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BSF जवान की पाकिस्तान से वापसी पर कैसे भिड़ रहे हैं टीएमसी और बीजेपी?

BSF जवान पूर्णम शॉ की पाकिस्तान से वापसी का श्रेय लेने के लिए ममता बनर्जी और बीजेपी में होड़ मची है

पाकिस्तान की बंधकी से वापस लौटे BSF जवान पूर्णम शॉ (गोल घेरे में)
पाकिस्तान की बंधकी से वापस लौटे BSF जवान पूर्णम शॉ (गोल घेरे में)
अपडेटेड 15 मई , 2025

मई की 14 तारीख को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान पूर्णम कुमार शॉ पाकिस्तान की हिरासत से सुरक्षित वापस आ गए. उनकी यह वापसी पश्चिम बंगाल में उनके परिवार और गांव वालों के लिए राहत और जश्न की बात थी.

लेकिन इस खुशी से परे, इसने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच एक जाने-पहचाने राजनीतिक नाटक को जन्म दिया, और दोनों दल सैनिक की वापसी से राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश में लग गए.

असल में, इस खींचतान के केंद्र में एक युवा सैनिक था जो पंजाब में भटक कर सीमा पार कर गया और पाकिस्तान चला गया था. पाकिस्तान ने उसे तीन सप्ताह तक बंदी बनाकर रखा. उसकी रिहाई (जो निस्संदेह जटिल गोपनीय बातचीत का नतीजा थी) टीएमसी और बीजेपी के बीच श्रेय लेने की होड़ बन गई.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 14 मई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य सरकार के निरंतर प्रयासों और मानवीय चिंता की बात कही. उन्होंने कहा, "हम बीएसएफ जवान पूर्णम शॉ की पत्नी रजनी के साथ लगातार संपर्क में थे और उनसे 4-5 बार बात की."

सीएम ममता ने कहा, "हमारी तरफ से लगातार प्रयास किए गए. हमारे (बंगाल के) डीजीपी अपने बीएसएफ समकक्ष के साथ लगातार संपर्क में थे. मैंने परसों रजनी को बताया कि उनके पति स्वस्थ हैं और उनकी हालत में सुधार है, हालांकि उनकी रिहाई की प्रक्रिया में कुछ समय लगेगा. उन्हें आज सुबह रिहा कर दिया गया. मैं खुश हूं. उनका परिवार खुश है. पूरा देश खुश है."

ममता ने वीकेंड (17-18 मई) के लिए जिले भर में रैलियां आयोजित करने की घोषणा की, जिसमें "जवानों को श्रद्धांजलि दी जाएगी और मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों के परिवारों के प्रति संवेदना जाहिर की जाएगी." उन्होंने खास तौर पर कहा, "दूसरों की तरह, हम इस मामले को राजनीतिक रूप से नहीं देखते. न मैंने कोई टिप्पणी की, न हमारे पार्टी सदस्यों ने और न ही राज्य सरकार ने. शहीदों को सम्मान देना हमारा कर्तव्य है."

इसके बावजूद, टीएमसी ने ममता की तारीफ में एक सोशल मीडिया पोस्ट जारी की. उसमें लिखा, " ममता बनर्जी लोगों के सुख-दुख दोनों में साथ हैं. शुरू से ही ममता बनर्जी बंगाल के रिशरा के रहने वाले बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ के परिवार के लिए हमेशा से सहारा रही हैं, जिन्हें पाकिस्तानी रेंजर्स ने बंधक बना लिया था. आज, उनके सुरक्षित लौटने के बाद, उन्होंने उनकी पत्नी से बात की और उन्हें अपनी शुभकामनाएं दीं."

इधर, बीएसएफ जवान की पत्नी रजनी ने सार्वजनिक रूप से सीएम ममता, स्थानीय टीएमसी नेताओं और श्रीरामपुर सांसद कल्याण बनर्जी को अनिश्चितता के दिनों में उनके "समर्थन और आश्वासन" के लिए धन्यवाद दिया. इन शब्दों को टीएमसी की मीडिया मशीनरी ने जल्दी ही पार्टी की सक्रिय भूमिका के प्रमाण के रूप में प्रचारित किया.

बीजेपी के पास इस चित्रण या प्रचार का विरोध करने के लिए सभी कारण थे. पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने तुरंत जवाब दिया. उन्होंने लिखा, "पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और श्रीरामपुर से टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी की बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को पाकिस्तान से वापस लाने में कोई भूमिका नहीं थी - सिवाय प्रेस कॉन्फ्रेंस करने और परिवार पर दबाव डालने के."

मालवीय ने पिछले विवादों से भी तुलना करते हुए कहा, "ममता बनर्जी ने आरजी कर पीड़ित के माता-पिता के साथ भी इसी तरह की धमकाने वाली रणनीति अपनाई थी. टीएमसी अंदर से सड़ चुकी है. इसे सुधार की जरूरत है." कटाक्ष स्पष्ट था - टीएमसी की पहल एकजुटता की सहज अभिव्यक्ति नहीं थी, बल्कि राष्ट्रवादी भावना के एक पल पर एकाधिकार करने की रणनीति थी.

टीएमसी ने प्रेस ब्रीफिंग की और रैलियां आयोजित कीं, वहीं बंगाल में बीजेपी नेतृत्व ने अपने प्रतीकात्मक इशारों का सहारा लिया. कथित तौर पर राज्य बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने शॉ के पिता से वीडियो कॉल पर बात की और उनसे उनके घर आने का आग्रह किया- इस आमंत्रण को बीजेपी की भागीदारी के समर्थन के रूप में देखा गया. बीजेपी के सुवेंदु अधिकारी, जो बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, ने पिछले दिनों दोहराया था कि वे और उनकी पार्टी "पूर्णम को वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं."

इधर, 14 मई को सुवेंदु अधिकारी शॉ परिवार से मिले, उधर बीजेपी के विधायक कोलकाता में पार्टी के राज्य मुख्यालय में सशस्त्र बलों को श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा हुए. ऐसा लग रहा था कि रणनीति खुद को राष्ट्रीय सुरक्षा के सच्चे चैंपियन और रक्षा कर्मियों और उनके परिवारों की भावनाओं से जुड़ी पार्टी के रूप में पेश करना था.

लेकिन जिस बात ने इस राजनीतिक ड्रामेबाजी को और भी अधिक प्रभावशाली बना दिया, वह थी कामों में समानता - प्रत्येक पार्टी एक दूसरे के प्रतीकात्मक हाव-भाव की नकल करते हुए, एक दूसरे पर अवसरवाद का आरोप लगा रही थी.

ममता ने इस मुद्दे का राजनीतिकरण न करने का दावा किया, लेकिन उनके काम विरोधाभासी थे. राजनीतिक तटस्थता के उनके दावों के बावजूद ब्लॉक और वार्ड स्तर की रैलियों का कार्यक्रम तय करने से यह जाहिर हो गया कि पार्टी इस आयोजन के इर्द-गिर्द देशभक्ति की भावना को अपने भीतर समाहित करने की कोशिश कर रही थी.

बीजेपी का नजरिया ज्यादा साफ था. अलगाव का दिखावा करने के बजाय, इसके नेताओं ने खुले तौर पर टीएमसी के नैरेटिव को चुनौती दी, इसे बलपूर्वक और बेईमान करार दिया. नैतिक ध्रुवीकरण- देशभक्ति बनाम राजनीतिक हेरफेर- का उद्देश्य मतदाताओं के बीच पार्टी की अपील को मजबूत करना था, जो सशस्त्र बलों को पवित्र और पार्टी लाइनों से परे मानते हैं.

- अर्कमोय दत्ता मजूमदार.

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