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बिहार : SIR के पहले ड्राफ्ट पर कांग्रेस की 89 लाख शिकायतें, बीजेपी की एक भी नहीं! आखिर गड़बड़ कहां है?

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के पहले ड्राफ्ट पर दावा-आपत्तियां दर्ज कराने के लिए एक सितंबर आखिरी दिन है. कांग्रेस का दावा है कि उसने 89 लाख शिकायतें दर्ज कराई हैं तो वहीं बीजेपी और जेडीयू ने इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है

पटना के सदाकत आश्रम 31 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस करते कांग्रेस के नेता
अपडेटेड 1 सितंबर , 2025

सितंबर का पहला दिन बिहार के मतदाताओं के लिए दो तरीके से महत्वपूर्ण है. एक तो विपक्षी इंडिया गठबंधन इस रोज 14 दिन चली 'वोटर अधिकार यात्रा' का समापन राजधानी पटना में करने जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ राज्य में चुनाव आयोग द्वारा 25 जून से चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR की समाप्ति हो रही है. आयोग ने दावे-आपत्ति के लिए एक सितंबर ही आखिरी तारीख चुनी है. महीने की 30 तारीख को फाइनल ड्राफ्ट प्रकाशित होगा.

कांग्रेस इससे पहले तक केंद्र के सत्ताधारी एनडीए गठबंधन और चुनाव आयोग की मिलीभगत और 'वोट चोरी' को मुद्दा बनाने में जुटी रही है. वहीं 31 अगस्त को उसने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग पर बड़ा आरोप लगाया. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सदाकत आश्रम में पत्रकारों को बताया कि SIR के पहले ड्राफ्ट के जारी होने के बाद से लेकर अब तक पार्टी की तरफ से आयोग को 89 लाख शिकायतें दी गई हैं.

खेड़ा ने पत्रकारों के सामने इन शिकायतों की पावतियां भी दिखाईं और कहा, “इसके बावजूद आयोग की तरफ से कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने अब तक शून्य शिकायत की है. सच यह है कि जब हमारे बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) शिकायत लेकर जाते हैं, तो उन्हें यह कहकर लौटा दिया जाता है कि वे सिर्फ इंडीविजुअल (एक व्यक्ति एक शिकायत) शिकायतें लेंगे. तो क्या मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार गुप्ता को राजनीतिक दलों से शिकायतें नहीं लेने का निर्देश मिला है?”

दरअसल पहला ड्राफ्ट जारी होने के अगले ही दिन से बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी का कार्यालय रोज इस बात की सूचना जारी करता रहा है कि ड्राफ्ट के खिलाफ कितनी आपत्तियां दाखिल हुईं. इनमें व्यक्तिगत आपत्तियों के आंकड़े भी रहते हैं और राजनीतिक दलों की तरफ से जारी आपत्तियां भीं. इन आंकड़ों के मुताबिक आयोग को 31 अगस्त, 2025 की सुबह दस बजे तक जहां 2,40,891 व्यक्तिगत आपत्तियां मिलीं, वहीं राजनीतिक दलों से सिर्फ 128 आपत्तियां ही मिलीं. इनमें 118 आपत्तियां भाकपा-माले की तरफ से मिलीं और 10 राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से. कांग्रेस समेत बाकी सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों से कोई आपत्ति मिलने की बात से आयोग इनकार कर रहा है. 

हालांकि कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) के कार्यालय ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि कांग्रेस के जिला कमिटी अध्यक्षों ने पिछले एक-दो दिनों में 89 लाख मतदाताओं के नाम काटने के पत्र दिए हैं. लेकिन नियमानुसार कोई भी नाम काटने की आपत्ति सिर्फ फार्म 7 भर कर  बूथ लेवल एजेंट द्वारा निर्धारित प्रपत्र और घोषणा पत्र के साथ दी जा सकती है. प्रेस रिलीज के ही मुताबिक हालांकि ये आपत्तियां निर्धारित प्रपत्र में नहीं हैं, फिर भी उन्हें उचित कार्रवाई के लिए निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों को भेजा जा रहा है. साथ ही उन्हें जिला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्षों से निर्धारित शपथ पत्र भराने के लिए भी निर्देशित किया गया है. लेकिन अभी भी वह नियमों का हवाला देता नजर आ रहा है.

दरअसल सीईओ, बिहार के कार्यालय ने इंडिया टुडे को पहले ही जानकारी दी थी कि एक अगस्त को उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के साथ प्रक्रिया और आपत्ति के प्रपत्र (prescribed form) साझा किए थे. नियम यह है कि आपत्ति राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट ही विहित प्रपत्र में दाखिल करा सकते हैं. वे एक दिन में दस और अधिकतम 30 आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं. आपत्तियों के साथ मतदाताओं द्वारा भरा गया फार्म 6 और साथ में तयशुदा फॉर्मेट का घोषणा पत्र होना चाहिए. जबकि राजनीतिक दल एक पत्र के साथ मतदाताओं की सूची लगाकर भेज दे रहे हैं. वे नियम का पालन नहीं कर रहे, लिहाजा आयोग उन्हें आपत्ति नहीं मान रहा. 

दूसरी तरफ राजनीतिक दल इस प्रक्रिया को जटिल बताकर इसका विरोध कर रहा है. भाकपा माले के प्रवक्ता कुमार परवेज कहते हैं, “आयोग ने आपत्ति की पूरी प्रक्रिया को मुश्किल बना रखा है. हमारे पास ज्यादातर बूथों में बूथ लेवल कार्यकर्ता नहीं हैं. हम ऐसे में वहां कैसे आपत्ति करें. अगर हमारा जिलाध्यक्ष भी पार्टी के लेटर हेड पर या विहित प्रपत्र में ही आवेदन करता है तो आयोग उसे भी नहीं मानता. इसके अलावा मतदाताओं से फार्म 6 भरवाने का क्या तुक है. अगर मतदाता फार्म 6 भर ही देगा तो उसे हमारी मदद की क्या जरूरत? आयोग ने जानबूझकर पूरी प्रक्रिया को जटिल बनाकर रखा है. ताकि कम से कम आपत्तियां आएं.”

हालांकि बाद के दिनों में भाकपा-माले ने आयोग की प्रक्रिया का पालन करते हुए आपत्तियां भिजवाईं. उनके सिर्फ 1496 बूथों पर ही एजेंट हैं, इसके बावजूद उन्होंने 118 आपत्तियां भिजवाईं. वहीं राजद के बूथ लेवल एजेंटों ने दस आपत्तियां भिजवाईं, जबकि उनके 47,506 बूथ लेवल एजेंट हैं. राजद के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव कहते हैं, “दरअसल हमारे बूथ लेवल एजेंटों ने बड़ी संख्या में आपत्ति दर्ज कराई हैं, मगर बीएलओ और दूसरे अधिकारी इसकी पावती हमें नहीं देते. इन शिकायतों को तो छोड़िए, बीएलओ ने मतदाताओं को भी फॉर्म भरने की पावती नहीं दी. इनका खुद का सिस्टम ठीक नहीं है और ये दूसरे को सिस्टम से चलने कहते हैं. दरअसल दिक्कत इनकी मंशा में है. मंशा ठीक रहती तो ये इतनी कागजी कार्रवाई करने नहीं कहते.”

दिलचस्प है कि जहां राजद, कांग्रेस और भाकपा-माले जैसी विपक्षी पार्टियों चुनाव आयोग के अधिकारियों के पास आपत्ति दर्ज कराने की बात कह रही है. बीजेपी और जदयू जैसे सत्ताधारी दल को इस SIR के पहले ड्राफ्ट से कोई आपत्ति नहीं है. बीजेपी प्रवक्ता दानिश इकबाल कहते हैं, “हमारी पार्टी को SIR के ड्राफ्ट से कोई आपत्ति नहीं है.” जदयू के प्रवक्ता अभिषेक झा भी कहते हैं, “मेरी जानकारी में अब तक कोई आपत्ति पार्टी की तरफ से दर्ज नहीं कराई गई है.”

हालांकि यह सत्ताधारी दलों का आधिकारिक स्टैंड भर है. दरभंगा नगर विधानसभा के बूथ लेवल एजेंट वन लक्ष्मण कुमार ने इंडिया टुडे को उस शिकायत की प्रति उपलब्ध कराई है, जिसमें उन्होंने दरभंगा नगर विधानसभा के 665 मतदाताओं के नाम एक साथ दो या तीन जगह दर्ज होने की सूचना दी थी. 16 अगस्त, 2025 को उन्होंने यह पत्र दरभंगा के जिला निर्वाचन पदाधिकारी को भेजा था. प्रपत्र सात में इस आपत्ति के नहीं होने के कारण आयोग ने इसे भी राजनीतिक दलों द्वारा दायर आपत्ति नहीं माना और इसे सामान्य मामले के रूप में स्वीकार किया है.

इस बीच आयोग ने बिहार के तीन लाख मतदाताओं के दस्तावेज अपूर्ण होने की वजह से उन्हें नोटिस भेजा है और एक सप्ताह के भीतर दस्तावेज जमा करने का निर्देश दिया है. अब देखना है कि 30 सितंबर को फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद SIR को लेकर चल रही राजनीतिक लड़ाई और मतदाताओं के मसले किस दिशा में जाते हैं.

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