लों से हुई थी. 

ढिल्लों ने अपने भाषण के दौरान ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाया था. मंच पर मौजूद अली ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह भाजपा का कार्यक्रम नहीं है. जैसे ही मौजूद भीड़ ने भी नारा लगाना शुरू किया, यह दोनों नेताओं के बीच तीखी बहस में बदल गई, जो कैमरे में कैद हो गई थी. भाजपा ने तीन दिन बाद उत्तर प्रदेश विधान परिषद, जिसके ढिल्लन सदस्य हैं, के मानसून सत्र के दौरान इस मुद्दे को उठाया था. तब भाजपा एमएलसी उमेश द्विवेदी ने ‘भारत माता की जय’ पर आपत्ति जताने के लिए अली के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश किया था और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित पार्टी सदस्यों ने इसका समर्थन किया था. 

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