
“आपसे यह गुजारिश करना है कि दुबारा यहां से आप मजलिस के उम्मीदवार को कामयाब कीजिए. मैं आपको इस बात का तवक्कुल (भरोसा) दे रहा हूं कि अबकी बार जो कोचाधामन से मजलिस का उम्मीदवार होगा, वह आपकी दुआओं से कामयाब भी होगा और विधायक भी बनेगा और कोई दुनिया की ताकत, कोई दुनिया की पार्टी का लीडर उसके जमीर को नहीं खरीद सकेगा.” 24 सितंबर को अपनी सीमांचल न्याय यात्रा की शुरुआत में कोचाधामन के बेलवा में नुक्कड़ सभा के दौरान जब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी अपने भाषण की शुरुआत इन लफ्जों से करते हैं, तो मुसलमानों के हुकूक के सवाल पर दहाड़ने वाले थोड़े डिफेंसिव भी नजर आते हैं.
अगले ही पल वे यह भी कहते हुए नजर आते हैं, “यह इल्जाम सरासर झूठ है कि मजलिस के खड़े होने से वोट डिवाइड हो जाते हैं. अरे अब हम और क्या कर सकते. हमारे अख्तरुल इमान साहब ने दो-दो खत लिखा है लालू प्रसाद यादव को, एक खत लिखा तेजस्वी यादव को कि आओ हमसे इत्तेहाद कर लो. बल्कि अख्तरुल इमान साब ने ये तक लिखकर दे दिया कि आप मजलिस को सिर्फ छह सीटें दे दीजिये और हम अलायंस करने के लिए तैयार हैं. मैं बताना चाह रहा हूं तेजस्वी यादव को कि यह हमारी कमजोरी नहीं है. हम ताकत की बुनियाद पर तुमको यह लिखकर दे रहे हैं.” वे आगे कहते हैं कि उनकी पार्टी को मंत्री का पद भी नहीं चाहिए, बस वे सीमांचल का विकास चाहते हैं. चाहते हैं कि सरकार बने तो सीमांचल विकास बोर्ड बने. वे यहां की जनता के हित में ऐसा करते नजर आ रहे हैं.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल में पांच सीटें जीत कर लोगों को हैरत में डाल देने वाली पार्टी AIMIM के सबसे बड़े नेता असदुद्दीन ओवैसी के ठंडे तेवर और समझौते की बातें इशारा कर रही हैं कि इस बार उन्हें सीमांचल से 2020 की तरह समर्थन मिलने का पूरा भरोसा नहीं है. उनके सीमांचल पहुंचते ही मीडिया के सामने उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान कहते हैं, “हम नहीं चाहते कि सेकुलर वोटों का बिखराव हो मगर उन लोगों (महागठबंधन) ने हमारी बातें नहीं मानी. अब हम चाहते हैं कि सीमांचल के लोग हमारा इंसाफ करें.”
इस तरह अख्तरुल जनता के सामने यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि उन्हें ‘सेकुलर’ वोटों के बिखराव की वजह और ‘सेकुलर’ पार्टियों (महागठबंधन) के हार की वजह न समझा जाए. बार-बार यह कह कर कि उनके विधायकों को दूसरी पार्टी ने अपने पाले में कर लिया और इस गद्दारी का हिसाब अल्लाह करेंगे, वे महागठबंधन पर यह तोहमत भी लगाते हैं कि वे सीमांचल में मुसलमानों के हक की आवाज उठाने वालों के दुश्मन हैं. ओवैसी अपने भाषणों में तेजस्वी को संबोधित करते हुए यहां तक कहते हैं, “चुनाव के बाद यह मत कहना कि मम्मी-डैडी मेरा बैट और बॉल कोई और लेकर भाग गया.”
24 सितंबर से 27 सितंबर तक आयोजित पार्टी की सीमांचल न्याय यात्रा में भाग लेने आए असदुद्दीन ओवैसी चार दिनों में सीमांचल के चारों जिलों की यात्रा कर लौट चुके हैं. इस दौरान उन्होंने वक्फ, घुसपैठ, सीमांचल के पिछड़ेपन और ऐसे कई मुद्दों पर सवाल उठाए. उन्होंने हमेशा की तरह यह भी कहा, “बिहार की सियासत की यह तल्ख हकीकत है कि यहां राजपूतों का अपना नेता है, भूमिहारों का नेता है, कुशवाहा-कुर्मी का नेता है, यादवों-पासवानों का नेता है, मांझी का नेता है. अगर किसी का नेता नहीं है तो वह मुसलमानों का है. क्योंकि पिछले 25-30 साल से यह अफीम देकर हमको बेहोश कर दिया गया है कि बीजेपी को हराना है.”

उन्होंने यह भी कहा कि उनके नेता अख्तरुल ईमान सीमांचल के इंसाफ और तरक्की की लड़ाई अकेले लड़ रहे हैं. मगर यह सब कहते हुए न उनकी आवाज में 2020 वाली खनक थी और न ही सुनने वालों में वैसा उत्साह था. जानकार इसके पीछे की वजह बताते हैं कि 2020 में उनकी सभाओं में लोग खुद-बखुद उमड़े चले आते थे, इस बार टिकट पाने की चाहत रखने वालों ने जगह-जगह भीड़ जुटाई है. इसलिए जहां 2020 में ओवैसी की बातें हक और हुकूक को लेकर होती थी, इस बार वे समझौते की मांग और उसके लिए की गई बारगेनिंग पर अधिक जोर दे रहे हैं.
साढ़े चार लाख मेंबरों वाले सीमांचल के सबसे बड़े सोशल मीडिया ग्रुप ‘खबर सीमांचल’ के मॉडरेटर हसन जावेद कहते हैं, “ओवैसी साहब को इस बात का अंदाजा है कि 2020 में जो हांडी चढ़ी थी, उसकी इस बार संभावना नहीं है, इसलिए वे इस बार सरेंडर मोड पर हैं. लेकिन वे लोगों को इस बात का अहसास नहीं होने दे रहे. वे अपनी जुबान से ही घोड़े हांक रहे हैं. वे चाहते हैं कि दबाव में आकर महागठबंधन समझौता कर ले और उनकी कुछ सीटें निकल आएं. मगर इसबार लोग उनको लेकर जज्बाती नहीं हो रहे. बल्कि उनसे सवाल पूछ रहे हैं, पूछ रहे हैं कि आपको हमने जिताया, मगर आपने हमारे लिये क्या किया.” हसन मानते हैं कि ओवैसी के आने से सीमांचल में उनके कार्यकर्ता जरूर उत्साहित हुए हैं. टिकट पाने के ख्वाहिशमंदों ने उनकी यात्रा में जगह-जगह भीड़ भी जुटाई है. मगर जो जज्बा 2020 में दिखता था, जिस तरह तब गांवों में उनकी चर्चा होती थी, वह इस बार गायब है.
हसन के मुताबिक, “इसके साथ-साथ उनकी इस बात को लेकर आलोचना भी हो रही है कि उन्होंने सीमांचल में जिस पहले व्यक्ति को अपना उम्मीदवार घोषित किया, बहादुरगंज सीट से. वह एक आपराधिक छवि का इंसान है, उस पर कई मुकदमे हैं. लोग उन पर टिकट बेचने का आरोप भी लगा रहे हैं.”
तो क्या इसी वजह से AIMIM महागठबंधन से समझौता करना चाह रही है? अपने लिए छह सीटें मांग रही है? क्या पार्टी को इस बार अपनी जीत पर भरोसा नहीं है? जानकार मानते हैं कि AIMIM भले जीते नहीं मगर वह महागठबंधन का खेल तो खराब कर ही सकती है. ओवैसी जानते हैं कि यही उनकी ताकत है सो वे महागठबंधन को बारगेन कर रहे हैं. अख्तरुल ईमान लालू और तेजस्वी को चिट्ठियां लिख रहे हैं. पटना में उनके आवास पर गठबंधन की मांग करते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं. मगर सवाल यह है कि वे कौन सी छह सीटें हैं, जो AIMIM अपने लिए चाहती है.
सीमांचल के इलाके के मीडिया समूह “मैं मीडिया” के संस्थापक तंजील आसिफ कहते हैं, “वैसे तो पार्टी ने इसका खुलासा नहीं किया मगर यह माना जा रहा है कि अब तक पार्टी ने जिन छह सीटों पर जीत दर्ज की है, (2020 में पांच सीटें क्रमशः अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, बहादुरगंज और 2019 के उपचुनाव में जीती किशनगंज की सीट) वे उन सीटों को चाहते हैं. हालांकि उनका दावा कटिहार की एक सीट बलरामपुर पर हो सकता है, जहां से उनके युवा साथी आदिल हुसैन चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.”
तंजील भी यह मानते हैं कि AIMIM को लेकर इस बार वैसा क्रेज नहीं है. वे कहते हैं, “पिछली बार उनकी जीत की एक वजह यह भी थी कि कुछ सीटों पर लंबे समय से विधायक थे, खास कर अमौर, बायसी और बहादुरगंज में, वहां एंटी इंकंबेंसी थी. इस बार वह माहौल नहीं है. इसके अलावा पिछली बार कुछ बड़े चेहरे इनकी पार्टी से जुड़े थे, वे भी इस बार नदारद है. अख्तरुल ईमान और तौसीफ के अलावा इस बार उनके पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है. तौसीफ आलम जिन्हें उन्होंने बहादुरगंज से अपना उम्मीदवार बनाया है, उनकी छवि को लेकर नकारात्मक चर्चा है. ऐसे में महागठबंधन पर दबाव बनाकर कुछ सीटें ले लेना उनकी स्ट्रेटजी हो सकती है.”
दरअसल सीमांचल के इलाके में 24 विधानसभा सीटें हैं. यह इलाका मुस्लिम बहुल है. यहां 2015 से AIMIM सक्रिय है और 2020 में मिली बड़ी जीत ने पार्टी को यहां बड़ा फैक्टर बना दिया है. हालांकि 2020 में जो पांच विधायक जीते उनमें से चार आज राजद और कांग्रेस में हैं. सिर्फ इनके प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान पार्टी के साथ हैं. इस बार पार्टी का असर जरूर घटा है, मगर इसके बावजूद यह माना जा रहा है वह महागठबंधन का नुकसान करने की स्थिति में तो है ही. हसन कहते हैं, “खासकर मदरसों, खानकाहों और दरगाहों से जुड़े मुसलमानों पर उनकी पकड़ अभी भी है.” ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महागठबंधन AIMIM के दबाव में आएगा?
इस मद्दे पर सवाल पूछने पर राजद प्रवक्ता एजाज अहमद कहते हैं, “समझौते का तरीका ढोल बजाने का नहीं होता है. ओवैसी साहब की पार्टी खुद अपने राज्य तेलंगाना में आठ सीट के बढ़कर नौ सीट पर नहीं लड़ती मगर वे बिहार में सेकुलर पार्टियों को कमजोर करने आ जाते हैं. उनकी मंशा लोग खूब समझते हैं. बिहार के मुसलमान लालू जी, तेजस्वी जी और राजद के साथ खड़े हैं. महागठबंधन के साथ खड़े हैं. ओवैसी साहब जज्बाती नारों से लोगों को भड़काना चाहते हैं, मगर यह बिहार में नहीं चलने वाला.”