केंद्र सरकार ने 22 सितंबर से नई GST दरें लागू करने की घोषणा की है. इनके तहत अब 12 फ़ीसदी और 28 फ़ीसदी के स्लैब को ख़त्म कर 5 फ़ीसदी और 18 फ़ीसदी कर दिया गया है. जबकि लग्ज़री सामानों पर 40 फ़ीसदी का नया स्लैब जोड़ा गया. इस खबर से सब जगह उत्साह का माहौल है. लोगों को उम्मीद है कि अब रोजमर्रा के कई सामान सस्ते होंगे.
कारोबारियों का एक बड़ा तबका भी इससे खुश है कि उनका सामान ज्यादा बिकेगा लेकिन इनके लिए मुसीबत अभी-भी कम नहीं हुई है. इसकी बानगी दिखती है उत्तर प्रदेश के राज्य कर विभाग में. यह प्रदेश सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा आधार है.
वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने के बाद इसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई, लेकिन हाल के महीनों में इस विभाग के भीतर रिश्वतखोरी, अवैध वसूली और मनमानी के कई मामले सामने आए हैं. इसके बाद सवाल उठने लगा है कि यह विभाग राज्य के आर्थिक सेहत ठीक रखने के लिए बना है या अपनी हरकतों से पूरी सरकार को बदनाम करने के लिए.
रामपुर जिले में 3 सितंबर को जो हुआ उसने इस सवाल को और पैना कर दिया. यहां राज्य कर विभाग के सहायक आयुक्त सतीश कुमार को विजिलेंस टीम ने रंगे हाथ पकड़ लिया. आरोप था कि उन्होंने एक व्यापारी से GST रजिस्ट्रेशन कराने के नाम पर 25 हजार रुपये की मांग की थी. शिकायतकर्ता आले नबी अपनी पत्नी के नाम से फर्म खोलना चाहते थे. उन्होंने सीधे विजिलेंस से संपर्क किया. टीम ने जाल बिछाया और जैसे ही अधिकारी ने 15 हजार रुपये लिए, मौके पर दबिश डालकर गिरफ्तारी कर ली गई. बरेली सेक्टर के एसपी विजिलेंस अरविंद कुमार यादव का कहना है, “शिकायत मिलते ही हमने टीम बनाकर जाल बिछाया. यह स्पष्ट संदेश है कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”
मुरादाबाद के एक व्यापारी सलीम अंसारी का अनुभव भी इस व्यवस्था की पोल खोलता है. उनका कहना है, “GST नंबर बनवाना छोटे व्यापारी के लिए सिरदर्द है. अधिकारी बार-बार कागजों में कमी बताकर पैसे की मांग करते हैं. अगर कोई सीधे इनकार कर दे तो उसका रजिस्ट्रेशन महीनों लटका रहता है.”
गाजियाबाद जोन-द्वितीय में तैनात राज्य कर अधिकारी रेनू पांडेय को 17 अगस्त को निलंबित किया गया. यह वही अधिकारी हैं जिन्होंने एक आइएएस अधिकारी पर महिला उत्पीड़न का आरोप लगाया था. रेनू पांडेय पर आरोप था कि उन्होंने लखनऊ की कंपनी ‘बडी एंटरप्राइजेज’ से ढाई से तीन लाख रुपये की वसूली की. शिकायतकर्ता ने विजिलेंस को ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग सौंपी थी. राज्य कर आयुक्त नितिन बंसल ने आदेश जारी करते हुए साफ कहा, “इस तरह के गंभीर भ्रष्टार से विभाग की छवि धूमिल होती है. दोषी पाए जाने पर सख्त से सख्त कार्रवाई होगी.” इस मामले पर गाजियाबाद के कारोबारी मनोज अग्रवाल ने कहा, “हम लोग हर महीने टैक्स भरते हैं, फिर भी हमें अफसरों की नजर में चोर समझा जाता है. अगर कोई रिकॉर्डिंग न करता तो यह अधिकारी बच जाती.”
मुजफ्फरनगर में मामला और गंभीर निकला. यहां 30 जुलाई को “इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन” (IIA) के सदस्यों ने जोरदार हंगामा किया. आरोप था कि राज्य कर अधिकारी हिमांशु लाल ने एक उद्यमी से 50 लाख रुपये की रिश्वत मांगी. उद्यमी को छापे की धमकी देकर दबाव बनाया गया और अंततः 10 लाख रुपये की एकमुश्त रकम और हर महीने 50 हजार रुपये देने का प्रस्ताव थमाया गया. मुजफ्फरनगर में IIA के एक पदाधिकारी का कहना है, “जब अधिकारी खुद व्यापारी को ब्लैकमेल करने लगे तो उद्योग कैसे आगे बढ़ेगा? यह सिर्फ एक व्यापारी का मामला नहीं है, बल्कि पूरे उद्योग जगत की समस्या है.” इस मामले को लेकर बिजनौर के एक उद्यमी नरेश चौधरी ने भी कहा, “हम लोग निवेश करना चाहते हैं, फैक्ट्री लगाना चाहते हैं, लेकिन इस विभाग का खौफ सबसे बड़ी बाधा है. अधिकारी आए दिन नई धमकी देते रहते हैं.”
भ्रष्टाचार का यह चेहरा सिर्फ रिश्वत तक सीमित नहीं रहा. कानपुर जोन के एडिशनल कमिश्नर ग्रेड-दो रहे केशव लाल पर लंबे समय से आरोप थे कि वे कर चोरों का साथ देते हैं और अपने जूनियर अधिकारियों को डराते हैं. उन्हें 2017 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी, लेकिन जांच आगे बढ़ी तो उनके पास आय से अधिक संपत्ति मिली. विजिलेंस ने खुलासा किया कि उनके पास दस करोड़ रुपए से अधिक नकद, तीन करोड़ से अधिक के जेवर और करोड़ों की अचल संपत्ति है. इस मामले में सरकार ने इतिहास रचते हुए उनकी पेंशन की सौ प्रतिशत कटौती कर दी. वित्त विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “पेंशन काटने जैसा कठोर कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि यह संदेश देना जरूरी था कि कोई भी अधिकारी कितना भी बड़ा हो, अगर भ्रष्ट है तो उसे छोड़ा नहीं जाएगा.”
व्यापारी संगठनों की सबसे बड़ी शिकायत यही है कि GST लागू होने के बाद राज्य कर विभाग के अधिकारी अपनी ताकत का दुरुपयोग कर रहे हैं. कई बार बिना वजह दुकान या गोदाम पर छापा मार दिया जाता है. GST नंबर दिलाने में जानबूझकर देरी की जाती है और गाड़ियों को रोककर हजारों-लाखों का जुर्माना ठोक दिया जाता है. लखनऊ व्यापार मंडल के एक पदाधिकारी कहते हैं, “GST का मकसद कर प्रणाली को सरल बनाना था, लेकिन हमारे लिए यह अफसरों की कमाई का नया जरिया बन गया. जब तक पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन और पारदर्शी नहीं होगी, तब तक यह समस्या बनी रहेगी.” वाराणसी के कपड़ा कारोबारी सुशील सर्राफ ने भी गुस्सा जाहिर करते हुए कहा, “छोटा व्यापारी हर महीने बहीखाते और फाइलिंग में उलझा रहता है. ऊपर से अधिकारी पैसे मांगते हैं. आखिर हम कब तक सहेंगे?”
भ्रष्टाचार की जड़ें सचल दल इकाइयों तक जाती हैं. ये मोबाइल यूनिट्स होती हैं, जो वाहनों की जांच करती हैं. व्यापारियों का आरोप है कि इन दलों में तैनाती के लिए बोली लगती है और ये मलाईदार पोस्टिंग मानी जाती हैं. खाली पदों की समस्या ने इसे और गंभीर बना दिया है. विभाग में सहायक आयुक्त और राज्य कर अधिकारियों के सैकड़ों पद खाली हैं. आर्थिक मामलों के वकील संजीव पांडेय बताते हैं, “कम अधिकारियों के हाथ में ज्यादा शक्ति आ गई है और इसका दुरुपयोग हो रहा है. GST के जटिल नियम और फॉर्म भी छोटे व्यापारियों के लिए मुसीबत हैं. वे आसानी से समझ नहीं पाते और यही अफसरों को घूसखोरी का अवसर देता है. भले ही विजिलेंस सक्रिय है, लेकिन अधिकतर मामले सामने ही नहीं आ पाते क्योंकि छोटे व्यापारी डर के कारण शिकायत दर्ज नहीं कराते.”
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल में वाणिज्य कर विभाग की समीक्षा बैठक में तल्ख तेवर दिखाए थे. इसके बाद विजिलेंस की कार्रवाई तेज हुई है. दोषी पाए जाने पर अधिकारियों को तुरंत निलंबित किया जा रहा है और पेंशन कटौती जैसे कठोर कदम उठाए जा रहे हैं. सचल दल पर अंकुश लगाने के लिए योजना बनाई गई है कि अब इनमें प्रतिनियुक्ति पर अन्य विभागों के अधिकारी भेजे जाएंगे. प्रमुख सचिव वाणिज्य कर एम. देवराज का कहना है, “हमारी प्राथमिकता है कि विभाग की छवि सुधरे और व्यापारी निडर होकर कारोबार करें. सचल दल में साफ रिकॉर्ड वाले अधिकारियों को ही जिम्मेदारी दी जाएगी.”
भ्रष्टाचार कुछ अधिकारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम में फैला हुआ है. GST पोर्टल भी अभी तक इतना यूजर फ्रेंडली नहीं है कि व्यापारी बिना अफसरों की मदद के अपना काम कर सकें. मुरादाबाद के हार्डवेयर व्यापारी शकील अहमद ने कहा, “जब तक सिस्टम आसान नहीं होगा, तब तक हम जैसे लोग हमेशा भ्रष्ट अफसरों के शिकार रहेंगे.” इसीलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि विभाग को पूरी तरह डिजिटल करना होगा. हर स्तर पर प्रक्रिया ऑनलाइन होनी चाहिए. व्हिसल ब्लोअर को सुरक्षा मिलनी चाहिए और विभागीय जांच छह महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए. हर जोन का रिपोर्ट कार्ड जारी होना चाहिए और व्यापारी संगठनों के साथ नियमित संवाद होना चाहिए.
रामपुर से लेकर मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद से कानपुर तक फैले मामले यह साबित करते हैं कि राज्य कर विभाग में भ्रष्टाचार गहरी जड़ें जमा चुका है. छोटे व्यापारी से लेकर बड़े उद्योगपति तक इसकी चपेट में आते हैं. सरकार ने कार्रवाई की शुरुआत की है- रंगे हाथ गिरफ्तारी, निलंबन और पेंशन कटौती जैसे कठोर कदम उठाए गए हैं. लेकिन सवाल यही है कि क्या इन कार्रवाइयों से सिस्टम की सूरत बदलेगी या फिर विभाग पुराने ढर्रे पर चलता रहेगा? वाराणसी के व्यापारी रमेश गुप्ता कहते हैं, “हर सरकार यही कहती है कि भ्रष्टाचार खत्म होगा. कुछ अफसर पकड़ भी जाते हैं, लेकिन सिस्टम वही रहता है. जब तक नियम सरल नहीं होंगे और अधिकारी जवाबदेह नहीं होंगे, कुछ नहीं बदलेगा.” राज्य कर विभाग के भीतर सुधार की जरूरत अब सिर्फ विभागीय मुद्दा नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की पूरी वित्तीय विश्वसनीयता का सवाल बन चुका है.