बिहार के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस बार एक दिलचस्प रणनीति अपनाई है, उत्तर प्रदेश से अपने संगठनात्मक और प्रचारक दिग्गजों की पूरी फौज मैदान में उतार दी है. पार्टी ने न केवल उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बिहार चुनाव का सह-प्रभारी बनाया है, बल्कि कई मंत्रियों, सांसदों और पूर्व विधायकों को अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी है. यह कदम सिर्फ चुनावी समन्वय भर नहीं है, यह BJP के “यूपी मॉडल” को बिहार में उतारने की कोशिश है.
केशव प्रसाद मौर्य, जो उत्तर प्रदेश में BJP के पिछड़ा वर्ग के बड़े चेहरे हैं. उनको बिहार में सह-प्रभारी बनाया गया है. उनके साथ अब यूपी के कई दिग्गज नेता बिहार में डेरा डाल चुके हैं. इलाहाबाद पश्चिम से विधायक और पूर्व मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह को एक अनोखा लेकिन अहम पद दिया गया है- “प्रभारी, पॉलिटिकल नैरेटिव”. पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के पोते सिद्धार्थनाथ को बिहार में BJP के प्रचार की थीम और नैरेटिव तय करने की जिम्मेदारी मिली है.
वे पार्टी की उस टीम का हिस्सा हैं जो प्रशांत किशोर जैसे खिलाड़ियों के प्रभाव को संतुलित करते हुए, तेजस्वी यादव और कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ सीधी रणनीति बना रही है. योगी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे सिद्धार्थनाथ सिंह का फोकस सोशल मीडिया और जनसंपर्क पर है. वे बिहार में दो बड़े सोशल मीडिया हब- भागलपुर और मुजफ्फरपुर- से प्रचार अभियान चलाएंगे. जानकारी के मुताबिक यह वही मॉडल है जो छत्तीसगढ़ में 2023 में BJP की शानदार जीत में कारगर साबित हुआ था.
बिहार में “यूपी मॉडल”
BJP का मानना है कि यूपी के नेता जमीनी संगठन और बूथ प्रबंधन में देश के सबसे प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं में गिने जाते हैं. पार्टी संगठन से जुड़े एक बड़े नेता बताते हैं, “वर्ष 2012 से लेकर 2022 तक यूपी में BJP नेताओं और कार्यकर्ताओं को जिस प्रकार चुनावी अभियान के लिए प्रशिक्षित किया गया उसकी मिसाल पार्टी के भीतर भी दूसरी नहीं है. अब इन्हीं कार्यकर्ताओं और नेताओं का अनुभव दूसरे प्रदेशों के चुनावों में काम आ रहा है.”
बिहार में यह मॉडल दोहराने की कोशिश हो रही है. यूपी के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को आरा लोकसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है, जो फिलहाल भाकपा (माले) के कब्जे में है. स्वतंत्र देव कुर्मी समुदाय से आते हैं और संगठन में उनकी छवि एक जुझारू जमीनी नेता की है. उन्हें कार्यकर्ताओं को संगठित करने और बूथों पर फोकस बनाए रखने का काम सौंपा गया है. इसी तरह, केंद्रीय राज्य मंत्री (वित्त) पंकज चौधरी, जो कुर्मी भी हैं, को पश्चिम चंपारण लोकसभा सीट का प्रभारी बनाया गया है, इसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में चार बार के BJP सांसद संजय जायसवाल करते हैं.
फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से BJP सांसद राज कुमार चाहर को शिवहर लोकसभा सीट की जिम्मेदारी दी गई है, जिसे जेडी(यू) की लवली आनंद ने जीता था. बिहार में लोकसभा क्षेत्रों के हिसाब से यूपी के इन BJP नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है- अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम (बक्सर), जीबी नगर के सांसद महेश शर्मा (औरंगाबाद), पूर्व सांसद और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा वर्मा (पटना साहिब), राज्य उपाध्यक्ष मोहित बेनीवाल (किशनगंज), फेफना के पूर्व विधायक उपेंद्र तिवारी (दरभंगा), प्रतापगढ़ के पूर्व सांसद संगम लाल गुप्ता (मुजफ्फरपुर), कौशाम्बी के पूर्व सांसद विनोद सोनकर (सीवान) और कन्नौज के पूर्व सांसद सुब्रत पाठक (उजियारपुर) शामिल हैं.
BJP की रणनीति साफ है- हर लोकसभा क्षेत्र में एक ऐसा नेता तैनात करना जो स्थानीय जातीय समीकरणों को समझता हो, कार्यकर्ताओं को मोटिवेट कर सके और सोशल मीडिया से लेकर बूथ प्रबंधन तक पर पकड़ रखता हो. पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह को मिथिला व तिरहुत क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है. परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह को बिहार चुनाव के प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान के साथ लगाया गया है.
जाति और अभियान का संतुलन
बिहार की राजनीति उत्तर प्रदेश से कहीं अधिक जाति-केंद्रित है. यहां मतदाता भावनाओं और सामाजिक पहचान के आधार पर वोट करते हैं. BJP जानती है कि यूपी का संगठनात्मक मॉडल बिहार की जटिल सामाजिक बुनावट में पूरी तरह फिट नहीं बैठता. इसलिए पार्टी ने जातीय प्रतिनिधित्व को भी ध्यान में रखा है. केशव मौर्य और पंकज चौधरी जैसे ओबीसी चेहरे, स्वतंत्र देव जैसे कुर्मी नेता, और शलभ मणि त्रिपाठी जैसे ब्राह्मण चेहरों को मिलाकर BJP एक संतुलित सामाजिक संदेश देने की कोशिश कर रही है.
BJP ने हर लोकसभा क्षेत्र में यूपी नेताओं को इसलिए लगाया है ताकि वे बूथ स्तर तक “माइक्रो मैनेजमेंट” कर सकें. यह वही तरीका है जो योगी और अमित शाह की टीम ने यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनाया था. पार्टी का मानना है कि बिहार में एनडीए बनाम राजद-कांग्रेस की लड़ाई में उसे एक मजबूत, अनुशासित और प्रशिक्षित संगठनात्मक मशीनरी की जरूरत है और यूपी का अनुभव इसमें बड़ी पूंजी है. एक वरिष्ठ BJP रणनीतिकार ने कहा, “हमने देखा है कि यूपी के कार्यकर्ता सीमित संसाधनों में भी कैसे मतदाता को बूथ तक ले आते हैं. बिहार में भी वही मॉडल दोहराया जा रहा है, हर गांव, हर वार्ड में BJP का डिजिटल और फिजिकल नेटवर्क.” भागलपुर और मुजफ्फरपुर में जो सोशल मीडिया हब बन रहे हैं, वे चुनाव प्रचार की नब्ज होंगे. यहां से फेसबुक, व्हाट्सएप और एक्स (ट्विटर) पर वीडियो, ग्राफिक्स और लोकल भाषाई कंटेंट लगातार भेजे जाएंगे.
चुनावी मैदान में “योगी फैक्टर”
पार्टी को भरोसा है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर बिहार चुनाव के स्टार प्रचारक होंगे. पिछली बार, यानी 2020 में, योगी ने बिहार के 17 जिलों में 19 रैलियां की थीं, जिनसे 75 विधानसभा सीटें कवर हुई थीं. इनमें से 50 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी. उनकी रैलियों का असर सीमांचल से लेकर मगध तक दिखा था. योगी ने “जंगलराज” और “भ्रष्टाचार” को मुद्दा बनाकर राजद और कांग्रेस पर तीखा हमला बोला था. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और अनुच्छेद 370 हटाने जैसे मुद्दों ने हिंदू मतदाताओं को गोलबंद किया था. सीमांचल की सभाओं में उन्होंने घुसपैठ और धार्मिक फतवों के मुद्दे उठाकर BJP को भावनात्मक समर्थन दिलाया था.
इस बार भी पार्टी की कोशिश है कि योगी की लोकप्रियता और सख्त प्रशासक की छवि का उपयोग बिहार में किया जाए. बिहार में BJP की चुनौती केवल राजद-कांग्रेस गठबंधन तक सीमित नहीं है. प्रशांत किशोर यानी पीके, अपनी जन सुराज पार्टी के जरिए तीसरे मोर्चे की तलाश में हैं. BJP को डर है कि अगर पीके का ग्राउंड अभियान असर दिखाने लगा, तो वे अरविंद केजरीवाल की तरह एक “क्लीन पॉलिटिक्स” वाले विकल्प के रूप में उभर सकते हैं.
हालांकि BJP बिहार के चुनावी मुकाबले को द्विध्रुवीय राजद-कांग्रेस बनाम एनडीए बनाने की कोशिश में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस रणनीति का हिस्सा हैं. हाल में उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को लेकर राजद पर हमला किया, यह कहते हुए कि लालू राज में लोग अपने बच्चों को वाराणसी, दिल्ली और मुंबई भेजने को मजबूर थे. मोदी ने नीतीश कुमार और एनडीए सरकार को इसका श्रेय दिया कि उन्होंने “राजद शासन में जो सड़ रहा था, उसे बहाल किया.”
विपक्ष की चुनौती
तेजस्वी यादव और कांग्रेस गठबंधन इस बार बेरोजगारी, शिक्षा और महंगाई जैसे मुद्दों को केंद्र में लाना चाहते हैं. लेकिन BJP इसे “विकास बनाम भ्रष्टाचार” की लड़ाई बनाना चाहती है. नीतीश कुमार की विकास योजनाओं और केंद्र की कल्याणकारी नीतियों को पार्टी अपनी ढाल बना रही है. BJP यह भी चाहती है कि एनडीए की सरकार को “स्थिरता” और “विकास का भरोसा” देने वाली ताकत के रूप में पेश किया जाए. इसके लिए यूपी से आए नेताओं को गांव-गांव जाकर केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की जानकारी देने का काम सौंपा गया है.
BJP के लिए बिहार चुनाव महज एक राज्य की लड़ाई नहीं है. यह 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद उसके संगठनात्मक विस्तार का अगला बड़ा इम्तिहान है. पार्टी इस चुनाव में अपनी सबसे भरोसेमंद “वॉर मशीन” यानी यूपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारकर यह संदेश दे रही है कि अब उसके लिए कोई राज्य “आउट ऑफ बाउंड” नहीं है. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यूपी की शैली बिहार की भावनात्मक, जाति-प्रधान राजनीति में उतनी ही कारगर होगी? अभी तो यही कहा जा सकता है कि भगवा दल ने बिहार में “यूपी ब्रिगेड” उतारकर मैदान को और दिलचस्प बना दिया है जहां संगठन, जाति और नैरेटिव, तीनों की टक्कर तय करेगी कि सत्ता की राह किस ओर मुड़ती है.