
तारीख दो नवंबर, जगह पटना का गांधी मैदान. अपने जैसे हजारों नवनियुक्त शिक्षकों के बीच सीधे-सादे लिबास में पहुंची पूर्वी चंपारण की चुनमुन कुमारी अपने एडमिशन कार्ड का इंतजार कर रही हैं, ताकि वे अंदर जाएं और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों अपना नियुक्ति पत्र पा सकें.
चुनमुन कुमारी का शिक्षक बनने का सफर इतना आसान नहीं है. वंचित तबके से आने वाली चुनमुन की शादी 2013 में ही वीरेंद्र बैठा से हो गई थी. उनके दो छोटे बच्चे हैं और पति टोला सेवक हैं. वे कहती हैं, “घर संभालना, बच्चों को संभालना और उसके बाद पढ़ाई भी कर लेना. काफी मुश्किल था. मगर अब इस संघर्ष का अच्छा रिजल्ट आया है.”
उनसे थोड़ी दूर ही अपने माता-पिता के साथ पटना के अखिलेश कुमार गेहलौत मिलते हैं. माता-पिता को उनके नौकरी मिलने की इतनी खुशी है कि उन्होंने उनके गले में फूल मालाएं डाल रखी हैं. हाथ में एक गुलाब भी है. अखिलेश का चयन प्लस टू स्कूल में जूलॉजी शिक्षक के तौर पर हुआ है. वे बताते हैं, “2009 में ही ग्रेजुएशन किया था. 2013 में बीएड भी कर लिया. सपना था कि पिता की तरह शिक्षक बनूं. मगर लंबा इंतजार रहा. आज दस साल बाद सफलता मिली. यह मेरे लिए ही नहीं बिहार के युवाओं के लिए बड़ा काम हुआ है. एक अरसे के बाद लोगों को सरकारी नौकरी मिल रही है. हर जगह ऐसा काम होना चाहिए.”

उस रोज गांधी मैदान के अंदर ऐसे 25 हजार शिक्षक पहुंचे थे, जिन्हें नियुक्ति पत्र बांटा जा रहा था. उन्हें नियुक्ति पत्र देने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव समेत कई मंत्री और अधिकारी पहुंचे थे. इसी तरह राज्य के दूसरे जिलों में भी अलग-अलग जगहों पर ठीक उसी समय अन्य नव नियुक्त शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांटा जा रहा था.
2020 का विधानसभा चुनाव 10 लाख सरकारी नौकरियां देने के नाम पर लड़ने वाले राज्य के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के लिए यह बड़ा दिन था. उन्होंने मंच से गरजते हुए कहा, “देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी एक राज्य में, एक ही दिन में, एक विभाग ने, एक साथ, एक लाख बीस हजार नवनियुक्त शिक्षकों को निय़ुक्ति पत्र बांटा है. हमने नौकरी देने का वादा किया था, आपने इसलिए हमें वोट दिया था और आज हम नौकरी दे रहे हैं. यह तो शुरुआत है, यह सिलसिला अभी चलता रहेगा.” वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक की तरफ इशारा करते हुए कहा, “पाठक जी, अब जो 1.20 लाख शिक्षकों के पद खाली बचे हैं. हम कहते हैं, उसकी नियुक्ति भी जल्द से जल्द दो महीने के भीतर करवा लीजिये.”
राजनीतिक मुद्दा बनाना चाह रही सरकार
यह सच है कि बिहार के शिक्षा विभाग ने बहुत कम समय में 1.20 लाख से अधिक युवाओं को नौकरी दी है. इसी जुलाई में आवेदन की प्रक्रिया शुरू हुई थी और नवंबर तक इन्हें शुरुआती ओरिएंटेशन के बाद नियुक्ति पत्र भी मिल गया. और अब बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाना चाह रहा है. वे इसे एक मिसाल के तौर पर पेश करना चाह रहे हैं.
इसकी झलक तेजस्वी के भाषण में मिलती है, जब वे अपने भाषण के दौरान बजने वाली तालियों पर कहते हैं, “यह गूंज देश के कोने-कोने में जाना चाहिए. हर सरकार को यह गूंज सुनाई पड़नी चाहिए ताकि उन्हें पता चले कि बेरोजगारी ही असली दुश्मन है. सरकार का असली काम लोगों को रोजगार देना, उन्हें खुशहाल रखना और कल्याणकारी योजनाएं लागू कराना ही है.”

वे आगे कहते हैं, “आपने नौकरी के नाम पर वोट दिया तो नौकरी मिल रही है. मगर जिन लोगों ने हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद के नाम पर वोट दिए थे, उन्हें बेरोजगारी मिल रही है, बुल्डोजर मिल रहा है. गरीबी मिल रही है. हर साल दो करोड़ रोजगार का क्या हुआ. अब तो पीएम मोदी को भी नियुक्ति पत्र बांटना पड़ रहा है. हमारे मुद्दे पर आना पड़ रहा है. अब आप सोचिए कि आपको कैसी सरकार, हिंदू-मुसलमान वाली सरकार चाहिए या नौकरी देने वाली.”
सीएम नीतीश कुमार ने अपने भाषण में कहा, “कुछ दिन पहले जब उन्होंने 50 हजार नियुक्ति पत्र बांटे तो मीडिया में कितने दिनों तक सब आता रहा. मगर आज जब इतना बड़ा काम हो रहा है, लोग खुश हैं, तो यह सब मीडिया में थोड़े ही आएगा. अब आए न आए. हम तो डेढ़ साल के अंदर दस लाख लोगों को नौकरियां देंगे. दस लाख लोगों को रोजगार देने का भी वादा पूरा करेंगे.”
हालांकि बिहार में सत्ताधारी गठबंधन भले ही इसे अपनी एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रहा हो और इस एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाह रहा हो, राज्य की विपक्षी पार्टियां इस उपलब्धि से खुश नहीं हैं. राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी आरोप लगाते हुए कहते हैं, “मुश्किल से तीस हजार नए लोगों को नौकरी मिली है. 40 हजार नौकरियां तो दूसरे राज्य के लोगों को मिलीं और 37,500 नौकरियां उन नियोजित शिक्षकों को मिलीं, जो पहले से नौकरी में थे. सरकार अपनी छोटी उपलब्धि का बड़ा श्रेय लूट रही है.”

बिहार से बाहर के राज्यों के युवाओं को नौकरी मिलने का मुद्दा कई विपक्षी नेता उठा रहे हैं. एनडीए में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने इस आयोजन के विरोध में अपने आवास पर अदालत लगाई और इस शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ियों का आरोप लगाने वाले अभ्यर्थियों की शिकायतें सुनीं. उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार जानबूझकर दूसरे राज्य के युवाओं को नौकरी दे रहे हैं. यह सब यूपी के फूलपुर से चुनाव लड़ने की तैयारियां हैं.”
हालांकि इन आरोपों से इतर सरकार के आंकड़े अलग कहानी कहते हैं. मुख्यमंत्री कहते हैं, “दूसरे राज्य के सिर्फ 14 हजार युवाओं को नौकरी मिली है. जब हमारे राज्य के युवा दूसरे राज्यों में नौकरी पाते हैं, तो हम क्यों दूसरे राज्य के युवाओं को रोकें. यह तो ठीक नहीं.” वहीं बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 28,815 नियोजित शिक्षकों को ही इस नई नियुक्ति में नौकरी मिली है.
नौकरी का माहौल बना है, मगर...
बिहार में शिक्षा विभाग ने 1.20 लाख लोगों को नौकरियां दीं, अन्य 1.20 लाख नौकरियों की भर्ती निकलने वाली है. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग में 1.50 लाख पद, बिहार पुलिस में 51 हजार पद और अन्य दूसरे विभागों में नौकरियों की घोषणा हुई है. इससे राज्य में सरकारी नौकरियों की तैयारी करने वालों में उत्साह दिखता है. मगर उनकी कुछ आशंकाएं भी हैं.
सारण जिले के दिघवाड़ा में रहकर बिहार पुलिस और दारोगा की तैयारी करने वाले सन्नी कुमार कहते हैं, “माहौल निश्चित तौर पर बदला है. मेरे अपने पंचायत के एक दर्जन से अधिक युवाओं को नौकरी मिली है, इनमें छह तो मेरे मित्र हैं. ये लोग लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे. अब इनको सफलता मिली तो अच्छा लग रहा है. मगर सरकार का यह सिस्टम भी पूरी तरह ठीक नहीं. चुनाव के वक्त तो सरकार एक साथ लाखों नौकरियां बांट देती हैं. मगर बाकी समय सन्नाटा रहता है. अगर सरकार युवाओं के लिए सचमुच चिंतित है तो उसे जॉब कैलेंडर जारी करना चाहिए कि कब किस विभाग में भर्तियां निकलेंगी. तभी सचमुच युवाओं का भला होगा.”
वहीं भागलपुर में रहकर एसएससी की तैयारी कर रहे सूरज (बदला नाम) कहते हैं, “शिक्षक भर्ती में जरूर समय से तमाम प्रक्रियाएं पूरी हो गईं, मगर ज्यादातर नौकरियां पंचवर्षीय हो जाती हैं. एक चुनाव के पहले भर्ती निकलती है, दूसरे चुनाव के पहले नियुक्ति होती है. इस बीच कई युवाओं की उम्र बीत जाती है. वे अपने लिए कोई दूसरा ऑप्शन नहीं चुन पाते. भर्तियों का टाइम टेबल हो और उसका सख्ती से पालन हो. युवा पांच से दस साल तक नौकरी की तैयारी करते रहें, यह तो ठीक नहीं.”
वैसे तो अभी राज्य में ज्यादातर विभागों की वेकेंसी निकल गई है या निकलने की तैयारी में है. मगर बिहार के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अभी काफी वेंकेंसी है और उसकी भर्ती की कोई खबर नहीं है. बांका के रूपेश कुमार यादव जो जेआरएफ हैं, कहते हैं, “2014 में एक बार सहायक प्राध्यपकों की ज्वाइनिंग हुई थी, उसके बाद 2019 में नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई, जो अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. इसके अलावा बड़ी संख्या में कॉलेजों में पद खाली हैं. पता नहीं कि ये पद कब भरे जाएंगे. हमारे जैसे अभ्यर्थी लंबे समय से इंतजार कर रहे.”

हालांकि यह बात सभी युवा कहते हैं कि बिहार में सरकारी नौकरी तलाश रहे युवाओं के लिए यह स्वर्णिम मौका है जो लंबे अरसे बाद आया है.
नौकरी के साथ-साथ अच्छी पढ़ाई भी
बिहार सरकार युवाओं को नौकरी बांटने के साथ-साथ इन दिनों सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई की गुणवत्ता सुधारने में भी जुटी है. इसके लिए जुलाई, 2023 से ही शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के नेतृत्व में अभियान चल रहा है.
विभाग का दावा है कि इस बीच स्कूलों में उपस्थिति काफी बढ़ी है और शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ रही है. कॉलेजों के सत्र नियमित करने का भी अभियान चल रहा है. दो नवंबर, 2023 को नियुक्ति पत्र वितरण के कार्यक्रम में इन उपलब्धियों के बारे में एक छोटी सी फिल्म भी दिखायी गयी. सरकार का दावा है कि इस अभियान की वजह से 25 फीसदी से अधिक सरकारी स्कूलों में अब उपस्थिति 75 फीसदी से अधिक रहने लगी है. 72 फीसदी स्कूलों में उपस्थिति 50 से 75 फीसदी के बीच है. सिर्फ 2.89 फीसदी स्कूल ऐसे हैं, जहां उपस्थिति 50 फीसदी से कम है. इस बारे में इंडिया टुडे की यह विशेष स्टोरी पढ़ सकते हैं. इस हवाले से इंडिया टुडे ने एक स्टोरी भी की थी.
बिहार सरकार शिक्षा में सुधार और नौकरियां देकर इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाना चाह रही है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह सब खुद को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की कोशिश में कर रहे हैं. मगर ये कोशिशें कितनी सफल होंगी यह आने वाले दिनों में पता चलेगा.