
बीजेपी इस समय ऑपरेशन सिंदूर के समर्थन में पूरे देश में तिरंगा यात्रा निकाल रही है. इसी कड़ी में 14 मई को बिहार की राजधानी पटना में भी पार्टी ने तिरंगा यात्रा निकाली. वैसे तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा कि यह यात्रा बिल्कुल राजनीतिक नहीं है, यह देशभक्ति की भावना का स्वतःस्फूर्त प्रदर्शन है. मगर आनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस तिरंगा यात्रा को बिहार में बीजेपी की चुनावी लाभ लेने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. इसलिए जब इस मद्देनजर राजद नेता तेजस्वी यादव से पत्रकारों ने सवाल पूछा तो उन्होंने अपनी राजनीतिक चतुराई का प्रदर्शन करते हुए कहा, “हम तो पाकिस्तान में तिरंगा यात्रा निकालना चाहते हैं.”
पटना में हुई तिरंगा यात्रा के लिए बिहार बीजेपी ने बहुत ही सोच-समझकर जगह और रूट का चुनाव किया था. इसकी शुरुआत महाराणा प्रताप की मूर्ति के पास से हुई और इसका समापन गांधी मैदान के पास स्थित उस कारगिल चौक के पास किया गया, जो कारगिल युद्ध के शहीदों की याद में बना है. इस यात्रा में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के साथ-साथ दोनों उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा और भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े शामिल थे. यात्रा की अगुआई का जिम्मा महिला कार्यकर्ताओं को दिया गया, ताकि ऑपरेशन सिंदूर का सांकेतिक प्रतिनिधित्व भी हो सके.
हालांकि दिलीप जायसवाल अपने संबोधन में सेना के शौर्य और साहस को सलाम करने की बात करते रहे मगर वे साथ-साथ भारत सरकार के साहसिक निर्णय की तारीफ करना न भूले. डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने तो अपने भाषण में ज्यादातर प्रधानमंत्री मोदी और भारत सरकार की तारीफ ही की. उन्होंने कहा, "ऑपरेशन सिंदूर को रक्षा नीति का न्यू नॉर्मल बता कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 140 करोड़ देशवासियों के मन की बात कही है. मोदी जी सीमा पर खड़े होकर युद्ध का नेतृत्व करने वाले पहले राजनेता हैं. उनके हाथों में देश सुरक्षित है."

ऐसे में विपक्षी दल राजद को यह कहने का मौका मिल गया है कि बीजेपी ऑपरेशन सिंदूर को बिहार चुनाव में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है. इंडिया टुडे से बातचीत में राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "हमारे नेता तेजस्वी यादव लगातार कहते रहे हैं कि सेना को राजनीति से दूर रखना चाहिए मगर बीजेपी की सबसे बड़ी बीमारी है कि वह धर्म के नाम पर, भगवान के नाम पर और सेना के नाम पर सियासत करती है. मतलब साफ है, ये क्रेडिट लेने की होड़ में हैं. मगर क्रेडिट तो भारतीय सेना को जाना चाहिए. सरकार और बीजेपी का तो यह हाल है कि इन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को मध्यस्थ बना लिया है, वे कश्मीर की चर्चा कर रहे हैं."
दिलचस्प है कि जहां बिहार बीजेपी तिरंगा यात्रा निकाल रही है, वहीं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और छत्तीसगढ़ में शहीद हुए जवानों को एयरपोर्ट और उनके घर जाकर श्रद्धांजलि देने और उनके परिजनों से मिलने में व्यस्त हैं. बीएसएफ के एसआई मोहम्मद इम्तियाज को जब पटना एयरपोर्ट पर श्रद्धांजलि दी जा रही थी तो उस राजकीय सम्मान में न सीएम मौजूद थे, न दोनों डिप्टी सीएम, उन्हें श्रद्धांजलि देने तेजस्वी गए थे. इसके बाद सवाल उठने लगे थे कि राज्य सरकार शहीद का समुचित सम्मान नहीं कर रहा. इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद शहीद इम्तियाज के गांव गये और कई घोषणाएं कीं.
मगर 14 मई को जब एक दूसरे शहीद रामबाबू सिंह का मृत शरीर पटना एयरपोर्ट पहुंचा तो वहां भी सीएम और दोनों डिप्टी सीएम नहीं पहुंचे थे. तेजस्वी यादव ही मौजूद रहे. वे इसके साथ-साथ जहानाबाद भी गए, जहां आईटीबीपी के शहीद जवान सौरभ कुमार यादव को श्रद्धांजलि दी और उनके परिजनों से मुलाकात की. वहीं मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, “मैं तो चाहता हूं पाकिस्तान में तिरंगा यात्रा निकले.”
हालांकि बीजेपी इन आरोपों से इनकार करती है. बिहार बीजेपी के मीडिया प्रभारी दानिश इकबाल इंडिया टुडे से बातचीत में कहते हैं, “यह बिल्कुल निराधार आरोप है कि बीजेपी चुनावी वजहों से तिरंगा यात्रा निकाल रही है. यह सेना के पराक्रम के सम्मान में खुशी का इजहार करते हुए निकाली जा रही है. हां, नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व का भी महत्व है जिन्होंने सेना को खुली छूट दी." वे इन आरोपों से भी इनकार करते हैं कि यह यात्रा सीजफायर की वजह से हुए डैमेज को कंट्रोल करने के लिए निकाली जा रही है. वे कहते हैं, “उस रोज 12 बजे से ही पाकिस्तान बिना शर्त भारत से सीजफायर का अनुरोध करने लगा था. हमने अपनी शर्तों पर सीजफायर किया है. हां, अमेरिकी राष्ट्रपति ने जरूर ट्वीट किया है. मगर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में किसी मध्यस्थता की बात को खारिज किया है.”
वे यह भी जानकारी देते हैं कि आने वाले दिनों में पूरे बिहार के सभी जिलों और मंडलों में यह यात्रा निकाली जाएगी. ऐसे में जाहिर है, बीजेपी पर ऑपरेशन सिंदूर के राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप भी लगते रहेंगे.

इस मसले पर जब इंडिया टुडे ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र से टिप्पणी मांगी तो उन्होंने कहा, “हालांकि नैतिक रूप से युद्ध का राजनीतिक इस्तेमाल गलत है, मगर पहले भी युद्ध के राजनीतिक इस्तेमाल होते रहे हैं मगर अब तक सरकारों को इसका लाभ अमूमन नहीं मिला. 1965 के युद्ध के बाद 1967 में पहली बार देश के नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार बनी. 1971 में पाकिस्तान को आत्मसमर्पण कराकर काफी मजबूत हो जाने वाली इंदिरा गांधी को भी आखिरकार इमरजेंसी लगाने पर मजबूर होना पड़ा और 1977 में वे चुनाव हार गईं. मगर बीजेपी ने युद्धों का इस्तेमाल अपने पक्ष में करने की कला विकसित कर ली है. 1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की मजबूत वापसी हुई. 2019 में पुलवामा के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करके नरेंद्र मोदी सरकार ने वापसी की. ऐसे में अगर बीजेपी पर तिरंगा यात्रा के बहाने इसका राजनीतिक इस्तेमाल करने के आरोप लग रहे हैं तो वे गलत नहीं हैं.”
भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई के बाद जब सीजफायर हुआ तब सोशल मीडिया पर बीजेपी समर्थकों के एक बड़े तबके में निराशा थी. दरअसल उसे लग रहा था कि इस बार मोदी सरकार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर वापस ले लेगी और बलूचिस्तान को भी आजाद करा देगी. पुष्पेंद्र इन बातों का हवाला देते हुए कहते हैं, " मैं यह मानता हूं कि अभी जो तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है, उसका मकसद चुनावी कम, इस ऑपरेशन के बाद हुए सीजफायर और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दखल की वजहों से हुए डैमेज का कंट्रोल अधिक है. उधर पाकिस्तान में भी विजय यात्रा निकाली जा रही है. ऐसे में बीजेपी के सामने इसे कंट्रोल करने और अपनी छवि सुधारने की चुनौती थी. इसी मकसद से यह किया जा रहा है. बिहार चुनाव अभी काफी दूर है, इसलिए यह चुनावी नहीं लगता."