
बिहार के खुसरुपुर के मोसिमपुर गांव में घुसते ही जगह-जगह बिजली के खंभों पर 'आई लव राजद' लिखा नजर आने लगता है. आगे बढ़ने पर एक दीवार पर बड़ी सी लालटेन की तस्वीर है, जिसके एक तरफ आरजेडी लिखा है, दूसरी तरफ अशोक दास. ये अशोक दास खुसरुपुर प्रखंड के राजद दलित प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं. वे रविदास जाति से आते हैं. 23 सितंबर की रात को इनके ही परिवार की एक महिला को गांव के दबंगों ने पीटा और नंगा करके घुमाया, साथ ही मूत्र भी पिलाया.
इस घटना के बारे में पूछते ही अशोक दास बिफर पड़ते हैं, वे कहते हैं, "पीड़िता मेरी भावज (छोटे भाई की पत्नी) है. कभी हम उसका चेहरा तक नहीं देखे थे. उस रात हम उसको देखे पूरी तरह नंगा देख लिए. वह एक हाथ में साड़ी पकड़े भागी आ रही थीं. देखकर हम सन्न रह गए. आज भी जब वह सीन याद आता है, तो बर्दाश्त नहीं होता. मन होता है परमोद सिंह को गोली मार दें." अशोक दास का यह इकलौता दुख नहीं है.
वे आगे कहते हैं, "मैंने अपनी पार्टी (राजद) को पंद्रह साल दिए. मगर आज जब मेरे ऊपर विपदा आई है, तो मेरी पार्टी मेरे साथ खड़ी नहीं है. दूसरे सभी पार्टियों के नेता अपने मन से मेरे घर आए. दिलासा दिया और न्याय दिलाने की बात करके गए. मगर अपनी पार्टी के नेता को हमको बुलाना पड़ा. फोन करके कहा तो घटना के दो दिन बाद विधायक अनिरुद्ध यादव यहां आए, जबकि उनका घर सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर है."

अशोक दास राजद के सामान्य कार्यकर्ता नहीं हैं. वे लालू के 'अनन्य भक्त' हैं. 2004 लोकसभा चुनाव में जब लालू प्रसाद यादव ने छपरा सीट से जीत दर्ज की थी, तो उन्होंने खून से अपने पूरे शरीर पर एक लाख बार लालू-लालू लिख लिया था. लालू के समर्थन में कई दफा वे एक पांव पर पूरे-पूरे दिन खड़े रहे. एक दफे दस दिन तक उन्होंने अपनी छाती पर लालटेन रखकर लालू का समर्थन किया था.
वे बताते हैं कि लालू खुद उन्हें काफी मानते थे. अपने घर बुलाते थे, खाना-पीना खिलाते थे. कंधे पर हाथ रखकर बातें करते थे. राबड़ी देवी भी उनसे भरपूर स्नेह रखती रही हैं. एक दफा राजद की कोई बड़ी रैली गांधी मैदान में हो रही थी तो वे बिस्कोमान भवन के सामने एक पांव पर खड़े हो गये थे, तब लालू उनके पास आए. गले लगाया और माला पहनाया. तब से उनका लालू से नजदीकी रिश्ता बन गया था.
ऐसे में अब उनकी पार्टी उनके साथ खड़ी नहीं है. लालू ने उनका समर्थन नहीं किया. इस बात से उन्हें गहरी चोट पहुंची है. वे कहते हैं, "बहुत कुछ दिमाग में चल रहा है. बहुत कुछ निर्णय भी किया है. देखना है कि सरकार हमारे लिए क्या करती है. लालू जी क्या एक्शन लेते हैं. वे अपने समाज को देखते हैं या हम जैसे सेवक को."
दरअसल इस घटना के आरोपी यादव जाति से संबंधित हैं, जो राजद के कोर वोटर माने जाते हैं. उनकी इस गांव में संख्या भी अधिक है. स्थानीय विधायक अनिरुद्ध यादव भी इसी जाति से जुड़े हैं. ऐसे में जब पार्टी से समुचित रिस्पांस नहीं मिल रहा तो अशोक दास को लग रहा है कि पार्टी उनके साथ नहीं, अपने कोर वोटरों के साथ खड़ी है.

ऐसा ही आरोप राज्य में मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी लगाया है. घटना के बाद खुसरूपुर पहुंची भाजपा के महिला नेताओं की टीम ने कहा, अपराधियों को सरकार का संरक्षण है, इसलिए पीड़िता को न्याय नहीं मिल रहा. भाजपा प्रवक्ता योगेंद्र पासवान ने कहा है, "मोसिमपुर में जो जघन्य घटना हुई है, उसका आरोपी राजद का गुंडा है. राजद के लोग महादलितों पर अत्याचार करते रहे हैं. इनके राज्य में दलितों का सम्मान बचने वाला नहीं है."
हालांकि इस घटना के बाद महागठबंधन से जुड़ी पार्टी भाकपा-माले और ऐपवा की जांच टीम भी खुसरूपुर गयी. उनका कहना था, "पूरे देश में भाजपा और आरएसएस ने हिंसा और घृणा का जो माहौल बनाया है, उसकी वजह से दलितों और महिलाओं पर हमले की घटना में लगातार बढ़ रही है." टीम ने सूदखारी को खत्म करवाने, जिम्मेवार अपराधियों को तत्काल गिरफ्तार करने और पीड़ितों को मुआवजा और पुनर्वास दिलाने की मांग सरकार से की है. पार्टी ने इस घटना के विरोध में प्रतिवाद सभा का आयोजन किया और मार्च निकाला.
इस घटना के बाद बिहार के कई राजनीतिक दल के नेता खुसरूपुर पहुंच रहे हैं और इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी खूब हो रही है. मगर अशोक दास के बड़े भाई बिजली दास, जो अंबेडकरवादी विचारधारा के फॉलोवर हैं. कहते हैं, “औपचारिकता निभाने के लिए भले ही जितनी पार्टियां आएं, मगर हमारा साथ सिर्फ लोजपा (रामविलास), बसपा और भीम आर्मी के लड़कों ने दिया. राजद ने तो बिल्कुल साथ नहीं दिया, जो बुलाने पर आए, उनका क्या भरोसा.” फिर वे हमें उस कमरे में ले चलते हैं, जहां पीड़िता, उनकी भावज एक पलंग पर लेटी हैं.
कैसे हुई यह घटना?
दरवाजे के आखिर में एक अंधेरे कमरे में लेटी पीड़िता सीमा देवी(बदला नाम) के सिर पर पट्टी बंधी है, जिस पर खून के धब्बे नजर आते हैं. उनके पास उनकी ननद बैठी हैं. वे अपने शरीर पर जगह-जगह लगे चोटों की वजह से ठीक से बोल नहीं पातीं. कराहती हुई कहती हैं, "हमने दो साल पहले कोरोना के वक्त परमोद जी से 1500 रुपए उधार लिए थे. दस दिन बाद पैसे वापस भी कर दिए. मगर पिछले कुछ दिन से वे लोग पैसे का दो साल का सूद मांग रहे थे. (बिजली दास कहते हैं, उनलोगों का कहना है कि सूद बढ़कर दस हजार से अधिक हो गया है.)"
वो आगे कहती हैं, "22 सितंबर को शुक्रवार के दिन उनकी पत्नी ममता देवी और बेटा अंशु मेरे घर आए और पैसा मांगने लगे. हमने जब कहा कि आपका पैसा तो तभी वापस कर दिया है, तो उनके बेटे ने गुस्से में ईंट फेक कर हमला कर दिया. ईंट सीधे मेरी छाती पर लगा. फिर अगले दिन शनिवार को सुबह छह बजे हम जब पानी लाने के लिए सड़क के किनारे हैंडपंप के पास गए तो वहां बैठे एक नाई ने पूछा, क्या मन है, उनका पैसा नहीं दोगी. हम बोले, पैसा तो दे दिए हैं. तो वह हमको लाठी से मारने लगा. बहुत देर तक मारपीट करता रहा. मेरी एक चचेरी सास उसके पांव में लटक गई तब वह छोड़ा और फिर हम घर आकर बंद हो गए.”

वे कहती हैं, "उस रात दस बजे मेरी ननद को शौचालय जाना था, तो हम उसके लिए पानी लाने हैंडपंप के पास गए. उस वक्त परमोद सिंह वहीं था. बोला, चलो मेरे साथ. तुम्हारे पति को हम अपने घर में बंद करके रखे हैं. मेरा पति दो दिन से काम करने फतुहा गया था, उससे बात भी नहीं हो पा रही थी. ऐसे में हम डरकर उसके साथ चले गए. वहां उसने मेरा सारा कपड़ा उतार दिया और लाठी से पिटाई करने लगा. अपने बेटे से कहा कि इसके मुंह में मूत दो. बेटा मेरे मुंह में पिसाब कर दिया. फिर हम नंगे बदन किसी तरह वहां से भाग कर आए."
बिजली दास कहते हैं, "नंगा करने का इरादा प्रमोद सिंह का पहले से था. वह दिन में ही धमकी देकर गया था. अब तुमको गांव में मारेंगे और नंगा नचाएंगे. 23 सितंबर को वह पूरे दिन हमारे टोले की घेराबंदी किए हुए था. लोग डर से घर से बाहर नहीं निकल रहे थे. शौचालय की मजबूरी थी, इसलिए मेरी भावज को निकलना पड़ा."
वे कहते हैं, "जब इनकी ननद शौचालय से निकलीं और इनको नहीं देखा तो इसने हमलोगों की आवाज दी. फिर हमलोग उधर गए तो देखा कि ये नंगे बदन, साड़ी का एक कोर पकड़े भागी आ रही हैं. फिर हमने 112 नंबर डायल किया. पुलिस आई और हमें पहले थाने ले गई. फिर वहां कागजी कार्रवाई करके प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुसरूपुर ले गई. फिर अगले दिन शाम पांच बजे तक हमलोग वहीं रहे."
बिजली दास का कहना है कि घटना के पंद्रह मिनट के अंदर ही उनलोगों ने पुलिस को शिकायत कर दी थी. मगर पुलिस देर तक निष्क्रिय बनी रही. वे बताते हैं, "अगले दिन भी प्रमोद हमारे रविदास टोले में उन परिवारों पर दबाव बनाते रहा, जो उनके कर्जदार थे कि जल्दी से पैसा दे दो. डर की वजह से हमारे टोले के कई परिवार घर छोड़कर भाग गए."
रविदास टोले की उस गली में अभी भी तीन घरों पर ताले लटके नजर आते हैं. पड़ोसी बताते हैं कि सूदखोरों के भय से ही ये लोग पलायन कर गए हैं.
प्रशासन का सुस्त रवैया
बिजली दास कहते हैं, "अगर मामला हाईलाइट नहीं होता, हमें लोजपा (रामविलास) नेता सत्यानंद शर्मा का सहयोग नहीं मिला होता तो अब तक पूरा रविदास टोला गांव छोड़कर चला गया होता. सत्यानंद शर्मा मेरे परिचित हैं. उनको मैंने कहा तो उन्होंने फोन करने पुलिस के बड़े अधिकारियों को मामले की जानकारी दी. फिर 24 की रात डीएसपी हमारी गली में आए. तब हमें पुलिस सुरक्षा मिली."
अशोक दास बताते हैं, "पुलिस के असहयोग का यह हाल था कि वे हमें एफआईआर की कॉपी तक नहीं दे रहे थे. इसके लिए भी भीम आर्मी के लड़कों को थाने पर जाकर प्रदर्शन करना पड़ा."
हालांकि खुसरुपुर थाने की पुलिस का कहना है कि रविदास टोले की गली पर हमेशा पुलिस पहरा रहता है. मगर इंडिया टुडे का संवाददाता 27 सितंबर को जब ग्यारह बजे दिन में वहां पहुंचा तो वहां कोई पुलिस टीम नहीं थी. दोपहर दो बजे तक यही हाल रहा. इस बारे में पूछने पर इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी अरविंद कुमार कहते हैं, "वहां हमेशा पुलिस रहती है. शिफ्ट दर शिफ्ट रहती है. हो सकता है, वहां मौजूद दिवा गस्ती वाली टीम को कोई सूचना मिली होगी तो चली गई होगी."

इस मामले में अब तक हुई कार्रवाई के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, "प्राथमिक अभियुक्त प्रमोद सिंह को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया है. उनके बेटे अंशु कुमार को भी गिरफ्तार करने के प्रयास जारी हैं, उम्मीद है जल्द गिरफ्तारी होगी. अब तक मामले की जांच में पता चला है कि पीड़िता से मार-पीट हुई है. अभियुक्त ने भी अदालत के सामने यह स्वीकारा है कि उसने मारपीट की है. जहां तक नंगा घुमाने और मूत्र पिलाने की बात है, उसकी जांच चल रही है."
वे कहते हैं, "ऐसा पता चला है कि कोई आठ सेकेंड का ऐसा वीडियो भी बना है, जिसमें वह साड़ी लपेटते हुए आ रही है. हम उस वीडियो की तलाश में हैं. घटनास्थल के पास एक सीसीटीवी कैमरा भी लगा है. हम वहां से फुटेज निकालने में लगे हैं. अभी वहां भीड़ लगी रहती है, इसलिए हम बाद में निकालेंगे. जल्द पूरे मामले का खुलासा हो जाएगा."
सूदखोरी और सरकारी योजनाओं की विफलता
रविवास टोले की गली से बाहर निकलते ही गांव की कई महिलाएं मिलती हैं. ये महिलाएं इस घटना की के बारे में अपनी-अपनी जाति के हिसाब से बात करती हैं. एक बुजुर्ग महिला महमूदा खातून कहती हैं, "किसी भी औरत के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए. गरीब औरतों की इज्जत नहीं है क्या?" वहीं आंगनबाड़ी केंद्र के पास वाले घर में एक महिला कहती हैं, "सब झूठा मामला है. इनलोगों ने झूठ-मूठ में फंसा दिया है, ऐसे में कोई किसी को कैसे कर्ज देगा."
आरोपी प्रमोद सिंह का घर रविदास टोले के कुछ ही दूर है. उनके घर में उनके परिवार का कोई नहीं है. उनकी भाभी रेखा देवी और उनकी भतीजी मिलती हैं. उनकी भतीजी कहती हैं, "मेरी चाची और अंशु 22 सितंबर को ही बाढ़ चले गये थे. बाढ़ में मेरी चाची का मायका है. उनकी दो बेटियां भी यहां रहती हैं, मगर दोनों स्कूल गई हैं."
वे कहती हैं, "हमलोग साथ ही रहते हैं. हम नीचे रहते हैं, चाचा का परिवार ऊपर. उस रात शाम सात बजे ही मैंने घर के दरवाजे पर ताला लगा दिया था, ताला सुबह पांच बजे खोला. मेरे चाचा प्रमोद सिंह ऊपर अपने कमरे में थे. ऐसे में यह घटना कैसे हो सकती है? यह झूठा और मनगढंत आरोप है. हालांकि मेरे चाचा ने 26 सितंबर को आत्मसमर्पण कर दिया है." उनका आरोप है कि पीड़िता के परिवार ने उनकी दादी से भी पहले 15 हजार रुपये ले रखे हैं, उसने वो पैसा भी नहीं लौटाया है.

उनके घर से थोड़ी ही दूरी पर मोसिमपुर के सरपंच दिनेश सिंह मिलते हैं. वे कहते हैं, "मारपीट तो हुई है, मगर नंगा घुमाने की बात सही नहीं लगती. हमें पहले से पता होता कि ऐसा होगा तो हम होने नहीं देते. मैटर अचानक बढ़ गया इसलिए हमलोग हस्पक्षेप नहीं कर पाए." गांव में सूदखोरी और महाजनी के जाल के सवाल पर वे कहते हैं, "किस गांव में यह नहीं होता. हां, हमारे यहां भी है."
हालांकि बिजली दास का कहना है, "मोसिमपुर गांव में कम से कम 40-50 महाजन हैं, जो गरीबों को सूद पर पैसा देते हैं. इन महाजनों में ज्यादातर यादव जाति के हैं, जिनका इस गांव में प्रभुत्व है. पैसे न देने पर वे इसी तरह गरीबों को परेशान करते हैं. इससे पहले गांव में चाई जाति के लोगों को भी उन्होंने परेशान किया. पहले यहां 150 से अधिक चाई जाति के लोगों के परिवार थे, अब मुश्किल से 35-40 परिवार बचे हैं. इनके सूद की दर भी अधिक है, दस फीसदी प्रति सैकड़ा, प्रति माह."
दस फीसदी प्रति सैकड़ा, प्रति माह का अर्थ है. एक साल में ब्याज 120 फीसदी हो जाता है. जाहिर है, राज्य में सूदखोरी और महाजनी के विरोध में चलाए जा रहे अभियान बेअसर हैं. खास तौर पर कोरोना के समय से ऐसे मामले बढ़े हैं. इन्हें विस्तार से जानने के लिए इंडिया टुडे की स्टोरी पढ़ सकते हैं.
सूदखोरी के कहर को खत्म करने में बिहार में जीविका की बड़ी भूमिका बताई जाती है. मगर मोसिमपुर गांव में इस योजना के बावजूद महाजनी और सूदखोरी चरम पर है. खुद पीड़िता एक जीविका समूह की कोषाध्यक्ष हैं. मगर फिर भी उसे सिर्फ 1500 रुपए के लिए महाजन के दरवाजे पर जाना पड़ा. वे कहती हैं, "पहले भी हम जीविका से 25 हजार रुपये कर्ज ले चुके हैं, जिसकी अदायगी अब तक नहीं हो पाई. इसलिए मैंने दुबारा पैसे नहीं मांगे. अचानक तबीयत खराब हुई तो प्रमोद सिंह से पैसे लेने पड़े."

स्वच्छता अभियान और नल-जल योजना की विफलता भी कहीं न कहीं इस मामले से जुड़ती है. पीड़िता के घर में अपना शौचालय नहीं है. एक सामूहिक शौचालय है, जिसे तीन-चार परिवार एक साथ इस्तेमाल करते हैं. वहीं नल-जल योजना की आपूर्ति एक माह से बाधित है, जिस वजह से उसे दिन-रात पानी के लिए सड़क वाले शौचालय तक जाना पड़ता है. गली की नाली तक का निर्माण रविदास बस्ती के लोगों ने चंदा करके किया है
इस घटना के बाद राज्य महिला आयोग की सदस्य श्वेता विश्वास और सुजाता सुम्ब्रई भी 26 सितंबर को खुसरूपुर पहुंची. उन्होंने पीड़िता से मुलाकात के बाद आरोपियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी कर उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग की है.