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उत्तर प्रदेश : BJP-RLD गठबंधन की गांठ क्यों पड़ रही ढीली?

हाथरस मेले में “RLD आई रे” गाने पर बवाल से लेकर मथुरा की सीटों की खींचतान तक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में BJP और RLD का रिश्ता तनाव में है. पंचायत चुनाव इस गठबंधन के लिए बड़ी परीक्षा बन सकते हैं

अजगर' फार्मूला अपनाएगी RLD
जयंत चौधरी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)
अपडेटेड 18 सितंबर , 2025

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का गठबंधन लगातार चर्चा में है. गठबंधन के नेता भले ही मंच से तालमेल और मजबूती का दावा करते हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर दिखा रही है. हाल के दिनों में दोनों दलों के बीच तनातनी के कई वाकये सामने आए हैं, जिन्होंने यह संकेत दे दिया है कि रिश्तों की गांठें छिपाए नहीं छिप रहीं.

ताजा मामला 14 सितंबर का है. हाथरस जिले में आयोजित दाऊजी महाराज मेले के पंजाबी दरबार कार्यक्रम में हरियाणवी गायक एंडी जाट ने जैसे ही मंच से “RLD आई रे” गाना शुरू किया, कुछ BJP कार्यकर्ताओं ने उन्हें इसे गाने से रोक दिया. माहौल बिगड़ता देख एंडी जाट मंच छोड़कर चले गए. 

इस घटना का वीडियो वायरल होते ही मामला गरमा गया. RLD कार्यकर्ताओं ने इसे अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. विरोध भले ही खुले तौर पर नहीं दिखा, लेकिन जाट समाज के शिविर में 17 सितंबर को एंडी जाट को दोबारा बुलाया गया. इस कार्यक्रम में RLD प्रमुख जयंत चौधरी खुद पहुंचे और एंडी जाट से वही गीत गवाया. मंच पर यह महज गीत-संगीत का कार्यक्रम नहीं था, बल्कि राजनीतिक संदेश भी साफ झलक रहा था. 

जयंत चौधरी ने कार्यकर्ताओं को यह भरोसा दिलाया कि पार्टी की पकड़ जमीनी स्तर पर मजबूत है. RLD के जिलाध्यक्ष श्याम सिंह ने कहा, “BJP से हमारा कोई मनमुटाव नहीं है. आयोजक द्वारा गाना बंद कराने पर जनता के मन में ठेस पहुंची है. आयोजकों को इसके लिए सफाई देनी चाहिए थी.” वहीं BJP जिलाध्यक्ष शरद महेश्वरी ने पलटवार किया, “गाना नहीं रुकवाया गया. पूरा गाना सिंगर ने गाया है. वीडियो में कोई रोकता हुआ नजर नहीं आ रहा. मामले को अनावश्यक तूल दिया गया है.” हाथरस की सादाबाद सीट को RLD “जाट लैंड” मानती है. यहां जाट वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है. यही कारण है कि “RLD आई रे” गाने पर विवाद को RLD ने प्रतिष्ठा से जोड़ लिया.

ब्रज क्षेत्र में खींचतान

ब्रज क्षेत्र में BJP और RLD की सियासी होड़ पुरानी है. मथुरा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वर्ष 2009 में जब BJP-RLD गठबंधन था, तब जयंत चौधरी मथुरा से सांसद बने थे. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में BJP की हेमा मालिनी ने उन्हें हराकर सीट अपने नाम कर ली. इसके बाद से मथुरा में RLD की पकड़ कमजोर हुई, लेकिन कार्यकर्ता अब भी इसे अपनी पार्टी की मजबूत ज़मीन मानते हैं. हाल ही में मथुरा जिले की छाता विधानसभा सीट पर BJP और RLD नेताओं की खींचतान खुलकर सामने आई. गन्ना विकास मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण और पूर्व मंत्री ठाकुर तेजपाल सिंह में दशकों से सियासी प्रतिद्वंद्विता रही है. 

पिछले महीने जब जयंत चौधरी, तेजपाल सिंह से मिलने पहुंचे तो तेजपाल ने मीडिया में बयान दिया कि अगली बार छाता सीट RLD के खाते में जाएगी और उनका बेटा चुनाव लड़ेगा. इस पर नाराज होकर लक्ष्मी नारायण ने RLD को “पट्टपांव पार्टी” बता दिया और कहा कि जिसके साथ यह दल रहता है, उसका “सूपड़ा साफ” हो जाता है. बाद में उन्होंने बयान बदलकर मीडिया पर ठीकरा फोड़ दिया और खुद को चौधरी चरण सिंह का अनुयायी बताया. 

तनातनी यहीं खत्म नहीं होती. मथुरा की मांट विधानसभा में BJP विधायक राजेश चौधरी और RLD के एमएलसी योगेश नौहवार के बीच जमकर खींचतान है. राजेश चौधरी ने सीएम योगी आदित्यनाथ तक शिकायत की कि नौहवार निजी पैसों से अवैध रूप से शिलापट्टियां लगवा रहे हैं. लोक निर्माण विभाग को निर्देश देना पड़ा कि अवैध पट्टियां हटाई जाएं. हाल ही में सुरीर क्षेत्र में लगीं शिलापट्टिकाएं क्षतिग्रस्त कर दी गईं. इससे दोनों नेताओं के समर्थकों में और तनाव बढ़ गया. यह विवाद दिखाता है कि गठबंधन के बावजूद स्थानीय स्तर पर BJP और RLD नेताओं में प्रतिस्पर्धा किस कदर गहरी है.

सीटों का डर और पंचायत चुनाव

BJP के कई विधायकों को गठबंधन चुभने लगा है. उन्हें डर है कि सीटों के बंटवारे में उनकी विधानसभा सीट RLD के खाते में न चली जाए. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यही डर चौधरी लक्ष्मी नारायण के बयान में झलक रहा था, जब उन्होंने RLD को पट्टपांव पार्टी कहा. 

2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी RLD की नजरें पश्चिमी यूपी की दर्जनों सीटों पर हैं. इनमें आगरा, मथुरा, हाथरस, बिजनौर और अलीगढ़ प्रमुख हैं. इन सीटों पर RLD पहले जीत चुकी है या दूसरे स्थान पर रही है. यही वजह है कि पार्टी पंचायत चुनाव को टेस्ट मान रही है. RLD ने ऐलान किया है कि पंचायत चुनाव वह अपने दम पर लड़ेगी. RLD के पंचायत चुनाव समिति संयोजक डॉ. कुलदीप उज्ज्वल का कहना है, “स्थानीय स्तर पर संगठन मजबूत होगा तो विधानसभा चुनाव में सफलता आसान होगी.” वहीं BJP के क्षेत्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिसोदिया कहते हैं, “अभी गठबंधन पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है. शीर्ष नेतृत्व बातचीत के बाद फैसला करेगा.” 

पूर्व के गठबंधन और नतीजे

RLD और BJP का रिश्ता हमेशा उतार-चढ़ाव भरा रहा है. वर्ष 2009 में दोनों दल गठबंधन में थे और जयंत चौधरी मथुरा से सांसद बने. लेकिन 2014 में गठबंधन टूटा और RLD का खाता तक नहीं खुला. 2019 में भी जब RLD ने सपा-बसपा गठबंधन में चुनाव लड़ा, तो उसे एक भी सीट नहीं मिली. 2022 के विधानसभा चुनाव में RLD ने सपा के साथ मिलकर मुकाबला किया. पार्टी को 8 सीटें मिलीं और वह पश्चिमी यूपी में फिर से प्रासंगिक हो गई. BJP को जाट वोटों में सेंध लगने का डर तब से और बढ़ गया है. 

यही कारण था कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले BJP और RLD ने साथ आने का फैसला किया. लेकिन चुनाव परिणाम ने साफ कर दिया कि समीकरण उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. कई सीटों पर गठबंधन होने के बावजूद BJP को झटका लगा. राजनीतिक विश्लेषक और मेरठ विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा. अजय सिंह मानते हैं, “BJP और RLD का गठबंधन जातीय समीकरणों पर टिका है. लेकिन स्थानीय स्तर पर नेताओं की प्रतिस्पर्धा इतनी गहरी है कि कार्यकर्ताओं में भी दरार साफ झलकती है. पंचायत चुनाव में अगर RLD अकेले उतरती है तो BJP के लिए आगे के चुनावों में जीमीनी सांमंजस्य बिठाने की चुनौती और बढ़ जाएगी.”

हाथरस से लेकर मथुरा और मांट तक के घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि BJP और RLD के बीच भरोसे की कमी गहराती जा रही है. पंचायत चुनाव में RLD का अलग उतरना इस गठबंधन की सबसे बड़ी परीक्षा होगी. दोनों दलों के शीर्ष नेता भले ही मंच पर एकजुटता दिखा रहे हों, लेकिन कार्यकर्ता स्तर पर खींचतान खुलकर सामने आ रही है. सवाल यही है कि क्या BJP और RLD इस गांठ को चुनाव से पहले सुलझा पाएंगे या फिर यह गठबंधन भी पश्चिमी यूपी की राजनीति का एक और अल्पकालिक प्रयोग बनकर रह जाएगा.

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